
पृथ्वी से परे भी जीवन विद्यमान है!
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प्राचीनकाल से लोकांतरवासियों का सीधा संबंध धरतीवासियों से था। पृथ्वीवासियों से संपर्क-साधन एवं ज्ञान-विज्ञान के आदान-प्रदान के लिए वे अपने विशेष यानों-विमानों में बैठकर आते-जाते रहते थे। इसके अनेकों प्रमाण आज भी विश्व के विभिन्न भागों में जहाँ-तहाँ बिखरे पड़े हैं। वर्तमान में धरती पर उतरने वाली उड़न तश्तरियाँ अंतर्ग्रही आवागमन के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
वैदिक ग्रंथों में देवी-देवताओं का विमानों में सवार होकर आकाशगमन का वर्णन मिलता है। सुमेरु पर्वत, विंंध्याचल, हिमालय की घाटियों में देवयानों के उतरने का भी उल्लेख है। ऋग्वेद में एक ऐसे रथ का वर्णन है, जो पृथ्वी, जल और आकाश तीनों में चलता था। अश्विनी कुमारों का त्रिचक्र रथ अश्व के बिना ही अंतरिक्ष में भ्रमण करता था। महर्षि भारद्वाज ने ‘यंत्र सर्वस्व’ में बिजली, वाष्प, सौर ऊर्जा, जल, वायु, तेल और चुंबक से चलने वालों विमानों का वर्णन किया है। रामायण में पुष्पक विमान, गरुड़ विमान, “यंत्र कल्पतरु” में व्योम विमान,'महाभारत' में शाल्व के विमान का उल्लेख मिलता है। प्राचीन चीनी लोककथाओं में भी आकाश-गमन करने वाले विमानों का वर्णन मिलता है। बाइबिल में कहा गया है कि उत्तर दिशा में एक प्रकाश का बवंडर उत्पन्न हुआ, जिसमें से एक विमान प्रकट हुआ। उसके अंदर चार सजीव प्राणी थे, जिनकी आकृति मनुष्यों जैसी थी।
यूनानी कथाओं में आकाशगमन करने वाले देवी-देवताओं का वर्णन मिलता है। मिश्र और बेबीलोन की प्राचीन सम्भयता में भी ऐसे अनेक प्रमाण मिले हैं, जिनसे अंतर्ग्रही विमानों में आवागमन का वर्णन सही सिद्ध होता है।
स्विट्जरलैंड के सुप्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता एरिकफ्राॅम के अनुसार प्रागैतिहासिककाल में बाह्य अंतरिक्ष से यात्री यानों में बैठकर आते थे। इस कथन की पुष्टि मूर्धन्य वैज्ञानिक डा. पीटर कोलोसिमों ने भी की है। उनका कहना हैं कि कभी-कभी तो अंतरिक्ष यात्री धरतीवासियों से विवाह संबंध बनाकर घर बसा लेते थे और गृहस्थी का सुख भोगकर लंबे समय बाद अंतरिक्ष में लौट जाते थे।
विश्व के अनेक भागों-जैसे उत्तरी अमेरिका, पेरु तथा चिली आदि की गुफाओं में ऐसे अनेक भित्ति चित्र मिले हैं। जिनसे प्रकट होता है कि पुरातनकाल में इस धरती पर दूर ग्रहों के उन्नत सभ्यता वाले लोग आते रहे हैं। इसकी पुष्टि आस्ट्रेलिया में सिडनी के पास गुफा में शिला पर अंकित सुसज्जित स्पेश शूट पहने उस अंतरिक्ष यात्री से भी होती है, जिसके सिर पर पृथ्वी से अन्य लोकों को संकेत मात्र सूत्र भेजने वाले ऐन्टिनायुक्त उपकरण बने हैं।
पेरु के एक पार्वत्य प्रदेश में “नाजका” नामक एक अतिप्राचीन; किंतु सुविकसित नगर के ध्वंसावशेष पाए गए हैं। इस क्षेत्र का निरीक्षण करने पर पार्श्व की पाल्पाघाटी में ज्यामितीय ढंग से विनिर्मित एवं एकदूसरे के समानांतर अनेकानेक हवाई पट्टियाँ पाई गई हैं। ये पट्टियाँ 40 मील लंबी तथा एक मील चौड़ी सपाट-समतल भूमि पर बड़े ही व्यवस्थितक्रम से बनी हुई हैं। जिस तरह इन पट्टियों का आकस्मिक शुभारंभ होता है, ठीक उसी तरह एकाएक अंत भी होता है। अतः इन्हें सामान्य आवागमन के मार्ग अथवा सड़क नहीं कहा जा सकता।
लीमा के दक्षिण में एक पर्वत श्रृँखला पर 820 फुट ऊँचा प्रस्तर का एक विशालकाय त्रिशूल खड़ा है, जिसे जमीन पर 12 मील की दूरी से एवं अंतरिक्ष में उतुँग ऊँचाई से देखा जा सकता है। इसी तरह उत्तर चिली के तारापाकार मरुस्थल के बगल में स्थित एक पहाड़ी पर 330 फुट ऊँची एक मानव मूर्ति खड़ी है। इस प्रतिमा का आकार आयताकार, है किंतु उसका सिर वर्गाकार है, जिसमें समान लंबाई के बारह एंटिना लगे हैं। मूर्ति के कटि प्रदेश में सुपरसोनिक फाइटर्स की भाँति अनेक त्रिभुजाकार पंख लगे हैं।
सन् 1968 में चिली में ही एक अन्य रहस्यमय पठार का अन्वेषण किया गया। “एन्ला ड्रिल्लोडो” नामक दो मील लंबे एवं 850 गज चौड़े इस पठार पर सर्वत्र 12 से 16 फुट ऊँचे और 20 से 30 फुट लंबे शिलाखंड बिछे हुए हैं। एक अन्य गवेषणा में “नाजका” शहर से एक सौ मील की दूरी पर विशालकाय पत्थरों पर पशु-पक्षियों के चित्र-विचित्र रेखांकन मिले हैं। इनमें से एक चित्र 300 गज लंबा है।
उपरोक्त तथ्यों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों की मान्यता है कि इन पट्टियों का उपयोग प्राच्यकाल में हवाई पट्टियों के रूप में किया जाता था। इन स्थलों का निरीक्षण करने वाले “एरिक वाॅन डैनिकेन” का कहना है कि ये स्थान अवश्य ही अंतरिक्ष से आने वाले वायुयानों के अवतरण क्षेत्र रहे होंगे, जिनका उपयोग अन्य ग्रहवासी अपने यानों को उतारने के लिए करते रहे होंगे। विशालकाय त्रिशूल, मानव प्रतिमा एवं पशु−पक्षियों के चित्र हवाई पट्टी के संकेत के रूप में प्रयुक्त होते रहे होंगे, जिन्हें देखते ही विमान चालकों को हवाई पट्टियों का सही-सही अनुमान प्राप्त होता होगा।
प्रसिद्ध पुस्तक “चैरियट्स ऑफ गाड्स” में डेनिकेन ने एक ऐसे नक्शे का वर्णन किया है, जिसमें भूमध्यसागर, मृत सागर, उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका के साथ-साथ अन्टार्कटिका के कुछ प्रांत स्पष्ट दिखाए गए हैं। यह नक्शा टोपकाॅपी पैलेस में मिला है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह नक्शा हजारों वर्ष पुराना है, जो किसी अन्य ग्रहवासियों द्वारा वायुयान से खींचा गया है।
वैज्ञानिकों ने अन्य कई ऐसे प्रामाणिक तथ्य ढूँढ़ निकाले हैं, जिनसे स्पष्ट होता है कि कभी धरती पर अन्य ग्रहों से लोग आते थे। डा. पीटर कोलोसिमों ने तिब्बत के मठों में सुरक्षित रखे हुए कुछ ऐसे शवों का वर्णन किया है। जो अंतरिक्ष शूट पहने हुए हैं। पीटर के अनुसार ये शव उन लोकांतरवासियों के हैं, जिनके अंतरिक्ष यान में खराबी आ गई थी और वे वापस अपने लोक को नहीं लौट सके। उनने मय सभ्यताकालीन एक खंडहर में ऐसी समाधि का भी उल्लेख किया है, जो किसी यान-आकृति की है और उसके अंदर अंतरिक्ष यात्री बैठा है।
वैज्ञानिक निरंतर इसी दिशा में प्रयत्नशील हैं कि अन्य ग्रहों में जीवन की खोज की जाए। अब तक जो भी शोध-अनुसंधान इस संबंध में हुए हैं, उनसे स्पष्ट संकेत मिलता है कि आकाशगंगा में ऐसे अनेक ग्रह होने चाहिए, जिनमें विकसित सभ्यता का निवास हो सकता है। मूर्धन्य वैज्ञानिक डा. बिली के अनुसार हमारी आकाशगंगा में ऐसे ग्रहों की संख्या बीस हजार होनी चाहिए, जिनमें पृथ्वी जैसे बुद्धिमान प्राणी निवास करते हैं।
यों उल्काएँ जो पृथ्वी पर आती रहती हैं, उनके धूलि-कणों का अन्वेषण करने से भी प्रतीत होता है कि सौरमंडलीय धूलि में भी जीवन तत्त्व मौजूद हैं। भले ही वह अविकसित रूप में ही क्यों न हो? उल्काओं में जीवित एवं मृतक बैक्टीरिया तथा दूसरे तरह के जीवन चिह्न पाए जाते हैं। इस आधार पर अनुमान लगाया जाना भी असंगत नहीं है कि पृथ्वी पर पाया जाने वाला जीवन बहुत करके अंतरिक्ष से उतरा है और इनसे संबंध स्थापित करने के लिए ही अंतरिक्षवासी यहाँ आते रहे हैं।
उड़न तश्तरियों तथा अन्य दृश्य-अदृश्य माध्यमों से यह आवागमन अभी भी किसी रूप में चल रहा हो, तो आश्चर्य नहीं। सौरमंडल के ग्रह-उपग्रहों की खोज में यों मनुष्य जैसे विकसित प्राणियों का पता नहीं चला है तो भी यह नहीं माना जाना चाहिए कि उनमें जीवन का सर्वथा अभाव हैं। फिर यह भी हो सकता है कि सौरमंडल से बाहर के जीवधारी प्रकृति नियमों से भिन्न चेतना नियमों के आधार पर पृथ्वी के साथ भूतकाल में अधिक संबंध बनाए रहे हों और अब यहाँ की स्थिति कामचलाऊ देखकर अन्य किसी उपयुक्त ग्रह को विकसित करने में लग गए हों और यदा-कदा यहाँ की भी खोज खबर लेते रहते हों।