
महामानव के पक्षधर बनें या अतिमानव के
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
मानवीय इतिहास में उन व्यक्तियों की भी कमी नहीं है जिन्होंने अपने आप को ‘अति मानव’ सिद्ध करने के लिए घोरतम दुष्कृत्य किए है। इसी दम्भ के वशीभूत रावण ने न केवल सैकड़ों युद्ध लड़े, लाखों लोगों को उजाड़ा अपितु अपने सम्पूर्ण कुटुम्ब का भी सर्वनाश करा दिया।
कंस ने अपनी इसी सनक के कारण उस समय के सभी दूध पीते बच्चों का नृशंस वध कराया, तो दुर्योधन के इस अभिमान ने 18 अक्षौहिणी सेना को काल के मुख में धकेल दिया, अतिमानव बनने के चक्कर में उसने अपना भी सत्यानाश किया और इतिहास वेत्ताओं के अनुसार इस युद्ध में विश्व के महानतम सेनानी, वैज्ञानिक चिकित्सक, कलाकार मारे गये। पीछे जो भ्रष्टाचार फैला वह आज तक भी नहीं सिमट पा रहा है।
मुसोलिनी चंगेज खाँ, हिटलर, नादिरशाह यह सभी अतिमानव के ही दुर्बुद्धि जात भाई, भतीजे थे जिन्होंने अपने दुष्कृत्यों के प्रतिफल आप तो भुगते ही साथ ही संसार को कुरूप, कुत्सित बनाने वाली अव्यवस्थाएं भी फैलाई इसके लिए उनकी घोर निन्दा हुई, प्रशंसा नहीं।
यह अहंकार आदमी को कितना उद्धत बना देता है इसका प्रमाण पुरातत्ववेत्ताओं द्वारा खोजी गई कल्ला मीनारों से मिलता है। मध्यकालीन युद्धों के अरबी इतिहास मुन्तरब बुतबारीख ग्रन्थ के प्रथम अध्याय में वैरमखाँ द्वारा बनवाई गई ‘कल्ला मीनार’ का उल्लेख है। इस स्थान का नाम सर मंजिल रखा गया था। सिकन्दर शाहसूरी के साथ लड़ने में जितने सिर कटे थे या सैनिक मरे थे उनके सिर बटोर कर उन्हें ईंट पत्थरों की जगह काम में लाया गया था और यह ऊँची मीनार खड़ी की गई थी। मुगल बादशाहों ने और भी कितनी ही ऐसी कल्ला मीनारें युद्ध विजय के दर्प-प्रदर्शन के लिए बनवाई थीं, कल्ला फारसी में सिर को कहते हैं। कटे हुए सिरों से बनाई गई मीनार का अर्थ ‘कल्ला मीनार’ नाम से निकलता है। ऐसी-ऐसी कितने ही स्थानों पर कितनी ही मीनारों के बनाये जाने का विवरण पुरातत्व शोध तथा इतिहास के अध्ययन से प्राप्त होता है।
सैवाइल के बादशाह अवदिल मोतादिद अपने प्रधान कोपभाजनों के शिर कटवाता था और उनकी खोपड़ियाँ साफ कराकर उनमें फूल उगाता था। गुलदस्ते और पीकदान के रूप में भी कुछ खोपड़ियाँ इस्तेमाल की जाती थीं। शत्रुओं के न रहने पर भी उनके प्रति घृणा व्यक्त करते रहने का उसका यह अजीब तरीका था।
अपने इन कुकर्मों के कारण इनमें से कोई अति मानव तो नहीं बन पाया। हाँ! आसुरी कुटुम्ब की ही जनसंख्या इनने बढ़ाई। अति मानव बनने के लिए दुष्कृत्य नहीं, मानवीय सम्वेदना का कभी न चुकने वाला विपुल भावना-प्रवाह अपेक्षित है। जीवन और जगत को उदात्त और सुन्दर बनाने वाले विचार और विनियोजन अभीष्ट है। जर्मनी तथा अन्य योरोपीय देशों में भी सुपरमैन शब्द आता है, पर यह ऐसे उद्धत अहंकारी लोगों के लिए नहीं अपितु उन महामानवों के लिए जिन्होंने मानव जीवन के उत्थान के लिए कार्य किया। गेटे, शापेनहावर हाइन बेगनर बिस्मार्क आदि मानतावादी महापुरुषों के लिए ही यह सब प्रयुक्त हुआ है।
नीत्से ने इस शब्द का उपयोग और भी निश्चित सन्दर्भ में किया। इस महान् दार्शनिक ने अपनी प्रख्यात पुस्तक ‘जरथुस्त्र उवाच’ (दस स्पेक जरथुस्त्र) तथा ‘भले बुरे से परे’ (बियान्ड गुड एण्ड इविल) में इस ‘सुपरमैन’ शब्द का न केवल प्रयोग किया अपितु उसकी व्याख्या इन शब्दों में की है- वह विश्व व्यवस्था की सूक्ष्म प्रक्रिया को समझता है, संकल्प को कार्य में परिणत कर सकता है, इष्ट कार्य का हृदय से नेतृत्व करता है। क्रोध को सदा वशवर्ती रखता है, नारी के वश में नहीं होता। दुष्टों के दलन में समर्थ होता है और दुष्प्रवृत्तियों को उखाड़ फेंकता है।
हमें इसी कोटि के महापुरुषों का अनुगमन करना और उनके कार्यों में सहायक होना चाहिए। जितने अंशों में सहायता कर पायें उतने ही महापुरुष कहलाने के अधिकारी हो सकते हैं।
----***----
अपनों से अपनी बात-