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Magazine - Year 1987 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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खतरा इतना गम्भीर नहीं है?

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First 29 31 Last
विश्वभर में उत्थान-पतन की विग्रह- सामंजस्य की परिस्थितियाँ अपने-अपने प्रकार की चल रही हैं। अपने-अपने ढंग से अपनी-अपनी समझबूझ के अनुसार कदम उठा रहना हैं। फलतः समझदारी नफे में रह रही है और ना-समझी का दंड उन समुदायों और व्यक्तियों को सहन करना पड़ रहा है। पर कहीं भी स्थिति ऐसी नहीं है जिसे निश्चिंतता और प्रसन्नता से भरी हुई कहा जा सके। उद्वेगों का ज्वर महामारी की तरह हर क्षेत्र में फैला हुआ है।

इनके समाधान में भारत परोक्ष भूमिकाएँ सम्पन्न करेगा। इसके लिए उसे इन्हीं दिनों अतिरिक्त दैवी बल उपलब्ध हुआ है। साधारणतया पड़ौसी ही एक दूसरे के साथ आदान-प्रदान करते हैं। और लाभ-हानि पहुँचाते उठते गिरते हैं, पर आत्मबल के सम्मुख मीलों की दूरी कोई दूरी नहीं। सूर्य का प्रकाश देखते-देखते अपने प्रभाव क्षेत्र में आलोक बखेर देता है। इसी प्रकार अपना देश विश्वव्यापी समझदारी को प्रभावित एवं परिवर्तित होने के लिए बाधित भी करेगा। जहाँ उद्दंडता चरम सीमा पर है वहाँ प्रतिबन्ध खड़े होंगे और जहाँ सन्मार्ग पर चला जा रहा है वहाँ सफलता भरे प्रोत्साहन मिलेंगे। अगले दिनों यही होने वाला है। यही होकर रहेगा।

इन दिनों सबसे बड़ी विश्व विभीषिका तृतीय युद्ध की है। कई देशों ने परमाणु बम बना लिये हैं और उनके जखीरे जमा कर लिये हैं। सभी इस तैयारी में हैं कि अन्य विरोधियों का सर्वनाश करके संसार भर पर एकाकी राज्य करेंगे। संसार भर की सम्पदा पर उनका स्वामित्व होगा। बचे खुचे लोग उन्हीं के पराश्रित रहेंगे। जिस प्रकार रहने और करने के लिए उनसे कहा जायगा उसी प्रकार वे करेंगे। करने के लिए बाधित होंगे। स्वप्न बहुत सुनहरे हैं, पर वे कभी भी सार्थक न हो सकेंगे। प्रतिद्वन्दी चुपचाप यह सब सहन करते न रहेंगे। जापान की बात दूसरी थी। तब एक देश के पास ही शक्ति थी, दूसरे सभी असहाय थे। पर अब ऐसी बात नहीं है। अब प्रायः एक दर्जर देश अणुशक्ति से सम्पन्न हैं। प्रतिशोध की पूरी-पूरी संभावना है। हर आक्रामक इस बात से डरता है कि बदले में जो प्रहार होंगे, उससे बच सकना अपने लिए भी किसी तरह संभव न होगा। लम्बी दूरी तक मार करने वाले प्रक्षेपास्त्र अब अनेकों के पास हैं, वे प्रेरित भूमि से चलकर निर्बाध रूप से गन्तव्य स्थान पर पहुँच सकते हैं और कहर बरसा सकते हैं। आकाश युद्ध की, जल युद्ध की भी तैयारियाँ हो रही हैं। पर समझ लिया जाना चाहिए कि उनकी समानान्तर प्रतिकृतियाँ विरोधी देशों के साथ भी किसी न किसी तरह पहुँचती रहती हैं और उस आधार पर निष्कर्ष यही निकलता है कि वर्तमान परिस्थितियों में युद्ध आरंभ तो कोई भी कर सकता है पर प्रतिशोध की तैयारियों को देखते हुए वह जीत नहीं सकता। हारने के लिए लड़ना कौन चाहेगा?

युद्ध आयुधों को कुँठित करने और उनकी क्षमता को नष्ट करने के लिए दैवी शक्तियाँ पीछे लगी हुई हैं। स्काईलैब से लेकर चैलेन्जर की एक श्रृंखला मुँह उठाते ही धूल चाटते रह गई है। कितने ही उपग्रह भटक गये हैं। सतर्कता में कमी नहीं देखी जा रही है, पर जब पासे ही उलटे पड़ रहे हों तो कोई क्या करे? यह चेतावनी रूस को भी मिल चुकी है, उसे भी नये कारखाने खोलते समय हजार बार सोचना पड़ेगा कि अपनी बोई फसल अपने को ही न काटने लगे। जिन देशों में औद्योगिक दृष्टि से इस तकनीकी को अपने देश में लगाया है वे भी अणु भण्डार बढ़ाने से पूर्व यह अनुभव कर रहे हैं कि इस शेर को जाल में जकड़ कर पिंजड़े में ठूँस देना तो उतना कठिन नहीं है जितना कि उसका पालना और सरकस में उपयुक्त कौशल दिखाने के लिए प्रशिक्षित करना।

महायुद्ध में काम आने वाले अणु बम, रासायनिक गैसें, मृत्यु किरणें विनिर्मित तो तेजी से हो रही हैं, पर उदीयमान दैवी शक्ति के हस्तक्षेप पर फलों में से कोई भी अभीष्ट प्रयोजन पूरा कर सकने की स्थिति तक न पहुँच पायेंगे।

अन्धड़ के भयंकर दबाव को न सह सकेंगे और पकने से पूर्व ही धरती पर आ गिरेंगे। चलाने वाले दिग्भ्रान्त होंगे और वह करने लगेंगे जिसे करने की इच्छा कभी नहीं की थी। योजना कभी नहीं बनाई थी। इस विपन्नता के साथ अग्रगामी के हाथों असफलता ही लगेगी।

जिनके मन में बड़े-बड़े हौंसले हैं। जिनके पास रणनीति की बड़ी-बड़ी योजनायें हैं, वे सभी धरी रह जायेंगी और धूलि चाटेंगी। युद्ध आरम्भ होने का अर्थ दो शक्तियों को आपस में निपटना नहीं है, वरन् यह है कि पक्ष-विपक्ष में से किसी को भी विजय न मिले। दोनों ही पराजय के गर्त में गिरें। यह स्थिति चाहते हुए भी लोग बरत न सकेंगे। कहावत है कि “बिगाड़ने वाले से बनाने वाला बड़ा हैं”-”मारने वाले से बचाने वाला बड़ा है।” इसका प्रमाण बिल्ली के बच्चों को जलते आवे में से जीवित निकलने के रूप में सामने आ चुका है। महाभारत में गज घंट के नीचे माईल पक्षी के अण्डे बेच जाने की कथा भी प्रसिद्ध है। प्रहलाद को मार डालने के कितने ही प्रयत्न किये गये थे, पर उनमें से एक भी सफल नहीं हुआ। मानवी सत्ता और सभ्यता को मटियामेट करके रख देने वाले मनसूबे चरितार्थ न हो सकेंगे, उन्हें अपने प्रयासों की व्यर्थता स्वीकार करनी पड़ेगी। इस प्रकार गर्व चूर करने में वही शक्ति काम करेगी जिसने वृत्तासुर, भस्मासुर, हिरण्यकश्यप, रक्तबीज जैसे दुराधर्षों को नीचा दिखाया था।

जिनके मन में बड़े-बड़े हौंसले हैं। जिनके पास रणनीति की बड़ी-बड़ी योजनायें हैं, वे सभी धरी रह जायेंगी और धूलि चाटेंगी। युद्ध आरम्भ होने का अर्थ दो शक्तियों को आपस में निपटना नहीं है, वरन् यह है कि पक्ष-विपक्ष में से किसी को भी विजय न मिले। दोनों ही पराजय के गर्त में गिरें। यह स्थिति चाहते हुए भी लोग बरत न सकेंगे। कहावत है कि “बिगाड़ने वाले से बनाने वाला बड़ा हैं”-”मारने वाले से बचाने वाला बड़ा है।” इसका प्रमाण बिल्ली के बच्चों को जलते आवें में से जीवित निकलने के रूप में सामने आ चुका है। महाभारत में गज घंट के नीचे माईल पक्षी के अण्डे बेच जाने की कथा भी प्रसिद्ध है। प्रहलाद को मार डालने के कितने ही प्रयत्न किये गये थे, पर उनमें से एक भी सफल नहीं हुआ। मानवी सत्ता और सभ्यता को मटियामेट करके रख देने वाले मनसूबे चरितार्थ न हो सकेंगे, उन्हें अपने प्रयासों की व्यर्थता स्वीकार करनी पड़ेगी। इस प्रकार गर्व चूर करने में वही शक्ति काम करेगी जिसने वृत्तासुर, भस्मासुर, हिरण्यकश्यप, रक्तबीज जैसे दुराधर्षों को नीचा दिखाया था।

महायुद्ध के स्थान पर उसका छुटपुट स्वरूप आतंकवादी लुक-छुप आक्रमणों के रूप में दृष्टिगोचर होता रहेगा। यह नई पद्धति इस युग की नई देन होगी। आमने सामने की लड़ाई शूरवीरों को शोभा देती थी, पर आज जब नीति मर्यादा का कोई प्रश्न नहीं रहा तो “मारो और भाग जाओ” की छापामार नीति ही काम देगी। गुप्त प्रयास शासकों के तख्ते उलटने के होते रहेंगे। महलों में क्रान्तियाँ होने की कई घटनाएँ सुनने के होते रहेंगे। महलों में क्रान्तियाँ होने की कई घटनाएँ सुनने को मिलेंगी। रक्तपात होता रहेगा और असुरक्षा का अराजकता का माहौल बना रहेगा। यही है इस सदी का अन्त। इन उपद्रवों का सामना करने के लिए तो हमें तैयार रहना ही चाहिए, किन्तु यह भय मन में से निकाल ही देना चाहिए कि सर्वनाशी तृतीय महायुद्ध मानवी अस्तित्व को मिटाकर रहेगा। यदि हुआ तो इक्कीसवीं सदी का फलता फूलता स्वरूप देखने के लिए कौन बच रहेगा? अगले 13 वर्षों के संबंध में हमें इतना ही समझ लेना चाहिए कि घटाएँ उठेंगी, घुमड़ेंगी और गरजेंगी तो बहुत पर इतनी वर्षा होने के कोई आसार नहीं हैं जिसमें सर्वत्र प्रलय के भयानक दृश्य दीखने लगें।

First 29 31 Last


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Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
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Type: TEXT
Language: HINDI
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