
बीस अरब पृष्ठों की पुस्तक
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मानवी मस्तिष्क के ‘नर्व सेल्स’ लगभग 10 अरब की संख्या में है। संसार में इन दिनों मनुष्यों की आबादी प्रायः 4 अरब है। इस समस्त संसार को मनुष्यों की तुलना में हमारे मस्तिष्क में बैठे हुए यह कोश ढाई गुने हैं। छोटे होते हुए भी अपनी दक्षता के अनुरूप किसी परिपूर्ण मनुष्य की तुलना में यह किसी भी प्रकार कम नहीं हैं। वे अपनी भीतर एक से एक बढ़कर रहस्य छिपाये बैठे हैं। प्रश्न केवल उनकी प्रसुप्ति और जागृति का है। सोता हुआ मनुष्य मृतक तुल्य होता है किन्तु यह जग पड़े तो अनेक प्रकार के पराक्रम प्रस्तुत करता है। इसी प्रकार यह ‘नर्व सेल्स’ आदि उपेक्षित पड़े रहें तो किसी प्रकार जहाँ-तहाँ पड़े अपने अस्तित्व की रक्षा भर करते रहते हैं, पर यदि उन्हें जगा दिया जाए तो उनमें से प्रत्येक को किसी देव दानव से कम शक्तिशाली नहीं पाया जायगा।
पोर्सन ग्रीक भाषा का अद्वितीय पण्डित था, उसने ग्रीक भाषा की सभी पुस्तकें और शेक्सपियर के नाटक मुख जबानी याद कर लिये थे। ब्रिटिश संग्रहालय के सहायक अधीक्षक रिचर्ड गार्नेट बारह वर्ष तक एक संग्रहालय के मुद्रित पुस्तक विभाग के अध्यक्ष थे, इस संग्रहालय में पुस्तकों की हजारों अलमारियां और उनमें करोड़ों की संख्या में पुस्तकें थीं। श्री गार्नेट अपनी कुर्सी पर बैठे-बैठे न केवल पुस्तक का ठिकाना बता देते थे, वरन् पुस्तक की भीतरी जानकारी भी देते थे।
जर्मनी के कार्लविट नामक बालक ने स्वल्पायु में आश्चर्यजनक बौद्धिक प्रगति करने वाले बालकों में अपना कीर्तिमान स्थापित किया है। वह 9 वर्ष की आयु में माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण करके लिपजिग विश्वविद्यालय में प्रविष्ट हुआ और 14 वर्ष की आयु तक पहुँचने पर उसने न केवल स्नातकोत्तर परीक्षा पास की वरन् विशेष अनुमति लेकर साथ ही पीएचडी की डिग्री भी प्राप्त कर ली। 16 वर्ष की आयु में उसने उससे भी ऊंची एलएलडी की उपाधि अर्जित की और उन्हीं दिनों वह बर्लिन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर नियुक्त किया गया।
इस घटना पर टिप्पणी करते हुए “न्यूरोन फिजियोलॉजी इन्ट्रोडक्शन’ के लेखक डॉ. जी. सी. एकिल्स ने लिखा है कि यह अनुभव यह बताते हैं कि मनुष्य को बालक के रूप में उपलब्ध ज्ञान जन्मान्तरों के संस्कार के अतिरिक्त क्या हो सकता है? अतएव हमारे जीवन का सर्वोपरि ज्ञान होना चाहिए।
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