
नर और नारी में अपनी-अपनी विशेषताएँ
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नर और नारी के मध्य कई अन्तर पाये जाते हैं। दोनों में से कहीं कोई पक्ष हलका पड़ता है, कहीं कोई भारी। इस आधार पर किसी की गरिमा न बढ़ती है न घटती। हर विशेषता अपने-अपने स्थान पर सराही जा सकती है। इसमें हलकेपन का अपना महत्व है और भारीपन का अपना।
नारी का शरीर कितना ही दुर्बल क्यों न हो, उसमें चर्बी का अनुपात पुरुष से अधिक होगा। नारी में आमतौर से 35 पौण्ड माँसपेशियों में 28 पौण्ड तक चर्बी पाई जाती है। जबकि पुरुष की 41 पौण्ड माँसपेशियों में चर्बी मात्र 18 पौण्ड भर होती है।
पुरुष का मस्तिष्क 48 ओंस भारी होता है और नारी का 44 ओंस। फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि वह बुद्धिमत्ता की दृष्टि से हलकी पड़ती है। अनेकों नारियों ने इस क्षेत्र में अपनी वरीयता ही सिद्ध की है।
नारी की हड्डियाँ अपेक्षाकृत पतली होती है और हलकी भी। किन्तु पैरों के अँगूठे लम्बाई में बड़े होते हैं। उँगलियों के बीच फासला भी कम होता है। उनका चलना तथा दौड़ना भी पुरुषों की तुलना में भिन्न प्रकार का होता है। कारण कि उनके पैरों के जोड़ नितम्बों के भिन्न कोणों पर जुड़े रहते हैं।
पुरुषों की औसत ऊँचाई 5 फुट 8 इंच होती है जबकि नारी की 5 फुट 5 इंच। नारी की त्वचा पतली होती है। रक्त कण भी कम होते हैं। पुरुष के रक्त में प्रति मिलीमीटर 50 लाख कण होते हैं जबकि नारी शरीर में 45 लाख का अनुपात रहता है। इतने पर भी उसकी नाड़ी अपेक्षाकृत अधिक तेजी से धड़कती है। इसका अर्थ होता है रक्त की गति अधिक होना। साँस भी अधिक बार चलती है इसका अर्थ होता है। फेफड़ों का अधिक सक्रिय होना। यही कारण है कि नारी को अधिक ऑक्सीजन मिलने से उसमें सजीवता अधिक रहती है और फेफड़े अधिक मजबूत होते हैं। जीवन शक्ति उसमें अधिक पाई जाती है। फलतः वह बिना थके अधिक समय तक अपना काम करती रह सकती है।
पुरुष के ज्ञान तन्तु शरीर के विभिन्न अंगों की अनुभूतियाँ मस्तिष्क तक पहुँचाने का कार्य 52 इंच और 5 मीटर प्रति सेकेंड के हिसाब से करते हैं किन्तु नारी में यह क्षमता अधिक तेजी से सन्देश पहुँचाने की होती है। उसके ज्ञान तन्तुओं की दौड़ 547 मीटर प्रति सेकेंड है। यही कारण है नारी अधिक संवेदनशील होती है। इसे पीड़ा की अनुभूति जल्दी होती है और अधिक भी। इतने पर भी उसमें एक अतिरिक्त विशेषता पाई जाती है सहन करने की। नारी बिना घबराये-असन्तुलित हुए लम्बे समय तक शारीरिक पीड़ा और मानसिक व्यथा सहन कर सकती है।
लड़कियाँ लड़कों की अपेक्षा जल्दी बोलने लगती हैं। इसका अर्थ है उनकी मानसिक बनावट में अपने मनोभावों को व्यक्त करने की उत्सुकता और आतुरता अधिक होती है। यह गुण उनमें आदि से अन्त तक बना रहता है। बातूनी में वे सदा पुरुषों से आगे रहती है। उसमें प्रसन्न रहने का गुण भी है और स्नेह, सहानुभूति सेवा का भी। पुरुष इस क्षेत्र में पीछे पाये जाते हैं उन्हें उद्विग्नता उदासी खीज के कुचक्र में अधिक समय तक फँसा पाया जाता है जबकि नारी सामान्य या गई बीती परिस्थितियों में भी हँसते-हँसाते दिन काट लेती है। सामाजिक परिस्थिति में उन्हें अधिक शिक्षा पाने या अधिक अनुभव एकत्रित करने के लिए वैसी सुविधा प्रदान नहीं की जैसी कि आम पुरुष की होती है। वे परिस्थितियों के साथ तालमेल बिठा लेती हैं और वह सोचती और करती हैं जो वर्तमान में सम्भव है। अव्यावहारिक कल्पनाओं की उड़ानें उड़ते उनमें से बहुत कम ही देखी जाती है।