• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • अवरोध क्यों आते हैं? प्रयास क्यों असफल होते हैं।
    • गंगा में भारी बाढ़ आई (Kahani)
    • चिन्तन-चेतना में उत्कृष्टता उभरे
    • भीतर से खोखले (Kahani)
    • हम विनाश की कगार पर खड़े हैं।
    • Quotation
    • हिरण्याक्ष का वध (Kahani)
    • अगणित विपत्तियों का एक ही उद्गम
    • तीर्थ यात्रा पर निकले (Kahani)
    • प्रस्तुत समस्याओं का एक ही निराकरण
    • अपने दुर्भाग्य का बखान (Kahani)
    • कुविचार अपनाने से ही विपत्तियाँ बढ़ी हैं
    • Quotation
    • काम और क्रोध (kahani)
    • सर्वनाश का एक मात्र कारण दुर्गति
    • Quotation
    • काका कालेलकर (Kahani)
    • अवरोधों से जूझने की सूझ बूझ जगे
    • Quotation
    • शरीर रूपी बहुमूल्य रत्न (Kahani)
    • पुरातन और अर्वाचीन दर्शन आदर्शों का समर्थन करें
    • Quotation
    • सन्त बलहीरी (Kahani)
    • अन्तरंग को सुधरें, बहिरंग सुविकसित होगा
    • कन्फ्यूशियस ने इलाज बताया (Kahani)
    • विनाश विभीषिकाओं का अन्त होकर रहेगा
    • पूर्णिमा का चाँद (Kahani)
    • सहायता के लिये दैवी शक्ति का आह्वान
    • सत्य वचन की चिन्ह पूजा (Kahani)
    • खतरा इतना गम्भीर नहीं है?
    • Quotation
    • बढ़ती हुई विभीषिकाओं के हल निकलेंगे
    • Quotation
    • जार्ज इस्टमैन (Kahani)
    • भावी परिवर्तन की पृष्ठभूमि
    • Quotation
    • दो आलसी (Kahani)
    • प्रतिभाएँ अग्रिम पंक्ति में आये
    • Quotation
    • लुहार और सुनार (Kahani)
    • नवयुग की चार आधार शिलाएँ
    • प्रचण्ड धर्मानुष्ठान की पुण्य प्रक्रिया
    • माधवाचार्य ने कहा (Kahani)
    • धर्मतंत्र द्वारा आस्था क्षेत्र का परिमार्जन
    • ब्रह्मचारी दयानन्द (Kahani)
    • विश्वशान्ति में भारत की भूमिका
    • Quotation
    • दूरदर्शिता भी उतनी ही आवश्यक (Kahani)
    • परिवर्तन की अदृश्य किन्तु अद्भुत प्रक्रिया
    • Quotation
    • आगन्तुक ने उनका हाथ पकड़ा (Kahani)
    • दिव्य सम्भावना सुनिश्चित है।
    • गूँज उठी हैं सभी दिशाएं - जन जागरण के उद्घोष से राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को अक्षुण्ण बनाए रखने का संकल्प
    • अपनों से अपनी बात - एक लाख प्रज्ञा परिवारों की स्थापना
    • गुरुदेव प्रणीत अध्यात्म विद्या के अमूल्य ग्रन्थरत्न
    • “नवयुग आगमन”
    • नवयुग आगमन (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • अवरोध क्यों आते हैं? प्रयास क्यों असफल होते हैं।
    • गंगा में भारी बाढ़ आई (Kahani)
    • चिन्तन-चेतना में उत्कृष्टता उभरे
    • भीतर से खोखले (Kahani)
    • हम विनाश की कगार पर खड़े हैं।
    • Quotation
    • हिरण्याक्ष का वध (Kahani)
    • अगणित विपत्तियों का एक ही उद्गम
    • तीर्थ यात्रा पर निकले (Kahani)
    • प्रस्तुत समस्याओं का एक ही निराकरण
    • अपने दुर्भाग्य का बखान (Kahani)
    • कुविचार अपनाने से ही विपत्तियाँ बढ़ी हैं
    • Quotation
    • काम और क्रोध (kahani)
    • सर्वनाश का एक मात्र कारण दुर्गति
    • Quotation
    • काका कालेलकर (Kahani)
    • अवरोधों से जूझने की सूझ बूझ जगे
    • Quotation
    • शरीर रूपी बहुमूल्य रत्न (Kahani)
    • पुरातन और अर्वाचीन दर्शन आदर्शों का समर्थन करें
    • Quotation
    • सन्त बलहीरी (Kahani)
    • अन्तरंग को सुधरें, बहिरंग सुविकसित होगा
    • कन्फ्यूशियस ने इलाज बताया (Kahani)
    • विनाश विभीषिकाओं का अन्त होकर रहेगा
    • पूर्णिमा का चाँद (Kahani)
    • सहायता के लिये दैवी शक्ति का आह्वान
    • सत्य वचन की चिन्ह पूजा (Kahani)
    • खतरा इतना गम्भीर नहीं है?
    • Quotation
    • बढ़ती हुई विभीषिकाओं के हल निकलेंगे
    • Quotation
    • जार्ज इस्टमैन (Kahani)
    • भावी परिवर्तन की पृष्ठभूमि
    • Quotation
    • दो आलसी (Kahani)
    • प्रतिभाएँ अग्रिम पंक्ति में आये
    • Quotation
    • लुहार और सुनार (Kahani)
    • नवयुग की चार आधार शिलाएँ
    • प्रचण्ड धर्मानुष्ठान की पुण्य प्रक्रिया
    • माधवाचार्य ने कहा (Kahani)
    • धर्मतंत्र द्वारा आस्था क्षेत्र का परिमार्जन
    • ब्रह्मचारी दयानन्द (Kahani)
    • विश्वशान्ति में भारत की भूमिका
    • Quotation
    • दूरदर्शिता भी उतनी ही आवश्यक (Kahani)
    • परिवर्तन की अदृश्य किन्तु अद्भुत प्रक्रिया
    • Quotation
    • आगन्तुक ने उनका हाथ पकड़ा (Kahani)
    • दिव्य सम्भावना सुनिश्चित है।
    • गूँज उठी हैं सभी दिशाएं - जन जागरण के उद्घोष से राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को अक्षुण्ण बनाए रखने का संकल्प
    • अपनों से अपनी बात - एक लाख प्रज्ञा परिवारों की स्थापना
    • गुरुदेव प्रणीत अध्यात्म विद्या के अमूल्य ग्रन्थरत्न
    • “नवयुग आगमन”
    • नवयुग आगमन (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1987 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


सहायता के लिये दैवी शक्ति का आह्वान

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 27 29 Last
कहते हैं विष्णु शेष शैय्या पर क्षीर सागर में सोते रहते है। उनकी निद्रा में कोई विघ्न न डाले इसलिए शैय्या रूप में पड़ा हुआ सहस्रमुखी शेषनाग सदा फन फैलाये तैयार रहेगा। उनके विश्राम में किसी प्रकार की विघ्न बाधा न पड़े इसलिए लक्ष्मी जी पैताने बैठी चरण चापा करती रहती हैं। ऐसा क्यों होता है? इसका एक ही उत्तर है कि वे अपने ज्येष्ठ पुत्र मनुष्य पर बहुत भरोसा करते हैं। उनका विश्वास है कि जो भी समस्यायें, अड़चनें कभी आती होंगी उनका निराकरण वह अपनी समर्थता और बुद्धिमत्ता के सहारे कर लेगा। इस निमित्त उसे बहुत कुछ दिया भी गया है। सृष्टा ने अपनी अन्नत क्षमताओं को मनुष्य के बीज रूप में भर दिया है, ताकि उसे आत्मबल का भरोसा बना रहे और साथ ही यह ध्यान भी बना रहे कि प्रसुप्ति को जागृति में बदलना है। बीज के भीतर वृक्ष सोया रहता है। उसे धरती में बोना और खाद पानी से सींचना पड़ता है तभी वह सुयोग बनता है जिसके सहारे कोठों भरे धन धान्य का भण्डारण वैभव की वृद्धि करे।

