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Magazine - Year 1988 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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सम्पदा का अनर्थकारी प्रलोभन

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First 17 19 Last
एक साधक ने तंत्र साधना की और अपने गुरु से वह विद्या सीख ली कि नियत नक्षत्र आने पर आकाश से रत्न वर्षा कराई जा सके और विपुल धन सहज ही पाया जा सके। सफलता मिलने के बाद वह ठाट-बाट से रहने लगे।

एक दिन वह साधक वन मार्ग से किसी दूसरे प्रदेश को जा रहा था कि रास्ते में चोरों के समुदाय ने उसे पकड़ लिया और कहा- तुम्हारे वस्त्राभूषण सम्पन्नों के से मालूम पड़ते हैं। जो कुछ पास है उसे तो निकाल कर यहाँ रखो ही साथ ही अपनी दौलत का अता पता बताओ ताकि उसे भी हम लूट कर ला सकें। जब तक इतना काम नहीं हो जाता तब तक तुम्हें पेड़ से बाँध कर रखेंगे और कुछ अतिरिक्त हाथ न लगा तो तुम्हें मार देंगे

साधक बुरी तरह चंगुल में फँस गया। जो पास में था वह उतारकर रख ही दिया पर चोरों को घर भेज कर परिवार की सारी सम्पदा लुटवा लेने की बात गले न उतरी। अतएव उसे एक पेड़ से बाँध दिया गया। समय दिया कि एक सप्ताह के भीतर कुछ न मिला तो फिर उसका अन्त ही कर दिया जायगा।

प्राण जाने की चिन्ता में वह बहुत दुःखी रहने लगा। इतने में एक बात उसकी समझ में आई कि कल ही तो रत्न बरसाने वाला नक्षत्र है। क्यों न एक प्रयोग इन्हीं लोगों के लिए कर दिया जाय और विपुल धन लाभ कराकर अपना छुटकारा पा लिया जाय।

उसने डाकुओं को समीप बुलाया और सारी रहस्य वार्ता कह सुनाई। वह तांत्रिक है। कल वह नक्षत्र है जिसमें मंत्र शक्ति से रत्न बरसाये जा सकते हैं। उसे छोड़ दिया जाय और आवश्यक पूजा करने की छूट दे दी जाय। कल आकाश से रात के समय रत्न बरसेंगे उन्हें वे लोग ले लें। बदले में उसे बंधन मुक्त कर दें। डाकू इस पर सहमत हो गये और उसके बंधन खोल दिये। आवश्यक पूजा अर्चना करने के लिए जो साधन जरूरी थे वे मँगा दिये। साधना सही थी। दूसरे दिन रात को रत्न बरसे, डाकुओं ने उन्हें बटोरा और निहाल हो गये। शर्त के अनुसार उसे छुटकारा भी दे दिया। लूटे गये वस्त्र आभूषण भी लौटा दिये।

साधक ने इस विपत्ति से छुटकारा पाने पर ठंडी साँस ली और आगे के रास्ते पर चल पड़ा। उस डाकू समुदाय का सरगना बहुत चतुर था। उसने साथियों को छोड़कर अकेले उसका पीछा किया। रास्ते में जो और डाकू मिले उन्हें साथ लेता गया। उपर्युक्त निर्जन स्थान देखकर उन लोगों ने साधक को फिर पकड़ लिया और अगली रात फिर रत्न वर्षा करा देने का आदेश दिया। आनाकानी करने पर जान जाने की बात भी स्पष्ट कर दी।

साधक पथिक ने कहा ऐसा नक्षत्र तो एक वर्ष बाद आवेगा तब तक के लिए आप ठहरें। मैं लौटकर उस समय वह लाभ दिला दूँगा। अभी तो मुझे जाने दें आवश्यक काम है।

डाकुओं को उसकी बात पर विश्वास न हुआ और रत्न वर्षा कल न कराने पर जान जाने की बात स्पष्ट करते रहे। उन्हें एक वर्ष बाद नक्षत्र आने की बात पर विश्वास न हुआ। उस कथन को टालने का बहाना मात्र समझा।

निदान दूसरी रात प्रतीक्षा में देखी गई। रत्न वर्षा न करा सकने पर उसकी गरदन काट दी गई।

सिद्धि के चमत्कार में यह जोखिम भी है कि एक का जो काम कर दिया है वही अन्यों के लिए न करने पर शत्रुता बनने और जान जाने का खतरा भी रहता है। सम्पदा की बहुलता अनेक अनर्थ में फँसाती और अप्रत्याशित संकट शिर पर पटकती है। इसीलिए सृष्टि का विधान है कि सत्पात्र को ऐसी शक्तियां श्रेष्ठ प्रयोजनों के लिए मिलती हैं।

First 17 19 Last


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Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
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Type: SCAN
Language: HINDI
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