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Magazine - Year 1987 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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अपनों से अपनी बात - एक लाख प्रज्ञा परिवारों की स्थापना

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पूर्णाहुति वर्ष की कालावधि में महान लक्ष्यों की पूर्ति के अवसर पर महाकाल की तीन चुनौतियाँ स्वीकार की गयी। उनकी पूर्ति के लिए समूचा गायत्री परिवार समुद्र मन्थन की तरह जुट पड़ा। विश्वास किया जा सकता है कि इसके फलस्वरूप पौराणिक समुद्र मन्थन से मिले चौदह रत्नों की अपेक्षा कम नहीं कुछ अधिक ही विभूति भण्डार हस्तगत होगा।

1269 के बसंत की बेला में मिशन के सूत्र संचालन की हीरक जयन्ती अखण्ड ज्योति की स्वर्ण जयन्ती, राष्ट्रीय कुंडलिनी जागरण की त्रिवर्षीय त्रिवेणी इन सबका एक साथ मिलन ऐसा है, जिसे त्रिवर्गों का, तीन लोकों का, तीन देवताओं का एक साथ मिलन कह सकते है। उसके सत्परिणाम जिस रूप में सामने आने वाले हैं उसे मनुष्य देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग के अवतरण रूप में देखा जा सकेगा। वह समय अब दूर नहीं है। इक्कीसवीं सदी इसी नियति की भवितव्यता की सुनिश्चित बेला है।

हममें से कितने ही लोग उस असंभव दीखने वाले निर्धारण को अपनी आँखों से ही मूर्तिमान होते देखेंगे। इन दिनों व्यवधान और विग्रहों के पहाड़ सामने हैं। संकटों के घटाटोप सामने हैं, पर वे त्रिविधि अवतरणों की संयुक्त शक्ति के आगे टिकेंगे नहीं। यह सघन तमिस्रा देर तक नहीं टिकेगी। नवयुग का उदीयमान अरुणोदय इस ऊषाकाल का ब्रह्ममुहूर्त बीतते ही प्रकट होगा। हम अंधकार का निविड़ निशा का साम्राज्य समाप्त होते हुए देखेंगे। साथ ही उगते दिनमान का ज्योतिर्मय आलोक वितरण भी।

प्रज्ञा परिवार एक सम्मिलित समुच्चय है। केन्द्र से गतिविधियाँ चलती है, उसी को अग्रगामी बनाने के लिए परिवार का प्रत्येक घटक अपने-अपने ढंग से अग्रगामी होता है। तीन लाख व्यक्तियों को तीन-तीन में विभाजन कर देने से एक लाख संख्या बनती है। इतने सदस्य तो अपनी पत्रिकाओं के ही हैं। वे सभी यदि इस निश्चय को अपना लें कि हम सबको तीन-तीन की टोली में गठित होना है तो इतने भर में वह उद्देश्य पूरा हो जाता है, जिसे प्रस्तुत त्रिविधि संकल्पों का मेरुदण्ड कहा जा सकता है।

सभी जानते है कि संगठन में कितनी शक्ति होती है। तिनकों के मिलने से हाथी बाँधने वाला मोटा रस्सा बनता है। धागे मिलने से मजबूत फर्श कालीन बनते है। सीकों का सम्मिलित स्वरूप बंधी बुहारी बनता है और सारे घर आँगन को झाड़ बुहार कर साफ करता है। मेले ठेलों में बिखरी भीड़ धक्के खाती और जेब कटाती है। पर वही जन समुदाय जब सैनिकों के रूप में संगठित, प्रशिक्षित और कटिबद्ध हो जाता है, तो सुरक्षा और व्यवस्था की महती आवश्यकता पूरा करता हैं नवनिर्माण अपने युग का अतिमहत्वपूर्ण ऐतिहासिक कार्य है। इसे सम्पन्न करने के लिए भावनाशीलों का उद्देश्य गठन एक छत्र के नीचे होना चाहिए। प्रज्ञा परिवार इस बार ऐसी ही छोटी-छोटी इकाइयों के रूप में अपनी समवेत स्थिति प्रकट करने जा रहा है। इसे बड़ा कदम माना जाना चाहिए और आशा की जानी चाहिए कि इस आधार पर व्यक्तित्वों की प्रखरता प्रकट होगी और समाज के नव निर्माण की प्रक्रिया द्रुतगति से आगे बढ़ चलेगी।

व्यक्तिगत चिन्तन चरित्र और व्यवहार में आदर्शवादिता का समन्वय होना चाहिए। जन-जन की प्रमाणिकता प्रखरता, प्रतिभा निखरनी चाहिए। समाज में सहकारिता, उदारता और एकता समता की रीति-नीति चलनी चाहिए। सर्वत्र समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी का माहौल बनना चाहिए। सत्प्रवृत्तियों का सम्वर्धन और दुष्प्रवृत्तियों का उन्मूलन समग्र तत्परता और तन्मयता के साथ होना चाहिए। व्यक्ति को उत्कृष्ट और समाज को समर्थ बनाना चाहिए।

इस संकल्प को कार्यान्वित होने के लिए तीन-तीन सदस्यों वाले प्रज्ञा परिवारों का आकार में छोटा किन्तु व्यवहार में तेजस्वी गठन अविलम्ब अग्रसर होना चाहिए। उन संगठनों को एक छोटा पंचसूत्री कार्यक्रम क्रियान्वित करने के लिए अविलम्ब जुट जाना चाहिए। (1) झोला पुस्तकालय के माध्यम से जन-जन तक युग चेतना को हृदयंगम कराया जाना। (2) जन्मदिवसोत्सव के माध्यम से भाव भरे वातावरण में परिवार निर्माण को नये सिरे से नया प्रयत्न किया जाना। (3) स्लाइड प्रोजेक्टर के माध्यम से मिनीसिनेमा की आवश्यकता पूरी किया जाना (4) सुगम संगीत के उपकरण एकत्रित करके प्रशिक्षित भजन मंडलियों द्वारा लोक शिक्षण का आकर्षक आधार खड़ा किया जाना (5) दीवारों पर आदर्श वाक्य लिख कर राहगीरों को युग चेतना का आभास कराया जाना। यह पाँचों आधार ऐसे हैं जिनकी साज सज्जा कुछ सौ रुपयों में एकत्रित की जा सकती हैं इस राशि का प्रबंध शाखा सदस्य आपस में मिल-जुल-कर या मित्र मंडली की सहायता से कर सकते हैं। भावना और लगन जीवित हो तो नित्य का नियमित समयदान और अंशदान भी बिना किसी अड़चन के चल सकता है। आलस्य, प्रमाद ओर अनुदार कृपणता घेरे हुए हो तो बात दूसरी है, अन्यथा पेट प्रजनन की व्यस्तता इतनी सघन नहीं हो सकती कि उसमें ही हर घड़ी व्यस्त और मस्त रहा जाये।

प्रसन्नता की बात है कि पिछले दिनों जिस उत्साह से एक लाख कुण्डों के यज्ञ की योजना द्रुतगति से चली है, जिस गति से शान्ति-कुंज का नालन्दा विश्वविद्यालय शिक्षार्थियों से ठूंसा रहा है और एक लाख प्रशिक्षित कार्यकर्ता तैयार करने का लक्ष्य पूरा होने जा रहा है, उसी उत्साह से यह तीसरा संकल्प एक लाख प्रज्ञा परिवार शाखाएँ संगठित करने के निर्धारण में बीजारोपण से आगे बढ़ कर हरी-भरी फसल के रूप में लहलहाने लग गया है। उस उद्यान का अभी शुभारम्भ श्री गणेश ही हुआ है, पर वह समय दूर नहीं जब इसके हर पौधे पर फूल लदेंगे और बसंत की शोभा सुषमा से हर क्षेत्र खिलखिलाने लगेगा।

इस तृतीय निर्धारण की घोषणा हुए बहुत दिन नहीं हुए। शंखनाद अभी ही बजा है। निमंत्रण भेजे बहुत समय नहीं हुआ पर बिगुल बजते ही समर्पित सैनिक कटिबद्ध होकर अपनी-अपनी पंक्तियों में आ खड़े हुए हैं और प्रयाण पथ पर बढ़ चलने के लिए मचल रहे हैं। प्राणवान प्रज्ञापुत्रों को टोलियाँ यह योजना बना रही हैं कि उनका प्रभाव क्षेत्र कितना बड़ा है। और उसमें कौन-कौन व्यक्ति मिशन से अवगत है उसके साथ अधिक घनिष्ठता के साथ जुड़ सकने की मनःस्थिति में है। इस सूची की भूल चूक का पर्यवेक्षण किया जा रहा है। जो नाम छूट गये हैं वे जोड़े जा रहे है। जिनसे कुछ आशा नहीं है जो बातूनी तो हैं, पर कार्य करने का समय आते ही छुई मुई की तरह मुरझा जाते है। उनके नाम भारी मन से हटाये जा रहे हैं। फिर भी यह आशा तो की ही जा रही है। कि उनसे मिला और कहा जायेगा। शाखा में संगठित सम्मिलित न हों तो कम से कम इतना तो करें ही कि समर्थन देते रहे, परामर्श सहयोग भर देते रहे, परामर्श सहयोग भर रहें। ऐसी सूचियाँ सभी स्वाध्याय मंडलों ने प्रज्ञा पीठों ने समर्थ शाखाओं ने बना ली हैं और उन नामों वाले व्यक्तियों के साथ संपर्क साधने की तिथि निर्धारण कर ली है। किस समय कहाँ होते चलना और किस मार्ग से कब तक घर वापस लौटना यह सुनिश्चित योजना बन गई है। समर्थों ने संकल्प किया है कि जब तक वे 14 शाखाएँ न बना लेंगे तब तक हजामत न बनायेंगे या शक्कर न खायेंगे। ऐसे अनुबंधों से संकल्प में प्राण भर जाते है और निश्चय पूरे होकर रहते है।

अभी-अभी जहाँ यज्ञ आयोजन होकर चुके हैं उनका प्रचार के सिलसिले में कई गाँवों के साथ-कितने ही व्यक्तियों के साथ नया संबंध जुड़ा हैं जहाँ आयोजन होने जा रहे है वहाँ अधिक लोगों को आमंत्रित करने की भाग दौड़ चल रही है। इसके साथ ही यह निश्चय भी लिया गया है कि पुराने परिचितों और नये संपर्कों में जो भी इस योग्य दिखे, उन्हें तीन की टोली में प्रज्ञा परिवार की श्रृंखला में जोड़ दिया जाये। साथ ही उन्हें प्रचार के लिए प्रशिक्षित करने और आवश्यक उपकरणों की व्यवस्था बनाने का भी क्रम चल पड़ा है। ऐसे व्यक्तियों को शान्ति-कुंज के प्रशिक्षण में भी भेजा जा रहा है। ताकि वे नये उत्तरदायित्व को भली प्रकार निबाह सकें।

First 53 55 Last


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Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
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