Magazine - Year 1988 - Version 2
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Language: HINDI
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विचित्र विलक्षण यह सृष्टि
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सब कुछ मानते हुए भी कि यहाँ सब कुछ सुव्यवस्थित-सुनियोजित है, इस दृश्य जगत में कई घटनाक्रम ऐसे देखने को मिलते है, जिनका न कोई वैज्ञानिक समाधान मिल पाता है, न जिज्ञासा की तृप्ति कर सकने वाला ठोस आधार ही दीख पड़ता है। वैचित्र्य विविधता इन घटनाक्रमों के रूप में ऐसी प्रतीत होती है मानो किसी दार्शनिक व्याख्यान के बीच में किसी ने मनोरंजन करने के लिए वातावरण को हल्का बनाने के लिए कोई मजाक कर दिया हो।
अविज्ञात के रूप में घोषित ये विचित्रताएं किसी शाश्वत सत्य की ओर ले जाने वाली गुफा का द्वार खोलती है या सृष्टा की बहुविधि व्यवस्था की द्योतक है, कुछ समय में नहीं आता। पर उनका अस्तित्व यह तो प्रमाणित करता है कि ऐसा भी कुछ है जो विकसित विज्ञान अभी तक जान नहीं पाया है। आईये। कुछ ऐसी ही पिण्ड ब्रह्माण्ड से जुड़ी विलक्षणताओं की चर्चा कर उस सृजेता को नमन करे, जिसने यह बहुरंगी व्यवस्था रची, हमें ऊहापोह में डाला ताकि जिज्ञासुवृत्ति जिन्दा रहे।
चीन के हुन्नात प्रान्त के याँगचुन नामक एक बचे ने तब शोहरत हासिल की जब यह पता चला कि उसे दिन में कुछ नहीं दिखाई देता, किन्तु रात्रि होते ही वह सब काम ऐसे कर लेता है जैसे उसे सब कुछ दिखाई दे रहा हो। चिकित्सकों ने सभी तरह से खोज पड़ताल की पर वे किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके। एक विचित्र बात यह है कि पूर्ण अंधकार की स्थिति में तो उल्लू को भी बिल्कुल दिखाई नहीं देता, उसे भी थोड़ा प्रकाश चाहिए। पर याँगचुन तो इसमें भी अपवाद है इसकी उपमा मात्र इंफ्रारेड सेंसर्स से की जा सकती है जिनसे रात्रि में सैनिकों को दिखाई दे इसलिए आधुनिकतम टैंकों व स्टेनगनों को युक्त किया जाता है।
फेफड़ों की “आकुपेशनल” बीमारियों में (साँस द्वारा औद्योगिक प्रदूषण युक्त कण फेफड़ों में जमा होना) फारमर्स लंग्स, ब्राउन लंग, मशरुम लंग इत्यादि तो प्रसिद्ध है ही, सिलिकोसिस (धूल, रेत के कणों के कारण) ब्लैक लंग डीसिज (कोलडस्ट के कारण) एवं बेरिलियोसिस (लैम्प इंडस्ट्री में प्रयुक्त बेटीलियम केकारण) भी ऐसा रोग है, जिनमें फेफड़ों की कार्यक्षमता घटती चली जाती है व एक्सरे में सफेद धब्बों या धूलिकणों गुच्छकों के अतिरिक्त कुछ नहीं दिखाई देता। मंदसौर जिले, जहाँ चाक पेंसिल बनाने का काम होता है, इनमें धूलिकण, जमकर पंद्रह बीस वर्षों में पूरे फेफड़ों में जम जाते हैं व एक्सरे में हृदय के दोनों ओर स्लेट पट्टी दिखाई देती है। तीस वर्ष से अधिक इनमें से बिरले ही जीवित रह पाते हैं।
ऐसी व्याधि जिसमें किसी व्यक्ति को साँस लेने में कठिनाई होती है, आयरन लंग्स (कृत्रिम फेफड़ों या रेस्पायरेटर्स) पर रखा जाता है। इसकी भी एक सीमित अवधि है किन्तु इसमें भी एक महिला लाँरेल निस्वत ने रिकार्ड बनाया है। “ला क्रिसेण्टा” कैलिफोर्निया की यह महिला जिसका जन्म 1912 में हुआ था, 37 वर्ष 58 दिन बेहोशी अर्धमृतक-सी स्थिति में पड़ी रही। अंततः 22 अगस्त 1985 को उनकी मृत्यु हो गयी। ऐसे ही कई मालें ने इच्छा मृत्यु (यूथेनेसिया) का मुद्दा जोरों से उछाला है, क्योंकि संभावना है कि बूढ़ों की व असाध्य रोगियों की संख्या अगले दो दशकों में और बढ़ेगी।
गर्भिणी की मृत्यु के बाद यह माना जाता है कि यथाशीघ्र बच्चे को निकाला जा सके तो वह जीवित रह भी सकेगा। राओनो के वर्जीनिया की एक महिला जिसे मिर्गी का दौरा पड़ने के बाद मृत घोषित कर दिया गया था को मात्र बच्चे की खातिर कृत्रिम श्वांस दी जाती रही। जीवन के कोई चिन्ह माँ में नहीं थे पर बच्चे में थे एवं एक स्वस्थ कन्या ने माँ की मृत्यु (क्लीनिकल डेथ) के 84 दिन बाद 5 जुलाई, 1983 को जन्म लिया, उस कब्रगाह से बाहर आई एवं फिर माँ को दफना दिया गया। पोस्टमार्टम बर्थ का यह अपने आप में एक अद्भुत विलक्षण एवं एकमात्र उदाहरण है।
एक ही परिवार में हर बच्चा एक ही तिथि को हो, वह भी पाँच एक श्रृंखला में - ऐसा अपवाद भरा उदाहरण विश्व में मात्र एक है। इसके होने के अवसर 18 अरब में एक के ही रहते हैं अर्थात् विश्व की आज की जनसंख्या के साढ़े तीन गुना में एक बार। क्लीण्टवुड वर्जीनिया (यू.एस.ए.) के राँल्फ एवं क्रोलीन कमिन्स ने 1952 में कैथेरीन, 1953 में कैरोल को, लार्ल्स को 1956 में क्लाडिया को 1961 में, सेसिलिया को 1966 में जन्म दिया। ये सभी संतानें इन वर्षों में एक ही दिन 20 फरवरी को जन्मीं। ऐसा संयोग और कहीं देखने को नहीं मिलता।
अब तक की जुड़वा सन्तानों के दीर्घायुष्य होने का विश्व रिकार्ड 103 वाँ जन्म दिन मनाकर उत्तरी कैरोलिना अमेरिका की दो बहनों ने तोड़ा है। इन दोनों की 110 के लगभग संतानें हैं।
विचित्रताओं के इन क्रम में अभी और भी कई प्रसंग है। क्या कोई विश्वास करेगा कि 10 औंस यानी कुल मिलकर 283 ग्राम (पावभर से कुछ ज्यादा) वजन का बच्चा परिपक्वावस्था से 6 सप्ताह पूर्व पैदा होकर भी जिन्दा रहे और पैंतालीस वर्ष तक की आयु सुखपूर्वक जी सके। हाँ। ऐसा हुआ है श्रीमती मारियन टेगार्ट जो साउथ शील्ड्स टाउन एण्ड वियर (यू.के.) की रहने वाली थी ने इस पाव भर के माँस के लोथडे को 5 जन, 1938 को जन्म दिया, पर वह जीवित था। लम्बाई इसकी 12 इंच थी। उस समयकोई डॉक्टर भी नजदीक नहीं था न ही दाई। परन्तु एक डॉक्टर ए. शियरर ने उसे एक घण्टे बाद पेन की स्याही भरे वाले ड्रापर से ब्राण्डी, ग्लूकोस व पानी का संमिश्रण पिलाना चालू किया व तीस दिन तक इसी पर जिन्दा रखा। पहली वर्षगाँठ पर उसका वजन था सवा छत किलोग्राम, कोई खास बुरा नहीं। इक्कीसवीं वर्ष गाँठ पर (5/6/91) उसका वजन 48 किलोग्राम रिकार्ड किया गया।
31 मई, 1983 को उसकी अचानक मृत्यु हो गई। किन्तु इतिहास में यही एक ऐसा मेडिकल केस है जिसमें पर्याप्त चिकित्सा सुविधा न मिलने पर भी पावभर का प्रिमेच्योर बच्चा जीवित रहा व एक निर्धारित आयुष्य जीकर गया। जिसका साईं रखवाला हो, उसे मृत्यू आ ही कैसे सकती हैं।
कहते हैं कि शुकदेव जी पूरे बाहर वर्ष तक अपनी माँ के गंभीर में जीवित रहे थे एवं वहीं से अर्जित ज्ञान लेकर जन्मे थे। यह तो पौराणिक मिथक है, किन्तु चिकित्सा विज्ञान का इतिहास बताता है कि सबसे लम्बा समय जिसमें महिला गर्भवती बनी रही व स्वस्थ बच्चे को जन्म देने में सफल हो सकी, 36 माह का है। इसका रिकार्ड 1951 की हिस्टाँयर डेल अकादेमी (फ्राँस) पत्रिका में मिलता है। इनको भी मई 1961 में बर्मा की एक महिला ने मात दे दी जब 54 वर्ष की उम्र में सीजेरियन द्वारा (पेट मार्ग से) उन्होंने 3 पौंड के कैलसीफाईड मृत बच्चे को 25 वर्ष तक अपने गर्भाशय में रखने के बाद जन्म दिया। वस्तुतः उन्होंने तो मादा गैंडे को भी पीछे छोड़ दिया जिसकी गर्भ वहन करने की अवधि 560 दिन होती हैं।
विलक्षणताओं की कोई सीमा नहीं। जितनी इस धरती पर जीवधारियों की संख्या है, उतने ही प्रकार की भिन्नताएं यहाँ विद्यमान है। हमारी जानकारी तो दृश्य तक ही सीमित है एक उदाहरण लें धरित्री के एक वर्ग मील टुकड़े में जितने कीड़े मकोड़े क्षुद्र जीव होते हैं, उतने ही पूरी धरती पर मनुष्य रहते हैं। इससे ही अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारा ज्ञान कितना सीमाबद्ध है। प्रत्यक्ष को छोड़ परोक्ष में ढूंढ़ खोज की जाय तो हमें बहुत कुछ ऐसा हस्तगत हो सकता है जिसे पूर्व की अर्जित ज्ञान संपदा से अधिक महत्वपूर्ण कहा जा सके। विविधता में ही वस्तुतः आनन्द है, उस पर भी ऐसी जो विचित्र हो। मानवी काया से लेकर विराट ब्रह्माण्ड तक तथा क्षुद्र अदृश्य जीवाणुओं से लेकर वृक्ष वनस्पतियों तक ऐसा बहुत कुछ है, जिसे जानना अभी शेष है।