
अन्यान्य धर्म भी देते है पुनर्जन्म की साक्षी
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शरीर के साथ चेतना का उद्भव और मृत्यु के साथ ही उसका अंत नहीं हो जाता, वरन् कायकलेवर के न रहने पर भी जीवात्मा का अस्तित्व बना रहता है और वह पुनर्जन्म धारण करती है। भारतीय धर्म, दर्शन में आत्मा की अमरता एवं पुनर्जन्म की सुनिश्चितता को आरंभ से ही मान्यता प्राप्त है। अध्यात्म-तत्व ज्ञान की आधारशिला समझी जाने वाली इस मान्यता के संबंध में विश्व के विभिन्न धर्मों में अलग-अलग विचारधाराएँ प्रचलित है किन्तु चेतना प्रवाह की अविच्छिन्नता और काया की नश्वरता को सभी न समान रूप से स्वीकार किया है।
आत्मा की अमरता एवं मरने के बाद दूसरा जन्म मिलने का तथ्य हिन्दू धर्म में सदा से माना जाता रहा है। भारतीय धर्म-शास्त्रों में पग-पग पर मरणोत्तर जीवन के तथ्य का प्रतिपादन किया गया है। पुराणों एवं आप्त वचनों में जीवात्मा के पुनर्जन्म लेने की बात कही गई है। गीता में इस बात का उल्लेख किया गया है कि शरीर छोड़ना वस्त्र बदलने की तरह है। प्राणी को बार-बार जन्म लेना पड़ता है। शुभ कर्म करने वाले श्रेष्ठ लोग तो सद्गति को प्राप्त करते है और दुष्कर्म करने वालों को नरक की दुर्गति भुगतनी पड़ती है। गीता के दूसरे अध्याय के 22 वे श्लोक में कहा गया है-”जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र को त्याग करके नया वस्त्र धारण करता है, इससे वस्त्र बदलता है, मनुष्य नहीं बदलता। इसी प्रकार देहधारी आत्मा पुराने शरीर को छोड़कर दूसरा नया शरीर धारण करती है।” गीता 4/5 में ही कृष्ण ने कहा है-”अर्जुन! मेरे और तुम्हारे अनेक जन्म बीत गये है। ईश्वर होकर मैं उन सबका जानता हूँ, परन्तु हे परंतप! तू उसे नहीं जान सकता।”
सामान्यतया यह कहा जाता है कि विश्व के दो प्रमुख धर्मों-ईसाई और इस्लाम में पुनर्जन्म की मान्यता नहीं है, पर उनके धर्म ग्रन्थों एवं मान्यताओं पर बारीकी से दृष्टि डालने से प्रतीत होता है कि प्रकारांतर से वे भी मरणोत्तर जीवन की वास्तविकता को मान्यता देते है और परोक्ष रूप से उसे स्वीकार करते है।
प्रख्यात विद्वान प्रो. मैक्समूलर ने अपने ग्रन्थ-”सिक्स सिस्टम ऑफ इण्डियन फिलॉसफी” में ऐसे अनेक आधार पुनर्जन्म की आस्था से सर्वथा मुक्त नहीं है। प्लेटो एवं पैथागोरस के दार्शनिक ग्रन्थों में इस मान्यता को स्वीकारा गया है। दूसरी शताब्दी के सुप्रसिद्ध अँग्रेज विद्वान ऐरीगन ने स्पष्ट लिखा है- “बार-बार जन्म लेने पर फरिश्ते आदमी बन सकते है ओर आदमी फरिश्ते और बुरे-बुरे लोग भी उन्नति करते-करते अच्छे आदमी या फरिश्ते बन जाते है। ईसाई धर्म के प्रख्यात विद्वान जोजेफस ने अपनी पुस्तक में उन यहूदी सेनापतियों का हवाला दिया है जो अपने सैनिकों को मरने के बाद भी फिर से पृथ्वी पर जन्म मिलने का आश्वासन देकर उत्साह पूर्वक लड़ने के लिए उभारते थे। उन्होंने लिखा है- “रूहें सब शुद्ध होती है, अच्छे मनुष्यों की आत्मा फिर से अच्छे शरीर में जाती है जबकि दुष्कर्मियों की रूहें सजा भुगतती है। थोड़े दिनों पश्चात् वह फिर से नया जन्म लेने के लिए भेजी जाती है। अच्छी रूहें अच्छे शरीर में और बुरी रूहें बुरे जिस्मों में, परन्तु जो लोग आत्महत्या करते है उन्हें पाताल की अँधेरी दुनिया में भेजा जाता है जिसे “हैडेस” के नाम से जाना जाता है।” जोजेफस का यह कथन ईशोपनिषद् की उस आख्यायिका से अक्षरशः मिलता है जिसमें कहा गया 5ह5- “अन्धं तमः प्रविशन्ति ये के चात्महनों जनाः। “अर्थात् जो लोग आत्म हत्या करते है वह घोर अन्धकार में जाते है।
यहूदी धर्म में पुनर्जन्म को “गिलगूलिम” कहा जाता है। यहूदी परम्परा “कब्बालह” में भी इस मान्यता की प्रधानता है। उनके धर्म ग्रन्थ “जुहर” से स्पष्ट रूप से उद्धृत है। कि “सब रुहों को बार-बार जन्म लेना पड़ता है। “ईसाई धर्म का सबसे प्राचीन सम्प्रदाय-ग्नास्टिक सम्प्रदाय है जिसके सम्बन्ध में प्रसिद्ध है कि वे सभी विद्वान, समझदार और नेक आदमी थे और सभी की मरणोत्तर जीवन पर पूर्ण आस्था थी। ईसा से चौथी-पांचवीं सदी के “मनीशियन” सम्प्रदाय के लोग भी पुनर्जन्म को मानते थे इतिहासकार गिबन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक-”डिक्लाइन एण्ड फाल ऑफ द रोमन एम्पायर” में लिखा है कि ईसा के शिष्य पुनर्जन्म को मानते थे। उनके अनुसार प्रख्यात ईसाई आचार्यों में क्लीमैन्स, एलेगजैन्ड्रिनस, सिनेसियम, चैलसीडियम जैसे विद्वान इसे मानते थे। बाद में योरोपीय विद्वानों और दार्शनिकों में गिआरडानो, बान हैमान्ट, स्वीडिन बर्ग, गेटे, लैसिंग, चार्ल्स बौनेट, हरडर, ह्यूम, शोपनहावर जैसे ख्यातिलब्ध विचारक भी मरने के पश्चात् फिर से नया जन्म मिलने पर विश्वास रखने लगे थे। “विजडम ऑफ सोलेमन” ग्रन्थ में महाप्रभु ईसा के वे कथन उद्धत है। जिसमें उनने पुनर्जन्म का प्रतिपादन किया है। उन्होंने अपने शिष्यों से एक दिन कहा था-”पिछले जन्म का एलिज (इल्यास) ही अब”जान दी बैपटिस्ट” के रूप में जन्मा है। “बाइबिल के चैप्टर 3 पैरा 3-7 में ईसा कहते है-”मेरे इस कथन पर आश्चर्य मत करो कि तुम्हें निश्चित रूप से पुनर्जन्म लेना पड़ेगा।” सेंटपाल को तो ईसा की प्रतिमूर्ति माना जाता रहा है। ईसाई धर्म के प्राचीन आचार्य ओरिगन कहते थे-”प्रत्येक मनुष्य को अपने पिछले जन्मों के कर्मों के अनुसार अगला जन्म धारण करना पड़ता है।” पाश्चात्य दार्शनिक प्लेटो, प्लोटिनस, कान्ट एवं टेनीशन, जान मैसफील्ड जैसे विचारकों की पुनर्जन्म में आस्था थी।
सुविख्यात यूनानी दार्शनिक पाइथागोरस का अभिमत था कि मरणोपरान्त आत्मा पुनः किसी भी प्रकृति के प्राणी में जा पहुँचती है। यह निर्धारण कर्मफल व्यवस्था के अनुसार ही होता है। प्लेटो ने भी यह स्वीकारा है-”जो आत्मायें शुद्ध हो चुकी है और शरीर पर जिनका तनिक भी मोह नहीं है, वे फिर से शरीर धारण नहीं करेंगी। पूर्ण रूप से अनासक्त होने पर वे आवागमन के चक्र से मुक्त हो जायेंगी।” उनका कहना है कि “आत्माएँ इस जीवन में बार-बार जन्म लेती रहती है।” “अनिश्चित सीमा” नामक अपनी पुस्तक में श्री जी एलू फ्लेअर ने इसकी पुष्टि करते हुए लिखा है कि “यह बात नहीं कि हम यहाँ से कही जाते है, हम तो यहाँ पहले से ही थे।”
वस्तुतः पुनर्जन्म की मान्यता जीवन को अनवरत रूप से गतिशील रहने एवं उत्तरोत्तर विकास करते जाने का विश्वास दिलाती है। अरबी में इसे तनासुख कहते है। इस्लाम के पवित्र धर्म ग्रंथों- इंजील और कुरान में इस संबंध में कोई स्पष्ट बात नहीं खिली है, पर इससे इन्कार भी नहीं किया गया है कि कुरान में कहा है-”ऐ इनसान! तुझे फिर अपने रब-(खुदा) की तरफ जाना है। वही तेरा अल्लाह है। तुझे मेहनत और तकलीफ के साथ दरजे बदरजे अर्थात् सीढ़ी चढ़कर उस तक पहुँचना है।”
कुरान में बहुत सी आयतें है जिनका गहराई से अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि मनुष्य बार-बार जन्मता और मृत्यु को प्राप्त होता है ठीक उसी तरह जैसे कि यह सृष्टि बनती और विनष्ट होती रहती है। इनमें से कुछ आयत इस प्रकार है- “हमने तुम्हें जमीन में से पैदा किया है और हम तुम्हें फिर उसी जमीन में भेज देंगे और फिर उसी में पैदा करेंगे, बार बार आखिर तक।” एक दूसरी आयत में कहा गया है-कैफा तकफुरुना बिल्लाहे,..........। अर्थात् तुम अपने अल्लाह से कैसे इन्कार कर सकते हों। तुम मर चुके थे, उसने तुम्हें पुनः जीवित किया। वह तुम्हें फिर मारेगा और फिर जिलायेगा। यहाँ तक कि आखिर में तुम फिर उसके पास लौट जाओगे।” इस तरह कितनी ही आयतें है जो मृत्यु के पश्चात् जीवन की निरन्तरता पर प्रकाश डालती है।
प्रसिद्ध सूफी सन्त - मौलाना रुम ने लिखा है - “मैं पेड़-पौधे, कीट-पतंग, पशु-पक्षी योनियों में होकर मनुष्य वर्ग में प्रवेश हुआ हूँ और अब देव वर्ग में स्थान प्राप्त करने की तैयारी कर रहा है।” कुरान की आयतों के आधार पर पुनर्जन्म में विश्वास रखने वाले सूफी सन्तों में अहमदबिन साबित, अहमद बिन यबूस, अबु मुस्लिम खुरासानी, शेख-उलइश्राक, उमर खययाम, अल गिजाली आदि प्रमुख है। इन्होंने कुरान की सूरतुलमबरक आयत 61 से 12 तथा सूर-तुलमायदा आयत 55 को प्रमुख रूप से अपनी मान्यता का आधार बनाया है।
“दी एनसाइक्लोपीडिया ऑफ इस्लाम” में तनासुख अर्थात् पुनर्जन्म पर विशद् रूप से प्रकाश डाला गया है। उसने अनुसार इस्लाम के बहुत से फिरके है जो पुनर्जन्म को मानते है विशेषकर शिया सम्प्रदाय के लोग।” दी एनसाइक्लोपीडिया ऑफ रिलीजन्स एण्ड एथिक्स” में कहा गया है कि भारतीयों के अतिरिक्त ईरानियों जर थुसियों, मिस्तियों, यहूदियों, यूनानियों, रोमियो, कैलटिक एवं टियोटोनिक आदि सभी ने पुनर्जन्म को माना है। इसी महाग्रंथ के बारहवें खण्ड में अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और अमेरिका के आदिवासियों के सम्बन्ध में यह अभिलेख है कि वे सभी समान रूप से मरणोत्तर जीवन को मानते है।
कभी पुनर्जन्म धर्म और दर्शन का ही प्रतिपाद्य विषय था। यह दानों ही क्षेत्र श्रद्धा प्रधान है। जिनमें तथ्यान्वेषी जिज्ञासायें है, उनको बिना आधार प्रमाण पाये सन्तोष नहीं होता। अतः अब इस मान्यता को वैज्ञानिक अनुसन्धान का विषय स्वीकार कर लिया गया है। इस संदर्भ में वैज्ञानिकों एवं परामनोविज्ञानियों ने जो प्रत्यक्ष प्रमाण जुटाये है उनसे पुरातन असमंजस की स्थिति धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है। लोगों को अपने पूर्वाग्रहों को छोड़ना या शिथिल करना पड़ रहा है। पुनर्जन्म वस्तुतः’ जीवन यात्रा का अगला चरण है। सतत् गतिशीलता का अगला आयाम है। इसकी मान्यता जीवनक्रम में आस्तिकता की भावना नीतिमत्ता एवं भविष्य की आशा बनाये रहने की दृष्टि से नितान्त आवश्यक है।