• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • अभीष्ट की उपलब्धि भीतर से ही होगी।
    • ब्रह्म वर्चस् साधना और उसका ज्ञान विज्ञान
    • पंच कोशों की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि
    • Quotation
    • हमारा शरीर अत्यन्त विलक्षण
    • जीव सत्ता की प्रचण्ड शक्ति सामर्थ्य
    • अन्नमय-कोश और चमत्कारी हारमोन ग्रन्थियाँ
    • Quotation
    • हमारे शरीर के रहस्यमय घटक जीन्स
    • Quotation
    • अन्नमय कोश में जीन प्रक्रिया का परिवर्तन
    • (अन्नमय कोश) अन्नमय कोश का परिष्कार सम्भव भी है आवश्यक भी
    • प्राण संस्थान कितना स्पष्ट, कितना अद्भुत?
    • Quotation
    • मानवी विद्युत का प्रचण्ड प्रवाह-प्राण शक्ति में
    • प्राण शक्ति एक जीवन्त ऊर्जा
    • प्राण तत्व और श्वास-प्रश्वास प्रक्रिया
    • मनः संस्थान का समूची जीवन सत्ता पर प्रभाव
    • Quotation
    • मनोमय कोश-मस्तिष्कीय परिष्कार
    • VigyapanSuchana
    • मनोमय कोश प्रतिभा और संकल्प शक्ति का केन्द्र
    • Quotation
    • विज्ञानमय कोश और जीवन साधना
    • विज्ञानमय कोश की अतीन्द्रिय सामर्थ्य
    • हमारे उच्च चेतन ही अद्भुत क्षमताएँ
    • Quotation
    • VigyapanSuchana
    • आनन्दमय कोश-शिव शक्ति का संगम
    • गायत्री-सावित्री और कुण्डलिनी
    • कुण्डलिनी काम बीज का परिष्कार
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • अभीष्ट की उपलब्धि भीतर से ही होगी।
    • ब्रह्म वर्चस् साधना और उसका ज्ञान विज्ञान
    • पंच कोशों की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि
    • Quotation
    • हमारा शरीर अत्यन्त विलक्षण
    • जीव सत्ता की प्रचण्ड शक्ति सामर्थ्य
    • अन्नमय-कोश और चमत्कारी हारमोन ग्रन्थियाँ
    • Quotation
    • हमारे शरीर के रहस्यमय घटक जीन्स
    • Quotation
    • अन्नमय कोश में जीन प्रक्रिया का परिवर्तन
    • (अन्नमय कोश) अन्नमय कोश का परिष्कार सम्भव भी है आवश्यक भी
    • प्राण संस्थान कितना स्पष्ट, कितना अद्भुत?
    • Quotation
    • मानवी विद्युत का प्रचण्ड प्रवाह-प्राण शक्ति में
    • प्राण शक्ति एक जीवन्त ऊर्जा
    • प्राण तत्व और श्वास-प्रश्वास प्रक्रिया
    • मनः संस्थान का समूची जीवन सत्ता पर प्रभाव
    • Quotation
    • मनोमय कोश-मस्तिष्कीय परिष्कार
    • VigyapanSuchana
    • मनोमय कोश प्रतिभा और संकल्प शक्ति का केन्द्र
    • Quotation
    • विज्ञानमय कोश और जीवन साधना
    • विज्ञानमय कोश की अतीन्द्रिय सामर्थ्य
    • हमारे उच्च चेतन ही अद्भुत क्षमताएँ
    • Quotation
    • VigyapanSuchana
    • आनन्दमय कोश-शिव शक्ति का संगम
    • गायत्री-सावित्री और कुण्डलिनी
    • कुण्डलिनी काम बीज का परिष्कार
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1977 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


प्राण संस्थान कितना स्पष्ट, कितना अद्भुत?

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 12 14 Last
भारतीय मान्यता है कि मनुष्य की स्थूल काया में व्याप्त उसी के अनुरूप एक प्राण शरीर भी होता है प्राण शरीर-शरीरस्थ प्राण संस्थान के न केवल अस्तित्व का बल्कि उसके गुण, धर्मों तथा क्रिया-कलापों प्रभावों आदि का भी वर्णन विस्तारपूर्वक भारतीय ग्रन्थों में मिलता है। इस मान्यता को स्थूल विज्ञान बहुत दिनों तक झुठलाता रहा, किन्तु शरीर विज्ञान के सन्दर्भ में जैसे जैसे उसकी जानकारियाँ बढ़ रही है। प्राण संस्थान के अस्तित्व को एक सुनिश्चित तथ्य के रूप में स्वीकार किया जाने लगा है। भौतिक विज्ञान के स्थूल उपकरणों की पकड़ में भी इस सूक्ष्म सत्ता के अनेक प्राण आने लगे है।

रूप के इलेक्ट्रानिक विज्ञानवेत्ता ऐमयोन किर्लियान ने एक ऐसी फोटोग्राफी का आविष्कार किया है जो मनुष्य के इर्द-गिर्द होने वाली विद्युतीय हलचलों का भी छायांकन करती है। इससे प्रतीत होता है। कि स्थूल शरीर के साथ-साथ सूक्ष्म शरीर की भी सत्ता विद्यमान् है और वह ऐसे पदार्थों से बनी है जो इलेक्ट्रानों से बने ठोस पदार्थ की अपेक्षा भिन्न स्तर का है ओर अधिक गतिशील भी।

इंग्लैंड के डा. किलनर एक बार अस्पताल में रोगियों का परीक्षण कर रहे थे। एक मरणासन्न रोगी की जाँच करते समय उन्होंने देखा कि उनकी दूरबीन (माइक्रोस्कोप) के शीशे पर एक विचित्र प्रकार के रंगीन प्रकाश कण जम गये है। जो आज तक कभी भी देखे नहीं गये थे। दूसरे दिन रोगी के कपड़े उतरवा कर जाँच करते समय डा० किलनर फिर चौके उन्होंने देखा जो प्रकाश कल दिखाई दिया था आज वह लहरों के रूप में माइक्रोस्कोप के शीशे के सामने उड़ रहा है। रोगी के शरीर के चारों और छः सात इंच परिधि में यह प्रकाश फैला है, उसमें कई दुर्लभ रासायनिक तत्त्वों के प्रकाश कण भी थे। उन्होंने देखा जब प्रकाश मन्द पड़ता है। तब तक उसके शरीर और नाड़ी की गति में शिथिलता आ जाती है। थोड़ी देर बाद एकाएक प्रकाश पुँज विलुप्त हो गया। अब की बार जब उन्होंने नाड़ी पर हाथ रखा तो पाया कि उसकी मृत्यु हो गयी। इस घटना को कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित कराने के साथ-साथ डा० किलनर ने विश्वास होते हैं वह पदार्थ से प्रथम अति सूक्ष्म सत्ता है। उसका विनाश होता हो ऐसा सम्भव नहीं है।

प्राण तत्त्व को एक चेतन ऊर्जा (लाइव एनर्जी) कहा गया है। भौतिक विज्ञान के अनुसार एनर्जी के छः प्रकार माने जाते है-1 ताप (हीट) 2 प्रकाश (लाइट) 3 चुम्बकीय (मैगनेटिक) 4 विद्युत (इलेक्ट्रिसिटी) 5 ध्वनि (साउण्ड) 6 घर्षण (फ्रिक्शन) अथवा यांत्रिक (मेकेनिक)। इस प्रकार की एनर्जी को किसी भी दूसरे प्रकार की एनर्जी में बदला भी जा सकता है। शरीरस्थ चेतन क्षमता - लाइव एनर्जी इन विज्ञान सम्मत प्रकारों से भिन्न होते हुए भी उनके माध्यम से जानी समझी जा सकती है।

