• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • अभीष्ट की उपलब्धि भीतर से ही होगी।
    • ब्रह्म वर्चस् साधना और उसका ज्ञान विज्ञान
    • पंच कोशों की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि
    • Quotation
    • हमारा शरीर अत्यन्त विलक्षण
    • जीव सत्ता की प्रचण्ड शक्ति सामर्थ्य
    • अन्नमय-कोश और चमत्कारी हारमोन ग्रन्थियाँ
    • Quotation
    • हमारे शरीर के रहस्यमय घटक जीन्स
    • Quotation
    • अन्नमय कोश में जीन प्रक्रिया का परिवर्तन
    • (अन्नमय कोश) अन्नमय कोश का परिष्कार सम्भव भी है आवश्यक भी
    • प्राण संस्थान कितना स्पष्ट, कितना अद्भुत?
    • Quotation
    • मानवी विद्युत का प्रचण्ड प्रवाह-प्राण शक्ति में
    • प्राण शक्ति एक जीवन्त ऊर्जा
    • प्राण तत्व और श्वास-प्रश्वास प्रक्रिया
    • मनः संस्थान का समूची जीवन सत्ता पर प्रभाव
    • Quotation
    • मनोमय कोश-मस्तिष्कीय परिष्कार
    • VigyapanSuchana
    • मनोमय कोश प्रतिभा और संकल्प शक्ति का केन्द्र
    • Quotation
    • विज्ञानमय कोश और जीवन साधना
    • विज्ञानमय कोश की अतीन्द्रिय सामर्थ्य
    • हमारे उच्च चेतन ही अद्भुत क्षमताएँ
    • Quotation
    • VigyapanSuchana
    • आनन्दमय कोश-शिव शक्ति का संगम
    • गायत्री-सावित्री और कुण्डलिनी
    • कुण्डलिनी काम बीज का परिष्कार
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • अभीष्ट की उपलब्धि भीतर से ही होगी।
    • ब्रह्म वर्चस् साधना और उसका ज्ञान विज्ञान
    • पंच कोशों की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि
    • Quotation
    • हमारा शरीर अत्यन्त विलक्षण
    • जीव सत्ता की प्रचण्ड शक्ति सामर्थ्य
    • अन्नमय-कोश और चमत्कारी हारमोन ग्रन्थियाँ
    • Quotation
    • हमारे शरीर के रहस्यमय घटक जीन्स
    • Quotation
    • अन्नमय कोश में जीन प्रक्रिया का परिवर्तन
    • (अन्नमय कोश) अन्नमय कोश का परिष्कार सम्भव भी है आवश्यक भी
    • प्राण संस्थान कितना स्पष्ट, कितना अद्भुत?
    • Quotation
    • मानवी विद्युत का प्रचण्ड प्रवाह-प्राण शक्ति में
    • प्राण शक्ति एक जीवन्त ऊर्जा
    • प्राण तत्व और श्वास-प्रश्वास प्रक्रिया
    • मनः संस्थान का समूची जीवन सत्ता पर प्रभाव
    • Quotation
    • मनोमय कोश-मस्तिष्कीय परिष्कार
    • VigyapanSuchana
    • मनोमय कोश प्रतिभा और संकल्प शक्ति का केन्द्र
    • Quotation
    • विज्ञानमय कोश और जीवन साधना
    • विज्ञानमय कोश की अतीन्द्रिय सामर्थ्य
    • हमारे उच्च चेतन ही अद्भुत क्षमताएँ
    • Quotation
    • VigyapanSuchana
    • आनन्दमय कोश-शिव शक्ति का संगम
    • गायत्री-सावित्री और कुण्डलिनी
    • कुण्डलिनी काम बीज का परिष्कार
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1977 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


(अन्नमय कोश) अन्नमय कोश का परिष्कार सम्भव भी है आवश्यक भी

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 11 13 Last
भारतीय दर्शन के अंतर्गत जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए अन्नमय कोश की शुद्धि-पुष्टि ओर विकास को भी पर्याप्त महत्त्व दिया गया है। भौतिक प्रगति हो या आध्यात्मिक लक्ष्मी की प्राप्ति-दोनों के लिए ही उसे आवश्यक और उपयोगी ठहराया गया है। योग साधनाओं में अन्नमय कोश की साधना को भी महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। और उसके अनेक लाभों एवं सिद्धियों का भी उल्लेख मिलता है। इसके द्वारा ही योगी आरोग्य तथा शरीर संस्थान पर अद्भुत अधिकार प्राप्त कर लेते हैं। इच्छानुसार शरीर को गर्म या ठण्डा रखना, ऋतुओं के प्रभाव से अप्रभावित रहना, शरीर की ऊर्जा पूर्ति के लिए आहार पर आश्रित न रहकर उसे सीधे प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त कर लेना, दीर्घ-जीवन शरीर में वृद्धावस्था के चिह्न न उभरना आदि सभी उपलब्धियाँ अन्नमय कोश की साधना पर निर्भर करती है।

यह सब उपलब्धियाँ आध्यात्मिक साधना मार्ग पर बढ़ने के लिए भी उपयोगी सिद्ध होती है। ओर साँसारिक जीवनक्रम में भी इनका प्रत्यक्ष लाभ मिलता है। यह उपलब्धियाँ बड़ी आकर्षक भी लगती है। किन्तु योग मार्ग की यह बहुत प्रारम्भिक सीढ़ियाँ मात्र है। यह इसलिए आवश्यक है कि योग साधना के लिए आवश्यक साधना क्रम में यह शरीर अपनी असमर्थता प्रकट करके साथ देने से कतराने न लगे। अन्नमय कोश शुद्ध ओर पुष्ट होने पर ही व्यक्ति साँसारिक उतार-चढ़ाव के बीच अपनी शरीर यात्रा सन्तुलित क्रम से चलाता हुआ, अपने आत्मिक लक्ष्य की ओर अनवरत क्रम से बढ़ सकता है।

एक और सूक्ष्म प्रश् है जिसके लिए अन्नमय कोश को तैयार करना पड़ता है। आत्मिक प्रगति के क्रम में शरीर में अनेक दिव्य संवेदनाओं का संचार होता है। असंस्कारित अन्नमय कोश उसमें बाधक बना जाता है। अथवा वाँछित सहयोग नहीं देने पाता। इस क्रम में अनेक दिव्य क्षमताएँ उभरती है। उन्हें धारण करना उनके स्पन्दनों को सहन करने अपना सन्तुलन बनाये रखना भी बहुत आवश्यक है। यही सभी बातें परिष्कृत एवं विकसित क्षमता सम्पन्न अन्नमय कोश से ही सम्भव है।

इन सब उपलब्धियों एवं क्षमताओं का लाभ पाने के लिए अन्नमय कोश, उसके स्वरूप तथा सामान्य गुण धर्म के बारे में भी साधक के मस्तिष्क में स्पष्ट रूप रेखा होनी चाहिए। पाँचों कोशों की संगति में अन्नमय कोश की भूमिका तथा उसके महत्त्व को उचित अनुपात में समझना आवश्यक है।

हमारी सत्ता, स्थूल-सूक्ष्म अनेक स्तर के तत्त्वों के संयोग से बनी है। उनमें से हर एक घटक का अपना-अपना महत्त्व है। किसी एक घटक का महत्त्व बतलाने से किसी दूसरे घटक का महत्त्व कम नहीं होता, क्योंकि एक घटक दूसरे का सहयोगी पूरक तो है, किन्तु उसका स्थान वह स्वयं नहीं ले सकता। उदाहरण के लिए भवन निर्माण में प्रयुक्त सीमेन्ट का गारा (मार्टर) लें। उसमें सीमेन्ट, बालू, पानी रग आदि सभी मिलाये जाते हैं। किसी एक का भी स्तर घटिया हो तो सारा घटिया हो जाएगा। उसकी लोच, मजबूती, सुन्दरता आदि इन सभी के सन्तुलित संयोग से है। हमारे अस्तित्व के बारे में भी यही तथ्य लागू होता है। हमारे अस्तित्व के हर घटक का हर कोश का अपना-अपना महत्त्व है, इसीलिए उन सबकी उत्कृष्टता एवं सन्तुलन का ध्यान रखना आवश्यक है।

हमारी संरचना में एक बड़ा भाग वह है। जिसका सीधा सम्बन्ध स्थूल पदार्थों-पंच भूतों से है। उसके अस्तित्व, पोषण, एवं विकास के लिए स्थूल पदार्थों की आवश्यकता पड़ती है। शरीर संस्थान के इसी भाग को अन्नमय कोश कहते हैं। यह अगणित छोटी-छोटी स्थूल इकाइयों से बना हुआ है। इन्हें कोशिका (सेल) कहते हैं। स्पष्ट है कि यह इकाइयाँ जिस प्रकार की, जिन गुण धर्मों से युक्त होगी, संयुक्त शरीर संस्थान में भी वही गुण धर्म प्रकट होंगे। उन मूल इकाइयों को बदले बिना बाह्य दृश्य संस्थान में इच्छित विशेषताएँ पैदा नहीं की जा सकतीं अन्नमय कोश को आवश्यकता के अनुरूप बनाने ढालने के लिए भी उसकी मूल इकाइयों को ध्यान में रखना होगा।

उदाहरण के लिए कोई वस्त्र लें। वस्त्र किस कोटि का हैं यह इस आधार पर निर्भर करता है। कि उसकी रचना में किस प्रकार के धागों का उपयोग हुआ है। उन धागों के लिए किस प्रकार के तन्तुओं (फाइबर्स) का प्रयोग किया गया है। वस्त्र कैनवास जैसा मजबूत है, रेशम जैसा भड़कीला है, टेरेलीन जैसा लुभावना है ऊन जैसा गर्म है। मखमल जैसा आराम देह है या मलमल जैसा हलका एवं मुलायम है, यह सब विशेषताएँ उसके लिए प्रयुक्त धागों एवं उसके तन्तुओं को आधार पर टिकी रहती है।

इसी तरह शरीर भी अनेक प्रकार की विशेषताओं से युक्त होते हैं। बन्दर एवं हिरन जैसा फुर्तीला, सिंह एवं हाथी जैसे बलशाली, बैल एवं घोड़े जैसे परिश्रमी गँडे जैसा कठोर, हंस जैसा सौम्य, सर्प जैसा लचकदार आदि अनेक प्रकार की विशेषताएँ शरीरों में पायी जाती है, अथवा पैदा की जा सकती है। यह बहुत स्थूल वर्गीकरण है। इससे थोड़े सूक्ष्म स्तर पर देखें तो, ध्रुव प्रदेश एवं हिमालय की ठंड को, स्वाभाविक रूप से सहन कर सकने वाले शरीर, भूमध्य रेखा के निकट प्रदेशों की भीषण गर्मी में सुखी रहने वाले शरीर, जल जीवों की तरह पानी के संसर्ग में रहने वालों से लेकर मरुभूमि के शुष्कतम वातावरण में निवास करने वाले शरीरों की अपनी-अपनी विशेषताएँ, उनकी सेल इकाइयों के अनुरूप ही विकसित होती है।

इससे एक चरण और आगे चलें तो अन्नमय कोश की सूक्ष्म क्षमताओं का स्वरूप भी उभर कर सामने आयेगा। किसी भी क्षेत्र में उच्च स्तरीय साधक का सारा शरीर उसकी मुख्य साधना में सहयोगी बन जाता है। श्रेष्ठ चित्रकार जब किसी चित्र की कल्पना करता है तो उसके शरीर की हर इकाई उसके स्पन्दनों से प्रभावित होती है। शरीर की हलचल में उस कल्पना के स्पन्दन समाविष्ट हो जाते हैं तथा निर्जीव तूलिका सामान्य रंगों से जीवन्त चित्र का निर्माण कर देती हैं। वाणी के साधक गायक के मन में जो भाव उभरते हैं वह उसके हाव-भाव तथा स्वर लहरी में न जाने वहाँ से-कैसे गुँथ जाते हैं और उसमें अद्भुत प्रभाव पैदा कर देते हैं। अपने कार्य के प्रति निष्ठावान् चिकित्सक के चर्मचक्षुओं और माँसपेशियों में न जाने क्या विशेषता आ जाती है कि वह रोग के सूक्ष्म से सूक्ष्म चिह्न तथा गम्भीर से गम्भीर स्तर को पकड़ लेता है। इन साधकों के चमत्कारों के पीछे यही तथ्य छिपा है कि उनके अन्नमय कोश की हर इकाई उनके अन्दर की सूक्ष्म सम्वेदनाओं को अनुभव करने, स्वीकार करने तथा उसके अनुरूप प्रभाव पैदा करने में सक्षम हो जाती है। उसके संस्कार उसके अनुरूप हो जाते हैं। किसी भी उच्चस्तरीय साधना के लिए विज्ञान से लेकर उपासना तक के किसी भी क्षेत्र में उल्लेखनीय स्तर पाने के लिए अपने अन्नमय कोश को ऐसी ही सुसंस्कृत, सुयोग्य, सक्षम स्थिति में लाना आवश्यक होता है। उसके लिए उसकी मूल इकाइयों को विशेष रूप से गढ़ना-ढालना पड़ता है इसे ही अन्नमय कोश के परिष्कार विकास की साधना कहा जाता है।

प्रश्न उठता है कि क्या अन्नमय कोश की मूल इकाइयों की वाँछित ढंग का बनाया जा सकता है? हाँ, यह सम्भव है। इसकी पुष्टि भारतीय दर्शन की सनातन मान्यता तथा वर्तमान वैज्ञानिक शोधों, दोनों ही आधारों पर होती है। वस्त्र आदि तो जैसे बन गये वैसे बन गये कैनवास का मखमल में नहीं बदला जा सकता। क्योंकि वह जड़ संस्थान है। किन्तु शरीर तो चेतन संस्थान है। उसमें नये कोशों का निर्माण तथा पुरानों की विघटन सम्भव ही नहीं हैं, वह तो उसकी एक स्वाभाविक एवं अनिवार्य प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया धीमी पड़ने से ही मनुष्य शरीर जराजीर्ण होने लगता है। जरा बुढ़ापा कुछ और नहीं अन्नमय कोश में नवीन स्वस्थ कोशिकाओं की संरचना तथा पुरानों के निष्कासन की गति शिथिल हो जाना मात्र है। इस प्रक्रिया को व्यवस्थित, नियमित बनाकर शरीर संस्थान में क्रमशः इच्छित परिवर्तन लाये जा सकते हैं।

सामान्य व्यक्तियों में भी अन्नमय कोश की इकाइयों में परिवर्तन होता ही रहता है। किन्तु उसकी कोई व्यवस्था, योजना न होने के कारण एक ढर्रा भर चलता रहता है। सामान्य रूप से किसी भी फैक्टरी में पुराने पुर्जे तथा पुरानी मशीनों के स्थान पर नये पुर्जे एवं नई मशीनों को स्थापित करने का क्रम चलता ही रहता है। उससे एक ढर्रे का उत्पादन निकलता भी रहता है। किन्तु कोई कुशल शिल्पी-उद्योगी जब अपने उत्पादन का स्तर बढ़ाने, नयी वस्तुएँ उत्पादित करने की योजना बनता है तो फिर ढर्रे का क्रम पर्याप्त नहीं। उस स्थिति में लक्ष्य को ध्यान में रखकर सूझबूझ के साथ हर परिवर्तन व्यवस्थित ढंग से करना होता है। पुर्जों और मशीनों से लेकर औजार (टूल) तथा कच्चे माल की व्यवस्था भी उसी योजना के अनुरूप करनी होती है। अपने शरीर की हर कोशिका को एक सजीव पुर्जा, औजार, मशीन मानकर उन्हें लक्ष्य के अनुरूप बनाना, उसके लिए उपयुक्त आहार बिहार अपनाना, योग्य साधक के लिए आवश्यक हो जाता है।

सामान्य व्यक्ति के अन्नमय कोश तथा योगी के अन्नमय कोश में अन्तर क्यों? किसी आधार पर आवश्यक है? इसे एक सामान्य उदाहरण से समझा जा सकता है। एक बिजली की लाइन को ले। विद्युत तारों में बहती है उन्हें सहारा देने के लिए खम्भे रहते हैं। तार और खम्भों के बीच में ऐसे उपकरण लगे रहते हैं। जो बिजली को खम्भों में होकर पृथ्वी में प्रविष्ट होने से रोके रहे। उन्हें ‘कुचालक इन्सुलेटर’ कहते हैं। सामान्य दबाव (वोल्टेज) की विद्युत के लिए तार खम्भे तथा इन्सुलेटर सामान्य ही चल जाते हैं। किन्तु यदि ऊँचे दबाव (वोल्टेज) की विद्युत के लिए तार ऊँचे दबाव (हाई वोल्टेज) की बिजली अधिक मात्रा में प्रवाहित करनी हो तो उसके लिए यह सभी उपकरण विशिष्ट स्तर के लगाने पड़ते हैं। यही बात सामान्य व्यक्ति तथा विशिष्ट साधक के साथ लागू होती है। सामान्य जीवन क्रम में सामान्य शारीरिक जैवीय विद्युत (बायो इलेक्ट्रिसिटी) की ही आवश्यकता पड़ती है। किन्तु उच्च लक्ष्यों के लिए अधिक प्रखर शक्ति तरंगें पैदा करनी होती है। उनका संवेदन, संचार करने के लिए अधिक सशक्त संस्थान की आवश्यकता स्वाभाविक रूप से पड़नी ही चाहिए। इसीलिए साधक को अपने अन्नमय कोश के परिष्कार, उसकी पुष्टि और विकास के लिए विशेष ध्यान देना, विशेष प्रयास करना होता है। तभी वह प्राणमय मनोमय, विज्ञानमय तथा आनन्दमय कोशों के विकास में सहायक बनने तथा उनकी विकसित स्थिति के साथ तालमेल बिठाने में समर्थ हो पाता है।

