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Magazine - Year 1983 - Version 2

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सामान्य शरीर में असामान्य सम्भावनाएँ

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शरीरों की क्षमता सीमित है। ऊँचाई, चौड़ाई, मोटाई, कद की दृष्टि से मनुष्य शरीर प्रायः एक जैसे होते हैं। इसी प्रकार उनके खाने, काम करने, सहने की क्षमताएँ भी सीमित है। इतने पर भी तथ्य यह है कि उसकी क्षमता और सम्भावना असीम है। प्रश्न इतना भर है कि किसी ने उन विशेषताओं को जगाने का प्रयत्न किया या नहीं किया। यदि किया होगा, तो उसमें प्रयत्न एवं परिस्थिति के अनुरूप यथा समय सफलता मिलकर रहेगी।

किन्हीं विशिष्ट व्यक्तियों का आकार-प्रकार, बल, पराक्रम असाधारण रूप से न्यूनाधिक पाया जाता है। बहुत बार ऐसा होता है कि वैसी स्थिति अनायास ही बन गई होती है। उसके लिए कोई विशेष प्रयत्न नहीं किया गया होता। ऐसी स्थिति में उसे कौतूहल की तरह देखकर आश्चर्य भर व्यक्त किया जाता है।

सोचा जाना चाहिए कि मानवी काया में अगणित विशेषताएँ भरी पड़ी हैं जिनके कारण सामान्य स्तर से नीचे भी गिरा जा सकता है और ऊँचा भी उठा जा सकता है। जो इस सम्भावना पर विश्वास करते हैं, वे भाग्यवादी नहीं बनते, यथास्थिति में सन्तोष नहीं करते, वरन् उत्कर्ष को सम्भव बनाने और पतन की रोकथाम करने के लिए अपने प्रयास-पराक्रम का सदा उपयोग करते रहते हैं।

असाधारण रूप से छोटे या बड़े आकार के कितने ही उदाहरण भूतकाल में उपलब्ध रहते हैं और अब भी उनकी कमी नहीं है, पर यह नहीं जाना जा सकता है कि इस विचित्रता का वास्तविक कारण क्या है। सामान्य जाँच-पड़ताल में उनकी संरचना में कोई रासायनिक न्यूनाधिकता ऐसी नहीं पाई गई जिसे इस असामान्य व्यतिरेक का निमित्त कारण बताया जा सके।

उपलब्ध प्रमाणों में रिकार्ड के रूप में एक 17 वर्षीया ‘लूसिया जाकतें’ की जानकारी मिलती है जिसका वजन मात्र 407 पौण्ड था। इसी प्रकार सबसे अधिक ऊँचाई वाला व्यक्ति बैडली माना गया है। वह प्रायः 9 फुट का था। सन् 1947 में वह 22 वर्ष की भरी जवानी में ही मर गया। सामान्यतया अधिक से अधिक लम्बे व्यक्ति साढ़े छह फुट ऊँचे और 200 किलो भारी पाए गए हैं। अपवाद स्वरूप राबर्ट अर्लह्यूजस का एकाध उदाहरण भी है। वह 1069 पौण्ड भारी था। बलिष्ठ भी। किन्तु 32 वर्ष की आयु तक ही जी सका।

इण्डोनेशिया के कम्पास दैनिक पत्र में एक समाचार छपा है, जिसमें उस देश में जन्मी एक ऐसी लड़की का जिक्र है, जिसे संसार भर में सबसे छोटी कहा जा सकता है। यह सिरेंग गाँव में जन्मी है। नाम है कर्सी। इसकी ऊँचाई मात्र दो फुट है फिर भी वह अपनी आयु आठ वर्ष के समान बालकों की तरह चुस्त और बुद्धिमान है।

संसार की सबसे लम्बी महिला 17 वर्षीय जंग बिलियन का कुछ ही दिन पूर्व देहान्त हुआ है। हुनान प्रान्त निवासी इस महिला की ऊँचाई 2.47 मीटर थी। उसके सोने के लिए अतिरिक्त लम्बाई की चारपाई बनवाई गई थी। उसे एक वर्ष पूर्व ही मधुमेह हुआ था और वह इस तेजी से बढ़ा कि उसकी मृत्यु का कारण ही बन गया।

कानपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में एक ऐसे मरीज को दाखिल किया गया जिसका वजन 212 कि.ग्रा. है। मधुमेह संबंधी जाँच-पड़ताल के लिए उसे भी भरती किया गया था। वजन करते समय अस्पताल की तौलने वाली मशीन टूट गई तो रेलवे स्टेशन पर भारी पार्सल तौलने वाली मशीन पर उसे तौला गया। इस व्यक्ति की खुराक सामान्य व्यक्तियों की तुलना में दस गुनी अधिक पाई गई।

न्यू चाइना न्यूज एजेन्सी के अनुसार-मध्य चीन के हुबे प्रान्त में जन्मी बालिका जिनगढ़ अपनी 3 वर्ष की आयु में ही 40.5 किलो भारी है। जब जन्मी थी तब भी वह 7 किलो भारी थी। वह न केवल स्वस्थ है वरन् दूध और दूसरे पौष्टिक पदार्थ इतनी मात्रा में हजम करके दिखाती है, जितनी जवान-पहलवान की कठिनाई से खाने और पचाने में समर्थ हो सकते हैं।

लन्दन के दक्षिणी भाग वेजवर्थ निवासी इस मुक्केबाज का वजन 95.25 किलोग्राम है और ऊँचाई 1.9 मीटर। यह ऐसे व्यक्ति के लिए बहुत ही आश्चर्यजनक है जो बचपन में बहुत ही दुबला और डरपोक रहा है। व्यायामों में उसे मुक्केबाजी इसलिए पसन्द आई कि वह प्रतिद्वन्द्विता में उतरे और सामने वाले से अपने को अधिक समर्थ सिद्ध कर सके। फ्रेन ब्रूसों के कथनानुसार उसकी यह प्रगति क्रमिक हुई है। उसने अपने शरीरबल और मनोबल को बढ़ाने का निरन्तर ध्यान रखा, प्रयत्न किया और समयानुसार उसका समुचित प्रतिफल पाया है। मुक्केबाजी की 18 विशिष्ट स्पर्धाओं में 17 को जीतने वाले फ्रेन ब्रूसो अपनी आरम्भिक और आज की शारीरिक स्थिति की तुलना करते हैं, तो दोनों के बीज जमीन आसमान जितना अन्तर सिद्ध करते हैं। जब वे स्कूल में भर्ती हुए तो बहुत दुर्बल थे। सभी लड़के उनका मजाक उड़ाते थे। पन्द्रह वर्ष की आयु तक वे साथियों के झुण्ड कतराकर चलते थे कि कहीं कोई उनकी दुर्बलता देखकर चिढ़ाने या छेड़ने न लगे। किन्तु उन्होंने अपने पिता के सत्परामर्श से स्वास्थ्य-सुधार के नियमों पर पूरा ध्यान दिया और व्यायाम द्वारा शरीर को मजबूत बनाने का भरपूर प्रयास करते रहे। वे प्रयत्न बेकार नहीं गए और समयानुसार चमत्कार दिखा सकने जैसे सिद्ध हुए।

कर्निंघम की विचित्र कहानी है। वह बचपन में स्टोव फटने से बुरी तरह जल गया था। अस्पताल में मुद्दतों पड़े रहने के बाद उसके हाथ-पैर निकम्मे हो गए थे। घर आकर वह दयनीय स्थिति में किसी प्रकार जीवित भर रह रहा था। किन्तु उसके बाप ने सहारा दिया, हिम्मत बँधाई, उपाय बताए जिनके सहारे वह उठने तथा चलने का प्रयत्न करता। कभी थोड़ा सफल होता कभी असफल रहता। जब कभी दुःखी होता और दुर्भाग्य को कोसता तो उसका पिता हिम्मत बँधाता और ऐसे सपने दिखाता जिसके अनुसार उसे भविष्य में बड़ी प्रगति करनी थी। लड़के की हारती हिम्मत को नया प्रोत्साहन मिला तो वह तन कर खड़ी हो गई। चूँकि हर समय स्वास्थ्य सुधारने और गई बीती स्थिति में भी शारीरिक समर्थता अर्जित करने के पाठ उसे पढ़ाए गए, इसलिए वह उसी दिशा में बढ़ता चला गया और अनेक उतार-चढ़ावों को पार करते हुए, वह विश्व के धावकों में मूर्धन्य होने का श्रेय पा सका।

ग्लेन कर्निंघम संसार के प्रमुख धावकों में से एक था। उसने कई ओलम्पिक पदक जीते। सन् 1933 से 1940 के बीच न्यूयार्क में आयोजित 31 दौड़ आयोजनों में से 21 में उसने बाजी मारी। उसने 1600 मीटर की दौड़ का विश्व कीर्तिमान स्थापित किया। रिटायर होने पर उसने कैन्सास के रीडर पाउन्ट स्थान में ‘कर्निंघम यूथ रेंज’ स्थापित किया। जिसे वह 30 वर्ष तक अपनी पत्नी रुथ समेत चलाता रहा। इसके माध्यम से उसने 9000 से अधिक ऐसे लड़कों को सहायता दी, जो किन्हीं कारणों से विपत्तिग्रस्त हो गए थे और स्वावलम्बी बनने तथा प्रगति करने में असमर्थ थे।

अमृतसर का रहने वाला इच्छा शक्ति का धनी एक 40 वर्षीय सिख सुरेन्दर सिंह अपनी एक विलक्षण विशेषता के लिए प्रसिद्ध है। वह सीना फुलाने की अद्भुत क्षमता रखता है। अपने 28 इंच सीने में साँस भरकर उसे 36 इंच तक फैला देता है। इसका प्रदर्शन उसने पंजाब, हरियाणा, तथा दिल्ली में अनेक स्थानों पर किया है ओर पुरस्कार पाया है। एक्साइज विभाग में वह एक सामान्य क्लर्क था। विभाग ने उसकी इस प्रयत्नशीलता से प्रसन्न होकर पदोन्नति भी की है और स्वर्ण पदक भी दिया है। सुरेन्दर सिंह का कहना है कि यह कोई जादू नहीं है। अभ्यास करके ही उसने यह क्षमता उपार्जित की है।

इस्तम्बूल का समाचार है कि तुर्की का एक पहलवान मुहम्मद कराटाय न केवल कुश्तियाँ पछाड़ता है वरन् पेट में इतना आहार पचाकर दिखाता है जिसकी सामान्यजन तो कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। औसत आदमी जितना खाता है उससे उसकी खुराक दस गुनी अधिक है। इतना मसाला उदरस्थ कर जाने के उपरान्त भी उसे आलस्य नहीं आता और तनिक देर सुस्ताने के उपरान्त फिर अपना काम सामान्य समय की तरह करने लगता है। उसके निर्धारित आहार की लागत हर महीने 850 डालर अर्थात् 6800 रुपये आती है।

उत्तरी इंग्लैण्ड की शेफील्ड युनिवर्सिटी के मेडिकल विभाग के सम्मुख एक विलक्षण केस आया जिसमें मस्तिष्कीय संरचना के संबंध में पुरानी मान्यता पर नये सिरे से सोचने के लिए विशेषज्ञों की चुनौती है।

एक असाधारण मेधावी छात्र को न्यूरोलॉजिस्ट जॉन लोरवर के सम्मुख इसलिए प्रस्तुत किया गया कि उसका सिर औसत अनुपात से कहीं अधिक बड़ा था जो देखने में कुरूप लगता था और अधिक बढ़ोत्तरी होने पर किसी विपत्ति की आशंका थी। परीक्षण में एक अद्भुत बात देखी गई कि विद्धता का प्रमुख क्षेत्र सेरिब्रल कार टैक्स ही नगण्य स्थिति में था। आमतौर से यह 4.5 से. मी. मोटी पर्त का होता है। पर उस छात्र के सिर में मात्र 1 मि. मी. का था। उसे औसत मस्तिष्क की तुलना में 45 वाँ भाग ही कहना चाहिए। अब तक किसी व्यक्ति की विद्वता का प्रतिपादन इसी सेरीब्रल कारटेक्स की मात्रा एवं परिधि के साथ जोड़ जाता रहा है। अब यह सोचने के लिए विवश होना पड़ रहा है कि प्रतिभा किन्हीं अन्य अविज्ञात कारणों एवं क्षेत्रों पर भी निर्भर हो सकती है।

महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में एक जन्मजात अपाहिज राज जिल्वा नामक लड़के ने नये प्रकार का साहस बटोरकर अध्ययन प्रारम्भ किया और उस प्रयास में आश्चर्यचकित करने वाली सफलता पाई। हाथ बेकार थे। बांये पैर को कुछ सक्षम पाया तो उसी के सहारे उसने लिखने का अभ्यास किया और उसी से लिखकर हायर सेकेन्डरी की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की। इतना ही नहीं उसने तैरने का भी अभ्यास करके अपने कौशल का परिचय दिया। महाराष्ट्र सरकार ने उसे उच्च शिक्षा पाने के लिए 15 हजार का अनुदान दिया है।

दान्ते ने नौ वर्ष की आयु में भावपूर्ण कविताएँ लिखी थी। पास्कल और कान्ट ने दस-दस वर्ष की आयु में ही अपने दार्शनिक प्रतिपादनों से विद्वानों को चकित कर दिया था। गेटे ने भी दस वर्ष की आयु में एक कहानी गढ़ी थी और उसे सात भाषाओं में लिख डाला था। बायरन आठ वर्ष की आयु में ही अच्छे कवियों की पंक्ति में बैठने लगे थे। भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने भी नौ वर्ष की आयु में ही कविताओं की समस्या पूर्ति करने में ख्याति अर्जित कर ली थी।

ये सारे उदाहरण एक ही सत्य का उद्घाटन करते हैं कि मानव जन्म तो सहज रूप है, पर वह सामान्य रूप से जीने के, मरने-खपने के बजाय असाधारण रूप से जिया जा सके तो मजा ही कुछ और है। सम्भावनाओं की कोई सीमा नहीं। वे अद्भुत एवं अपरिमित हैं-समय-समय पर ऐसी प्रतिभाओं का जब भी परिचय मिलता है, लगता है जितना भी कुछ है, वही पर्याप्त नहीं। और भी कुछ कर सकना सम्भव है-बहुत कुछ प्रसुप्त के अन्तराल में छिपा पड़ा है। अध्यात्म बाजीगरी का नाम नहीं है वरन् मानव में प्रसुप्त महामानव की जागृति की इसकी एक सार्थक परिभाषा मानी जा सकती है। यदि इन सूत्रों से कुछ संकेत लिया सके तो ऐसे विवेचन की सार्थकता भी है।

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