Magazine - Year 1989 - Version 2
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Language: HINDI
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महायोगी अरविन्द-की भविष्य पर एक दृष्टि
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अतिमानसी चेतना को इस धरा पर उतारने वाले प्रख्यात दार्शनिक एवं महायोगी श्री अरविन्द ने अपनी अंतर्दृष्टि से इस विश्व के अतीत संघर्षमय वर्तमान परमोज्जवल भविष्य का दर्शन किया था।
उन्होंने कहा था कि यह समय साधारण नहीं है हम उस देव मुहूर्त में जीवन यापन कर रहें है जब पुराने आधार डगमगा जाते है और बड़ी अव्यवस्था खड़ी हो जाती है। इसमें ऐसी घड़ियां आती है जब हमारे जीवन सलिल पर भगवान का श्वास फैल जाता है, देव मनुष्यों के बीच विचरण करते है और ऐसा भी समय आता है, जब वे पीछे हट जाते है और मनुष्य अपने अहंकार की ही सामर्थ्य या निर्बलता से काम करने के लिए छोड़ दिया जाता है। प्रथम काल में, जो वर्तमान में है, थोड़ा सा भी प्रयत्न करने पर बड़े परिणाम पैदा होते है और भाग्य बदल जाता है और दूसरे काल में जरा से परिणाम के लिए बहुत प्रयत्न करना पड़ता है।
“इस भागवत बेला में अभागा है वह मनुष्य या राष्ट्र जो सोया हुआ रहे या उसके उपयोग के लिए तैयार न हो। पर कही अधिक अभागे वे हैं जो सशक्त और तैयार होते हुए भी उस शक्ति का अपव्यय करते है और उस मुहूर्त का दुरुपयोग करते है।”
सतयुग के अवतरण हेतु सब से अधिक दायित्व भारत वर्ष पर ही है। आधुनिक भाषा में सतयुग वह समय विशेष काल है जिसमें एक प्रकार का स्थाई और पर्याप्त सामंजस्य उत्पन्न होता है और मनुष्य कुछ समय के लिए कुछ अवस्थाओं और सीमाओं के अंतर्गत, अपनी सत्ता की पूर्णता को प्राप्त करता है। सामंजस्य एक सुप्रतिष्ठित पवित्रता की शक्ति के द्वारा उसकी प्रकृति में विद्यमान रहता है, परन्तु उसके बाद भंग होने लगता है। कलियुग में आकर यह पूर्ण रूप से ढह जाता है और नष्ट व समाप्ति की ओर है। प्राचीन ज्ञान और संस्कृति का बहुत अधिक नाश हो गया है। उसके कुछ अंश ही वेदों-उपनिषदों और अन्याय धर्म ग्रन्थों में हमारे लिए बचे हुए है। परन्तु अब वह समय आ गया है, जब ऊर्ध्वगमन के लिए पहला पग उठाया जा सकता है। एक नवीन सामंजस्य और पूर्णता को स्थापित करने के लिए प्रथम प्रयास किया जा सकता है।”
ईश्वरीय आदेश आ गया है। भगवान सदा ही अपने लिए एक ऐसा देश चुन कर रखते हैं जिसमें थोड़े या बहुत से लोग सब प्रकार की सम्भावनाओं और विपत्तियों में से गुजरते हुए भी उच्चतर ज्ञान को सदा सर्वदा सुरक्षित रखते है। और वर्तमान काल में कम से कम इस चतुर्वर्ग में वह देश है भारतवर्ष।”
केवल भारत वर्ष ही इस सामंजस्य को खोज पाएगा क्यों कि मनुष्य की वर्तमान प्रकृति में केवल थोड़ा बहुत हेर-फेर करके नहीं वरन् उसका आमूल-चूल परिवर्तन करके ही यह सामंजस्य विकसित किया जा सकेगा।
यह परिवर्तन राजनैतिक और सामाजिक मतवादों तथा दर्शन शास्त्रों के द्वारा होना सम्भव नहीं है। बल्कि होगा, अपने अंतर्जगत में भगवत् सत्ता की उपलब्धि करके और उस उपलब्धि के द्वारा जीवन को नए सांचे में ढाल कर” श्री अरविन्द कहते है कि हम सब इस भागवत मुहूर्त में अपने को परिष्कृत करें। अपनी अन्तरात्मा से अपने आप को धोखा देने की वृत्ति और झूठी आत्म प्रशंसा के विषपान से बचें। शुद्ध होकर .... भय को उखाड़ फेंके।
“यह घड़ी प्रायः भयंकर होती है यह आग, बवंडर और तूफान की तरह है और है इंद्र का ताण्डव नृत्य। परन्तु जो इसमें अपने उद्देश्य की सच्चाई के बल पर खड़ा रह सकता है, वही खड़ा रहेगा। अपना अस्तित्व बनाये रखेगा।
“सृजन का कार्य प्रारम्भ हो चुका है। विश्व की दृष्टि के सम्मुख भारत में एक विश्व राष्ट्र निर्मित हो रहा है। इस तीव्र अनुगम्य विधि आवश्यक सामग्री और दिव्य वस्तु कला को वे सभी देख सकते है जिनके पास प्रज्ञा एवं अंतर्दृष्टि है। भारत की सभ्यता और संस्कृति महानतम एवं प्राचीनतम है। अब वह समय आ गया है, जब यह समस्त विघ्न बाधाओं पर विजय पाकर ऊर्ध्वगामी होगा। इस सबका आकलन कोई दूरदर्शी दृष्टा ही कर सकता है।
यदि हम इस रूपांतरण को घटित होते हुए देखते है जो न केवल इस राष्ट्र अपितु विश्व के लिए आवश्यक है, तब हम बिना किसी भय या लालच के उस समय को नियोजित करेंगे जो हमारे पास है। भारत सभी देशों का गुरु है। अपने नए मधुर राग से मानव आत्मा की चिकित्सा करेगा। वह एक बार फिर विश्व के जीवन का कायाकल्प करके विश्वात्मा को शान्ति, प्रदान करेगा।”
“भारत जिसने अपने में प्राचीन रहस्य समाहित कर रखे हैं, इस युग सन्ध्या में जो तीव्रता से गुजर रही है, एक महान रूपांतरण का नेतृत्व करेगा। यही इसका उद्देश्य और मानव मात्र की सेवा होगी”
अब सभी को सुदृढ़ विश्वास होना चाहिए कि भारत अवश्य जाग्रत और महान होगा। प्रत्येक कठिनाई और प्रतिकूलता अब सहायक ही होगी और आगे इन प्रतिकूलताओं का अन्त होगा। अब प्रवृत्ति ऊर्ध्वमुखी है। अवनति का समय व्यतीत हो गया है। स्वर्णिम प्रभात आने को है। जैसे ही एक बार प्रकाश हुआ, पुनः कभी भी निशा का आगमन नहीं होगा। ऊषा अति शीघ्र पूर्णता को प्राप्त होगी। सम्पूर्ण क्षितिज पर सूर्य प्रकाशित होगा। भारत के भाग्य का सूर्य उदय होने पर अपने प्रकाश से न केवल भारत को अपितु पूरे एशिया, विश्व को आप्लावित कर देगा।
श्री माँ जिन्होंने ऋषि वर के कार्य को स्थूल जगत में आगे बढ़ाया, महायोगी के चिन्तन को आगे बढ़ाते हुए अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर कहा था कि युग संधि की यह प्रसव बेला तभी तक है जब तक संसार नई सृष्टि का स्वागत करने के लिए तैयार नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सन् 1162 के आरम्भ से ही इस नई सृष्टि की चेतना धरती पर काम में लगी है। सतत् सन् 2000 तक सक्रिय रहेगी। समस्त महान परिवर्तन अपनी पहली अमोघ शक्ति तथा प्रत्यक्ष निर्माणकारी सामर्थ्य एक व्यक्ति के या थोड़े से व्यक्तियों के श्रेष्ठ मन एवं उदात्त आत्म भाव से ही प्राप्त करते है। समुदाय तो अनुसरण करता है।
महर्षि कहते है कि “इस समय भारत को विशिष्ट प्राणवान व्यक्ति चाहिए। क्योंकि, जो कार्य करना है वह उतना ही बड़ा है, जितना कि जीवन और इसीलिए वे व्यक्ति जो पथ प्रदर्शन का काम करते है, मानव मात्र के अभ्युदय को ही अपना क्षेत्र बना लेते है। यह अग्रदूत किसी भी वस्तु को परकाया नहीं समझते, नहीं किसी चीज को अपने क्षेत्र से बाहर।”
जो दिव्य प्रकाश जन्म ले रहा है वह यदि तेज हो जाय, यदि उन व्यक्तियों की संख्या जो अपने अन्दर और जगत में इस अतिमानसिक अवतरण को चरितार्थ करना चाहते है बढ़ जाय तथा वे श्रेष्ठ मार्ग के अधिकाधिक निकट पहुँचने लगें तो वह परम आत्मा मनुष्य की आत्मा में तथा उन महान व्यक्तियों में जिनमें प्रकाश और शक्ति अत्यधिक मात्रा में है अधिक पूर्ण रूप से उतरेगी। तब वह परिवर्तन शीघ्र चरितार्थ हो जायगा, जो नवयुग की आधारशिला बनेगा।
ऋषि श्रेष्ठ स्वामी विवेकानन्द ने जो कुछ प्राप्त किया और जिसे अभिवर्धित करने का प्रयत्न किया वह अभी तक मूर्त नहीं हुआ। महायोगी कहते है कि “अब अधिक उन्मुक्त ईश्वरीय प्रकाश के अवतरण की तैयारी हो रही है। अधिक ठोस शक्ति प्रकट होने को है। प्रत्येक घड़ी प्रत्येक पल प्रत्येक क्षण इसे अति निकट ला रहा है। शीघ्र ही परम सत्ता, शाश्वत चेतना का कार्य सिद्ध होगा। शीघ्र ही नया युग उज्ज्वल संभावनाओं को लेकर आएगा।
अपने महाकाव्य सावित्री (पर्व 11 सर्ग 1) में महर्षि लिखते है कि अति मानस ही एक प्रकाश को लिए सारी जगती को अधिकृत कर लेगा॥ मुग्ध बने अन्तर को “ईश” प्रेम से, अपने को पुलकित, सिहरित कर देगा और प्रकृति के उस उन्नतमय शीर्ष पर प्रकाश के किरण को पहनायेगा। उसकी अकम्प सुदृढ़ नीव पर जा कर प्रकाश के शासन को स्थित कर देगा।