
Magazine - Year 1976 - Version 2
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Language: HINDI
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नर-नारी सब एक समान (kavita)
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धरती कहती, अम्बर कहता, कहते साधु-संत विद्वान।
छोटा-बड़ा नहीं है कोई, नर-नारी सब एक समान।।
माता, बहिन, सुता, पत्नी का, जिस घर में होता सम्मान।
शान्ति- कुंज वह देवधाम वह, वहाँ वास करते भगवान।।
घृत के दीप वहाँ जलते हैं।
सुरभित भाव सुमन खिलते हैं।।
जहाँ प्रेम से पार्वती शिव-
समता-ममता से मिलते हैं।।
खुश होते हैं देख-देखकर, एक दूसरे का उत्थान।
जीवन की मंजिल में दोनों, गाते सृष्टि सृजन का गान।।
एक दूसरे के पूरक हैं, तन है एक दूसरा प्राण।
छोटा-बड़ा नहीं है कोई, नर-नारी सब एक समान।।
पुरुष सबल पौरुष गुणधारी।
नारी पूनम की उजियारी।।
दोनों करें साधना ऐसी-
झूम उठे जीवन फुलवारी।।
एक दूसरे से बढ़-चढ़कर, क्षमता प्रतिभा है अनमोल।
दोनों की गरिमा से बढ़ जाता जीवन का मोल।।
जीवन-रथ के दोनों पहिये, विजय हार बनते अम्लान।
छोटा-बड़ा नहीं है कोई, नर-नारी सब एक समान।।
बीते युग की छोड़ो बातें।
करो नहीं आपस में घाते।।
वाद-विवादों में न गँवाओ-
स्वर्णिम दिन चाँदी-सी रातें।।
एक दूसरे को देता है, साहस, बल, सहयोग।
दूर हटे जिससे सदियों का, विकृतियों का भीषण रोग।।
करना है दोनों को मिलकर, नवयुग का नूतन निर्माण।
छोटा-बड़ा नहीं है कोई, नर-नारी सब एक समान।।
-बाबूलाल जैन ‘‘जलज’’
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*समाप्त*