
आकृतियों की असाधारण प्रभाव क्षमता
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संरचनाओं के आकार का शरीर मन और वस्तुओं पर गहरा प्रभाव है, यह एक वैज्ञानिक तथ्य है। अब यह भी सत्य सिद्ध हो चुका है कि ब्रह्मांडीय उद्दीपनों को ग्रहण करने में आकृति विशेष की प्रमुख भूमिका रहती है। इसके ज्वलंत उदाहरण हैं — मिश्र के पिरामिड।
मिश्र के सबसे प्राचीनतम पिरामिडों में गीजा के पिरामिडों की गणना होती है। कुछ वर्ष पूर्व बौविस नामक एक पर्यटक इसके निरीक्षण के उद्देश्य से आया और फराओं के ग्रेट पिरामिड में कुछ घंटे बिताए। यहाँ बोविस को जिस बात ने सबसे अधिक अचंभे में डाला वह थे कुछ वन्य-जंतुओं के शव, जो पूरी तरह सूख चुके थे।
आर्द्रता के बावजूद उनमें किसी प्रकार की सड़न नहीं आईं थी। इस घटना को देखने के बाद उसे यह जिज्ञासा हुई कि क्या सचमुच कोई रहस्यमय ऊर्जा इसके भीतर काम करती है अथवा “ममीज” को सुरक्षित रखने के लिए किसी प्रकार के रसायन के लेपन की आवश्यकता पड़ती है।
यह जानने के लिए बोविस ने हूबहू ग्रेट पिरामिड की एक अनुकृति बनाई और उसके अंदर दिशा विशेष में एक मरी बिल्ली रखी। उसने देखा कि कुछ दिनों में इसकी ममी बन गई। इस आधार पर उसने निष्कर्ष निकाला कि पिरामिड डिहाइड्रेशन क्रिया की गति को तेज कर देता है।
बोविस के इस परीक्षण के बाद अनेक वैज्ञानिकों ने भी इस विशेष संरचना पर प्रयोग-परीक्षण किए। 'प्राग' के रेडियो इंजीनियर कैरेल डर्बल ने भी इस विशेष संरचना और उसके साथ जुड़ी मान्यताओं की सत्यता अनेक प्रयो-परीक्षणों द्वारा परखी। अंंत में अपना निष्कर्ष देते हुए उनने कहा कि पिरामिड के अंदर बंद आकाश की आकृति विशेष एवं उसके अंदर सतत् क्रियाशील भौतिक, रासायनिक एवं जैविक प्रक्रियाओं के बीच किसी न किसी प्रकार का संबंध अवश्य है। उनका यह भी कहना था कि उपयुक्त आकार-प्रकार के माध्यम से हम इन क्रियाओं की गति तेज अथवा मंद कर सकते हैं।
अब डर्बल यह जानने की इच्छुक हुए कि वस्तुओं पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है, अस्तु उनने कुछ भोंथरे छुरी एवं ब्लेड को पिरामिड के अंदर रखा और 24 घंटे के बाद उनकी धार देखी। उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब उनने यह पाया कि उनकी धार तेज हो गई है। वस्तुतः रेजर ब्लेड की धार की संरचना रवादार क्रिस्टल की तरह होती है। भोंथरेपन की स्थिति में उनकी धार के रवे घिर जाते हैं, किंतु जब उसे पिरामिड की सायुज्य आकृति रखा जाता है, तो उसके रवे फिर से प्रारंभिक स्थिति में आ जाते है और धार तेज हो जाती है।
