
मानवी विद्युत इस जगत की प्रचण्डतम ऊर्जा
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
आग जिस कमरे में जलती है वह पूरा का पूरा गरम हो जाता है। आग रहती- तो ईंधन की सीमा में ही है पर उसकी गर्मी और रोशनी दूर-दूर तक फैलती है। सूरज बहुत दूर होते हुए भी धरती तक अपना प्रकाश और ताप पहुँचाता है। बादलों की गरजना दूर-दूर तक सुनाई पड़ती है। प्राणवान् व्यक्ति अपने प्रचण्ड व्यक्तित्व का प्रभाव सुदूर क्षेत्रों तक पहुँचाते हैं और व्यक्तित्वों को ही नहीं परिस्थितियों को भी बदलते हैं। वातावरण उनसे प्रभावित होता है। यह प्रभाव उत्पन्न करने वाली क्षमता प्राण शक्ति ही है भले ही वह किसी भी रूप में काम कर रही हो। यह देव और दैत्य दोनों स्तर की हो सकती है। उसके अनुचित प्रयोग से वैसा ही विनाश भी होता है जैसे कि उचित प्रक्रिया से सत्परिणाम उत्पन्न होते हैं। दैवी, आसुरी शक्तियों के बीच संघर्ष होते रहने के सूक्ष्म कारणों में यह प्राण प्रक्रिया का टकराव ही मुख्य कारण होता है।
ताप का मोटा नियम यह है कि अधिक ताप अपने संस्पर्श में आने वाले न्यून ताप उपकरण की ओर दौड़ जाता है। एक गरम दूसरा ठंडा लोह खण्ड सटाकर रखे जायं तो ठंडा गरम होने लगेगा और गरम ठंडा। वे परस्पर अपने शीत ताप का आदान-प्रदान करेंगे और समान स्थिति में पहुँचने का प्रयत्न करेंगे।
बिजली की भी यही गति है। प्रवाह वाले तार को स्पर्श करते ही सारे सम्बद्ध क्षेत्र में बिजली दौड़ जाएगी। उसकी सामर्थ्य उस क्षेत्र में बंटती जाएगी। प्राण विद्युत का प्रभाव भी शीत ताप के सान्निध्य जैसा ही होता है। प्राणवान् व्यक्ति दुर्बल प्राणों को अपना बल ही नहीं स्तर भी प्रदान करते हैं। ऋषियों के आश्रमों में सिंह और गाय के प्रेम पूर्वक निवास करने का तथ्य इसीलिए देखा जाता था कि प्राणवान् अपनी सद्भावना से उन पशुओं को भी प्रभावित कर देते थे। बिजली लोहे-सोने में, सन्त-कसाई में कोई भेद नहीं करती वह सब पर अपना प्रभाव समान दिखाती है जो भी उससे जैसा भी काम लेना चाहे वैसा करने में उसकी सहायता करती है, पर मानव शरीर में संव्याप्त विद्युत की स्थिति भिन्न है। उसमें चेतना और सम्वेदना के दोनों तत्व विद्यमान हैं। वह समस्त शरीर पर शासन करती है-मस्तिष्क उसका केन्द्र संस्थान है। इतने पर भी उसे शरीर शक्ति नहीं कह सकते। बल्ब में जलने वाली बिजली उसी में से उत्पन्न नहीं होती, वरन् अन्यत्र से आती है, वहाँ तो वह चमकती भर है। मानव शरीर में पाई जाने वाली बिजली वस्तुतः चेतनात्मक है। उसे प्राण प्रतिमा कहा गया है, वह शक्ति ही नहीं संवेदना भी है। विचारशीलता उसका विशेष गुण है। वह नैतिक और अनैतिक तथ्यों को अनुभव करती है और उस आधार पर भौतिक बिजली की तरह समस्वर नहीं रहती वरन् अपना प्रवाह औचित्य के पक्ष में और अनौचित्य के विरोध में प्रस्तुत करती है।
इतनी छोटी-सी खोपड़ी में इतना बड़ा कारखाना किस प्रकार संजोया जमाया हुआ है, इसे देख कर बनाने वाले की कारीगरी पर चकित रह जाना पड़ता है। यदि इतना साधन सम्पन्न इलेक्ट्रानिक मस्तिष्क बना कर खड़ा करना हो तो संसार भर के समस्त विद्युत उपकरणों के लिए बनाये गये कारखानों जितनी जगह घेरनी पड़ेगी।
निस्सन्देह मनुष्य एक जीता जागता बिजली घर है, किन्तु झटका मारने वाली बत्ती, जलाने वाली सामान्य बिजली की तुलना उससे नहीं हो सकती। जड़ की तुलना में चेतन की जितनी श्रेष्ठता है उतना ही भौतिक और जीवन विद्युत में अंतर है। प्राण विद्युत असंख्य गुनी परिष्कृत और सम्वेदनशील है।
जीव भौतिकी के नोबेल पुरस्कार प्राप्त विज्ञानी हाजक्रिन हक्सले और एकल्स ने मानवी ज्ञान तन्तुओं में काम करने वाले विद्युत आवेग इंपल्स की खोज की है। इनके प्रतिपादनों के अनुसार ज्ञान तंतु एक प्रकार के विद्युत संवाही तार हैं जिनमें निरंतर बिजली दौड़ती रहती है। पूरे शरीर से इन धागों को समेट कर एक लाइन में रखा जाय तो उनकी लंबाई एक लाख मील से भी अधिक बैठेगी। विचारणीय है कि इतने बड़े तन्त्र को विभिन्न दिशाओं में गतिशील रखने वाले यन्त्र को कितनी अधिक बिजली की आवश्यकता पड़ेगी।
शरीर के एक अवयव मस्तिष्क का स्वतंत्र रूप में विश्लेषण करें तो उसमें लगभग 10 अरब नस कोष्ट- न्यूरोन हैं। उनमें से हर एक का संपर्क लगभग 25 हजार अन्य नस कोष्टों के साथ रहता है।
मानव शरीर के इर्द-गिर्द छाये रहने वाले प्रभा मंडल के संबंध में परा मनोविज्ञानी महिला एलीन गैरेट की पुस्तक ‘अवेयर नेस’ में अनेक शोध विवरण छपे हैं, जिसमें उन्होंने शरीर के इर्द-गिर्द एक विद्युतीय कुहरे का चित्राँकन किया है। वे इस कुहरे के रंगों एवं उभारों में होते रहने वाले परिवर्तनों को विचारों के उतार चढ़ाव का परिणाम मानती हैं। इस प्रभाव मंडल के चित्र सोवियत विज्ञानी ‘कीरलिएन’ ने भी उतारे हैं और उनमें परिवर्तन होते रहने की बात कही है। इन प्रभा परिवर्तनों को मात्र विचारों का ही नहीं शारीरिक, स्वास्थ्य का प्रतीक भी माना गया और उनके आधार पर शरीर के अन्तराल में छिपे हुए रोगों के कारण भी परखे गये। इस प्रकार के परीक्षणों में मास्को मेडीकल इन्स्टीट्यूट के अध्यक्ष पावलेन कोव ने विशेष ख्याति प्राप्त की है और उन्होंने रोग निदान के लिए प्रभा मंडल के अध्ययन को बहुत उपयोगी माना है।
इस प्रभा मंडल को प्रत्यक्ष सूक्ष्म शरीर की संज्ञा दी गई है। उसका वैज्ञानिक नामकरण ‘दि बायोलॉजिकल प्लाज्मा बॉडी’ किया गया है। कजाकिस्तान के किरोव विश्वविद्यालय की शोधों में कहा गया है कि यह प्रभा मंडल के ऊर्जा शरीर को उत्तेजित विद्युत अणुओं का समूह मानने में हर्ज नहीं, पर उसमें इतना और जोड़ा जाना चाहिए कि उसमें जीवाणुओं का भी होना है साथ ही उसकी सत्ता मिश्रित होने पर एक व्यवस्थित एवं स्व-संचालित इकाई है। उसमें अपनी उत्पादन, परिग्रहण एवं परिप्रेषण क्षमता मौजूद है।
येल विश्व विद्यालय की न्यूरो एकेडमी के प्रो. हेराल्डवर ने प्रमाणित किया है प्रत्येक वाणी एक ‘इलेक्ट्रो डायनेमिक’ आवरण से घिरा है। उसकी चेतनात्मक क्षमता को इसी क्षेत्र के कारण बाहर भगाने और दूसरे प्रभावों को पकड़ने की सुविधा होती है। इस विद्युतीय आवरण की शोध में आगे चलकर विज्ञानी लियोनाई रोविंग ने यह प्रमाणित किया कि वह लोह कवच नहीं है वरन् मस्तिष्क के प्रभाव से उसे हलका भारी- उथला और गहरा किया जा सकता है। उसकी कार्य क्षमता घटाई या बढ़ाई जा सकती है।
विश्व ज्ञान की असीम सम्पदा को ‘यूनिवर्सल मेमोरी ऑफ नेचर’ कहा जाता है। इसी की चर्चा ‘बुक ऑफ लाइफ’ के नाम से भी होती है। इस पुस्तक में विश्व चेतना का आरंभ से अब तक का इतिहास अंकित है। माइक्रो फिल्मों की विशालकाय लाइब्रेरी की तरह इसे समझा जा सकता है। मोटे रूप में तो पता नहीं चलता कि कहाँ क्या-क्या अभिलेख अंकित हैं, पर विशेषज्ञ यह तलाश कर सकते हैं कि इन संग्रहालय की अलमारी के किस खाने में किस स्थान पर क्या रखा हुआ है? इस कला में प्रवीणता प्राप्त करने के लिए मस्तिष्कीय विद्या की साधना की जाती है। इस प्रक्रिया को पदार्थ वैज्ञानिक अपने ढंग से और आत्म विज्ञानी अपने ढंग से विकसित कर सकते हैं। ध्यान धारणा एवं तप साधना से भी यह संभव है और उन परा मनोविज्ञानी प्रयोगों से भी जो इस क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा इन्हीं दिनों अपनाये जा रहे हैं।
भौतिक क्षेत्र में विद्युत की अनेकानेक विदित एवं अविदित धाराओं की महत्ता को समझा जा रहा है। उसके प्रभाव से जो लाभ उठाया जा रहा है उससे भी अधिक महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ अगले दिनों मिलने की अपेक्षा की जाती है। ठीक इसी प्रकार मानवीय विद्युत के अनेकानेक उपयोग सूझ पड़ने की संभावना सामने है। विज्ञान इस क्षेत्र में तत्परतापूर्व संलग्न है और विश्वास पूर्वक कई उपलब्धियाँ प्राप्त करने की स्थिति में है।
चैकोस्लेविया- पोलेण्ड-बुलगारिया के जीवशास्त्री मनुष्य की अतीन्द्रिय क्षमताओं के बारे में विशेष रूप से दिलचस्पी ले रहे हैं। उनने पिछले तीस वर्षों में आश्चर्यजनक सफलताएँ प्राप्त की हैं। दूर-दर्शन विचार संग्रहण-भविष्य कथन अब शोध के पुराने विषय हो गये। उसमें नई कड़ी ‘मायकोकिनेसिस’ की जुड़ी है। इस लंबे शब्द का संक्षिप्त संकेत है (पीके) इसका अर्थ है विचार शक्ति से वस्तुओं को प्रभावित एवं परिचालित करने की सामर्थ्य। जिस प्रकार आग या बिजली के सहारे वस्तुओं का स्वरूप एवं उपयोग बदला जा सकता है, उन्हें स्थानान्तरित किया जा सकता है वैसी ही संभावना इस बात की भी है कि मानव शरीर में पाई जाने वाली विशिष्ट स्तर की विद्युत धारा से चेतना स्तर को प्रभावित किया जा सकेगा। इससे न केवल अतीन्द्रिय क्षमता के विकसित होने से मिलने वाले लाभ मिलेंगे वरन् शारीरिक और मानसिक रोग निवारण में भी बहुत सहायता प्राप्त होगी।
एक रूसी परा मनोविज्ञानी कामेंस्की और कार्ल निकोलायेव ने अपनी शोधों के अनेक विवरणों का हवाला देते हुए बताया है कि दूरस्थ अनुभूतियाँ यों यदा-कदा लोगों को अनायास भी होती रहती हैं किन्तु उसके लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित करने पर इस अनुभूति को और भी अधिक स्पष्ट एवं विकसित किया जा सकता है। इस संदर्भ में हुए परीक्षणों का विस्तृत विवरण ‘कोन्सोमोल्स काया प्रावदा’ पत्र में प्रकाशित हुआ था।
मनुष्य की शारीरिक संरचना अन्य प्राणियों की तुलना में विचित्र और अद्भुत है। कर्मेन्द्रियों में हाथों की बनावट ऐसी है जिसके सहारे अनेक शिल्प कौशलों में प्रवीणता प्राप्त हो सके। आँखें मात्र देखने के ही काम नहीं आतीं वरन् उनसे निकलने वाला तेजस दूसरों को प्रभावित आकर्षित करने के भी काम आता है।
मस्तिष्क तो अपने आप में असाधारण विद्युत संस्थान है। अब तक बुद्धि बल, मनोबल की ही प्रशंसा थी। अब उन प्रवाहों का भी पता चल रहा है जो व्यापक क्षेत्र को प्रभावित करने और उसकी खोज खबर लाने में समर्थ हैं। आत्म सत्ता की गरिमा को यदि समझा जा सके और उसकी खोजबीन में- उत्पादन अभिवर्धन में लग जाया जाय तो इतना कुछ प्राप्त किया जा सकता है जो अब तक की भौतिक उपलब्धियों की तुलना में हलका नहीं भारी ही बैठेगा।