एनर्जी के बारे में वैज्ञानिक मान्यता है कि वह नष्ट नहीं होती बल्कि उसका केवल रूपान्तरण होता है। यह भी माना जाता है कि एनर्जी किसी भी स्थूल पदार्थ से सम्बद्ध रह सकती है, फिर भी उसका पदार्थ में स्थानान्तरित (ट्राँस्फर) की जा सकती है। प्राण के सन्दर्भ में भी भारतीय दृष्टाओं का यही कथन है। अब तो पाश्चात्य वैज्ञानिक भी इसे स्वीकार करने लगे है।

इस सन्दर्भ में फोनोग्राफ, प्रकाश के बल्ब के आविष्कारक टामस एडीसन ने अत्यन्त बोधगम्य प्रकाश डालते हुए लिखा है-प्राणी की सत्ता उच्चस्तरीय विद्युत-कण गुच्छकों के रूप में तब भी बनी रहती है। जब वह शरीर से पृथक् हो जाती है। मृत्यु के उपरान्त यह गुच्छक विधिवत् तो नहीं होते, पर वे परस्पर सम्बद्ध बने रहते हैं। यह बिखरते नहीं, वरन् आकाश में भ्रमण करते रहने के उपरान्त पुनः जीवन चक्र में प्रवेश करते और नया जन्म धारण करते हैं। इनकी बनावट बहुत कुछ मधुमक्खी के छत्ते की तरह होती है। पुराना छत्ता वे एक साथ छोड़ती है और नया एक साथ बनाती है। इसी प्रकार उच्चस्तरीय विद्युत कणों के गुच्छक अपने साथ स्थूल शरीर की सामग्री अपनी आस्थाओं और सम्वेदनाओं के साथ लेकर जन्मने-मरने पर भी असर बने रहते हैं।

इन प्रमाणों से शरीर में अन्नमय कोश से सम्बद्ध किन्तु एक स्वतन्त्र अस्तित्व सम्पन्न प्राणमय कोश का होना स्वीकार करना ही पड़ता है। यों भी शरीर में विज्ञान सम्मत ताप आदि छहों प्रकार की एनर्जी ऊर्जा के प्रमाण पाये जाते हैं, किन्तु सारे शरीर से संव्याप्त प्राणमय कोश का स्वरूप सबसे अधिक स्पष्टता से जैवीय विद्युत (बायो इलेक्ट्रिसिटी) के रूप में समझा जा सकता है।

शरीर विज्ञान में अब कामिक विद्युत पर पर्याप्त शोधें हो रही है। शरीर में कुछ केन्द्र तो निर्विवाद रूप से विद्युत उत्पादक केन्द्रों के रूप में स्वीकार कर लिए गये है। उनमें प्रधान है-मस्तिष्क हृदय तथा नेत्र। मस्तिष्क में विद्युत उत्पादन केन्द्र को वैज्ञानिक ‘रेटिकुलर ऐक्टिवेटिंग सिस्टम’ कहते हैं। मस्तिष्क के मध्य भाग की गहराइयों में स्थित कुछ मस्तिष्कीय अवयवों में से विद्युत स्पंदन (इलेक्ट्रिक इम्पल्स) पैदा होते रहते हैं। तथा सारे मस्तिष्क में फैलते जाते हैं। यह विद्युतीय आवेश ही मस्तिष्क के विभिन्न केन्द्रों को संचालित तथा परस्पर सम्बन्धित रखते हैं। चिकित्सा विज्ञान में प्रयुक्त मस्तिष्कीय विद्युत मापक यन्त्र (इलेक्ट्रो इन्कैफलोग्राफ) ई०ई०जी० द्वारा मस्तिष्कीय विद्युत धाराओं को नापा जाता है। उन्हीं के आधार पर मस्तिष्क एवं सिर से सम्बन्धित रोगों के बारे में निर्धारण किया जाता है। सिर में विभिन्न स्थानों पर यन्त्र के रज्जु (कार्ड) लगाये जाते हैं। उनसे नापे गये विद्युत विभव (पोटैशल) का योग लगभग 1 मिली बोल्ट आता है।

हृदय के संचालन में लगभग 20 तार शक्ति विद्युत की आवश्यकता पड़ती है। यह विद्युत हृदय में ही पैदा होती है। हृदय में जिस क्षेत्र से विद्युत स्पंदन पैदा होते हैं उसे पेसमेकर कहते हैं। यह विद्युत स्पंदन पैदा होते ही लगभग 0.8 सेकेण्ड में एक विकसित मनुष्य के सारे हृदय में फैल जाते हैं। इतने ही समय में हृदय अपनी एक धड़कन पूरी करता है। हृदय की धड़कन के कारण तथा नियन्त्रक यही विद्युत स्पंदन होते हैं। इन विद्युत स्पंदनों का प्रभाव ई०सी०जी० (इलेक्ट्रो कार्डियोग्राफ) नामक यन्त्र पर अंकित होते हैं। हृदय रोगों के निर्धारण के निर्धारण के लिए इन विद्युत स्पंदनों को ही आधार मानकर चला जाता है।

नेत्रों में भी वैज्ञानिकों के मतानुसार फोटो इलेक्ट्रिक सेल जैसी व्यवस्था है। फोटो इलेक्ट्रिक सेल की विशेषता यह होती है कि वह प्रकाश का विद्युत तरंगों में बदल देता है। नेत्रों में भी इसी पद्धति से विद्युत उत्पादन की क्षमता वैज्ञानिक स्वीकार करते हैं। नेत्र रोगों के निर्धारण वर्गीकरण के लिए नेत्रों में उत्पन्न विद्युत स्पंदन को र्इ्र०आ०जी० (इलेक्ट्रो रैटिनोग्राफ) यन्त्र पर अंकित किया जात है।

इन प्रमाणों से सिद्ध होता है। कि शरीरस्थ कुछ केन्द्रों में विद्युतीय स्पन्दनों के उत्पादन के साथ-साथ सारे शरीर में उनका संचार भी होता है। ई०ई०जी० द्वारा सिर के हर हिस्से में मस्तिष्कीय विद्युत के स्पंदन रिकार्ड किये जाते हैं। यही नहीं बहुत बार तो उनका प्रभाव गर्दन से नीचे वाले अवयवों में भी स्पष्टता से मिलता है। हृदय की विद्युत का प्रभाव तो ई०सी०जी० यन्त्र द्वारा पैर के टखनों तक पर रिकार्ड किया जाता है। हृदय के निकटतम तथा दूरतम सभी अंगों में यह स्पंदन समान रूप से शक्तिशाली पाये जाते हैं।

शरीरस्थ प्राण प्रवाह के माध्यम से रोगों के निदान पर चिकित्सा शास्त्रियों का विश्वास दृढ़ हो गया है। माँस- पेशियों की निष्क्रियता तथा स्नायु संस्थान के रोगों में भी प्राणांकन पद्धति प्रयुक्त की जाती है। इसके लिए ई.एम.जी.(इलैट्रो मायोग्राफ) का प्रयोग होता है। शरीर के हर क्षेत्र में स्नायुओं अथवा माँस-पेशियों में विद्युतीय ऊर्जा की उपस्थिति तथा सक्रियता का यह स्पष्ट प्रमाण है। यहाँ तक कि शरीर की त्वचा जैसी पतली पर्त में भी उसकी अपने ढंग की विद्युत विद्यमान् है। चिकित्सा शास्त्री त्वचा के परीक्षण में भी त्वक विद्युतीय प्रतिक्रिया (गैल्वाँनिक स्किनरिस्पाँन्स) पद्धति का प्रयोग करते हैं।