ऐसे ही प्रयोग उनने मनुष्यों पर किए। एक मानसिक रूप से परेशान महिला को जब उसके अंदर कुछ दिन तक रखा गया तो उसकी मानसिक स्थिति में आश्चर्यजनक परिवर्तन परिलक्षित हुआ। अनुभवों के बारे में पूछे जाने पर उसने बताया कि पहले वह बहुत उद्विग्न रहती थी। छोटे मोटे कामों में ही थकान महसूस करने लगती थी और जो कुछ पढ़ती, तुरंत भूल जाती, किंतु इस विशेष संरचना के अंदर कुछ दिन बिताने के बाद तो थोड़े ही समय में उसके सारे मनोविकार दूर हो गए और उच्चकोटि की एकाग्रता व शांति प्राप्त हुई। यह भी देखा गया कि जटिल समस्याओं के समाधान पिरामिड अनुकृति के अंदर अपेक्षाकृत कम समय और कम मानसिक श्रम से ही उपलब्ध हो जाते हैं। उनके व्यक्तियों ने इसके अंदर प्राप्त दिव्य व रहस्यमय अनुभूतियों का वर्णन किया। अंग्रेज पर्यटक पाल ब्रण्टन ने ऐसी ही अनुभूतियाँ अपने एक रात के प्रयास के दौरान गीजा में प्राप्त की थी, जिसका विशद वर्णन अपनी प्रमुख पुस्तक 'ए सर्च इन एनसिएण्ट इजिप्ट' में किया है।
इतना ही नहीं विशेषज्ञों का विश्वास है कि व्यक्ति यदि इसके भीतर बैठकर योगाभ्यास करे तो वह आत्मोन्नति और आत्मपरिष्कृति का लाभ स्वल्पकाल में ही हस्तगतकर ब्राह्मी चेतना से संपर्क में भी सफल हो सकेगा। कई ने व्यक्तिगत रूप से ऐसे अभ्यास किए भी, जिसके परिणाम चमत्कारी देखने को मिले।
इन प्रयोगों में लंबे काल तक वस्तु सुरक्षित क्यों पड़ी रहीं? मनुष्य सदा ताजगी क्यों अनुभव करता है? ब्लेड की धार स्वतः तेज कैसे हो जाती है? इसकी प्रक्रिया को वैज्ञानिक नहीं समझा सकें; परंतु एक बात अवश्य स्वीकारी कि यह विशेष आकार लेन्स की तरह व्यवहार करता है और ब्रह्मांडीय ऊर्जा को अपने अंदर रखी वस्तुओं पर केंद्रीभूत करता रहता है; फलतः यह चमत्कार देखने को मिलते हैं।
वस्तु और मनुष्य पर किए गए प्रयोगों की इस श्रृंखला के बाद डर्बल को यह संदेह हुआ कि कहीं ऐसा तो नहीं, कि हर प्रकार का कृत्रिम मॉडल ऐसा ही प्रभाव छोड़ता हो? इस भ्रान्ति के निवारण के लिए उन्होंने दो प्रकार के मॉडल बनाए; एक तो हूबहू ग्रेट पिरामिड की नकल था एवं दूसरा एक आयताकार कार्ड-बोर्ड की बक्सनुमा संरचना। दोनों में उनने कुछ अंंडे, सब्जियाँ व दूध रखे। पिरामिड मॉडल में जो वस्तुएँ रखी गई थीं, वे सुरक्षित बनी रहीं; मगर जिन्हें आयताकार बक्से में रखा गया था, उनमें तुरंत सड़न व बदबू आने लगी। जो इस बात का प्रमाण था कि पिरामिड की बनावट कोई तीर और तुक्के का संयोग नहीं, वरन निश्चित नियमों व सिद्धांतों का परिपालन करने वाली विज्ञान पर आधारित संरचना है। वैज्ञानिकों ने जब ग्रेट पिरामिड का आधार और इसके विभिन्न फलकों का अनुपात निकाला, तो इनमें से अधिकांश से गणितीय राशि “पाई” का मान प्राप्त होता था। इसके अतिरिक्त इसके अन्यान्य अनुपातों से विभिन्न खगोलीय पिंडों की दूरियाँ भी ज्ञात होती थीं। यह सब तथ्य इसकी वैज्ञानिकता को सिद्ध करते हैं।
मिश्र के पिरामिडों के रहस्य से पर्दा उठाने के लिए वैज्ञानिक समय-समय पर प्रयोग-परीक्षण करते रहे हैं। 1979 में यूनाइटेड स्टेट्स के वैज्ञानिकों और ईन शाम्स यूनिवर्सिटी, कैरो के वैज्ञानिकों ने संयुक्त रूप से एक प्रयोग किया। उन्होंने सोचा कि पिरामिड का एक्स-रे लेने से शायद कोई ऐसा सूत्र हाथ लग जाए, जो रहस्य का पर्दा अनावृत कर सके। इसी उद्देश्य से प्रेरित होकर उन्होंने पिरामिड के एक कक्ष में एक डिटेक्टर लगाया, ताकि ब्रह्मांडीय किरणों की उपस्थिति का पता लगाया जा सके। मशीन दिन-रात एक वर्ष तक अविराम चलती रही। इसके बाद प्राप्त आँकड़ों का उच्च कोटि के परिष्कृत कम्प्यूटरों द्वारा विश्लेषण किया गया। विश्लेषण से ऐसे तथ्य हाथ लगे, जो विज्ञान के नियमों का उल्लंघन करते थे। दल के प्रधान गोहेड का कहना था कि एक ही मशीन द्वारा किसी एक ही बिंदु पर नित्यप्रति लिए गए “काॅस्मिक-रे-पैटर्न” में भारी व्यतिरेक हो, ऐसा विज्ञान के नियमों के सर्वथा प्रतिकूल है और विज्ञान के दायरे में असंभव भी। इसे तो रहस्यवाद के अंतर्गत रखना ही समीचीन होगा; किंतु इतना उन्होंने अवश्य स्वीकारा कि इसके भीतर किसी न किसी प्रकार की शक्ति अवश्य कार्य करती है, जो विज्ञान के लिए चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। कुछ वैज्ञानिकों ने इसे एलेक्ट्रोमैगनेटिक स्तर की सूक्ष्मऊर्जा बताया है, जबकि एक अन्य दल का कहना है कि यह और कुछ नहीं, वरन् ब्रह्मांडीय ऊर्जा ही है। हर प्रकार की खोखली आकृति में इसकी न्यूनाधिक उपस्थिति होती है; मगर पिरामिड के विशेष आकार के कारण इसमें उसकी सक्रियता अपेक्षाकृत अधिक बढ़ जाती है; फलतः चमत्कारिक परिणाम प्रस्तुत करती है।
यह तो पिरामिड और उसके प्रभाव की चर्चा हुई; मगर यही आकृति वस्तुओं और मनुष्यों पर अपना प्रभाव छोड़ती हो, ऐसी बात नहीं है। अन्यान्य विशिष्ट आकृतियाँ भी अपने भले-बुरे प्रभाव से वस्तुओं को प्रभावित करती हैं, अब यह एक प्रमाणित तथ्य है।
जापान के एक उद्योगपति योशुको को यह धुन सवार हुई कि एक ऐसी इमारत बनवाई जाए, जो विलक्षण हो। उसने एक बहुभुजी और बहुकोणीय इमारत की डिजाइन तैयार करवाई और उसी के आधार पर एक विशाल भवन बनवाया। भवन के भीतर पुनः एक बहुकोणीय मकान था; पर भवन और मकान के कोणों में भिन्नता थी। इमारत जब बनकर तैयार हुई, तो योशुको सपरिवार अपने पुराने मकान से नए में स्थानांतरित हो गया। नए मकान में आए अभी पाँच दिन भी नहीं हुए थे कि सभी के सिर में दर्द रहने लगा। धीरे-धीरे मिचली और बेचैनी भी सताने लगी। आरंभ में योशुको इसे संयोग मानकर दर्द और मिचली की सामान्य दवाएँ लेता रहा, पर जब शिकायत स्थाई बन गई, तो उसे चिंता हुई। उसने डॉक्टर से संपर्क किया। पूरी कहानी सुनने के बाद डॉक्टर ने उसे मकान छोड़ने की सलाद ही। योशुको परिवार सहित अपने पुराने मकान में पुनः आ गया। स्थानांतरण के बाद सभी की समस्याएँ स्वतः समाप्त हो गई।
फ्रांस की एक कंपनी ने दही बनाने और रखने के लिए एक विशेष आकार के पात्र का आविष्कार किया। इस पात्र की विशेषता यह थी कि यह बैक्टीरिया की क्रियाशीलता को बढ़ा देता था, जिससे दही अन्य पात्रों की तुलना में इसमें अधिक जल्दी जम जाता था।
इसी प्रकार का एक नकारात्मक प्रयोगों चैकोस्लोवाकिया की एक शराब-निर्मात्री कंपनी ने भी किया; पर उसे लाखों का घाटा उठाना पड़ा था। कंपनी ने शराब रखने वाले पात्रों का गोल आकार बदलकर कोणीय कर दिया था। परिणाम यह हुआ कि शराब जल्दी ही उसमें खराब होने लगी, यद्यपि निर्माण-विधि पूर्ववत् ही थी।
कनाडा के डॉक्टरों का शोध-निष्कर्ष यह है कि सामान्य आकार-प्रकार वाले हॉस्पिटल वाॅर्डों की तुलना में मरीज वैसे वाॅर्डों में अधिक शीघ्रता से स्वस्थ होते हैं, जिनकी दीवारें परस्पर असमांतर (टैपेज्वायड आकार की) होती है।
रूसी वैज्ञानिकों ने जब एक घायल बंदर को कोणीय कक्ष में रखा, तो उसकी पीड़ा बढ़ती देखी गई। जर्मन शोधकर्ताओं ने भी एक ऐसा ही प्रयोग बिल्ली पर किया। उन्होंने अपने प्रयोग में एक ही प्रकार के जख्म से जख्मी दो बिल्लियों को लिया। एक को गोलाकार पिंजरे में रखा, जबकि दूसरी को एक आयताकार पिंजरे में। जिस बिल्ली को गोलाकार पिंजरे में रखा गया था, उसके जख्म अपेक्षाकृत तेजी से भरते देखे गए और दूसरी बिल्ली की तुलना में वह स्वस्थ भी जल्दी बनी, जबकि आयताकार पिंजरे वाली बिल्ली के स्वास्थ्य लाभ में कुछ लंबा समय लगा। यह भी देखा गया है कि सिरदर्द की स्थिति में यदि व्यक्ति पिरामिड के आकार की टोपी पहन ले, तो सिर दर्द अविलंब जाता रहता है।
यह सब इस बात के प्रमाण हैं, जो सिद्ध करते हैं कि संरचना के आकार का हम पर गहरा असर पड़ता है। यदि शोध द्वारा यह पता लगाया जा सके, कि किन संरचनाओं का हम पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है और कौन से आकार हम पर बुरे असर डालते हैं? तो समयसाध्य बीमारियों से न केवल जल्दी लाभ पाया जा सकता है, अपितु उपयुक्त आकार के कक्ष में बैठकर एकाग्रचित्त हो ध्यान द्वारा समष्टिगत ऊर्जा से संपर्क स्थापितकर कायसंस्थान के सूक्ष्मकेंद्रों एवं मस्तिष्क के सोए न्यूरान्स को जागृतकर आध्यात्मिक विभूतियाँ भी अर्जित की जा सकती हैं। ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान की ध्यान-अनुसंधान-प्रक्रिया में इसी तथ्य को दृष्टिगत रख विशिष्ट आकृति के कक्ष बनाए गए हैं व अतिमहत्त्वपूर्ण निष्कर्ष उपकरणों के माध्यम से निकाले गए हैं।