
अन्तर की गहराई में उतरें
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
विपत्ति ओर अतृप्ति से भरा नीरस जीवन यह बताता है कि अन्तःकरण की गरिमा सूखने और झुलसने लगी है। जड़ें मजबूत और गहरी हों तो जमीन में से पेड़ के लिए पर्याप्त जीवन-रस प्राप्त और झुलसने लगी हैं और वह हरा-भरा बना रहता है। आन्तरिक श्रद्धा यदि मर न गई हो तो अभावग्रस्त परिस्थितियों में भी सरसता और प्रफुल्लता खोजी जा सकती है। उल्लास सुख-साधनों पर नहीं, उत्कृष्ट दृष्टिकोण पर निर्भर है।
विलास की सुविधा, सामग्री प्रकृत पदार्थों से और मनचाहे सहयोगियों की सहायता से मिलती है। पर यदि आनन्द की आवश्यकता हो तो उसे बिना पदार्थ या व्यक्ति की सहायता से प्रचुर परिणाम में पाया जा सकता है। उसके लिए अपनी ही अन्तरात्मा का परिशोधन करना पड़ता है। आन्तरिक पवित्रता में इतना सौंदर्य और मिठास भरा पड़ा है कि उसके दर्शन पाने, करने तथा रसास्वादन करने से वह मिलता है, जिसके अभाव में जीव को निरन्तर भटकना ही भटकना पड़ता है।
बाहर दौड़ने में पुरुषार्थ है। पुरुषार्थ कई तरह की सफलताएँ प्रस्तुत करता है। बड़प्पन की प्यास हो तो जल-जंगल छानने ही पड़ेंगे, पर यदि महानता का देवत्व अभीष्ट हो तो उसके लिए भीतर की खोज करनी पड़ेगी तृप्ति किसी पदार्थ में नहीं, दृष्टिकोण की गरिमा में उसका स्त्रोत है। जीवन का आनन्द लेना हो तो उसके लिए अन्तर की गहराई में उतरने का, समुद्र तल से मोती ढूँढ़ लाने वाले जैसा साहस सँजोना पड़ेगा।