हनुमान में सामर्थ्य थी, पर बिना उद्बोधन के वह न प्रकट हो सकी न क्रियान्वित। प्रसुप्त अन्तःकरण की स्थिति में भगोड़े सुग्रीव की नौकरी करके अपना गुजारा करते थे। राम लक्ष्मण के संपर्क से विद्युत करेन्ट उन्हें छू गया तो राम लक्ष्मण के संपर्क से विद्युत करेन्ट उन्हें छू गया तो स्थिति बदल गई और महावीर विक्रम बजरंगी हो गये। अगले प्रसंगों में वह अवसर भी आता है जब समुद्र लांघने की समस्या थी। गदाधारियों में से सभी चकरा रहे थे। हनुमान भी कार्य की विशालता और भयंकरता देखकर मौन धारण किये एक कोने में उदास बैठे थे। जामवन्त ने जब उद्बोधन दिया तो उनका आत्म विस्मरण छूटा। कटिबद्ध हुए और देखते-देखते समुद्र लांघ कर लंका को वीरान करने में लग गये।

शेषशायी विष्णु वह है जो मनुष्य की क्षमता और गरिमा के भरोसे यह विश्वास करता है कि सब कुछ ठीक चलता होगा ओर ठीक चलेगा। जब आभास होता है कि दायित्व निभ नहीं रहा है तो स्वयं आगे आते हैं। शयन शैय्या छोड़ते हैं और पराक्रम भरे चक्र सुदर्शन को गति देते हैं। उनने वाराह नृसिंह और परशुराम के रूप में धारण किये हैं और अवसाद आतंक को जड़ मूल से उखाड़ कर भगाया है। उनने लंका की बलिष्ठ असुरता का भी विनाश किया है और द्वापर में अनौचित्य के विरुद्ध महाभारत का भी सरंजाम जुटाते रहे हैं। उनने बुद्ध गान्धी के रूप में भी पराक्रम किये हैं। मनुष्य को कृपणता बरतने देखकर उनने गीता का तत्वावधान भी समझाया और सारथी बन कर अर्जुन का रथ सही मार्ग पर चलाया।

प्रथम आक्रमण सदा बाजी जीतता रहा है। पीछे उसका परिणाम कुछ भी क्यों न भुगतना पड़े? देव दानव संग्राम में सदा प्रथम विजय दैत्यों की ही हुई है। देव वर्ग अपने जैसा सज्जन दूसरों को भी मानता रहा है और कल्पना करता रहा है कि दुष्टता चरम सीमा तक पहुँचने से से पहले ही रुक जायेगी। किन्तु यह अनुमान गलत ही साबित हो रहा है। आक्रमण के विरुद्ध प्रत्याक्रमण करना पड़ा है। यों देवत्व इस संदर्भ में अभ्यस्त और प्रवीण नहीं होता इसलिए उसे निराकरण में देर भी लगी है और कठिनाई भी झेलनी पड़ी है। किन्तु एक सुयोग देवपक्ष के साथ जुड़ा रहा है कि उसे अदृश्य शक्तियों का सहयोग उपलब्ध होता रहा है। दुर्दान्त वृत्तासुर का आतंक जब चरम सीमा पर पहुँचा तो देवता घबराये वे प्रजापति के पास पहुँचे उनने देवताओं की संयुक्त शक्ति एकत्रित की और उससे दुर्गा का सृजन किया। महाशक्ति ने महिषासुर शुँभ निशुँभ, मधुकैटभ, रक्तबीज आदि को धराशायी बना दिया। इस कथा में तथ्य इतना ही है कि देवमानवों की संयुक्त शक्ति यदि दानवों के विरुद्ध अड़ जाय तो सफलता में कोई सन्देह नहीं रह जाता। इन्द्र को हारा देखकर दधिचि ने अपनी अस्थियाँ ऐसा वज्र बनाने के लिए दे दी थी कि देव वर्ग की जीत निश्चित हो गई। वह कथा सभी को याद है जिसमें ऋषियों के रक्त संग्रह से घड़ा भरा गया था और उस घड़े से सीता जन्म जो असुरता को गढ़ को विस्मार करने में निमित्त कारण बनी। उन्हीं के कारण रीछ वानरों को बहती गंगा में हाथ धोकर अपने को कृतकृत्य करने का अवसर मिला था। यह दैवी सहायता का ही अनुदान है। जिससे देवत्व को शाश्वत सजीव बनी रही और अपनी वरिष्ठता अक्षुण्ण बनाये रह सकी।

संदर्भ आज की परिस्थितियों का है। मायावी बेताल का वितान चारों ओर तना हुआ है। कोई क्षेत्र ऐसा नहीं बचा जिसमें प्रवेश करने पर जहरीली घुटन अनुभव न होती हो जहाँ सत्यानाशी संभावनाएँ अजगर जैसा सिर उठाये फंसकर न रह हों।

इनके निराकरण के प्रयत्न न किये गये हों सो बात नहीं। पर सोचने का तरीका ईंट का जवाब पत्थर से देने जैसा ही रहा है। माया को माया से काटने के पास बिछाये गये हैं, पर मैल से मैल को कैसे धोये जाय। दानवी मायाचार का मुकाबला उस तरीके को अपना कर तो तभी दिया जा सकता है, उस आक्रान्ता से बढ़कर आक्रमण किया जाय और अनीति के सामने उससे भी बड़ी अनीति खड़ी की जाय। किन्तु यह देव प्रकृति के लिए संभव नहीं उनका स्वभाव ही ऐसा ढाँचे में ढला नहीं होता। ऐसी दशा में संकट की निवृत्ति तभी हो सकती है, जब देव पक्ष को ईश्वरीय सहायता उपलब्ध हो।

यह सब कुछ अनायास ही नहीं हो जाता, वरन् देव पक्ष को भी अपनी पीड़ा व्यक्त करने के लिए ऐसी गुहार लगानी पड़ती है जिससे आवश्यकता और पात्रता भगवान के सामने सिद्ध हो सके। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवता आक्रान्त होने पर प्रजापति या विष्णु की शरण में गये हैं ओर समय रहते सहायता मिलने की याचना की है। ग्राह के मुँह में फँसे हुए गज ने भी पुकार की थी और द्रौपदी ने भी लाज जाने की गुहार में समूची भाव संवेदना भर दी थी। इसी मनः स्थिति को दूसरे शब्दों में तप कहते हैं। भागीरथ ने गंगा को धरती पर लाने के लिए प्रचण्ड तप किया था शिव का वरण करने के लिए पार्वती को भी तप करना पड़ा था। भगवान को गोदी में खिलाने के लिए स्वयंभू मनु और शतरूपा रानी को कठिन तपस्या करनी पड़ी थी। सृष्टि की संरचना में हाथ डालने से पूर्व ब्रह्माजी को भी उग्र तपस्या पूरी करनी पड़ी थी। भारत भूमि एवं विश्व वसुधा को अनाचार मुक्त बनाने के लिए पिछले दिनों महर्षि रमण योगी अरविन्द आदि ने तपश्चर्या का मार्ग ही अपनाया था। देश की स्वतंत्रता में एक ही समय में अनेकानेक महामानवों के उत्पादन में उन तपस्याओं का असाधारण योगदान रहा है।

वर्तमान परिस्थितियों में विश्व समस्याओं के समाधान हेतु प्रज्ञा अभियान द्वारा सामूहिक तप साधना की एक श्रृंखला चलाई गई है। उसका प्रभाव एकाकी साधना की अपेक्षा कहीं अधिक प्रभावशाली होना चाहिए। ईसाइयों के गिरजों में रविवार को मुसलमानों की मस्जिदों में शुक्रवार को नमाज की धूम रहती है। जो नित्य नियमित रूप से प्रार्थना नहीं कर सकते, वे भी उन सामूहिक आयोजनों में सरलतापूर्वक सम्मिलित होते हैं। एकाकी प्रयासों की अपेक्षा सम्मिलित कार्यक्रम की शक्ति सामर्थ्य कहीं अधिक होती है, इसे तो हर कोई जानता है।

प्रज्ञा अभियान के सूत्र संचालक ने 24-24 लक्ष्य के 24 गायत्री महापुरश्चरण किये थे। उनका संकल्प किसी व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं वरन् जन कल्याण के निमित्त ही था। आमतौर से साधनाएँ व्यक्तिगत ही होती है। लोग अपने लिए स्वर्ग मुक्ति ऋद्धि सिद्धि देवदर्शन वरदान मनोकामना कष्ट निवारण आदि के निमित्त ही साधनाएँ करते हैं, किन्तु अपनी साधनाएँ आरम्भ से अन्त तक युग परिवर्तन एवं जन कल्याण के निमित्त ही हो रही हैं। महापुरश्चरणों के अन्त में सहस्रकुण्डी यज्ञ भी सामूहिक ही हुआ था और इसके उपरान्त गायत्री अनुष्ठानों एवं यज्ञ आयोजनों का क्रम सामूहिक इबादतों के रूप में ही चला है। अब भी हर नव रात्रि में सामूहिक साधनाएँ ही होती हैं।

युग संधि के संदर्भ में विगत 4 वर्ष से प्रतिदिन 240 करोड़ गायत्री जप आयोजन चल रहा है। प्रज्ञा परिवार के प्रायः सभी 24 लाख परिजन प्रतिदिन दो माला गायत्री जप न्यूनतम करते हैं। एक माला आत्म परिष्कार के लिए दूसरी विश्व कल्याण के लिए। इस प्रकार न्यूनतम 240 करोड़ जप नित्य हो जाता है। ऐसी योजना कहीं भी कभी भी अब तक नहीं बनी है।

इसी प्रयोजन के लिए अब से तीन वर्ष पूर्व सूक्ष्मीकरण साधना आरंभ की गई थी। उसे सावित्री साधना के नाम से जाना गया था और पंचकोशों का अनावरण भी कहा गया था। उसके साथ जुड़े हुए अनुशासन अतीव कठोर थे। इन दिनों जहाँ भी जिनसे भी जैसी भी तपश्चर्या बन पड़ रही है इनकी तुलना में इसे किसी भी प्रकार कम नहीं माना जा सकता है। तप साधना में ऐसे कठोर इतने व्रत नियमों को कोई विरले ही साध पाते हैं। अब वह साधना पूर्ण होती है। इसे भारत की देवात्मा का कुण्डलिनी जागरण कहा जाय तो इसमें तनिक भी अत्युक्ति न होगी। आमतौर से व्यक्ति विशेष अपनी निजी क्षमता उभारने के लिए कुछ कुण्डलिनी की प्रचंड साधना करते हैं। उसमें षट्चक्रों का वेधन तथा बन्ध मुद्राओं को ध्यान धारणाओं को विशेष समावेश होता है पर अपनी साधना तो भारत की देवात्मा में प्रचंड बल भरने की थी। ताकि इस स्वर्गादपि गरीयसी देवभूमि का देवत्व दावानल की तरह उबल पड़े।

ध्रुव भागीरथ जैसी तनी वर्षीय प्रस्तुत साधना का अभीष्ट परिणाम निश्चित रूप से होना है और वह अपने ढंग का अत्यन्त महिमामय प्रभाव उत्पन्न करेगा। भारत की देवात्मा जागेगी और वह न केवल अपने देश की समस्याओं का समाधान करेगी, वरन् समीपवर्ती दूरवर्ती अन्य क्षेत्रों पर भी उसका प्रभाव पड़े गरिमा को हस्तगत करेगा और अन्यान्य क्षेत्रों पर कल्याण के राजमार्ग पर चल सकने की क्षमता प्रदान करेगा। यह तीन वर्षीय हमारे जीवन की अन्तिम और अति कठोर साधना रही है। इसकी पूर्णाहुति सौ-सौ कुण्डों के सौ गायत्री यज्ञों में हो रही है। सन् 1958 का यज्ञ एक हजार कुण्डों का हुआ था। यह एक लाख कुण्डों का होगा। सौ-सौ कुण्डों के सौ यज्ञों में विकेंद्रीकरण इसलिए किया गया है कि उसका अधिक व्यापक क्षेत्र में प्रभाव विस्तृत हो सके और उससे अधिकाधिक क्षेत्रों का जन समुदाय लाभान्वित हो सके।

First 27 29 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • अवरोध क्यों आते हैं? प्रयास क्यों असफल होते हैं।
  • गंगा में भारी बाढ़ आई (Kahani)
  • चिन्तन-चेतना में उत्कृष्टता उभरे
  • भीतर से खोखले (Kahani)
  • हम विनाश की कगार पर खड़े हैं।
  • Quotation
  • हिरण्याक्ष का वध (Kahani)
  • अगणित विपत्तियों का एक ही उद्गम
  • तीर्थ यात्रा पर निकले (Kahani)
  • प्रस्तुत समस्याओं का एक ही निराकरण
  • अपने दुर्भाग्य का बखान (Kahani)
  • कुविचार अपनाने से ही विपत्तियाँ बढ़ी हैं
  • Quotation
  • काम और क्रोध (kahani)
  • सर्वनाश का एक मात्र कारण दुर्गति
  • Quotation
  • काका कालेलकर (Kahani)
  • अवरोधों से जूझने की सूझ बूझ जगे
  • Quotation
  • शरीर रूपी बहुमूल्य रत्न (Kahani)
  • पुरातन और अर्वाचीन दर्शन आदर्शों का समर्थन करें
  • Quotation
  • सन्त बलहीरी (Kahani)
  • अन्तरंग को सुधरें, बहिरंग सुविकसित होगा
  • कन्फ्यूशियस ने इलाज बताया (Kahani)
  • विनाश विभीषिकाओं का अन्त होकर रहेगा
  • पूर्णिमा का चाँद (Kahani)
  • सहायता के लिये दैवी शक्ति का आह्वान
  • सत्य वचन की चिन्ह पूजा (Kahani)
  • खतरा इतना गम्भीर नहीं है?
  • Quotation
  • बढ़ती हुई विभीषिकाओं के हल निकलेंगे
  • Quotation
  • जार्ज इस्टमैन (Kahani)
  • भावी परिवर्तन की पृष्ठभूमि
  • Quotation
  • दो आलसी (Kahani)
  • प्रतिभाएँ अग्रिम पंक्ति में आये
  • Quotation
  • लुहार और सुनार (Kahani)
  • नवयुग की चार आधार शिलाएँ
  • प्रचण्ड धर्मानुष्ठान की पुण्य प्रक्रिया
  • माधवाचार्य ने कहा (Kahani)
  • धर्मतंत्र द्वारा आस्था क्षेत्र का परिमार्जन
  • ब्रह्मचारी दयानन्द (Kahani)
  • विश्वशान्ति में भारत की भूमिका
  • Quotation
  • दूरदर्शिता भी उतनी ही आवश्यक (Kahani)
  • परिवर्तन की अदृश्य किन्तु अद्भुत प्रक्रिया
  • Quotation
  • आगन्तुक ने उनका हाथ पकड़ा (Kahani)
  • दिव्य सम्भावना सुनिश्चित है।
  • गूँज उठी हैं सभी दिशाएं - जन जागरण के उद्घोष से राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को अक्षुण्ण बनाए रखने का संकल्प
  • अपनों से अपनी बात - एक लाख प्रज्ञा परिवारों की स्थापना
  • गुरुदेव प्रणीत अध्यात्म विद्या के अमूल्य ग्रन्थरत्न
  • “नवयुग आगमन”
  • नवयुग आगमन (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj