• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • चेतना क्षेत्र की अराजकता
    • VigyapanSuchana
    • अपना भविष्य निर्माता मनुष्य स्वयं
    • संगठन में है - अपार बल
    • देवमानव बनने का आह्वान
    • वस्तुस्थिति को समझा (Kahani)
    • आस्तिकता की सच्ची परिभाषा
    • नित्य निरन्तर परिवर्तनशील सह सृष्टि
    • रंगों से विनिर्मित पिण्ड का पोषण देते हैं- रंग
    • मंत्रशक्ति की प्रभावोत्पादक सामर्थ्य एवं मर्म
    • विचित्र विलक्षण यह सृष्टि
    • प्रबन्ध क्षमता के अवलम्बन से सर्वांगपूर्ण कायाकल्प
    • सभ्यता का श्री गणेश
    • अभिशप्त सुवर्ण सम्पदाओं से जुड़े दुर्योग
    • आत्मानुसंधान एवं पूर्वार्त मनोविज्ञान
    • गायत्री मंत्र में समाहित दर्शन एवं शिक्षण
    • ध्यान योग की वैज्ञानिकता अब प्रयोगशाला में भी प्रमाणित
    • पात्रता की साधना से अभीष्ट सिद्धियाँ
    • अहं का विसर्जन अर्थात् पूर्णता की प्राप्ति
    • व्यावहारिक साधना के चतुर्विध सोपान
    • गतिशीलता ही जीवन है!
    • धर्म का शाश्वत सनातन स्वरूप
    • उज्ज्वल भविष्य को साकार करेगी ऋषिकल्प तपश्चर्या
    • नवयुग की संभावनाएँ - लेखमाला - - प्रतिभा ही नहीं, मनीषा भी जागेगी!
    • नवयुग की सम्भावनाएँ - लेखमाला - गतिचक्र व्यवधानों से रुकेगी नहीं!
    • नवयुग की सम्भावनाएँ - लेखमाला - सृजन की रूपरेखा एवं विस्तार−क्रम
    • अंतः को ज्योतिर्मय कर दें, ऐसे दीप जलाओ साथी
    • व्रतशील ही करेंगे, संगठन का विस्तार
    • लक्ष्य सिद्धि का मर्म
    • लक्ष्य सिद्धि का मर्म (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • चेतना क्षेत्र की अराजकता
    • VigyapanSuchana
    • अपना भविष्य निर्माता मनुष्य स्वयं
    • संगठन में है - अपार बल
    • देवमानव बनने का आह्वान
    • वस्तुस्थिति को समझा (Kahani)
    • आस्तिकता की सच्ची परिभाषा
    • नित्य निरन्तर परिवर्तनशील सह सृष्टि
    • रंगों से विनिर्मित पिण्ड का पोषण देते हैं- रंग
    • मंत्रशक्ति की प्रभावोत्पादक सामर्थ्य एवं मर्म
    • विचित्र विलक्षण यह सृष्टि
    • प्रबन्ध क्षमता के अवलम्बन से सर्वांगपूर्ण कायाकल्प
    • सभ्यता का श्री गणेश
    • अभिशप्त सुवर्ण सम्पदाओं से जुड़े दुर्योग
    • आत्मानुसंधान एवं पूर्वार्त मनोविज्ञान
    • गायत्री मंत्र में समाहित दर्शन एवं शिक्षण
    • ध्यान योग की वैज्ञानिकता अब प्रयोगशाला में भी प्रमाणित
    • पात्रता की साधना से अभीष्ट सिद्धियाँ
    • अहं का विसर्जन अर्थात् पूर्णता की प्राप्ति
    • व्यावहारिक साधना के चतुर्विध सोपान
    • गतिशीलता ही जीवन है!
    • धर्म का शाश्वत सनातन स्वरूप
    • उज्ज्वल भविष्य को साकार करेगी ऋषिकल्प तपश्चर्या
    • नवयुग की संभावनाएँ - लेखमाला - - प्रतिभा ही नहीं, मनीषा भी जागेगी!
    • नवयुग की सम्भावनाएँ - लेखमाला - गतिचक्र व्यवधानों से रुकेगी नहीं!
    • नवयुग की सम्भावनाएँ - लेखमाला - सृजन की रूपरेखा एवं विस्तार−क्रम
    • अंतः को ज्योतिर्मय कर दें, ऐसे दीप जलाओ साथी
    • व्रतशील ही करेंगे, संगठन का विस्तार
    • लक्ष्य सिद्धि का मर्म
    • लक्ष्य सिद्धि का मर्म (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1988 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