ताल मेल बिठाने की बात यों ही नहीं कही गयी है, उसका अपना विशिष्ट अर्थ है निर्जीव घटक तालमेल नहीं बिठा सकते, वह तो चेतना सम्पन्न के लिए ही सम्भव है। अन्नमय कोश की हर इकाई, हर कोशिका (सेल) को आज के वैज्ञानिक भी स्वतन्त्र जैविक इकाई मानने लगे है। हर सेल में उसका हृदय न्यूक्लियस होता है। उसके श्वाँस संस्थान को वैज्ञानिक भाषा में ‘माइटो कौड्रिया’ कहते हैं। हर सेल में एक नाली ‘गाल्गी एप्रेटस’ होता है, जो उसके पाचन संस्थान का काम करना है। हर कोश अपने जैसे नये कोश का उत्पादन कर सकता है। इस व्यवस्था की वैज्ञानिक ‘न्यूक्लियोलस एण्ड क्रोमेर्टिन नेटवर्क’ कहते हैं। हर सेल में अपनी एक विशिष्ट जैवीय विद्युत का प्रभार (चार्ट) होती है। जिसे उसका प्राण कह सकते हैं। इस प्रकार हर कोशिका एक स्वतन्त्र जैविक इकाई के रूप में अपने अस्तित्व को बनाये रखते हुए, शरीर संस्थान से अपना तालमेल बिठाने रखता है।

अन्नमय कोश के कोटि-कोटि सदस्य यह कोशिकाएँ (सेल) इष्ट उद्देश्य-लक्ष्य के अनुरूप स्वयं में स्वाभाविक क्षमता उत्पन्न कर सकें, उसके लिए विशिष्ट संस्कारवान नयी कोशिकाओं का उत्पादन कर सकें, उसके लिए विशिष्ट संस्कारवान नयी कोशिकाओं का उत्पादन कर सकें, तो उच्चतम लक्ष्य प्राप्ति की सुनिश्चित पृष्ठभूमि बन जाती है। इसके लिए उन्हें विशेष रूप से-योजनाबद्ध प्रक्रिया द्वारा तैयार किया जाता है। उनके लिए आहार, बिहार, चिन्तन आदि की विशिष्ट एवं व्यवस्थित पद्धति का अनुसरण करना होता है। जैसे बच्चों को सुयोग्य बनाने के लिए उन्हें साधन ही नहीं श्रेष्ठ संस्कार भी देने पड़ते हैं, इसी प्रकार इन कोशिकाओं के लिए भी आहार व्यवहार से लेकर ध्यान उपासना तक के अनेक माध्यम अपनाने होते हैं। उन सबके संयोग से ही अन्नमय कोश की प्रभावशाली साधना का स्वरूप बनता है।

First 11 13 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • अभीष्ट की उपलब्धि भीतर से ही होगी।
  • ब्रह्म वर्चस् साधना और उसका ज्ञान विज्ञान
  • पंच कोशों की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि
  • Quotation
  • हमारा शरीर अत्यन्त विलक्षण
  • जीव सत्ता की प्रचण्ड शक्ति सामर्थ्य
  • अन्नमय-कोश और चमत्कारी हारमोन ग्रन्थियाँ
  • Quotation
  • हमारे शरीर के रहस्यमय घटक जीन्स
  • Quotation
  • अन्नमय कोश में जीन प्रक्रिया का परिवर्तन
  • (अन्नमय कोश) अन्नमय कोश का परिष्कार सम्भव भी है आवश्यक भी
  • प्राण संस्थान कितना स्पष्ट, कितना अद्भुत?
  • Quotation
  • मानवी विद्युत का प्रचण्ड प्रवाह-प्राण शक्ति में
  • प्राण शक्ति एक जीवन्त ऊर्जा
  • प्राण तत्व और श्वास-प्रश्वास प्रक्रिया
  • मनः संस्थान का समूची जीवन सत्ता पर प्रभाव
  • Quotation
  • मनोमय कोश-मस्तिष्कीय परिष्कार
  • VigyapanSuchana
  • मनोमय कोश प्रतिभा और संकल्प शक्ति का केन्द्र
  • Quotation
  • विज्ञानमय कोश और जीवन साधना
  • विज्ञानमय कोश की अतीन्द्रिय सामर्थ्य
  • हमारे उच्च चेतन ही अद्भुत क्षमताएँ
  • Quotation
  • VigyapanSuchana
  • आनन्दमय कोश-शिव शक्ति का संगम
  • गायत्री-सावित्री और कुण्डलिनी
  • कुण्डलिनी काम बीज का परिष्कार
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj