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Magazine - Year 1977 - Version 2

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Language: HINDI
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विज्ञानमय कोश की अतीन्द्रिय सामर्थ्य

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चेतना के चतुर्थ आयाम विज्ञानमय कोश की मूर्छना यदि दूर की जा सके तो सूक्ष्म जगत के साथ सम्बन्ध जुड़ सकता है और उस क्षेत्र में बिखरी पड़ी ऐसी विभूतियों का लाभ मिल सकता है जो सर्व साधारण के लिए सामान्यतया उपलब्ध नहीं है।

कभी-कभी विज्ञानमय कोश की विशेषता अनायास ही उग आती है। निर्जन द्वीपों में भी फलदार वृक्ष पाये गये है। यह वहाँ की अपनी उपज नहीं है, वरन् चिड़ियों की बीट में वे बीज उधर पहुँचे और उगे है। ऐसे अनायास सुयोग भी कई सामान्य व्यक्तियों को ऐसे लाभ देते हैं जिन्हें अद्भुत एवं अप्रत्याशित ही कहा जा सकता है। प्रयत्नपूर्वक यह क्षमता व्यवस्थित रूप से जगाई जा सकती है। इस सन्दर्भ में समय समय पर उपलब्ध होती रहने वाली घटनाएँ यह बताती है कि दिव्य अनुभूतियों की कोई सत्ता-व्यवस्था इस संसार में निश्चित रूप से विद्यमान है।

दिव्य दर्शन का लाभ जागृत अनुभूतियों की तरह स्वप्न में भी मिल सकता है। सजग मस्तिष्क, जिस समय निद्रित स्थिति में होता है। उस समय ‘अचेतन’ को अधिक स्वतन्त्रता अच्छी तरह अपनी क्षमता का परिचय दे सकता है। ऐसी कितनी ही घटनाएँ है जिनमें कुछ लोगों को स्वप्न में दिव्य दर्शन का लाभ मिला है।

गेटे ने अपनी आत्म-कथा में लिखा है कि उसे एक दिन अचानक यह अनुभूति हुई कि सिसली में भयंकर भूकम्प का विवरण छपा तो उसने जाना कि वह अनुभूति एक यथार्थता थी। “मंगल ग्रह के दो चन्द्रमा होने और उनमें से एक की चाल दूसरे से दूनी होने” की बात लिखी है। उस समय वह बात गप्प समझी गयी थी, पर उस लेख के 150 वर्ष बाद सन् 1577 में जब वाशिंगटन की ‘नेबल आवजरवेटरी’ में शक्तिशाली दूरबीन से उस कथन की सत्यता घोषित की गई तो लोगों ने उस दिव्य-दर्शन पर आश्चर्य प्रकट किया कि बिना किसी साधन के ऐसी जानकारी किस प्रकार सम्भव हो सकी।

जे0.डबल्यू0 डने के ग्रन्ट “एन एक्सपेरिमेन्ट विद टाइम’ में ऐसे अनेक विवरणों का संग्रह है जिनमें समय से पूर्व मिली जानकारियाँ समय आने पर बिलकुल सही सिद्ध हुई।

‘दि आर्ट आफ थौट’ के लेखक विद्वान ग्राहमवालाँस ने लिखा है कि सृजनात्मक चिन्तन अनायास ही नहीं फूट पड़ते। पहले-पहले उनका अनुमान आभास होगा, पीछे वे हाँडी के चावलों की तरह मस्तिष्क में पड़े-पड़े पकते रहते हैं। माता के पेट में प्रवेश हुए भ्रूण की तरह यह आभास अनपढ़ होते हैं किन्तु भीतर ही भीतर कोई अविज्ञात चेतना उन्हें अपने ढंग से पकाती रहती है। तदुपरान्त ऐसी स्थिति आती है। जिसे उत्साह और विश्वास का सम्मिश्रण कह सकते हैं। इस स्थिति में अपने आपको लगता है- कोई व्यावहारिक आधार हाथ लग गया। इसी स्थिति के परिपक्व विचार ही इस लायक होते हैं कि उन्हें गुण-अवगुण की कसौटी पर तर्क और बुद्धि के सहारे परखा जा सकें। इतनी मंजिलें पार कर लेने के उपरान्त किन्हीं महत्वपूर्ण सृजनात्मक अनुमानों को व्यावहारिक बन सकने की स्थिति तक पहुँचने का अवसर मिलता है।

आइन्स्टीन से पूछा गया कि उन्होंने रेलटिविटी के सिद्धान्त का सर्व प्रथम आभास किस प्रकार पाया? तो उन्होंने उत्तर दिया-इट हैपेण्ड’ अर्थात् वह अनायास ही सामने ही आ खड़ा हुआ। रेडियम खोज के सम्बन्ध में जब क्यूरी से पूछा गया तो उनका उत्तर भी इसी से मिलता-जुलता था। संसार में जो कुछ अद्भुत और असाधारण है उसका उदय भाव सम्वेदना के क्षेत्र से होता है। विज्ञान की उपलब्धियों के सूत्र संकेत भी उसी क्षेत्र से मिले है। और दार्शनिक क्षेत्र के अद्भुत विचारों का उदय भी वही से हुआ है। अन्तःकरण को मस्ती से भर देने वाली और लोक-मानस को झकझोर देने वाली दिव्य सम्वेदनाओं का उद्गम, भाव-सम्वेदनाओं के गहरी तली से ही उभर कर ऊपर आता है।

विज्ञान क्षेत्र में हुए अनेकानेक आविष्कारों का आरम्भ कहाँ से हुआ? इस प्रश्न का सर्वत्र एक ही उत्तर मिलेगा कि- ‘वह सम्भावना अनायास ही सूझ पड़ी।' मात्र सूझ ही नहीं पड़ी वरन् अन्तःकरण में किसी ने यह विश्वास भी दिलाया कि वह आभास भ्रम जंजाल नहीं, वरन् सर्वथा सत्य है। इस आश्वासन भरे आभास के सहारे ही उन लोगों ने अपनी खोजे अधिक गम्भीरता, अधिक तत्परता और अधिक तन्मयता के साथ प्रारम्भ की, फलतः उनका पथ-प्रशस्त होता चला गया और थोड़े से प्रयत्न ने आश्चर्यजनक सफलता उनके सामने लाकर खड़ी कर दी। प्रायः सभी महत्वपूर्ण आविष्कारों का आरम्भ इसी प्रकार होता रहा है।

जेम्स वाट के एक आविष्कार की कहानी स्वप्न संकेतों के साथ जुड़ी हुई है। उन दिनों बन्दूक के छर्रे सीसे का तार काट-काटकर बनाये जाते थे। वह कोई ऐसा सुगम, सस्ता तरीका ढूँढ़ना चाहता था जिससे छर्रे अपेक्षाकृत सुन्दर भी बने।

उन्हीं दिनों एक राम जेम्स वाट ने सपना देखा कि वह कहीं जा रहा है। आँधी आई और पानी बरसा पानी की बूँदों की जगह उसके सिर पर सीसे के गोल छर्रे बरस रहे है। आँखें खुलने पर उसने इस विचित्र सपने को मन की भटकन भर माना और विशेष ध्यान नहीं दिया। किन्तु वही सपना कई रात लगातार उसी तरह आता रहा। तब वाट ने उसका संकेत खोजा। उसे लगा किसी ऊँची जगह से गरम सीसा पिघला कर पानी के तालाब में डाल कर प्रयोग करने पर छर्रे बन जाने की सम्भावना का यह संकेत हो सकता है बड़ी कठिनाई से प्रयोग के लिए एक ऊँची इमारत उसे मिली जिसकी दीवार से सटा हुआ जलाशय भी था। जेम्स ने गरम सीसे की बूँदें ऊपर से गिराई और पानी में गिरने पर से गोल छर्रे के रूप में बदल गयी। वाट का आविष्कार सफल हुआ और तभी से बन्दूक में काम आने वाले गोल छर्रे बनने लगे।

पेन्सिल बेनिया यूनिवर्सिटी के प्रा0 लेम्बरटन एक वैज्ञानिक गुत्थी को वर्षों से सुलझाने में लगे हुए थे। पर कोई समाधान सूझ नहीं पड़ता था। अचानक एक रात उन्होंने वह हल दीवाल पर चमकता देखा। पाया गया कि वह उत्तर पूरी तरह सही था।

कोलरिज, गेटे,स्टीवेन्सन, ब्लेके, सरीखे मूर्धन्य कवियों को अपनी सर्वश्रेष्ठ कविताओं की पृष्ठभूमि स्वप्नों में ही उपलब्ध हुई है। गणित ओर दर्शन का समन्वय करने वाले विलक्षण दार्शनिक रेने देकार्त ने अपने प्रतिपादन का आधार स्वप्न में ही ढूँढ़ा था।

गणित सिद्धान्तों के आविष्कारों के सम्बन्ध में खोज करने वाले विद्वान हेनरी फेहर ने संसार के 69 गणितज्ञों के सम्बन्ध में जानकारी एकत्रित करने पर यह पाया कि उनमें से 51 को गणित के गढ़ सिद्धान्तों को ढूँढ़ निकालने में स्वप्न संकेतों से ही असाधारण सहायता मिली है।

हालैण्ड के “डच सोसाइटी फार साइकिकल रिसर्च’ के सुविस्तृत अनुसन्धानों में एक विचित्र घटना यह भी दर्ज है कि एक व्यक्ति ने 3684 की संख्या कई दिन स्वप्न में लगातार देखी। वह उसका और कुछ मतलब ही न समझ सका, पर उसी नम्बर का लाटरी टिकट खरीद लिया। उसे सन् 1648 का लाटरी का प्रथम पुरस्कार मिला।

सिलाई की मशीन का आविष्कर्ता ऐलियास उस अति उपयोगी यन्त्र का ढाँचा प्रायः तैयार कर चुका था, पर उसके लिए उपयुक्त सुई कैसे बने वह समझ में नहीं आ रहा था। जितनी तरह की सुइयाँ बनाई वे सभी असफल हुई ऐलिसास की उधेड़-बुन और चिन्ता बढ़ती जाती थी, पर कोई तरकीब हाथ नहीं नग पा रही थी।

एक रात ऐलियास ने सपना देखा कि सिलाई की मशीन चौबीस घण्टे में बनाकर तैयार करने की उसे राजाज्ञा मिली है। वह पूरा नहीं कर पाया तो उसे मार डालने का फरमान निकला और मारने के लिए घुड़सवार भाले लेकर, वध स्थल पर जमा हो गये। भालों को उसने भय और आतंक के साथ देखा उनकी नोंक में छेद था। सपना समाप्त हो गया। आँख खुलते ही एलियास का नई दिशा मिली। उसने सुई की पैनी नोंक पर ही छेद किया और मशीन में उलटी चलने के लिए लगा दिया। बस आविष्कार पूर्ण हो गया।

उन दिनों विज्ञान के क्षेत्र में परमाणु की मान्यता तो मिल गई थी, पर उसका स्वरूप स्पष्ट न था। विज्ञानी नील्स वोहर इसी के शोध प्रयास में भारी माथा-पच्ची कर रहा था, पर कोई सूत्र कही से हाथ नहीं लग रहा था।

एक दिन उसने सपना देखा कि-वह सूर्य के बीचों बीच जलती ज्वालामुखी में खड़ा है। अनेकों ग्रह-नक्षत्रम् उसके इर्द-गिर्द घूम रहे है। नील्स सीटी बजाता है, गैस ठण्डी हो जाती है और सूरज टूट कर टुकड़े-टुकड़े बिखर जाता है। वे टुकड़े फिर अपने केन्द्र का चक्कर काटना शुरू कर देते हैं सपना समाप्त हुआ और नील्स हड़बड़ा कर उठ बैठा। यह दृश्य अजीब भी था और भयंकर भी। उसने उसे निरर्थक नहीं माना, वरन् अपने शोध विशय में किसी अज्ञात सहायता के संकेत की तरह लिया। अणु संरचना की उसने संगति बिठाई कि सूर्य की तरह उसके मध्य में ‘नाभिक’ है और उसके इर्द-गिर्द इसी के खण्ड इलेक्ट्रानों के रूप में चक्कर लगाते हैं इस अनुमान पर वह अपनी खोज चलाता रहा और अन्ततः उसे पूर्णतया सत्य पाया। विज्ञान को परमाणु के स्वरूप का निर्धारण करा सकने में नील्स का वह सपना कितना आधारभूत सिद्ध हुआ, यह समझा जा सके तो प्रतीत होगा कि अध्यात्म की उपलब्धियों ने विज्ञान की प्रगति में कितनी बहुमूल्य सहायता की है।

पैरिस (फ्रान्स) की अध्यात्मवादी शोध संस्था “रिसर्चेज साइकालाँजिक आडकरे स्पाण्डेन्स सर ला मैगनेटिज्म वाइटल एन्ट्रेअना सालिटेयर एट एम डिल्यूज” के अध्यक्ष डॉ0 विल्लाट ने मनुष्य में पाई जाने वाली अतीन्द्रिय क्षमता के सम्बन्ध में गहरी खोज-बीन संस्था के माध्यम से और निजी तौर से की है। उन्होंने आत्म-शक्ति को भी भौतिक शक्ति के ही समतुल्य माना है।

सुकरात कहते थे मेरे भीतर एक ‘डेमन’ रहता है। उसी के सहारे वे दूरानुभूति के आश्चर्यजनक प्रमाण प्रस्तुत करते थे। गेटे को भी ऐसी ही अदृश्य अनुभूतियाँ होती थी। जिनका कोई प्रत्यक्ष आधार तो नहीं था, पर वे प्रायः सत्य ही सिद्ध होती थी। यह ‘डेमन’ क्या हो सकता है। इसके उत्तर में उनने स्वयं ही कहा था- ‘यह सुविकसित अन्तःकरण का ही दूसरा नाम है, किसी प्रेत बेताल का नहीं।

मनःशास्त्र के महामनीषी डॉ0 जोसेफ राइन ने सर्वे प्रथम अतीन्द्रिय विज्ञान पर अपनी वैज्ञानिक आधार पर लिखी हुई पुस्तक ‘एक्ट्रा सेन्सरी’ प्रकाशित कराई थी। तब से लेकर अब तक इस सन्दर्भ में शोध कार्य बहुत आगे चला गया है। डॉ0 जोसेफ ने प्रायः 85 हजार घटनाओं की साक्षियों का विश्लेषण करके कुछ निष्कर्ष निकाले थे। उसने कहा है- ‘बिना संचार साधनों की सहायता के एक मन दूसरे मन को प्रभावित कर सकता है। मन में पदार्थों को प्रभावित करने की सामर्थ्य मौजूद है। मनःशक्ति की लम्बी दौड़ में दूरी ताप, ऊँचाई, गहराई अथवा अन्य कोई भौतिक कारण व्यवधान उत्पन्न नहीं करते।

रूसी परामनोवानवेत्ता एल0एल॰ वेसिलियेब ने एलेक्ट्रो मैगनेटिज्म-एक्सरेज आदि के व्यवधान उत्पन्न करके यह पता लगाने का प्रयत्न किया कि मन की दूर बोध शक्ति में उनके कारण कोई अड़चन उत्पन्न होती है, या नहीं। पर पाया यही गया कि जिनमें यह शक्ति मौजूद है उनका कार्य प्रत्येक वैज्ञानिक बाधा के बावजूद यथावत् चलता रहता है। मन की क्षमता को कोई भौतिक शक्ति प्रभावित नहीं करती। इससे वे यह सोचने को बाध्य होते हैं कि मन की शक्ति कोई अभौतिक शक्ति हो सकता है।

ळनावा होकीची जापान के मुसाशी प्रान्त का रहने वाला व्यक्ति सात वर्ष की आयु में अन्धा हो गया था। किन्तु उसने अपना जीवन उच्चकोटि के विद्वानों को इकट्ठा कर उन्हें पढ़ाने में बिताया। उसने स्वयं ने सुनकर पढ़ा था और अपनी बौद्धिक क्षमता को इतना प्रखर बनाया था कि 400000 हस्तलिपि की विशय-सूची तैयार कर सकता था। उसने एक ऐसी पुस्तक संकलित की जिसके 2820 खण्ड है। ऐसी विशाल पुस्तक आज तक दुनिया में किसी ने भी नहीं लिखी। उसने बागाक्से में एक स्कूल भी खोना जिसमें जापानी साहित्य पढ़ाया करता था।

स्पेन की सर्वश्रेष्ठ समझी जाने वाली इमारत ‘इस्कोपियल’ वहाँ के राजा फिलिप द्वितीय ने अपनी पत्नी मेरी ट्यूडार को स्मृति में बनवायी थी। उसमें यह भी व्यवस्था थी कि राजाओं की मृत्यु के बाद उन्हें इन्हीं में बनी कब्रों में दफनाया जाया करें। फिलिप का एक भविष्यवक्ता ने बताया था कि उसका राजवंश 24 पीढ़ी तक चलेगा। उस कथन पर राजा को पूरा विश्वास था। इसीलिए उसने 24 कब्र ही बनवा कर रखी। आश्चर्य यह कि कि भविष्यवाणी पूर्णतया सच निकली। रानी मेरिया क्रिस्टिना को सन 1626 में 23 वीं कब्र में दफनाया गया। इसके बाद 24 वें राजा अलफोनों को दो वर्ष बाद ही गद्दी छोड़नी पड़ी। साथ ही राजतन्त्र का भी अन्त हो गया। वहाँ गणतन्त्र स्थापित हुआ और अलफोनो स्पेन का अन्तिम चौबीसवाँ राजा कहलाया।

“इसिंस अनबेल्ड” ग्रन्थ में ऐसे कितने ही उल्लेख है। जिनमें विचार-शक्ति द्वारा दूसरों को भले या बुरे प्रयोजन के लिए प्रभावित किये जाने के उल्लेख है। पुस्तक में “सैक्यूज पेलिसियर” नामक व्यक्ति का उल्लेख है जो अपनी वेधक दृष्टि से चिड़ियों को मूर्छित करके पकड़ लेता था और अपनी आजीविका चलाता था। डाक्टर एसगर ने अपनी साक्षी सहित वह विवरण विस्तारपूर्वक प्रकाशित कराया है, जिसमें उपरोक्त व्यक्ति उड़ती चिड़ियों को किस प्रकार वशवर्ती करके उनके प्राण-हरण करता था।

विचारों से वस्तुओं को प्रभावित करने की विद्या “साइकोमेट्री” के नाम से जानी जाती है। जिन पदार्थों का जिस प्रयोजन के लिए प्रयोग होता रहा है, वे उससे भर जाते हैं और फिर जहाँ भी उनका प्रयोग होता है। वहाँ वे उस क्षमता का परिचय देते हैं जो उनने दीर्घकालीन सम्पर्क से संचित की थी।

ड्यूक विश्व-विद्यालय के प्रोफेसर जी0वी0 राइन ने अतीन्द्रिय ज्ञान से सम्पन्न कितने ही व्यक्तियों की क्षमताओं को जाँचा और तथ्यपूर्ण पाया है। विज्ञानी कैरिग्टन के शोधकर्ता में भी मनुष्यों में अतीन्द्रिय शक्ति पाये जाने की यथार्थता स्वीकार की गई है।

डॉ0 ब्रोरा, डॉ0 बेगनर, डॉ0 वेची, डॉ0 चेना आदि मूर्धन्य शरीर शास्त्रियों की एक मण्डली ने विश्व भ्रमण करके योगियों की विलक्षणताओं का पता लगाया था। उनने अपने अनुभवों में ऐसे कितने ही योगियों का वर्णन किया है। जिनमें ऐसी असामान्य क्षमताएँ पाई, जिनके आश्चर्यजनक कहाँ जा सके।

अतीन्द्रिय क्षमता सम्पन्न व्यक्तियों तथा घटनाओं के ऐसे उदाहरण आये दिन देखने को मिलते हैं, जिनसे सिद्ध होता है कि मस्तिष्क का सामान्य ज्ञान एवं कौशल ही सब कुछ नहीं है। सूक्ष्म जगत में ऐसा बहुत कुछ है जो सामान्य लोगों को उपलब्ध नहीं है। इसे प्राप्त करने के लिए अचेतन मन की उस परत को परिपुष्ट करना पड़ता है जिसे आत्म-विज्ञान में विज्ञानमय कोश नाम दिया गया है।

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