
मनुष्य विवश है या समर्थ स्वतन्त्र
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यह यही है कि मनुष्य की इच्छा शक्ति और पुरुषार्थ परायणता उसे बहुत हद तक उन्नति-अवनति का अवसर प्रदान करती है पर यह सर्वाशतः सत्य नहीं है। नियति की विधि-व्यवस्था भी उसे बलात् अपने विशिष्ट प्रयोजनों के लिये प्रयुक्त करती रहती है और मनुष्य विवश होकर उसके सामने नतमस्तक होता रहता है।
सृष्टि संतुलन के लिए प्रकृति मनुष्य को कभी प्रगति के मार्ग पर कभी अवगति के मार्ग पर धकेलती है। कभी उत्पादन के अवसर प्रस्तुत करती है, कभी विनाश की विभीषिकाएँ सामने लाकर खड़ी कर देती हैं और मनुष्य को यह सोचने के लिए विवश करती है कि जहाँ वह बहुत कुछ है वहाँ प्रकृति के हाथ का नगण्य सा खिलौना भी है। उसे अपनी स्थिति पर अनावश्यक अहंकार नहीं करना चाहिए।
डा.क्लारेन्स ए.मिल्स ने अपनी खोज पूर्ण पुस्तक “क्लाइमेट मेक्स दि मैन” में ऐसे आँकड़े प्रस्तुत किये हैं जिनसे स्पष्ट होता है कि मौसम के उतार-चढ़ाव के अनुसार अमुक बीमारियाँ घटती और अमुक बढ़ती हैं इसी प्रकार लोगों की प्रसन्नता-अप्रसन्नता शान्ति तथा उद्विग्नता में भी अनायास ही अन्तर आता है। जुलाई, अगस्त में जब सड़ी गर्मी पड़ती है तब अक्सर पारिवारिक कलह बढ़ते हैं। अप्रैल से अगस्त तक की अवधि में सामूहिक उपद्रवों की बाढ़ आती है। मौसम की गर्मी लोगों का पारा गरम कर देती है। मानसून आने पर इस प्रकार के फिसाद अपने आप कम हो जाते हैं।
मौसम का मनुष्य की प्रवृत्तियों पर क्या असर पड़ता है इसका विशाल अध्ययन प्रो.ई.डेक्सटर ने किया है। उन्होंने 40 हजार अपराधों की घटनाओं की जाँच-पड़ताल करके यह पाया कि जैसे-जैसे मौसम गरम होता गया वैसे-वैसे अपराध बढ़ते गये और जिस क्रम से ठण्डक आई उसी अनुपात से अपराधों की संख्या घटती चली गई।
जार्ज स्टीवर्ट ने अपने ग्रन्थ ‘स्टार्म’ में यह दर्शाया है कि मौसम के उतार-चढ़ाव राज-सत्ताओं को उखाड़ सकने वाले उपद्रवों की पृष्ठभूमि बना सकते हैं और ठण्डक में लोग निराश एवं ठण्डी तबियत के साथ दिन गुजार सकते हैं।
बसन्त ऋतु मनुष्यों में ही नहीं अन्य प्राणियों में भी कामोत्तेजना उत्पन्न करती है। गर्भ धारण का आधा औसत उन्हीं दो महीनों में पूरा हो जाता है जबकि शेष दस महीनों में कुल मिलाकर उतनी ही मात्रा पूरी होती है। कोई अविज्ञात शक्ति प्राणियों कं मन में अकारण ही प्रणयकेलि के लिये उत्साह भर देती है और वे उस दिशा में किसी के द्वारा खींचे, धकेले जाने वाले की तरह उस प्रयोजन में प्रवृत्त हो जाते हैं।
सूर्य विशेषज्ञों का कथन है कि जिन दिनों सूर्य में लम्बे धब्बों की लाइनें बनती हैं, भयंकर विस्फोट होते हैं उन दिनों लोगों के दिमागों और परिस्थितियों में भी भयंकर उथल-पुथल होती है। अमेरिकी क्रान्ति, फ्राँसीसी राज क्रान्ति, रूसी क्रान्ति उन्हीं दिनों हुई जिन दिनों सूर्य में विस्फोट के चिह्न धब्बों रूप में दिखाई पड़ रहे थे। इनका असर मौसम, फसल, वनस्पति, समुद्र तथा प्राणियों की शारीरिक और मानसिक स्थिति पर असाधारण रूप से पड़ता है।
समष्टि प्रकृति को अनुकूल बनाने के लिए जनन मानस की आंतरिक स्थिति को उत्कृष्ट रखना आवश्यक होता है। उपासनात्मक, आध्यात्मिक उपचार इसी प्रयोजन के लिए है। यों प्रकृति के दबाव के आगे मनुष्य को नतमस्तक होना पड़ता है फिर भी वह उस दबाव को प्रतिकूल न बनने देने के लिए अपनी उत्कृष्ट आत्म-शक्ति का उपयोग कर सकता है। इस प्रकार विवश दिखाई पड़ने पर भी समर्थता उसके हाथ में बनी ही रहती है।