आस्तिकता की सच्ची परिभाषा

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 5 7 Last
ईश्वरीय सत्ता में विश्वास कर लेना तथा “ईश्वर” है, इस बात को मान लेना मात्र बौद्धिक आस्था भर है। इसी के आधार पर व्यक्ति को आस्तिक नहीं कहा जा सकता क्योंकि आस्तिकता विश्वास नहीं वरन् एक अनुभूति है। जिस किसी में भी आस्तिकता के भाव आते हैं, जो सच्चा आस्तिक बन जाता है, उसको अपने हृदय पटल पर ईश्वर के दिव्य प्रकाश की अनुभूति होने लगती है। वह विराट् सत्ता को सम्पूर्ण सचराचर जगत में देखता है तथा उस अनुभूति से रोमाँचित हो उठता है। ऐसा व्यक्ति ईश्वर के सतत् सामीप्य की सहज ही अनुभूति करता है तथा प्राणिमात्र में उसे अपनी ही आत्मा के दर्शन होते हैं। उसकी विवेक दृष्टि इतनी अधिक परिष्कृत परिपक्व हो जाती हैं कि जड़ चेतनमय सारे संसार में परमात्म सत्ता ही समाविष्ट दीखती है।

आस्तिकता कोई भावुक नहीं है। किसी प्रतिमा की पूजा अर्चा भर करते रहने से वह प्रयोजन पूरा नहीं होता। इसे अंतरात्मा की गहराई में जमाने के लिए भक्ति-भाव का आश्रय लेना पड़ता है। यह विश्वास मनोकामना पूरी करने या प्रकट होकर दर्शन देने जैसे बचकाने बाल कौतुक के लिए नहीं वरन् सत्प्रवृत्तियों के समन्वित समुच्चय की सघन आस्थाओं के रूप में अपना लिए जाने पर सम्पन्न होता है - ईश्वर के प्रति समर्पण।

सर्वव्यापी परमेश्वर को किसी शरीर विशेष में अवस्थित नहीं देखा जा सकता। वह नियम शक्ति एवं भाव चेतना के रूप में कण कण में समाहित है। परब्रह्म की यथार्थ सत्ता का यही स्वरूप है। अनुशासन और कर्तव्य पालन ही उसे अभीष्ट हैं। समस्त महर्षि नियम अनुशासन के परिपालन से ही गतिशील रहकर अपना अस्तित्व बनाये हुए हैं। यह अनुशासन ईश्वर ने अपने ऊपर भी स्वेच्छा- पूर्वक ओढ़ा हुआ है। इस मान्यता के परिपक्व होते ही “आत्मवत्सर्वभूतेषु” और “वसुधैव कुटुम्बकम्”‘ की श्रद्धा उभरती है। सेवा साधना और परमार्थ परायणता की दिशा में अग्रसर होना पड़ता है। समस्त प्राणियों को अपने ही समान तथा समस्त जगत को परमात्मा का स्वरूप मानने वाले ईश्वर परायण व्यक्ति से कभी भी असंगत, अनुचित अथवा अकरणीय कार्य बन ही नहीं पड़ते।

ईश्वर की सत्ता और महत्ता पर विश्वास करने का अर्थ है- उत्कृष्टता के साथ जुड़ने और सत्परिणामों पर - सद्गति पा -सर्वतोमुखी प्रगति पर विश्वास करना। आदर्शवादिता अपनाने पर इस प्रकार की परिणति सुनिश्चित रहती हैं। किन्तु कभी कभी उसकी उपलब्धि में देर सबेर होती देखी जाती है। ऐसे अवसरों पर ईश्वर विश्वासी विचलित नहीं होते। अपने सन्तुलन और सन्तोष को नष्ट नहीं होने देते। धैर्य पूर्वक प्रतीक्षा करते हैं। और हर स्थिति में अपने आन्तरिक आनन्द एवं विश्वास को बनाये रखते हैं। दिव्य सत्ता के साथ मनुष्य जितनी सघनता के साथ जुड़ेगा उसके अनुशासन अनुबंधों का जितनी ईमानदारी, गहराई के साथ पालन करेगा उतना ही उसका कल्याण होगा। आस्तिक न तो याचना करता है और न अपनी पात्रता से अधिक पाने की अपेक्षा करता हैं। उसकी कामना भावना के रूप में विकसित होती है। भाव संवेदना फलित होती है तो आदर्शों के प्रति आस्थावान बनाती है। तनिक-सा दबाव या प्रलोभन आने पर फिसल जाने से रोकती है। पवित्र अन्तःकरण ईश्वर के अवतरण के मार्ग में आये अवरोध समाप्त कर देता है। दुष्प्रवृत्तियों को हटा देने पर उनका स्थान सत्प्रवृत्तियों का समुच्चय ले लेता है। इस स्थिति के परिपक्व होने पर जो आनन्द आता है, सन्तोष प्राप्त होता है, उल्लास उमगता है, उसे ईश्वर प्राप्ति कहा जा सकता है। यही सच्चा भक्ति भाव, सच्चा धर्म है। ऐसा आस्तिक ही परम तत्व को, अंतिम लक्ष्य को प्राप्त होता है।

First 5 7 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • चेतना क्षेत्र की अराजकता
  • VigyapanSuchana
  • अपना भविष्य निर्माता मनुष्य स्वयं
  • संगठन में है - अपार बल
  • देवमानव बनने का आह्वान
  • वस्तुस्थिति को समझा (Kahani)
  • आस्तिकता की सच्ची परिभाषा
  • नित्य निरन्तर परिवर्तनशील सह सृष्टि
  • रंगों से विनिर्मित पिण्ड का पोषण देते हैं- रंग
  • मंत्रशक्ति की प्रभावोत्पादक सामर्थ्य एवं मर्म
  • विचित्र विलक्षण यह सृष्टि
  • प्रबन्ध क्षमता के अवलम्बन से सर्वांगपूर्ण कायाकल्प
  • सभ्यता का श्री गणेश
  • अभिशप्त सुवर्ण सम्पदाओं से जुड़े दुर्योग
  • आत्मानुसंधान एवं पूर्वार्त मनोविज्ञान
  • गायत्री मंत्र में समाहित दर्शन एवं शिक्षण
  • ध्यान योग की वैज्ञानिकता अब प्रयोगशाला में भी प्रमाणित
  • पात्रता की साधना से अभीष्ट सिद्धियाँ
  • अहं का विसर्जन अर्थात् पूर्णता की प्राप्ति
  • व्यावहारिक साधना के चतुर्विध सोपान
  • गतिशीलता ही जीवन है!
  • धर्म का शाश्वत सनातन स्वरूप
  • उज्ज्वल भविष्य को साकार करेगी ऋषिकल्प तपश्चर्या
  • नवयुग की संभावनाएँ - लेखमाला - - प्रतिभा ही नहीं, मनीषा भी जागेगी!
  • नवयुग की सम्भावनाएँ - लेखमाला - गतिचक्र व्यवधानों से रुकेगी नहीं!
  • नवयुग की सम्भावनाएँ - लेखमाला - सृजन की रूपरेखा एवं विस्तार−क्रम
  • अंतः को ज्योतिर्मय कर दें, ऐसे दीप जलाओ साथी
  • व्रतशील ही करेंगे, संगठन का विस्तार
  • लक्ष्य सिद्धि का मर्म
  • लक्ष्य सिद्धि का मर्म (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj