
हम अन्तःकरण की वाणी सुनें और उसका अनुकरण करें
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
बाइबिल के ‘लूका’ संवाद में ईसा और मरियम का संवाद आता है। ईसा कही गायब हो गये। इनके माता-पिता खोजते फिरे। बहुत दिन बाद मिले तो मरियम ने कहा -तुम्हें खोजने के लिए हमें कितना दुःख उठाना पड़ा। तुम कहाँ चले गये थे? ईसा ने उत्तर दिया आप दुःखी न हों। मुझे तो अपने असली बाप के काम में लगे रहना है। इसके बाद ईसा कही चले गये और तीस वर्ष तक कुछ पता न लगा। बाइबिल में भी इन अज्ञातवास के तीस वर्षों की कोई चर्चा नहीं है।
आधुनिक खोज कर्ताओं ने उन तीस वर्षों का विवरण खोज निकाला है कि वे भारत में तीर्थयात्रा और धर्मशास्त्र का अध्ययन करते रहे। जो उन्होंने इस अवधि में सीखा उसी को उन्होंने अपने देश लौटकर धर्मोपदेश के रूप में कहना आरम्भ किया।
उन दिनों भारत में बौद्ध धर्म का प्रचार था। बुद्ध काल को बीते मात्र 500 वर्ष ही तब तक हुए थे। रूसी विद्वान निकोलस नारोविच ने लगातार चालीस वर्ष खोज करके उन प्रमाणों को खोजा है जो ईसा के तीस वर्षा का विवरण प्रस्तुत करते है। इस सामग्री को उन्होंने अपनी पुस्तक ‘अननोन लाइफ ऑफ जीसस’ में प्रकाशित किया है। साक्षी के रूप में उन्होंने तिब्बत में एक बौद्ध विहार में ताड पत्रों पर लिखा हुआ, ग्रन्थ प्रस्तुत किया है। जिसमें ईसा की भारत यात्रा में विभिन्न स्थानों के पर्यटन और अध्ययन का विवरण है। ईसा व्यापारियों के एक झुण्ड के साथ भारत आये यहाँ उन्होंने वैष्णव, जैन और बौद्ध विद्यालयों में धर्मशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की। कुछ दिन वे जगन्नाथ पुरी रहे। चूँकि वे शूद्रों से मेल-जोल रखते थे इसलिए पुरोहित लोग नाराज हुए। फलतः वे उस विद्यालय को छोड़कर अन्यत्र चले गये।
प्रसिद्ध इतिहासकार मिशचन्द्र दत्त ने अपनी पुस्तक “हिस्ट्री आफ सिविलाइजेशन इन एशियाँट इण्डिया” में विस्तार पूर्वक सिद्ध किया है कि ‘ईसाई धर्म बौद्ध धर्म की अनुकृति है’ वापस लौटने पर ईसा एसोसियन धर्म में दीक्षित हो गये वह वैराग्य प्रधान था। ईसा ने संन्यास लिया, इसी झंझट में ईसा को मृत्युदण्ड सहना पड़ा।
आर्थर लिलि ने अपनी पुस्तक ‘बुद्धिज्म इन क्रिस्टनडम’ में ईसा के जीवन की घटनाओं और सिद्धांतों का बुद्ध धर्म से तालमेल बिठाया है। इस पुस्तक में धर्म पद और बाइबिल के बहुत से उद्धरणों का एक साथ तालमेल बिठाया है।
अजीज कुरैशी से अपनी पुस्तक “क्राइस्ट इन काशीर” में लिखा है कि उन दिनों ईसा ही नहीं यहूदियों का एक बड़ा समुदाय काशीर में बस गया था। जिनमें बहुत से लोग अभी भी गूज्जर जाति के रूप में बस रहे है।
एक रूसी विद्वान ‘रोरिक’ ने अपनी पुस्तक ‘हार्ट आव काशिया’ में लिखा है -ईसा के जीवन का एक बड़ा भाग भारत और तिब्बत में व्यतीत हुआ। डाक्टर स्पेन्सर ने अपनी पुस्तक ‘मिस्टीकल लाइफ आफ जीसस’ और दुराई स्वामी आयंगर द्वारा लिखित ‘लोंग मिसिंग लिंक्स’ और मारवेल में ऐसे अनेकों प्रमाणों का संकलन है जिसमें ईसा का निवास एवं अध्ययन भारत के धर्मविद्यालयो में हुआ बताया है।
ईसा को मृत्यु दण्ड तो दिया गया पर न्यायाधीश पीलातुस ने उन्हें चतुरतापूर्वक बचा लिया और वे बाद में भी अपना काम करते रहे।
भविष्य पुराण प्रसंग 3 अध्याय 22 के श्लोक 22 से 26 तक ऐसा ही उल्लेख है जिसमें ईसा का भारत में लम्बे समय तक निवास और अध्ययन का वर्णन है।