
भाग्य रेखायें
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सम्राट वसुसेन को ज्योतिष से अगाध लगाव था। कई ज्योतिषी उनके दरबार में प्रश्रय पाते और अपनी विद्या का चमत्कार भावी घटनाओं का पूर्वाभास कर दिखाते। वसुसेन की इन चमत्कारों से फलित ज्योतिष में श्रद्धा बढ़ी। उन्हीं ज्योतिषियों में एक का कहना था कि सम्राट को कोई भी कार्य करने से पहले उसकी सफलता या असफलता को ज्योतिष के माध्यम से जान लेना चाहिए। अन्य ज्योतिषियों ने भी जब इसका समर्थन किया तो यह प्रस्ताव स्वीकृत कर लिया गया और भविष्य में कोई भी कार्य करने से पहले ग्रहों का रुख तथा रेखाओं की स्थिति का अध्ययन किया जाने लगा।
की गयी भविष्यवाणियाँ सच होतीं या न होती, पर इसका गुणा, भाग और जोड़, घटाव में इतना समय लगने लगा कि आवश्यक कार्यों में भी विलम्ब हो जाता। यहाँ तक कि शत्रु देशों द्वारा आक्रमण करने पर उनका मुकाबला करने में भी ज्योतिष का आधार खोजने के कारण देर हो जाती और तब तक शत्रु सेनायें काफी आगे बढ़ आतीं।
वसुसेन की ज्योतिष में इतनी प्रगाढ़ आस्था देखकर उसके अधीनस्थ तथा प्रजाजन भी इस वितण्डावाद में उलझने लगे। समय पर काम न करने, भाग्य और दैव पर आश्रित रहने तथा कार्यों में आवश्यक दायित्व का अनुभव करने की प्रवृत्ति का ह्रास होने लगा। इस स्थिति से राजा को बड़ी चिन्ता हुई और उन्होंने इसका कारण राज ज्योतिषी से पूछा। ज्योतिषी ने कहा-‘‘महाराज इस समय शनि की वक्र दृष्टि चल रही है। कुछ ही समय में सब ठीक-ठाक हो जाएगा।”
एक दिन की बात है वसुसेन अपने प्रमुख सलाहकार राज-ज्योतिषी भास्कर मुनि के साथ प्रातः भ्रमण को निकले। रास्ते में उन्हें एक किसान दिखाई दिया जो अपने सुन्दर बैलों की जोड़ी को हाँकते हुए कन्धे पर हल रखकर गीत गाता हुआ जा रहा था। ज्योतिषी ने भावानुसार उसे रोका-मित्र कहाँ जा रहे हो। जिस ओर तुम्हारा खेत पड़ता है उस ओर तो आज दिशा शूल है। जाने से हानि होने पर डर है।
‘यह दिशाशूल क्या है’- किसान जो सचमुच इस सम्बन्ध में कुछ नहीं जानता था पूछने लगा।
राजा वसुसेन और भास्कर मुनि दोनों ही आश्चर्यान्वित हो गये। उन्होंने दिशाशूल का अर्थ समझाया। तब किसान ने कहा-‘‘मैं तो हमेशा अपने काम पर जाता हूँ। परन्तु आपके अनुसार यदि प्रति सप्ताह दिशाशूल अलग-अलग होना चाहिए तो मुझे कभी का बर्बाद हो जाना चाहिए था।”
‘जरूर तुम्हारी किस्मत अच्छी है’-भास्कर मुनि ने कहा-‘जरा हमें हाथ दिखाना तो।’
किसान ने अपने दोनों हाथ ज्योतिषी के सामने कर दिये। लेकिन हाथ इस तरह सामने किये गये थे कि हथेली जमीन की ओर रहे। इस अनगढ़ता पर ज्योतिषी को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने डरते हुए किसान से कहा-‘मूर्ख! इतना भी नहीं जानता कि रेखाएँ हथेली की देखी जाती हैं। हाथ हथेली की ओर से दिखा।’
किसान हँस उठा-‘‘महाराज हथेली की रेखाएँ वे लोग दिखाते हैं जो किसी के सामने हाथ फैलाते हों। हथेली की कोई रेखा मेरे कभी आड़े नहीं आती। देखिए न जब मैं हल चलाता हूँ तो हथेली की सभी रेखाएँ छुप जाती है। फिर इन कामचोर, रेखाओं को देखने से क्या लाभ।’
वसुसेन की तो जैसे आंखें खुल गईं और उन्होंने तत्काल कहा-‘बिलकुल ठीक कह रहा है किसान ज्योतिषी जी। मनुष्य के भाग्य का निर्धारण उसकी रेखाएँ नहीं कर्म हाथ करता है। अब तक मैं भी गलती कर रहा था।’
उसी समय से वसुसेन ने फलित ज्योतिष का गोरखधन्धा छोड़ दिया।
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