इन वैज्ञानिक प्रमाणक के अतिरिक्त सामान्य व्यावहारिक जीवन में भी मस्तिष्क से लेकर त्वचा तक में विद्युत संवेगों की क्षमता के प्रमाण मिलते रहते हैं। किसी व्यक्ति विशेष के प्रति आकर्षण तथा किसी के प्रति विकर्षण, यह शरीरस्थ विद्युत की समानता, भिन्नता की ही प्रतिक्रियाएँ है। दो मित्रों के परस्पर एक दूसरे को देखने स्पर्श करने में विद्युतीय आदान-प्रदान होता है। योगी तो स्पर्श से अपनी विद्युत का दूसरे व्यक्ति के शरीर में प्रवेश पव्रयोग संकल्प शक्ति के सहारे विशेष रूप से कर सकते हैं, किन्तु सामान्य स्पर्श से भी शरीरस्थ विद्युत का आँशिक आदान-प्रदान होता है। स्पर्श, सहलाने, हाथ मिलाने, गले मिलने आदि से जो स्पंदन अनुभव किये जाते हैं। वे विद्युतीय आवेगों के ही आदान प्रदान के फलस्वरूप होते हैं। यह तथ्य भी अब वैज्ञानिक स्वीकार करने लगे है।

भारतीय मत रहा है कि शरीर का अस्तित्व बनाये रखने, उसके पोषण पुनर्निर्माण, विकास एवं संशोधन जैसी हर क्रिया प्राण द्वारा ही संचालित हैं अन्नमय कोश में व्याप्त प्राणमय कोश ही उनका संचालन, नियंत्रण करता है। शरीर संस्थान की छोटी से छोटी इकाई में भी प्राण विद्युत का अस्तित्व अब विज्ञान ने स्वीकार कर लिया है। शरीर की हर कोशिश विद्युत विभव (इलेक्ट्रिक चार्ज) है। यही नहीं किसी कोशिका के नाभिक (न्यूक्लियस) में लाखों की संख्या में रहने वाले प्रजनन क्रिया केक लिए उत्तरदायी जीन्स जैसे अति सूक्ष्म घटक भी विद्युत आवेश युक्त पुटिकाओं (पैक्ट्सि) के रूप में जाने और माने जाते हैं। तात्पर्य यह है कि विज्ञान द्वारा जानी जा सकी शरीर की सूक्ष्मतम इकाई में भी विद्युत आवेश रूप में प्राणतत्त्व की उपस्थिति स्वीकार की जाती है।

शरीर की हर क्रिया का संचालन प्राण द्वारा होने की बात भी सदैव से कही जाती रही है। योग ग्रंथों में शरीर की विभिन्न क्रियाओं को संचालित करने वाले प्राणतत्त्व को विभिन्न नामों से संबोधित किया जात है। उन्हें पंच-प्राण कहा गया है। इसी प्रकार शरीर के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय प्राण को पंच उपप्राण कहा गया है। वर्तमान शरीर विज्ञान ने भी शारीरिक अन्तरंग क्रियाओं की व्याख्याएँ विद्युत संचार क्रम के ही आधार पर की है। शरीर के एक सिरे से दूसरे सिरे तक जो संचार क्रम चलता है। वहविद्युततीय संवहन प्रक्रिया के माध्यम से ही है। संचार कोशिकाओं में ऋण और धन प्रभार (निगेटिव तथा पॉजिटिव चार्ज) अंदर बाहर होते रहते हैं और इसी से विभिन्न संचार क्रम चलते रहते हैं। इसे वैज्ञानिक भाषा में सेल का डिपोलराइजेशन तथा ‘रेपोलराइजेशन’ कहते हैं। यह प्रक्रिया भारतीय मान्यतानुसार पंच-प्राण में वर्णित ‘व्यान’ के अनुरूप है।

आमाशय तथा आँतों में भोजन का पाचन होकर उसे शरीर के अनुकूल रासायनिक रसों में बदल दिया जाता है। वह रस आँत की झिल्ली में से पार होकर रस में मिलते हैं तब सारे शरीर में फैल पाते हैं। कुछ रसायन तो सामान्य संचरण क्रम से ही रक्त में मिल जाते हैं। किन्तु कुछ के लिए शरीर को शक्ति खर्च करनी पड़ती है। इस विधि को ‘एक्टिव ट्रांसपोर्ट (सक्रिय परिवहन) कहते हैं। यह परिवहन आँतों में जो विद्युतीय प्रक्रिया होती है। उसे वैज्ञानिक सोडियम पम्प के नाम से संबोधित करते हैं। सोडियम कणों में ऋण और धन प्रभार बदलने से वह सेलों की दीवार के इस पार से उस पार जाते आते हैं। उनके संसर्ग से शरीर के पोषक रसों (ग्लूकोस वसा आदि) की भेदकता बढ़ जाती है। तथा वह भी उसके साथ संचरित हो जाते हैं। यह प्रक्रिया पंच-प्राणों में ‘प्राण’ वर्ग के अनुरूप कही जा सकती है।

ऐसी प्रक्रिया हर सेल में चलती है। हर सेल अपने उपयुक्त आहार खींचता है तथा उसे ताप ऊर्जा में बदलना है। ताप ऊर्जा भी हर समय सारे शरीर में लगातार पैदा होती और संचित होती रहती है। पाचन केवल आँतों में नहीं शरीर के हर सैनल में होता है। उसके लिए रसों को हर सेल तक पहुँचाया जाता है। यह प्रक्रिया जिस प्राण ऊर्जा के सहारे चलती है उसे भारतीय प्राणवेत्ताओं ने ‘समान’ कहा है। इसी प्रकार हर कोशिका में रस परिपाक के दौरान तथा पुरानी कोशिकाओं के विखण्डन से जो मल बहता है उसके निष्कासन के लिए भी विद्युत रासायनिक (इलेक्ट्रो कैमिकल) क्रियाएँ उत्तरदायी है। प्राण विज्ञान में इसे ‘अपान’ की प्रक्रिया कहा गया है।

पंच-प्राणों में एक वर्ग ‘उदान’ भी हैं इसका कार्य शरीर के अवयवों को कड़ा रखना हैं वैज्ञानिक भाषा में इसे इलेक्ट्रिकल स्टिमुलाइजेशन कहा जाता है। शरीरस्थ विद्युत संवेगों से अन्नमय कोश के सेल किसी भी कार्य के लिए कड़े अथवा ढीले होते रहते हैं।

शरीर में इस प्रकार की अनेक अंतरंग प्रक्रियाएँ कैसी चलती है। इसकी व्याख्या वैज्ञानिक पूरी तरह नहीं कर सकें है। उसके लिए उन्होंने कई तरह के स्थूल सिद्धान्त बनाये है। उनके सोडियम पोटैशियम साइकिल, पोटैशियम पंच-ए-टी-फी-ए-डी-पी सिस्टम, तथा साइकिलिक ए.एम.पी. आदि के है। इनकी क्रिया पद्धति तो कोई रसायन विज्ञान का विद्यार्थी ही ठीक से समझ सकता, है। किन्तु है यब सब विद्युत रासायनिक सिद्धान्त ही। इस सिद्धान्त के अनुसार किसी घोल में रासायनिक पदार्थों के अणु ऋण और धन प्रभार युक्त भिन्न-भिन्न कणों में विभक्त हो जाते हैं। इन्हें अयन कहा जाता है। इन आयनों की संचार क्षमता बहुत अधिक होती। इच्छित संचार के बाद ऋण बौर धन प्रभार युक्त अयन मिलकर पुनः विद्युतीय दृष्टि से उदासीन (न्यूट्रल) अणु बना लेते हैं। शरीर में पाचन, शोधन, विकास एवं निर्माण की अगणित प्रक्रियाएँ इसी आधार पर चल रही है। तत्त्व दृष्टि से देखा जाय तो सारे शरीर संस्थान में प्राणतत्त्व की सत्ता और सक्रियता स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ेगी।

इन मोटी गतिविधियों से आगे बढ़कर शरीर की सूक्ष्म, गहन गतिविधियों को विश्लेषण करने पर उनमें भी प्राण शरीरस्थ प्राणतत्त्व का नियंत्रण तथा प्रभाव दिखाई देता है। शरीर में हारमोन्स और ऐंजाइमों की अद्भुत प्रक्रिया सर्वविदित है। इन दोनों की सक्रियता शरीर में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाने एवं शक्ति संचार करने में समर्थ है। प्रजनन विज्ञान के अंतर्गत जीन्स की विलक्षण भूमिका की चर्चा आजकल वैज्ञानिक क्षेत्र में सर्वत्र द्वारा प्रभावित किये जाने की संभावना वैज्ञानिक स्वीकार करते हैं। वह अभी जाने की संभावना वैज्ञानिक स्वीकार करते हैं। वह अभी ऐसा कर नहीं सकें है। किन्तु उस पर विश्वास करते हैं तथा उसके लिए तीव्र शोध कार्य किए जा रहे है। विश्वास किया जाता है। कि ऐसी विधि हाथ लग जाये तो शरीर क्षेत्र में हर चमत्कार संभव हो जाएगा।

भारतीय ऋषियों ने प्राण-प्रक्रिया द्वारा शरीरस्थ संस्थान में चमत्कारी परिवर्तन लाने के लिए प्राणमय कोश की शुद्धि, शरीरस्थ प्राण ऊर्जा के प्रयोग की बात बलपूर्वक कही हैं। वह कोई अतिशयोक्ति नहीं। स्थूल विज्ञान की दृष्टि से ही मस्तिष्क एवं हृदय जैसे विलक्षण केन्द्रों से लेकर त्वचा तक में व्याप्त प्राण संस्थान तथा उसके प्रभाव को स्वीकार किया जा रहा है। योग दृष्टि तो इससे भी सूक्ष्म रही है। उसके द्वारा जो निष्कर्ष निकाले गये है। वे और भी अधिक गहन तथा व्यापक स्तर के रहस्यों तथा तथ्यों को प्रकट करने वाले होने ही चाहिए। अस्तु, ‘प्राणमय कोश को परिष्कृत एवं सबल बनाकर न केवल अपने शरीर बल्कि दूसरे शरीरों को भी प्रभावित एवं विकसित करने की बात कोई अतिशयोक्ति नहीं है। प्राणतत्त्व संबंधी विज्ञान जैसे जैसे प्रगति करेगा-भारतीय तत्त्व दृष्टाओं की विलक्षण किन्तु तथ्यपूर्ण घोषणाओं को नतमस्तक होकर स्वीकार करता चलेगा।

First 12 14 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • अभीष्ट की उपलब्धि भीतर से ही होगी।
  • ब्रह्म वर्चस् साधना और उसका ज्ञान विज्ञान
  • पंच कोशों की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि
  • Quotation
  • हमारा शरीर अत्यन्त विलक्षण
  • जीव सत्ता की प्रचण्ड शक्ति सामर्थ्य
  • अन्नमय-कोश और चमत्कारी हारमोन ग्रन्थियाँ
  • Quotation
  • हमारे शरीर के रहस्यमय घटक जीन्स
  • Quotation
  • अन्नमय कोश में जीन प्रक्रिया का परिवर्तन
  • (अन्नमय कोश) अन्नमय कोश का परिष्कार सम्भव भी है आवश्यक भी
  • प्राण संस्थान कितना स्पष्ट, कितना अद्भुत?
  • Quotation
  • मानवी विद्युत का प्रचण्ड प्रवाह-प्राण शक्ति में
  • प्राण शक्ति एक जीवन्त ऊर्जा
  • प्राण तत्व और श्वास-प्रश्वास प्रक्रिया
  • मनः संस्थान का समूची जीवन सत्ता पर प्रभाव
  • Quotation
  • मनोमय कोश-मस्तिष्कीय परिष्कार
  • VigyapanSuchana
  • मनोमय कोश प्रतिभा और संकल्प शक्ति का केन्द्र
  • Quotation
  • विज्ञानमय कोश और जीवन साधना
  • विज्ञानमय कोश की अतीन्द्रिय सामर्थ्य
  • हमारे उच्च चेतन ही अद्भुत क्षमताएँ
  • Quotation
  • VigyapanSuchana
  • आनन्दमय कोश-शिव शक्ति का संगम
  • गायत्री-सावित्री और कुण्डलिनी
  • कुण्डलिनी काम बीज का परिष्कार
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj