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Magazine - Year 1977 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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अन्नमय-कोश और चमत्कारी हारमोन ग्रन्थियाँ

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अवयवों की प्रत्यक्ष हलचलें ही शरीर विज्ञान की शोध का विषय रही हैं अब तक जो खोजे हुई है। उनमें यह प्रत्यक्ष ही मूलभूत आधार है इसलिए समझा जाता है कि पंच तत्त्वों से बना हुआ यह ढाँचा मात्र ही शरीर है। समझा जाता है कि अन्न, जल, वायु, वियोग आदि के सहारे ही जीवन की गाड़ी चलती हैं इतना होते हुए भी शरीरगत अनेक सन्दर्भ ऐसे है जिन पर रहस्य का पर्दा ही पड़ा हुआ है।

स्थूल शरीर पर सूक्ष्म-सत्ता का नियन्त्रण हमें इन्हीं हलचलों के पीछे झाँकता हुआ दिखता है। अंतःस्रावी ग्रन्थियाँ-वंशानुक्रम प्रक्रिया-भ्रूणावस्था में जीव का अत्यन्तिक उग्र विकास क्रम, जीवकोषों की अद्भुत क्षमता, अचेतन मन की रहस्यमय गतिविधियाँ, भाव सम्वेदना से उत्पन्न अदम्य प्रेरणा, अतीन्द्रिय अनुभूतियाँ, जीवाणुओं की स्वं संचालित जीवन-पद्धति प्रभावशाली तेजोवलय जैसे अनेकानेक सन्दर्भ ऐसे है जिनका शरीर की सामान्य संरचना के साथ कोई ताल-मेल बैठता। रासायनिक पदार्थों के अपने गुण, धर्म होते हैं। सम्मिश्रण से उनमें भिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएँ भी होती है, किन्तु ऐसे रहस्य उत्पन्न नहीं होते जैसे कि अनबूझ, पहेलियों के रूप में सामने आते रहते हैं। इनके भौतिक समाधान अभी तक नहीं मिले है और न भविष्य में मिलने की सम्भावना है। इनके कारण हमें सूक्ष्म शरीर में ही खोजने होगे।

अन्नमय कोश का वर्णन अपेक्षाकृत सूक्ष्म संस्थानों के अंतर्गत आता है। इसमें रासायनिक हलचलों की उत्पन्न क्रिया-प्रक्रिया स्थूल शरीर के क्षेत्र में आती है। शरीर शास्त्रियों की खोज-बीन यही तक सीमित हैं। स्वास्थ्य संवर्द्धन के लिए चिकित्सा उपचार के लिए जो क्रियाकलाप चलते हैं। उन्हें भौतिक क्षेत्र की मर्यादा माना गया है। ऐसे अद्भुत रहस्य ताल-मेल रासायनिक हलचलों से नहीं बैठता, उन्हें सूक्ष्म शरीर की शक्ति सत्ता का प्रभाव कहा जा सकता है। यह क्षेत्र अत्यन्त सुविस्तृत है। उसका थोड़ा सा परिचय जिन प्रत्यक्ष प्रमाणों के आधार पर प्राप्त हो सकता है, उनमें अंतःस्रावी हारमोन ग्रन्थियों की भी गणना की जा सकती हैं। उनसे निकलने वाले राई-रत्ती स्राव शरीर में कितनी अद्भुत गतिविधियाँ सम्पन्न करते हैं। उन्हें देखकर चकित रह जाना पड़ता है।

शरीर-विज्ञान की अन्तरंग शोधों से यह स्पष्ट हो गया है कि हृदय, आमाशय, आँख, कान, त्वचा आदि तो यन्त्र है। इन यन्त्रों के संचालक सूक्ष्म अवयव अन्य ही होते हैं और उन संचालक तत्त्वों का अवयवों के स्वरूप पर ही हमारे स्वास्थ्य का बहुत कुछ आधार निर्भर रहता है। इन सूक्ष्म अवयवों में हारमोनोँ का स्थान अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। उनकी सक्रियता-निष्क्रियता का हमारी शारीरिक एवं मानसिक स्थितियों पर भारी प्रभाव पड़ता है। शरीर की आकृति कैसी भी हो, उसकी प्रकृति का निर्माण तो मुख्यतः इन हारमोन रसों से ही प्रभावित होता है। यद्यपि आकृति पर भी इन जीवन रस-स्रावों का प्रभाव पड़ता ही है। कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं कि विशेष मनःस्थिति के कारण किन्हीं युवतियों का रूप लावण्य तब तक बना रहा, जिस आयु में सामान्य रूप से शरीर पर वृद्धता के चिन्ह उभर आते हैं। उनके बने रहने का रहस्य-सूत्र भी निश्चय ही इन हारमोन-स्रावों में छिपा हुआ माना जाता है। यद्यपि औषधि विद्या और शल्य-प्रक्रिया की पहुँच अभी वहाँ तक नहीं हो पाई है पर उनके स्वरूप की कुछ-कुछ जानकारी तो आधुनिक शरीर शास्त्र को हो ही गई है।

हारमोन स्रावों के विशेष अनुसंधानकर्ता डॉ0 क्रुकशेर ने इस स्रावों की आधार ग्रंथियों के ‘जादुई ग्रन्थियाँ कहा हैं और बताया है कि व्यक्ति की वास्तविक स्थिति को जानने के लिए इन स्रावों के सन्तुलन और क्रियाकलाप का परीक्षण करके ही यह जाना जा सकता है कि उसका स्तर एवं व्यक्तित्व सचमुच क्या हैं? हारमोन वे रासायनिक तत्त्व या रहस्यमय जीवन रस है, जो अंतःस्रावी ग्रन्थियों द्वारा स्रवित होते हैं।

ग्रन्थियाँ दो प्रकार की होती है-(1) बहिर्स्रावी ग्रन्थियाँ या प्रणाली युक्त ग्रन्थियाँ (डक्ट या एक्सटेरो ग्लैण्ड्स) (2) अंतःस्रावी या प्रणाली विहीन ग्रन्थियाँ (इन्डोक्राइन या डक्टलैस ग्लैण्ड्स)।

(1) बहिर्स्रावी ग्रन्थियाँ-इन ग्रन्थियों में प्रत्येक के साथ एक नलिका मिली होती है। नलिका द्वारा ग्रन्थियों का रसरसाव शरीर के रक्त-प्रवाह में न मिलकर शरीर की ऊपरी सतह पर चला जाता है इन रसों के द्वारा शरीर की अनेक जरूरतें पूरी की जाती है। प्रमुख बहिर्स्रावी ग्रन्थियाँ तीन है-(1) अश्रु ग्रन्थियाँ (टियर ग्लैण्ड्स) (2) प्रस्वेद ग्रन्थियाँ (स्वीट ग्लेण्ड्स) (3) लार ग्रन्थियाँ (सेलिहरी ग्लेण्ड्स)।

(2) अंतःस्रावी ग्रन्थियाँ- इन दिनों क्रोमोसोम्स तथा वंशानुक्रम की चर्चाएँ बहुत व्यापक रूप से उठा करती है। इन प्रक्रियाओं के मूल में अंतःस्रावी ग्रन्थियों के स्राव कुछ विशिष्ट हारमोन्स ही है। अब तक की शोधों के आधार पर अंतःस्रावी ग्रन्थियों के 8 केन्द्र माने जाते हैं। यह शरीर के विभिन्न अण्डों में अवस्थित है। जैसे-सिर में (1) पीनियलबाड़भ (2) पिट्यूटरी ग्लैण्ड होते हैं। वक्षस्थल के ऊपरी भाग में (3) पैराथाइराइड और (4) याइराइड ग्लैण्ड होते हैं। वक्षस्थल के ऊपरी भाग में (5) थाइमस ग्लैण्ड स्थित है। उदर प्रदेश में (6) एड्रीनल ग्लैण्ड्स और (7) पैक्रियाज ग्रन्थियाँ है। पेड क्षेत्र में (8) गोनड्स ग्रन्थियों का स्थान है।

इन ग्रन्थियों की अद्भुत क्षमता के सम्बन्ध में अभी वैज्ञानिकों को पूरी जानकारी नहीं है। उनके बारे में सांकेतिक जानकारी ही प्राप्त हो सकी है। फिर भी यह विश्वास किया जाता है कि यदि इनके प्रभाव को जाना और नियन्त्रित किया जा सकें तो मनुष्य अपने अन्दर आश्चर्यजनक परिवर्तन ला सकता है। इन सभी ग्रन्थियों की सामान्य जानकारियाँ निम्नानुसार है।

(1) पीनियल बॉडी और (2) पिट्यूटरी ग्रन्थि- ये दोनों मिलकर जिस चेतन-पक्ष का निर्माण करते हैं, उसे ही आज्ञा-चक्र कहा जाता है।

मस्तिष्क के मध्य में स्थित, पिन की नोंक के बराबर पीनियल ग्रन्थि मानसिक तथा आध्यात्मिक विकास से सम्बन्धित है। सुविस्तृत स्थूल तथा सूक्ष्म जगत की विभिन्न हलचलों के साथ सम्पर्क का माध्यम यही केन्द्र बनता है। प्रेतात्मा ओर देवदूतों के साथ सम्बन्ध बनाने का केन्द्र यही है। ईथरीय प्रकाश का उत्पन्न करने तथा ग्रहण करने का कार्य यहीं से होता है।

पिट्यूटरी ग्रन्थि ‘मास्टर’ ग्रन्थि है। यह सभी अंतःस्रावी ग्रन्थियों की नियन्त्रक है। यह खोपड़ी के आधार में- मस्तिष्क के नीचे एक छोटे-से गड्ढे में स्थित है। यह एक छोटी-सी नलिका द्वारा मस्तिष्क से जुड़ती है। यह आकार में छोटी, पर प्रभाव में बहुत प्रखर है। इसमें अधिक स्राव होने लगें तो मनुष्य असाधारण रूप से लम्बे और बेडौल हो जाते हैं, कम हुआ तो बौने रह जाते हैं। बुद्धि की तीव्रता, प्रेम सम्बन्ध, उत्साह, आत्म-नियन्त्रण उसका मुख्य कार्य है। पुरुषत्व और नारीत्व का दिशा-परिवर्तन यही से होता है। यौवन के उतार-चढ़ाव तथा प्रजनन सम्बन्धी गतिविधियों का सम्पर्क इसी केन्द्र से है। शक्कर, चर्बी, स्टार्च, पानी आदि की ठीक मात्रा शरीर में बनाये रहना इसी का काम है।

(3) पैराथाइराइड- गेहूँ के दाने के बराबर की पैराथाइराइड्स का स्नायु-संस्थान से निकट सम्बन्ध है। ये चार के समूह में होती है। इनका स्थान थाइराइड ग्रन्थि के पीछे है। ये चारों वस्तुतः लघु ग्रन्थियों के दो युग्म है। इनसे स्रावित पैराथोरमोन नामक हारमोन तंत्रिका क्रिया के कैल्शियम और फास्फोरस की मात्रा को नियन्त्रित करता है। हड्डियों को मजबूत बनाता है। यदि इनके स्राव बढ़ जाएँ, तो हड्डियाँ बालुई हो जायेगी और तनिक से आघात से टूटने या मुड़ने का खतरा बना रहेगा। गुर्दे की पथरी भी इसी गड़बड़ से उत्पन्न होती है। स्त्रियों के प्रजनन केन्द्रों की हड्डियाँ गड़बड़ा जाने से वे बिना आपरेशन के बच्चा नहीं जन पाती हैं।

इसमें अवांछनीयता से जूझने का साहस भरा रहता है। टूटी हुई कोशिकाओं का पुनर्निर्माण, स्नायु तन्त्रों का गठन, स्फूर्ति, रोग-निरोधी क्षमता का भण्डार इसी केन्द्र में भरा है।

(4) थाइराइड-यह ग्रन्थि श्वास नली के चतुटिक स्थित होती हैं। इसमें थायरोक्सिन नामक हारमोन निकलता है। यह थायरोक्सिन उस सामान्य गति को नियन्त्रित करता है, जिससे शरीर में ऊर्जा उत्पन्न होती है। थायरोक्सिन की मात्रा कम रह गई तो ऊर्जा धीरे-धीरे पैदा होती है, भले ही शरीर में खाद्य-सामग्री पर्याप्त भी हो। ऐसी स्थिति में व्यक्ति आलसी हो जाता है। यदि थायरोक्सिन अधिक हो जाये, तो क्रियाशीलता बहुत बढ़ जाती है। उस स्थिति में व्यक्ति अधीर, अशान्त, उत्तेजित, बकवादी हो सकता है। इस प्रकार आलस्य और उत्साह के लिए यही केन्द्र जिम्मेदार है। प्रतिभावान, विकासोन्मुख व्यक्तियों को वैसा अवसर थाइराइड की सुव्यवस्था ने ही प्रदान किया होता है।

(5) थाइमस-ये वक्षस्थल के ऊपरी भाग में होती है। गर्भस्थ स्थल में विकास करने की क्षमता इसी में भरी है। यदि यह ग्रन्थि अविकसित रहे तो भ्रूण, स्वस्थ माता से भी उचित पोषण प्राप्त न कर सकेगा। जन्म से लेकर किशोरावस्था और यौवन के द्वार तक ठीक तरह पहुँचा देने की जिम्मेदारी भी उसी को सम्भालनी पड़ती है। संक्षिप्त में इसे विकास-ग्रन्थि भी कह सकते हैं।

(6) एड्रीनल-ग्रन्थियाँ-गुर्दे के ऊपर दो हिस्सों में बँटी होती है। एक को कॉर्टेक्स ओर दूसरी को मेडुला कहते हैं। कॉर्टेक्स से दो प्रकार के स्राव निकलते हैं। (1) ग्लूको-कार्टिकाइड (2) इलेक्ट्रो कार्टिकाइड। ग्लूकोकार्टिकाइड का कार्य शरीर में कार्बोहाइड्रेट तथा वसा का भण्डार जमा करना है और प्रोटीन का सही विभाजन करना है। वही इस संचय का उपयोग संकट काल में करता है।

दूसरा स्राव-समूह इलेक्ट्रो कार्टिकाइड भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। यह शरीर में पानी को तथा सोडियम क्लोराइड आदि रसायनों को नियन्त्रित करता है। यह रोकथाम न हो तो शरीर पाला मारे वृक्ष की तरह सूख जायेगा।

यह भावनात्मक उद्वेगों से एड्रीनल ग्रन्थियाँ असाधारण रूप से उत्तेजित हो जाती है और आपत्ति से लोहा ले सकने योग्य शारीरिक एवं मानसिक ऊर्जा उत्पन्न करती है। क्रोध, भय, हर्ष, रोमांस जैसे अवसरों पर रोमांच हो जाता है। साँस तेज हो जाती है। रक्त-प्रवाह बढ़ जाता है। पसीना छूटता है, यह सब इसी ग्रन्थि के हारमोन का चमत्कार है।

(7) पेन्क्रियाज-यह ग्रन्थि आमाशय के नीचे स्थित है। इसका मुख्य कार्य भोजन पचाने के लिए पाचक रसों का उत्पादन है। भोजन पचाने के दौरान अनेक तरह के रसों की उन पर प्रतिक्रिया की जाती है। उनका सन्तुलन बिगड़ने पर पाचन संस्थान लड़खड़ा जाता है। उस स्थिति में आहार शरीर में ऊर्जा पैदा करने के लिए कोशों तक नहीं पहुँच पाता। पेंक्रियाज की इस भूमिका के कारण इनकी गणना बहिर्स्रावी ग्रन्थियों में भी की जाती है।

पेन्क्रियाज के अन्दर ही विशेष खण्ड ‘आइलेट्स आफ लैंगरहेन्स’ है। इसमें से इन्सुलिन नामक एक विशेष हारमोन पैदा होता है। शरीर के अन्दर शर्करा के अनुपात का नियन्त्रण यह रखता है। शरीर में ऊर्जा पैदा करने के लिए जितनी शर्करा खर्च होती है। यदि उससे अधिक शर्करा में हो जाय जो मधुमेह (डायबिटीज) रोग हो जाता है। इन्सुलिन कार्बोहाइड्रेट से अधिक शर्करा न देने तथा अतिरिक्त शर्करा को चर्बी आदि में बदल देने का कार्य करता है।

(8) गोनड्स-ये कामवासना सम्बन्धी ग्रन्थियाँ होती है। इन्हें हम प्रजनन ग्रन्थियाँ भी कह सकते हैं। पुरुष की प्रजनन ग्रन्थियाँ शुक्र ग्रन्थियाँ या वृषण तथा स्त्रियों की प्रजनन ग्रन्थियाँ, डिम्ब ग्रन्थियाँ या अण्डाशय कहलाती है। पुरुष सेक्स हारमोन्स की उत्पादिका वृषण-ग्रन्थि नर में होती है। उसी से उसका पुरुषत्व जगता है। पुरुष आकृति को नारी से भिन्न करने वाले दाढ़ी-मूँछ आदि लक्षण प्रकट होते हैं। नारी में डिम्ब ग्रन्थियाँ गर्भाशय के दोनों छोरों पर होती है। इन स्त्री-गोनड्स से अनेक स्राव निकलते हैं। जिनमें मुख्य है। दो- (1) एस्ट्रोजेन्स (2) प्रोजेस्ट्रोन।

शारीरिक विकास की दृष्टि से स्राव अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। स्त्रियोचित, कोमलता तथा गर्भधारण की क्षमता इन्हीं स्रावों से सम्बन्धित है। लिंग परिवर्तन की जो घटनाएँ घटित होती रहती है। वह इसी ग्रन्थि के स्रावों की उल्टी-पुल्टी के परिणाम स्वरूप होती है।

गोनड्म (जनन ग्रन्थियाँ) जननेन्द्रिय हलचलों की क्षमता को तथा प्रजनन-शक्ति को नियन्त्रित करती है। पुरुष-यौवन का इसी ग्रन्थि से सम्बन्ध रहता है। वृद्धावस्था में आमतौर से शरीर बहुत शिथिल हो जाता है। और इन्द्रियाँ जवाब दे जाती है। फिर भी कई बार यह आश्चर्य देखा गया है कि शताधिक आयु वाले व्यक्ति भी नवयुवकों की तरह प्रजनन क्रिया सफलतापूर्वक सम्पन्न करते रहते हैं। यह गोनड्स ग्रन्थियों के सशक्त बने रहने और समुचित यौन-हारमोन्स स्रावित होते रहने का ही परिणाम है।

मनःशास्त्री एडलर ने काम-प्रवृत्ति की शोध करते हुए पाया कि बाहर से अतीव सुन्दर आकर्षक और कमनीय दिखाई देने वाली अनेक महिलाएँ काम-शक्ति से सर्वथा रहित है। उनमें न तो रमणी-प्रवृत्ति थी, न नारी सुलभ उमंग। खोज करने पर ज्ञात हुआ कि यौन-हारमोन्स के श्रोत ही इन विशेषताओं को आधार है।

एडलर ने अपनी खोज के दौरान देखा कि कितनी ही युवकों की शारीरिक स्थिति सामान्य थी, ऊपर से उनमें मर्दानगी भरी ही दिखाई देती थी। पर थे वे वस्तुतः नपुंसक। न तो उनके मन में काम उमंग थी, न जननेन्द्रिय में उत्तेजना। कारण तलाश करने पर उनमें सेक्स-हारमोन का अभाव पाया गया। इसके विपरीत उन्हें ऐसे नर-नारी भी मिले जो अल्पवयस्क अथवा वयोवृद्ध होते हुए भी काम पीड़ित रहते थे।

अन्तःस्रावी ग्रन्थियों और उनसे उत्पन्न हारमोन के आश्चर्यजनक प्रभावों के ढेरों प्रमाण अध्ययनकर्ताओं को मिले है। बीथोवेन वैसे बहरे का प्रखर संगीतज्ञ बनना, डीमास्थनीज जैसे हकलाने वाले धुरन्धर वक्ता हो सकना, डैनियलबोर्न जैसे मन्द-दृष्टि का- सुन्दर दृश्यों का अडन करने वाला कुशल चित्रकार बन पाना इन्हीं हारमोन के स्राव की मात्रा पर निर्भर रहा है।

‘एस्ट्रालोजिकल कोरिलेशक्स विथ द डक्टलैस ग्लैण्ड्स’ नामक ग्रन्थ में अंतःस्रावी ग्रन्थियों की चर्चा आन्तरिक ग्रहों के रूप में की गई है। जिस प्रकार सौर-मण्डल के विविध ग्रह परस्पर संतुलन की स्थिति बनाये है, वैसे ही ये अंतःस्रावी ग्रन्थियाँ शारीरिक, मानसिक सन्तुलन साधे रहती है।

इस तुलना-क्रम में सूर्य को पीनियलबॉडी से, चन्द्र की पिन्युटरी से, मंगल की पैराथाइराइड से, बुध की थाइराइड से, बृहस्पति की एड्रीनल से तथा शुक्र की थाइमस से तुलना की गई है। “आकल्ट एनाटामी” के लेखन ने इस ग्रन्थियों का उल्लेख “ईश्वर सेन्टर्स” के रूप में किया है तथा उनके उद्दीपन को उत्नर्ग्रही चेतना के साथ जोड़ा है। प्रतीत होता है। कि अविज्ञात चेतना-केन्द्रों से इन ग्रन्थियों के माध्यम से मनुष्य को कुछ असाधारण अनुदान मिलता रहता है।

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