• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • जीवन ईश्वर का स्वरूप एवं वरदान
    • भक्ति मार्ग और प्रेम योग
    • बन्धन मुक्ति ईश्वर प्राप्ति
    • मानवी विद्युत इस जगत की प्रचण्डतम ऊर्जा
    • बुढ़िया का खेत बलपूर्वक छीन लिया (kahani)
    • बीस अरब पृष्ठों की पुस्तक
    • अन्तःकरण चतुष्टय और साधना विज्ञान
    • ध्यान साधना की प्रचण्ड सामर्थ्य
    • किस पर अनुग्रह करना चाहिए किस पर नहीं (kahani)
    • ज्ञान ही नहीं मनुष्य को धर्म भी चाहिए।
    • अग्निवेश ने आचार्य चरक से पूछा (kahani)
    • हंसती-हंसाती हलकी फुलकी जिन्दगी
    • ऊँट के नीचे पहाड़
    • उधर जाइये मत खतरा है!
    • धर्म अफीम की गोली नहीं हैं !
    • ब्रह्म जी ने जब पृथ्वी बनाई (kahani)
    • पारिवारिक जीवन में निष्ठा और भावनाएँ जमी रहें!
    • हम विराट विश्वात्मा के एक घटक मात्र हैं।
    • Quotation
    • सादगी अपनायें शालीनता बरतें!
    • एकांगी प्रगति- कानी कुबड़ी लंगड़ी लूली
    • मिल घाटे में चली गई (kahani)
    • हमारी कमाई में पिछड़ों का भी हिस्सा है!
    • प्रगति का एकमेव आधार-प्रतिभा, सहकार
    • Quotation
    • जैसा खाये अन्न- वैसा बने मन
    • भविष्य वाणियों से सार्थक दिशाबोध
    • संकटों से छुटकारा विवेक ही दिला सकेगा
    • ॥ अथ श्री माल्थस सिद्धान्त प्रारभ्यते ॥
    • मानसिक रोगों का प्रेमोपचार
    • महामानव के पक्षधर बनें या अतिमानव के
    • अन्तर्जगत का देवासुर संग्राम-अनिर्णीत ही न चलता रहे
    • कुरुक्षेत्र के मैदान में महाभारत रचा गया (kahani)
    • “अमृत-पुत्र”
    • अमृत-पुत्र (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • जीवन ईश्वर का स्वरूप एवं वरदान
    • भक्ति मार्ग और प्रेम योग
    • बन्धन मुक्ति ईश्वर प्राप्ति
    • मानवी विद्युत इस जगत की प्रचण्डतम ऊर्जा
    • बुढ़िया का खेत बलपूर्वक छीन लिया (kahani)
    • बीस अरब पृष्ठों की पुस्तक
    • अन्तःकरण चतुष्टय और साधना विज्ञान
    • ध्यान साधना की प्रचण्ड सामर्थ्य
    • किस पर अनुग्रह करना चाहिए किस पर नहीं (kahani)
    • ज्ञान ही नहीं मनुष्य को धर्म भी चाहिए।
    • अग्निवेश ने आचार्य चरक से पूछा (kahani)
    • हंसती-हंसाती हलकी फुलकी जिन्दगी
    • ऊँट के नीचे पहाड़
    • उधर जाइये मत खतरा है!
    • धर्म अफीम की गोली नहीं हैं !
    • ब्रह्म जी ने जब पृथ्वी बनाई (kahani)
    • पारिवारिक जीवन में निष्ठा और भावनाएँ जमी रहें!
    • हम विराट विश्वात्मा के एक घटक मात्र हैं।
    • Quotation
    • सादगी अपनायें शालीनता बरतें!
    • एकांगी प्रगति- कानी कुबड़ी लंगड़ी लूली
    • मिल घाटे में चली गई (kahani)
    • हमारी कमाई में पिछड़ों का भी हिस्सा है!
    • प्रगति का एकमेव आधार-प्रतिभा, सहकार
    • Quotation
    • जैसा खाये अन्न- वैसा बने मन
    • भविष्य वाणियों से सार्थक दिशाबोध
    • संकटों से छुटकारा विवेक ही दिला सकेगा
    • ॥ अथ श्री माल्थस सिद्धान्त प्रारभ्यते ॥
    • मानसिक रोगों का प्रेमोपचार
    • महामानव के पक्षधर बनें या अतिमानव के
    • अन्तर्जगत का देवासुर संग्राम-अनिर्णीत ही न चलता रहे
    • कुरुक्षेत्र के मैदान में महाभारत रचा गया (kahani)
    • “अमृत-पुत्र”
    • अमृत-पुत्र (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1978 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


धर्म अफीम की गोली नहीं हैं !

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 14 16 Last
भगोड़ों में से बहुत से तथाकथित अध्यात्म के कोंतर में छिपने की कोशिश करते हैं। एकान्त में भजन करने और शांति पाने की बात सोचना सर्वसाधारण के लिए उपयोगी नहीं है। यह वैज्ञानिक अन्वेषण एवं अभ्यास का प्रकरण है। अन्तर्मुखी होकर सूक्ष्म अति सूक्ष्म सत्ता के गहरे समुद्र में डुबकी लगाने और वहाँ से बहुमूल्य रत्न राशि ढूँढ़ लाने के लिए कुशल पनडुब्बी का सा- दुस्साहस करना एक महत्वपूर्ण काम है तो पर वह बन तब पड़ता है जब पहले मन को भली प्रकार निग्रहीत कर लिया जाय और एकान्त में भी रंग मंच जैसा आनन्द आने लगे। यह समय-साध्य और अभ्यास साध्य है। यह प्रारंभ नहीं परिपक्वावस्था है। जो लोग आरंभ में ही एकांत ढूंढ़ते हैं और पहले दिन ही समाधि लगने की बात सोचते हैं वे भारी भूल करते हैं। व्यायामशाला में प्रवेश करते ही दंगल जीतने वाला पहलवान कौन बनता है और पट्टी पूजन के दूसरे दिन ही किसके हाथ में स्नातक होने का प्रमाण पत्र मिल जाता है। इसी बाल बुद्धि से एकाकी आत्म साधना के लिए कुछ लोग भागते हैं। इसके लिए उनकी पूर्व तैयारी तो होती नहीं। जो उत्साह होता है वह भी श्रद्धाजन्य नहीं-जीवन संग्राम की भयंकरता से डरकर कहीं छिपने की पलायनवादी मनोवृत्ति से उत्पन्न हुआ होता है। उसमें न श्रद्धा होती है, और न गहराई। फलतः मन वहाँ भी नहीं लगता। वापिस लौटने में उपहास होने की झिझक से एक नया असमंजस और खड़ा हो जाता है।

कुछ लोग भजन करने के लिए घर छोड़कर तो नहीं भागते पर एक विचित्र प्रकार की उदासी धारण कर लेते हैं। यह वैराग्य है तो नहीं पर कहा या समझा इसी तरह जाता है। अपने कर्त्तव्यों एवं आश्रितों से उदासीन हो जाना। उदासी से उत्पन्न शिथिलता भी भारी पड़ती है। जीवन में इस प्रकार जो रिक्तता उत्पन्न होती है उसे भरने के लिए कई व्यक्ति पूजा पाठ, सत्संग, साधु संगम जैसा कोई नया आश्रय ढूँढ़ते हैं। यदि उस विषय में गंभीरता पूर्वक कदम उठाये गये होते तो कर्मयोग की सनातन प्रक्रिया पहले से ही मौजूद थी। उसे अपना कर जनक अर्जुन, हनुमान आदि की तरह उभयपक्षीय कर्त्तव्य धर्म भली प्रकार सध सकते थे। लोक और परलोक का समन्वयपूर्ण व्यावहारिक है साथ ही सरल और सरस भी।

वैयक्तिक जीवन में आत्म परिष्कार, पारिवारिक जीवन में सहयोगियों का पोषण, सम्वर्धन, सामाजिक जीवन में सत्यप्रवृत्तियों का समर्थन जैसे उत्तरदायित्व हर किसी के सामने मौजूद हैं। उनका निर्वाह भली प्रकार किया जाना चाहिए। इन तीनों ही मोर्चों पर कर्म कौशल का, शौर्य साहस का-विवेक संतुलन का परिचय दिया जाना चाहिए। इनसे मन हटा लेना और कल्पना लोक में विचरण करके मन को समझाना ऐसा प्रयत्न है जिससे किसी उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती। भाग खड़े होने से समस्याएँ और भी अधिक विकराल होती हैं और पहले जितना उपद्रव चल रहा था, उसमें और भी अधिक वृद्धि हो जाती है। मन जिस समाधान को खोजने चला था वह भी भटकाव भरी पगडंडियों में कहाँ मिलता है। उपेक्षा, उदासीनता की रीति नीति, चैन मिलने में सहायक होने की कल्पना जिनने भी की है उन्हें प्रयोग के उपरांत निराशा ही हाथ लगी है।

प्रायः कायरता से उत्पन्न पलायनवाद की चपेट में बहुत से लोग धर्म आवरण ओढ़ते और व्यावहारिक जीवन से जुड़ी हुई समस्याओं से मुँह मोड़ते हैं। ऐसे ही धर्मात्मा उपलब्धियां मिलती हैं। धर्म क्षेत्र में प्रवेश करने पर सर्वत्र उपहासास्पद बनते हैं। हर क्षेत्र में श्रम करने पर व्यक्तित्व में तद् विषयक प्रखरता उत्पन्न न हो तो सहज ही उसकी निरर्थकता का अनुमान लगाया जाएगा। दर्शकों और पर्यवेक्षकों में सहज ही उसकी बुरी प्रतिक्रिया होगी। धर्मात्माओं की अपरिपक्वता का दोष धर्म पर धार्मिकता पर मढ़ा जायेगा। देखा यही जाता है कि धर्म-चर्चा करने वाले लोग अपने स्वजन संबंधियों से उदास होते जाते हैं। जिम्मेदारियों से हाथ खींचकर उन्हें और भी अधिक विकृत करते हैं-साथ ही स्वयं भी निराश, निष्क्रिय बन कर अपने आप के लिए भार भूत बनते हैं। जहाँ रहते हैं वहाँ भी नीरसता का वातावरण उत्पन्न करते हैं। जिस समुदाय के बीच रहा जाय- जिन लोगों के साथ घनिष्ठता पूर्वक निर्वाह किया जाय उन्हें पारस्परिक स्नेह, सहयोग, विनोद, उत्साह का लाभ मिलना चाहिए। इसके बिना सह निर्वाह के साथ जुड़े हुए कर्त्तव्य की अवहेलना ही होती है। जो माँ स्वयं उदास रहती है और अपने बच्चों पर पति पर, परिवार पर उदासी थोपे रहती है वह प्रकारान्तर से उन पर अत्याचार ही करती है भले ही वह निर्दोष जैसी दीन-दुखी जैसी ही क्यों न दीखती हो। यहाँ महिला का तो उदाहरण भर दिया गया है। बात उपेक्षा बरतने वाले हर नर-नारी, बाल-वृद्ध पर लागू हो सकती है। सह जीवन में साथियों के प्रति रुचि घटा लेना उनके प्रति अपने कर्तव्यों में शिथिलता कर देना हर दृष्टि से अनुचित है। भले ही इसके लिए धार्मिकता की आड़ क्यों न ली गई हो? धर्म धारणा का निर्वाह करने के लिए नीरस और उत्तरदायित्व विहीन जीवन क्रम अपनाना आवश्यक नहीं है। उसे सरसता और सक्रियता के साथ अपेक्षाकृत और भी अच्छी तरह निभाया जा सकता है।

ऐसी पलायनवादी धार्मिकता पर करारे व्यंग करते हुए दार्शनिक विसेन्ट पील ने लिखा है - “कमजोर मनःस्थिति के लोग जीवन संग्राम की स्वाभाविक कठिनाइयों को तिल का ताड़ बनाते हैं और भयभीत होकर मुँह छिपाने का कोई आसरा ताकते हैं। कोई धर्म का पल्ला पकड़ते हैं तो कोई शराब का आश्रय लेते हैं। पर इससे उन्हें मिलता कुछ नहीं। ऐसे सभी आसरे परिस्थिति में सुधार नहीं, बिगाड़ ही उत्पन्न करते हैं।” धर्म को अफीम की गोली कहकर अनास्थावादी लोगों ने उसे खूब बदनाम किया है और कहा है कि इस जंजाल में फंसने वाले लोग काहिली और गैर जिम्मेदारी से लद जाते हैं यह बदनामी किसी भी भले बुरे इरादे से क्यों न की जाती हो उसमें इतना तथ्य तो है ही कि धार्मिकता और उदासीनता प्रायः पर्यायवाचक बनती दिखाई पड़ती हैं तो उस परिणाम को देखते हुए इस प्रकार के निष्कर्ष निकालने वालों को अधिक दोष नहीं दिया जा सकता।

वीसेन्ट पील ने इस संदर्भ में अपना निजी अभिमत व्यक्त करते हुए कहा है-धार्मिकता, औषधियाँ, मनोरंजन आदि सभी साधन ठीक तरह प्रयुक्त किये जायं तो इनके सहारे प्रगति होती है और प्रसन्नता मिलती है। किन्तु इन पर इतना आश्रित न बना जाय कि कठोर कर्त्तव्यों की उपेक्षा ही होने लगे। औषधियों पर आश्रित रहने से नहीं स्वास्थ्य रक्षा के ठोस प्रयत्न से काम चलता है। मनोरंजन के अवसर ढूंढ़ने से नहीं आन्तरिक उल्लास से प्रसन्नता स्थिर रहती है- इसी प्रकार धर्म के कल्पना लोक में विचरण करने से नहीं, जीवन संग्राम में कर्म का गांडीव उठाने से समाधान मिलता है। कर्मनिष्ठा का स्थान यदि पलायनवादी धार्मिकता ग्रहण करने लगे तो उसमें अनर्थ की संभावना रहती है। वैसे दोनों ही अपने अपने स्थान पर आवश्यक और महत्वपूर्ण हैं।

धर्म का वास्तविक तात्पर्य है- मानवी चेतना में ऐसी सत्प्रवृत्तियों का समावेश जो सदाचरण और कर्त्तव्य पालन के रूप में वातावरण को उल्लासपूर्ण बनाने में समर्थ हो सकें। सहिष्णुता, दया, प्रेम, विवेक, उदारता, संयम, सेवा जैसे गुणों में सच्ची धर्मनिष्ठा का परिचय मिलता है। कर्त्तव्य परायणता को प्रमुखता देने वाला व्यक्ति धर्मात्मा कहा जा सकता है। किन्तु आज तो इन सबकी उपेक्षा करके मात्र पूजा पठन में निरत रहना ही धर्म परायणता का चिन्ह बन गया है। धर्म के प्रति अनास्था इसी विकृति के कारण उत्पन्न हुई है। धर्म के कारण लोग पिछड़ेपन के शिकार नहीं हुए हैं वरन् पिछड़े लोगों ने धर्म का आडम्बर ओढ़कर उसकी उपयोगिता में संदेह उत्पन्न कर दिया है।

नींद की गोली खाने से, नशा पीने से-भाग्यवाद का आश्रय लेने, भाग खड़े होने, उदासीनता धारण कर लेने से, उलझनें सुलझती नहीं और न पलायनवादी धार्मिकता से किसी को समाधान मिलता है। तथ्यों को समझा जाना चाहिए और समस्याओं का समाधान ढूँढ़ना चाहिए। वह एक तरह से न सही तो दूसरी तरह हल हो सकती है। जिस तरह हम हल चाहते हैं वही एकमात्र उपाय हो ऐसी बात नहीं है। खोजने पर ऐसे अनेक आधार निकल सकते हैं। जिस से प्रस्तुत कठिनाइयों से निपटना या बचना संभव हो सके। पानी की धार कोई बड़ी चट्टान सामने आने पर किसी दूसरी दिशा में मुड़ जाती है। सीधी टक्कर कठिन पड़ती है तो बगल से रास्ता ढूंढ़ा जाता है। निराशा, कायरता और भीरुता से ग्रसित मनःस्थिति में अपनाया गया धर्माश्रय किसी के कुछ काम नहीं आ सकता। धर्म तो कठोर कर्म का पर्यायवाचक है। धर्म-निष्ठा और कर्म-निष्ठा समान अर्थबोधक हैं। दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाकर अपनी और अपने सम्पर्क क्षेत्र की समस्याओं का समाधान करने की क्षमता का विकास ही सच्ची धार्मिकता है। इसी विशेषता के कारण धर्मतत्व को मानव जीवन में सम्मान और उच्च स्थान मिला है। इस मौलिकता से विरत होकर वह अनुपयोगी बनता और बदनाम होता चला जाएगा।

धर्म और ईश्वर के प्रति आस्था होने का तात्पर्य है- जीवन की गरिमा और उसकी श्रेष्ठता पर सुदृढ़ श्रद्धा। इसकी प्रेरणा से मनुष्य व्यक्तिगत जीवन में ईमानदार, जिम्मेदार और उदार बनता है। ईश्वर विश्वास से जानता है कि उसे पैर इसीलिए दिये गये हैं कि उनके सहारे न केवल खड़ा हो वरन् आगे चलने का भी प्रयास करे। यदि ईश्वर की लकड़ी का घोड़ा बनाया जाएगा और उस पर चढ़कर सफर करने का इरादा रखा जाएगा तो यह आस्तिकता और धार्मिकता के मूल सिद्धाँतों का अतिक्रमण ही होगा।

आस्तिकता के सहारे ईश्वर विश्वास विकसित किया जा सकता है और सत्कर्मों में उसकी सहायता मिलने का भरोसा रखा जा सकता है। आस्तिकता के अध्यात्म से आत्म-गौरव और आत्म-विश्वास बढ़ाते हुए आत्मावलम्बन की दिशा में बढ़ा जा सकता है। आत्मनिर्भर रहा जा सकता है। धार्मिकता का तत्वज्ञान हमें कर्त्तव्य परायण बने रहने और जीवन संग्राम के हर मोर्चे पर आदर्शों की लड़ाई लड़ने का शौर्य, साहस मिलता है। क्या यह उपलब्धियाँ जीवन को सार्थक बनाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं ? धर्म और अध्यात्म को पलायनवाद का तबादा क्यों बनाया जाय जब कि उसमें सज्जनता, शालीनता एवं प्रखरता प्रदान करने की विभूतियाँ आदि से अंत तक भरी पूरी हैं।

First 14 16 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • जीवन ईश्वर का स्वरूप एवं वरदान
  • भक्ति मार्ग और प्रेम योग
  • बन्धन मुक्ति ईश्वर प्राप्ति
  • मानवी विद्युत इस जगत की प्रचण्डतम ऊर्जा
  • बुढ़िया का खेत बलपूर्वक छीन लिया (kahani)
  • बीस अरब पृष्ठों की पुस्तक
  • अन्तःकरण चतुष्टय और साधना विज्ञान
  • ध्यान साधना की प्रचण्ड सामर्थ्य
  • किस पर अनुग्रह करना चाहिए किस पर नहीं (kahani)
  • ज्ञान ही नहीं मनुष्य को धर्म भी चाहिए।
  • अग्निवेश ने आचार्य चरक से पूछा (kahani)
  • हंसती-हंसाती हलकी फुलकी जिन्दगी
  • ऊँट के नीचे पहाड़
  • उधर जाइये मत खतरा है!
  • धर्म अफीम की गोली नहीं हैं !
  • ब्रह्म जी ने जब पृथ्वी बनाई (kahani)
  • पारिवारिक जीवन में निष्ठा और भावनाएँ जमी रहें!
  • हम विराट विश्वात्मा के एक घटक मात्र हैं।
  • Quotation
  • सादगी अपनायें शालीनता बरतें!
  • एकांगी प्रगति- कानी कुबड़ी लंगड़ी लूली
  • मिल घाटे में चली गई (kahani)
  • हमारी कमाई में पिछड़ों का भी हिस्सा है!
  • प्रगति का एकमेव आधार-प्रतिभा, सहकार
  • Quotation
  • जैसा खाये अन्न- वैसा बने मन
  • भविष्य वाणियों से सार्थक दिशाबोध
  • संकटों से छुटकारा विवेक ही दिला सकेगा
  • ॥ अथ श्री माल्थस सिद्धान्त प्रारभ्यते ॥
  • मानसिक रोगों का प्रेमोपचार
  • महामानव के पक्षधर बनें या अतिमानव के
  • अन्तर्जगत का देवासुर संग्राम-अनिर्णीत ही न चलता रहे
  • कुरुक्षेत्र के मैदान में महाभारत रचा गया (kahani)
  • “अमृत-पुत्र”
  • अमृत-पुत्र (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj