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Magazine - Year 1987 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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नवयुग की चार आधार शिलाएँ

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First 40 42 Last
जब रूस में राज-क्रान्ति हुई उन दिनों लेनिन जेल में थे। फाटक खुले तो उनने आश्चर्य से पूछा कि क्या सचमुच क्रान्ति सफल हो गई? भारतीय काँग्रेस के मूर्धन्य नेता व्यक्तिगत वार्ता में यही कहते थे कि हैं अपनी जिन्दगी कारागारों ही बितानी पड़ेगी। स्वराज्य देखने का दिन शायद नई पीढ़ी को मिले, पर उनका अनुमान गलत निकला। वे आशा से बहुत पहले ही छूट गये और शासन सत्ता का सूत्र संचालन करने लगे।

आज की स्थिति को देखते हुए इक्कीसवीं सदी में होने वाले महान परिवर्तनों पर सहसा विश्वास नहीं होता, तो भी यह निश्चित है कि भवितव्यता होकर रहेगी। तपते ग्रीष्म में कौन सोचता है कि अगले ही सप्ताह मानसून उठेंगे ओर तपती धरती को हरितिमा से ढक देंगे। कड़कड़ाती सर्दी में पतझड़ होता है और पेड़ ठूँठ रह जाते हैं। उस स्थिति को देखते हुए यह अनुमान कैसे लगे कि कुछ ही सप्ताह में खिलखिलाते बसंत की शोभा पूरे माहौल को बदल देगी।

अर्जुन अपनी छोटी सेना को देखकर हारने की बात सोचता था। सामने वाले दिग्गज सेनापतियों को कौशल और साधन सम्पन्न सेना का जौहर भी विदित था। उसे लगता था कि दुर्योधन को लड़ाई के मैदान में हराना कठिन है। इसलिए वह लड़ने के कतराता था। कृष्ण ने आश्वासन दिया कि शत्रु पक्ष को मैंने पहले से ही मार दिया है। वे तो जीवित लाश भर हैं। उन्हें जीत कर श्रेय प्राप्त करो। वस्तुस्थिति का भान होने पर वह लड़ाई में उतरा और विजयी बन कर लौटा।

दिन दिनों की स्थिति और अगली शताब्दी की संभावना में इतना अधिक अन्तर रहेगा कि सामान्य बुद्धि के लिए उस संभावना को सही मानने में अविश्वास हो सकता है, पर जो अदृश्य को देखते हैं वे देखते है कि ढाँचा खड़ा हो गया है, उसे सुसज्जित करने भर की देर है। माता के उदर में परिपक्व हुआ भ्रूण यों प्रत्यक्ष नहीं दीखता, पर यह निश्चित है कि कुछ ही दिनों में प्रसव होगा और नवजात शिशु गोदियों में खेलेगा। भावी समय का परिवर्तन इक्कीसवीं सदी का माहौल अब की अपेक्षा होगा तो अत्यधिक भिन्नता लिए हुए पर अन्दर ही अन्दर जो एक रहा है, उसे देखते हुए उन्हें कल्पना नहीं सुनिश्चित संभावना ही मानना चाहिए।

इक्कीसवीं सदी के साथ अवतरित होने वाला नवयुग अपनी विशेषताओं के आधार पर यदि प्रज्ञायुग कहा जाय तो उसमें किसी प्रकार की अत्युक्ति नहीं मानी जानी चाहिए। आज की अगणित विभीषिकाओं और समस्याओं का एक मात्र कारण ‘आस्था संकट है। लोगों ने आदर्शवादी आस्था, मान्यताओं का परित्याग कर दिया हैं पशु प्रवृत्तियों को अपना लिया है। इसका निराकरण किसी लोभ या भय से नहीं हो सकता। अन्तराल में प्रज्ञा उभरेगी, तभी दूरदर्शी विवेकशीलता के अनुरूप चिन्तन प्रवाह बनेगा। इसी के साथ चरित्र की उत्कृष्टता और व्यवहार की सज्जनता का प्रमाण परिचय मिलता है। व्यक्ति बदलेगा और समाज का स्वरूप भी ऐसा गंदला न रहेगा जैसा कि इन दिनों हैं जो परिस्थितियाँ इन दिनों कठोर बनी हुई हैं और विपन्न दीखती हैं वे तात्विक आधार बदलने पर अपना चोला साँप की केंचुली की भाँति बदल देंगी।

इक्कीसवीं सदी में पदार्थजन्य सुविधा साधनों में भारी उलट-पुलट न होगी। इन परिवर्तनों को दो प्रत्यक्ष रूपों में देखा जा सकेगा कि लोगों ने सादगी अपना ली। औसत नागरिक का जीवन जीने के लिए सुसम्पन्न भी स्वेच्छा या विवशता से बाधित होकर उस पद्धति को अपनाने लगें। दूसरा परिवर्तन यह दीख पड़ेगा कि देहातों से शहरों की ओर आने वाली भीड़ रुक जायगी। बड़े नगरों का विकेन्द्रीकरण होगा और वे कस्बों में बिखर जायेंगे। बड़े गाँव ही साधन सम्पन्न कस्बे बनेंगे और समीपवर्ती छोटे गाँवों को अपना ही मुहल्ला मानकर उनका परिपोषण अभिवर्धन करने लगेंगे। तब कृषि, व्यवसाय, गृह उद्योग, परिवहन वितरण के बीच ऐसा सुन्दर तालमेल होगा कि किसी को असुविधा हो किसी को खाली न रहना पड़े कोई बेरोजगारी का कष्ट न सहे।

इक्कीसवीं सदी के मौलिक आधार चार होंगे (1) एकता (2) समता (3) न्याय व्यवस्था (4) स्वाभाविक सुसंस्कारिता। एकता में राष्ट्रों का एकीकरण आता है। विभाजन की रेखाओं में बँटे रहते हैं। शोषण के कुचक्र चलते हैं और दुर्बलों को शोषित होना पड़ता है। सीमाओं को घटाने बढ़ाने के कारण ही युद्ध छिड़ते है जिनमें धन-जन की अपार क्षति होती है। जब एकीकृत विश्व राष्ट्र की स्थापना होगी तो उस के जिले डिवीजन बन कर देशों को रहेगी और आवश्यकतानुसार उनका उपयोग होता रहेगा। प्रांतों का विभाजन भौगोलिक स्थिति के अनुरूप नये सिरे से होगा। युद्ध सेनापति नहीं लड़ेंगे, अपितु न्यायालयों के फैसले मान्यता प्राप्त करेंगे। विश्व संविधान में मानवी एकता एकरूपता का न्याय और विवेक का प्रमुख प्रावधान रहेगा। जहाँ घिच-पिच है वहाँ की आबादी छितर-छितरे क्षेत्रों में बसा दी जायेगी। पारिवारिक सिद्धान्तों के अनुरूप प्रचलन बनेंगे। विश्व एक परिवार होकर रहेगा।

दूसरा तथ्य मान्यता प्राप्त करेगा वह होगा-समस्ता। जाति वंश के आधार पर कोई ऊँचा नीचा नहीं माना जायगा। नर और नारी के बीच कोई ऐसी विभाजन रेखा न रहेगी जिसके आधार प किसी के वरिष्ठ और किसी को कनिष्ठ ठहराया जा सके। जाति और लिंग के आधार पर प्रतिष्ठित और प्रचलित भिन्नता की मान्यता का एक प्रकार समापन हो जायगा। गाड़ी के दो पहियों की तरह दोनोँ वर्ग समान निष्ठा और योग्यता से परिवार से परिवार एवं समाज का सुसंचालन करेंगे।

भाषायी एकता की सर्वत्र आवश्यकता अनुभव की जायगी। अनेक भाषाएँ रहने से लोगों के बीच निरर्थक ही भेदभाव पैदा होता है और ज्ञान के विस्तार का अनुवाद मुद्रण की भिन्नता से भारी अवरोध पड़ता है। भाषायी एकता होने पर संसार भर के लोग एक दूसरे के अति निकट होंगे और विचारों का भावनाओं का उन्मुक्त आदान-प्रदान करेंगे। अनेकों सुविधाओं को देखते हुए विचारशील जनमानस भाषाई एकता को सहज स्वीकार करेगा और ज्ञान विस्तार क्षेत्र में इसका असाधारण लाभ अनुभव करेगा।

जाति लिंग और भाषा की भिन्नता की हानियों की तरह ही आर्थिक विषमता भी है। धन का स्वामित्व राष्ट्र का रहे। हर किसी को योग्यतानुसार और आवश्यकतानुरूप लेने की प्रथा हो तो न कोई गरीब रहे और न अमीर। गरीबी और अमीरी दानोँ समाज में अनेकानेक विकृतियाँ उत्पन्न करती हैं। जब उनका आधार कट जायगा तो उसका स्वरूप साम्यवाद से मिलता-जुलता होगा।

तीसरा पक्ष है व्यवस्था का प्रचलन एवं न्याय कानून का। इसका नवीन निर्धारण उपयोगिता एवं यथार्थता की कसौटी पर कसा जायगा। कानून और प्रचलन की भिन्नता भी मनुष्य जाति के पिछड़ेपन का अहंकारी अधिपत्य का एक बहुत बड़ा कारण है। सरकारी व्यवस्था के अंतर्गत जब व्यवस्था चल पड़ेगी तो नौकर मालिक के समर्थ दुर्बल के बीच जो आये दिन टकराव होते हैं उनका काई कारण शेष न रहेगा।

इक्कीसवीं सदी का चौथा आधार होगा-सुसंस्कारिता। सुसंस्कारिता अर्थात् कर्तव्यपालन, मर्यादाओं का अनुशासन सभी धर्म सम्प्रदायों का अनुशासन सभी धर्म सम्प्रदायों में से उस नवनीत को अपनाया जाना जो न्याय विवेक एवं औचित्य पर आधारित है। पूजा परक कर्मकाण्ड कोई किसी रूप में अपनाये। यह रसोई या लिवास की तरह अपनी रुचि का विषय होगा पर अपने को सत्य का ठेकेदार और दूसरों को झूठा बेईमान कहने की छूट किसी को न होगी। एक ही बगीचे में कई रंग के फूल फलों की तरह सभी धर्म सम्प्रदाय एक दूसरे के पूरक बन कर रहेंगे और परस्पर सम्मान करने में भी कमी न रहने देंगे।

यही हैं वे चार सूत्र जिनके चार पाठों पर नवयुग का राज्य सिंहासन खड़ा हुआ है। इन्हीं चार दीवारों को मिलाकर नवयुग का विशाल भवन खड़ा होगा।

First 40 42 Last


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Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
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Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
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