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Magazine - Year 1989 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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प्राणशक्ति का उदात्तीकरण

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First 10 12 Last
सामान्यतया चेतना हर जीवधारी में होती है, पर उनमें उसका स्तर इतना निम्न होता है कि वे बस अपना जीवन संकट ही किसी प्रकार खींचते चलाते रह पाते हैं। सामान्य स्थिति में मनुष्यों में भी इसका स्तर कोई बहुत ऊँचा नहीं होता। उतना ही होता है, जिससे कि वह जीवन की आवश्यकताओं, समस्याओं व कठिनाइयों का किसी प्रकार हल निकाल सके। इस स्थिति में इससे अधिक वह और कुछ नहीं कर पाता, किन्तु इसी चेतना को जब परिष्कृत और परिमार्जित कर लिया जाता है, तो स्वयं वह इतना सशक्त और समर्थ बन जाती है, जिसे बन्दूक में भरी बारूद कहा जा सके। फिर उसे जिस भी दिशा में लक्ष्य कर छोड़ा जाता है, वहीं सफलता हस्तगत करती है।

वस्तुतः चेतना हे क्या? बोलचाल की भाषा, दर्शन एवं मनोविज्ञान में इसका प्रयोग भिन्न-भिन्न प्रकार से होता है। अंग्रेज दार्शनिक लाँक ने मानवी सूझबूझ नामक निबन्ध में अपना अभिमत व्यक्त करते हुए मानवी मस्तिष्क से गुजरने वाली घटनाओं के बोध को चूतना नाम दिया है और कहा है कि बोधगम्यता विचारणा, आकांक्षा, विवेक, शीलता, जैसी मानसिक अवस्थाओं को समयानुरूप अनुभव करने की क्षमता चेतना सत्ता ही रखती है।

वेब्स्टर ने इसे इंद्रियों का बोध और मस्तिष्क की कार्य प्रणाली को समझने की क्षमता रखने वाला तंत्र बताया है। हेलेक का कहना है कि चेतना की कोई परिभाषा नहीं दी जा सकती और न इसे किसी वैज्ञानिक प्रयोग शाला में ही सिद्ध किया जा सकता है। जबकि मौड्सले की अवधारणा है कि मनःसंस्थान की क्रिया प्रणाली पूर्णतः स्वतंत्र नहीं है। इसमें 10 प्रतिशत हस्तक्षेप ख्तना का रहता है। सर थामस रीड ने तो इस मनोदशा की भाँहत ही अनुभवशील बताया है और कहा है कि उसी की तरह यह परिवर्तनशील भी होती है। शरीर विज्ञानियों द्वारा किये गये परीक्षणों से ज्ञात हुआ है कि मनुष्य की स्वादेन्द्रिय इतना अधिक संवेदनशील होती है कि कुचला सत्व (स्ट्रिक्नीन) का एक भाग यदि 10 लाख भाग पानी के साथ मिला दिया जाय, तो भी वह उसका स्वाद सुगमता पूर्वक अनुभव कर लेती है। इसी प्रकार कान की श्रवण सीमा 10 से 20 हजार हर्ट्ज होती है, जबकि दृष्टि सीमा का निम्न स्तर 850 खरब और उच्चतम स्तर 650 खरब सेकेण्ड है। स्थूल अंगों की क्षमता के रूप में यह तो चेतना के एक छोटे से स्वरूप की दर्शन झाँकी हुई। इसकी सीमा भी अपरिमित होती है। जहाँ पर स्थूल इन्द्रियाँ कसम करना बन्द कर देती हैं, वहीं से चूतना के परिष्कृत विकसित स्वरूप का प्रारंभ होता है, इसे परिमार्जित कैसे किया? जाय इसके लिए अध्यात्म विज्ञान में योग साधनाओं का निर्धारणा है जिनके माध्यम से व्यष्टि चेतना का प्रखर परिष्कृत बनाया जाता है।

जर्मनी के जीव विज्ञानी अर्नेस्ट हैनरिक हेकेल ने चेतना को दो स्तरों में विभक्त किया है - एक पाशविक और दूसरी मानवी। दोनों में अन्तर स्पष्ट करते हुए हैकेल ने बताया है कि पाशविक चेतना को अन्य किसी दूसरे प्राणी में हस्ताँतरित करने की बात तो दूर जानवर स्वयं भी उसे समझने में सक्षम नहीं है। पाशविक चेतना शरीर प्रधान होती है, अतः उसे इन्स्टिंक्ट कहते हैं। जब कि मानवी चेतना मन प्रधान होने के कारण रीजन (विवेक) कहलाती है।

मूर्धन्य शरीर शास्त्री प्रो एल्स गेट्स के अनुसार सामान्य मनुष्य में मस्तिष्क की 10 प्रतिशत चेतन शक्ति अवचेतन रूप में दबी पड़ी रहती है। मात्र 10 प्रतिशत से ही जीवन व्यापार चलता है। यदि चेतना के इस बड़े भाग का भी किसी प्रकार उन्नयन-जागरण संभव हो सका, तो बहुत सारे ऐसे कार्य किये जा सकेंगे, जो समाज और संसार के लिए प्रगति का द्वार खोल सकें।

प्रख्यात गणितज्ञ डब्ल्यू. आर. हेमिल्टन एक बार अपनी पत्नी के साथ डबलिन वेधशाला घूमने को गये। इसी बीच अचानक उनके मस्तिष्क में एक ऐसी स्फुरणा हुई जिसके फलस्वरूप क्वाटर-नियन का प्रसिद्ध सिद्धान्त संसार को मिला जिसे आज गणित क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा रहा है। वस्तुतः यह चेतना की परिष्कृति का ही परिणाम है। जब यह सिलसिला चल पड़ता है, तो मस्तिष्क में ऐसे नये-नये तथ्य अनायास कौंध पड़ते हैं जिनकी पहले कल्पना तक नहीं की गई थी। प्रखर प्राण चेतना एक दिव्य अनुदान है जिसकी प्राप्ति हेतु किया गया पुरुषार्थ निश्चित ही फलित होता है।

First 10 12 Last


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Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
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Version 1
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