• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • साधना स्वर्ण-जयन्ती वर्ष की पूर्णाहुति
    • अन्तर की गहराई में उतरें
    • एक दृश्य-एक तथ्य
    • इस संसार की यथार्थता समझें और तत्त्व-दृष्टि प्राप्त करें।
    • आत्मोत्कर्ष के चार अनिवार्य चरण
    • ऊँचा बनने के लिए मत ललचाओ (kahani)
    • मरने के बाद फिर से जन्म लेना पड़ता है।
    • कमजोरों के साथ बर्ताव (kahani)
    • योग साधना का उद्देश्य चित्त वृत्तियों का निरोध!
    • मनुष्येत्तर प्राणियों की भाषा भी समझी जाय
    • साधन तो जुटाएँ पर साध्य का स्तर बढ़ाएँ
    • सहकारिता और आदान प्रदान का ब्रह्माण्डव्यापी तथ्य
    • Quotation
    • मंत्र में शब्द, चरित्र और भावना की समन्वित शक्ति
    • विकास और विनाश का गतिचक्र
    • समर्थन और सहयोग
    • मनुष्य की अन्तः शक्ति के विभिन्न प्रयोग
    • Quotation
    • उज्ज्वल भविष्य के लिये सुविकसित सन्तान की आवश्यकता
    • औषधि सेवन में सतर्कता की आवश्यकता
    • भले ही थोड़ा करें, पर उत्कृष्ट
    • ब्रह्म वर्चस् सत्र-साधकों के अनुभव
    • ब्रह्म वर्चस् आरण्यक के लिए (kahani)
    • सब कुछ नहीं-उपयोगी और सीमित ही
    • अपनों से अपनी बात - शान्तिकुञ्ज में महिला सत्रों की व्यवस्था
    • हमारा संकल्प
    • हमारा संकल्प (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • साधना स्वर्ण-जयन्ती वर्ष की पूर्णाहुति
    • अन्तर की गहराई में उतरें
    • एक दृश्य-एक तथ्य
    • इस संसार की यथार्थता समझें और तत्त्व-दृष्टि प्राप्त करें।
    • आत्मोत्कर्ष के चार अनिवार्य चरण
    • ऊँचा बनने के लिए मत ललचाओ (kahani)
    • मरने के बाद फिर से जन्म लेना पड़ता है।
    • कमजोरों के साथ बर्ताव (kahani)
    • योग साधना का उद्देश्य चित्त वृत्तियों का निरोध!
    • मनुष्येत्तर प्राणियों की भाषा भी समझी जाय
    • साधन तो जुटाएँ पर साध्य का स्तर बढ़ाएँ
    • सहकारिता और आदान प्रदान का ब्रह्माण्डव्यापी तथ्य
    • Quotation
    • मंत्र में शब्द, चरित्र और भावना की समन्वित शक्ति
    • विकास और विनाश का गतिचक्र
    • समर्थन और सहयोग
    • मनुष्य की अन्तः शक्ति के विभिन्न प्रयोग
    • Quotation
    • उज्ज्वल भविष्य के लिये सुविकसित सन्तान की आवश्यकता
    • औषधि सेवन में सतर्कता की आवश्यकता
    • भले ही थोड़ा करें, पर उत्कृष्ट
    • ब्रह्म वर्चस् सत्र-साधकों के अनुभव
    • ब्रह्म वर्चस् आरण्यक के लिए (kahani)
    • सब कुछ नहीं-उपयोगी और सीमित ही
    • अपनों से अपनी बात - शान्तिकुञ्ज में महिला सत्रों की व्यवस्था
    • हमारा संकल्प
    • हमारा संकल्प (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1977 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


इस संसार की यथार्थता समझें और तत्त्व-दृष्टि प्राप्त करें।

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 3 5 Last
वेदान्त दर्शन यह कहता है कि अंश और अंशी अविच्छिन्न सम्बन्ध है। मठाकाश और घटाकाश का भेद नहीं है। सर्व-खल्विदं ब्रह्म’ यह सब कुछ ब्रह्म है। दृश्य और दृष्टा के अन्तर को अवास्तविक बताते हुए, तत्त्वदर्शियों ने कहा है, मन ही दृश्य वस्तु के रूप में प्रकट होता है। जो वस्तु हमें जिस रूप में दिखती है, वस्तुतः वह वैसी ही नहीं है। पदार्थ के कम्पन और इन्द्रियों की ग्रहण शक्ति की जो प्रतिक्रिया मस्तिष्क पर होती है, उसी का बिम्ब दृश्य बन कर दिखाई देता है। हर प्राणी को एक ही वस्तु एक ही प्रकार देता है। हर प्राणी को एक ही वस्तु एक ही प्रकार की नहीं, दीखती, उनकी आकृतियों में भारी अन्तर होता है। रंगों के बारे में तो मनुष्य-मनुष्य में ही अन्तर दीखता है। एक मनुष्य को जितने रंग जिस प्रकार के दीखते हैं, दूसरे को उससे न्यूनाधिक दीखते हैं। इसी प्रकार स्वाद में अन्तर रहता है। मनुष्य और पशुओं की इन्द्रियों में स्वाद का भारी अन्तर रहता है। मनुष्य को नीम की पत्तियाँ कड़ुई लगती है, पर ऊँट को उसका स्वाद भिन्न प्रकार का लगता है और वह उसे रुचिपूर्वक खाता है। स्वाद की तरह की दृश्य, श्रव्य, गन्ध एवं स्पर्श की अनुभूतियों का संवेदन और मस्तिष्क तन्त्र का गठन भी बहुत बड़ा कारण होता है। अस्तु किसी वस्तु के वास्तविक स्वरूप में अनुभव किया जाता है, उसमें भारी अन्तर रह सकता है।

इसी तथ्य को वेदान्त ने इस रूप में कहा है कि चेतना ही दृश्य बन कर दीखती है। यह कथन विज्ञान की दृष्टि में भी सही है, वस्तुतः यह सारी सृष्टि परमाणुमयी है। सर्वत्र परमाणुओं के गुच्छक ही पदार्थ बन कर रेत के टीलों की तरह विभिन्न वस्तुओं के रूप में दीख रहे हैं। यदि कोई यथार्थ दर्शन वाला मस्तिष्क और मन्त्र हाथ लग जाएगा, तो प्रतीत कि इस संसार में परमाणुओं की प्रकाश, ताप आदि के विद्युतीय कम्पनों की आँधियाँ भर चल रहीं हैं। जो आँखों को सत्य दीखता है, वह बादलों में बनती, बिगड़ती दिखने बाली अवास्तविक आकृतियाँ मात्र है।

मनुष्यों में से अनेक रंगों के सम्बन्ध में आँशिक अन्धे होते हैं। इन्हें कलर ब्लाइण्ड कहते हैं। हजार पीछे तीस-चालीस आदमियों में यह बीमारी पाई जाती है। प्रख्यात साहित्यकार जार्ज बर्नार्डशा को हरे और पीले रंग का अन्तर दिखाई नहीं पड़ता था। यह कमी उन्हें तब प्रतीत हुई, जब वे अपने हरे सूट के लिए बाज़ार में पीली टाई खरीद रहे थे। दुकानदार ने समझाया कि आप सूट के रंग की टाई खरीदें, वही फबेगी। बर्नार्डशा ने पूछा, तो क्या मैं कोई गलत रंग का चुनाव कर रहा हूँ? इसी पर बात बढ़ी ओर रंगों की पहचान करने की नौबत आ पहुँची। निष्कर्ष यह निकला कि बर्नार्डशा हरे और पीले रंग का अन्तर नहीं देख पाते।

यह संसार वस्तुतः कैसा है, इसके दो ही उत्तर हैं, या तो यह चेतनामय ब्रह्म है, या फिर जड़, निर्जीव निस्तब्ध जड़ और चेतन का जहाँ संयोग है। वहाँ विभिन्न प्रकार की हलचलें हो रही हैं। उत्पादन, अभिवर्धन के संयोग से उत्पन्न होती है।

इन्द्रियों से, मन से संसार में जो प्रिय-अप्रिय अनुभव होते हैं, वे अपने ही दृष्टि कोण की प्रतिक्रिया, प्रतिच्छाया है। किस वस्तु का स्वाद कैसा है, यह पूछना व्यर्थ है। पदार्थ और जिव्हा के रसों के स्पर्श से जो अनुभूति होती है, वही स्वाद है। आवश्यक नहीं कि हर मनुष्य को एक जैसा ही किसी खाद्य पदार्थ का अनुभव हो। हर व्यक्ति की स्वादानुभूति एक ही पदार्थ के सम्बन्ध में अत्यधिक भिन्न हो सकती है। शक्कर की मिठास का स्वाद किस प्रकार का होता है, इसका कोई सही विश्लेषण सम्भव हो सके, तो पता चलेगा कि जिस प्रकार हर, मनुष्य की आकृति में भिन्नता होती है, उसी प्रकार उनकी उनकी स्वादानुभूति में भी सूक्ष्म स्तर पर भिन्नता पाई जा सकती है। यही बात अन्य इन्द्रियों के सम्बन्ध में भी है। दृश्य, श्रवण आदि में भी अन्तर रहता है। काम सेवन के समय की अनुभूतियाँ प्रत्येक पति-पत्नि की दूसरों की तुलना में अन्य ढंग की, अनोखी होती है। किसी की किसी से समता नहीं हो सकती है।

मनुष्यों की इन्द्रियाँ जिस प्रकार अनुभव करती हैं, आवश्यक नहीं कि अन्य प्राणी भी उन पदार्थों को उसी प्रकार का अनुभव करें। रंगों की अनुभूति मनुष्य की तुलना में अन्य प्राणियों को भिन्न प्रकार की होती हैं। करते हैं कि हाथी की आँख में मनुष्य इतना बड़ा दीखता है, जितना कि मनुष्य को हाथी। स्वाद में नीम के कड़ुए पत्ते ऊँट को अति मधुर लगते होंगे, तभी तो वह उन्हें रुचि पूर्वक खाता है। मनुष्य जीवित चूहा दाँतों से कुतर कर खाये तो वह उसे अप्रिय लगेगा। वही बिल्ली को इतना स्वादिष्ट लगता है, जितना हम लोगों को मिष्ठान-पकवान

वेदान्त दर्शन में इस संसार को माया, मिथ्या एवं स्वप्न की संज्ञा दी गई है। यह प्रतिपादन इस अर्थ से सही है, कि प्रिय-अप्रिय की अनुभूतियाँ हमें होती हैं, वे सत्य नहीं है। वर्षा के दिनों इन्द्र धनुष दीखता तो है, पर उसे पकड़ने का प्रयत्न किया जाय, तो निष्फल होगा। क्योंकि दीखते हुए भी, वह सूर्य किरणों पर वर्षा-बिन्दुओं के प्रतिबिम्ब की प्रतिक्रिया मात्र है, वस्तुतः उस प्रकार का कोई पदार्थ वहाँ है नहीं, जैसा कि इन्द्रधनुष दीखता है। मृग मरीचिका में रेत के चमकते कण रात्रि में जलाशय होने जैसा भ्रम उत्पन्न करते हैं। सिनेमा के पर्दे पर घुड़दौड़ के दृश्य देखे जा सकते हैं, जबकि वस्तुतः वहाँ वैसा कुछ हो नहीं रहा है। स्थिर चित्रों को घुमाने की गति बढ़ जाने से आंखें धोखा खाती हैं ओर स्थिर चित्रों को गतिशील अनुभव करती हैं। स्वप्नों का संसार भी ऐसा ही है, वहाँ न प्राणी होते हैं, न पदार्थ। ऐसे ही भ्रम जंजालों की एक नई दुनिया बस जाती है और स्वप्नदर्शी उस समय ठीक ऐसा ही अनुभव करता है, मानों जो कुछ वह देख रहा है, सर्वथा सत्य ही है। जागृति से पता चलता है कि, रात्रि भर जिस सपने के कारण हँसने-रोने के उभार आते रहे, वह अपने ही मस्तिष्क का रचा हुआ इन्द्रजाल भर था।

इस संसार की भी ऐसी ही स्थिति है। यहाँ जड़ पदार्थ निर्जीव होने के कारण किसी को किसी प्रकार की अनुभूति सम्वेदना दे सकने की स्थिति में नहीं है। प्राणि जगत के जीवधारी भी अपने कार्य-कलाप में उलझे हुए हैं। उनकी अपनी समस्याएँ एवं आवश्यकताएँ ही इतनी हैं कि दूसरों के लिए कुछ अधिक सोच या कर सकना सम्भव नहीं है। यही वस्तु स्थिति है। इतने पर भी हमारा प्राणियों के प्रति मोह और पदार्थों के प्रति जो लोभ है, वह अपनी ही मानसिक संरचना है। मकड़ी की तरह हम अपने पेट में धागा निकाल कर जाला बुनते हैं और उसी में उलझ कर समस्या ग्रसित होते हैं। हम चाहें तो इस जाल को स्वयं ही आसानी से समेट सकते हैं ओर रागद्वेष के ज्वार-भाटों में उलझते गिरते रहने की विपन्नता से छुटकारा पाकर शान्ति और विनोद भरा जीवन जी सकते हैं।

यह संसार सत्य इस अर्थ से है कि इसमें ब्रह्म तत्त्व की चेतना ओर उसकी इच्छा-लीला-क्रीड़ा से उत्पन्न प्रकृति इन दोनों का ही सम्मिलित हास-परिहास चल रहा है। इस विराट् ब्रह्म को विशाल विश्व के रूप में देखा जा सकता है। और ईश्वर दर्शन का हर घड़ी लाभ लेते हुए सत्कर्म पूजा की प्रभु आराधना में निरत रहा जा सकता है। सर्व खलु इदं ब्रह्म-ईशावास्यमिदंसर्वं-के प्रतिपादनों से यह समस्त प्रसार ईश्वर की झाँकी की। अयमात्मा ब्रह्म की मान्यता अपना कर हम आत्म परिष्कार और आत्मविकास के परम पुरुषार्थ में संलग्न रह सकते हैं और वह प्राप्त कर सकते हैं, जिसके लिए यह सुर दुर्लभ मनुष्य जीवन मिला है। यही है इस संसार की वास्तविकता, जिसे वेदान्त दर्शन ने सूत्र रूप में किन्तु सारगर्भित व्याख्या समेत समझाया है।

First 3 5 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • साधना स्वर्ण-जयन्ती वर्ष की पूर्णाहुति
  • अन्तर की गहराई में उतरें
  • एक दृश्य-एक तथ्य
  • इस संसार की यथार्थता समझें और तत्त्व-दृष्टि प्राप्त करें।
  • आत्मोत्कर्ष के चार अनिवार्य चरण
  • ऊँचा बनने के लिए मत ललचाओ (kahani)
  • मरने के बाद फिर से जन्म लेना पड़ता है।
  • कमजोरों के साथ बर्ताव (kahani)
  • योग साधना का उद्देश्य चित्त वृत्तियों का निरोध!
  • मनुष्येत्तर प्राणियों की भाषा भी समझी जाय
  • साधन तो जुटाएँ पर साध्य का स्तर बढ़ाएँ
  • सहकारिता और आदान प्रदान का ब्रह्माण्डव्यापी तथ्य
  • Quotation
  • मंत्र में शब्द, चरित्र और भावना की समन्वित शक्ति
  • विकास और विनाश का गतिचक्र
  • समर्थन और सहयोग
  • मनुष्य की अन्तः शक्ति के विभिन्न प्रयोग
  • Quotation
  • उज्ज्वल भविष्य के लिये सुविकसित सन्तान की आवश्यकता
  • औषधि सेवन में सतर्कता की आवश्यकता
  • भले ही थोड़ा करें, पर उत्कृष्ट
  • ब्रह्म वर्चस् सत्र-साधकों के अनुभव
  • ब्रह्म वर्चस् आरण्यक के लिए (kahani)
  • सब कुछ नहीं-उपयोगी और सीमित ही
  • अपनों से अपनी बात - शान्तिकुञ्ज में महिला सत्रों की व्यवस्था
  • हमारा संकल्प
  • हमारा संकल्प (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj