Magazine - Year 1989 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
समाचार डायरी - क्या हो रहा है इन दिनों विश्व में?
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
काल का पहिया घूमते घूमते क्रमशः उस मोड़ पर आ गया है जिसे युगान्तरीय परिवर्तन वाला कहा जा सके। ऐसी स्थिति में जब इक्कीसवीं सदी मात्र 12 वर्ष दूर खड़ी हो, विश्व चेतना में व्यापक हलचलें देखी जा सकती हैं। ये दोनों ही प्रकार की हैं। एक महाविनाश की सूचक दूसरी ओर सृजन संभावनाओं का संकेत देने वाली शुभ रचनात्मक गतिविधियाँ। हमारी दृष्टि दोनों ही पर रहनी चाहिए एवं विषेयात्मक चिन्तन बनाये रख यह विश्वास सँजोना चाहिए कि भावी समय उज्ज्वल भविष्य की संभावनाओं को लेकर आ रहा है। इन दिनों विश्व में क्या कुछ घटित हो रहा है, होने जा रहा है? उसका विवेचन यहाँ किया जा रहा है।
नक्षत्र युद्ध कार्यक्रम दम तोड़ रहा है -
सुप्रसिद्ध अमेरिकी वैज्ञानिक डा0 फिलिप माँरिसन ने पिछले दिनों जनवरी 77 के अंतिम सप्ताह में आयोजित एक सेमिनार में हैदराबाद (आँध्रप्रदेश) में संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि श्री रेगन का कार्यकाल समाप्त होने के साथ ही उनका प्रिय “स्टारवार” कार्यक्रम (एस.डी.आय.) भी धीरे दम तोड़ रहा है। प्रेस ट्रस्ट के हवाले से प्रकाशित इस समाचार में यह कहा गया कि नक्षत्र युद्ध एक कपोलकल्पित वैज्ञानिक फैन्टेसी मात्र था, जो कभी साकार नहीं हो सकता। इस कार्यक्रम को लेकर जो उत्साह अमेरिकी वैज्ञानिकों के मन में था, वह अब समाप्त हो चुका है। करोड़ों
डालर खर्च करने के बाद अमेरिकी प्रशासन को यह समझ तब आयी जब इसकी विनाशकारी संभावनाओं को मद्देनजर रखते हुए इस कार्यक्रम के भागीदार वैज्ञानिकों ने अपनी अंतः कि पुकार सुनते हुए क्रमशः त्यागपत्र दे दिये। एक साथ इतने वैज्ञानिकों का विरोध व अरबों-खरबों डालर के खर्च से चरमराती अर्थव्यवस्था ने अब नये अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश को यह कहने के लिए बाध्य कर दिया है कि यह कार्यक्रम व्यावहारिक नहीं हैं, अतः इसे गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए। यहाँ एक सुविदित तथ्य है कि ऊपर उल्लिखित डा0 मारीसन “मेनहट्टनप्रोजेक्ट” के भी सदस्य रहे हैं, जो 1145 में लागू किया गया था एवं जिसके तहत् परमाणु बम विस्फोट किया गया था। लगता है बड़े राष्ट्रों ने अपनी गलतियों से सीख लेते हुए भूलों को सुधारने को क्रम आरंभ कर दिया है।
रूस के 150 शस्त्र कारखाने खाद्य संसाधन केन्द्रों में बदलेंगे
सोवियत नेता वहाँ के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव जब से सत्ता में आये है, चर्चा का विशेष रहे है। उनने अपनी पार्टी की नीतियों में बड़े व्यापक परिवर्तन किये हैं एवं कभी “आयरन करटेन” माने जाने वाले सोवियत रूस के द्वारा अपनी “ग्लासनोस्त”एवं “पेरेस्त्रोइका” नीतियों के माध्यम से सबके लिए खोल दिये है। इसी का परिणाम था कि पिछले दिनों आर्मेनिया व तजाकिस्तान में आये विनाशकारी भूकम्प के बाद विश्व के हर राष्ट्र ने रूस का हाथ बटाया व यथा संभव मदद दी।
सबसे महत्वपूर्ण वह संदेश है जो इस वर्ष के प्रारंभ में श्री गोर्बाचेव ने रूस के नागरिकों को दिया। एपी न्यूज एजेन्सी के हवाले से प्रकाशित एक समाचार के अनुसार सोवियत नेता ने राष्ट्र वासियों को नव वर्ष का सन्देश देते हुए कहाँ कि वह 1171 में किसी चमत्कार की आशा न रखे। देश की आर्थिक स्थिति को दृष्टि में रखते हुए उनने घोषणा की कि नये वर्ष में हथियारों के 150 कारखानों को खाद्य संसाधन केन्द्रों में बदल दिया जायेगा ताकि अस्त्र निर्माण के स्थान पर हर व्यक्ति के लिए आहार जुटाया जा सके। हथियारों के उत्पादन में भारी कटौती की गई एवं देशवासियों से यह अपेक्षा की गई है कि वे अन्न उत्पादन के क्षेत्र में आत्म निर्भर बनेंगे। अड़तालीस हजार सोवियत उद्यमियों के लिए यह आदेश पारित किया गया है कि वह अपना खर्च चलाने की व्यवस्था स्वयं करे। पहले सरकारी अनुदानों से यह व्यवस्था चलती थी। यह एक व्यापक एवं शुभ संभावनाओं से भरी परिवर्तन प्रक्रिया है, जिसे आज से कुछ माह पूर्व तक असंभव माना जाता था।
यदि इसी प्रकार अस्त्रनिर्माण केन्द्र पूरे विश्व में बन्द होते चले गए व इन कार्यों में नियोजित जन शक्ति का सुनियोजन संभव हो सका तो युग परिवर्तन सुनिश्चित है।
भारत एक महाशक्ति बन रहा है
अमेरिका के रक्षा जान टाँवर ने पिछले दिनों असोशिएटेड प्रेस के हवाले से अमेरिकन सीनेट के समक्ष दिये गए वक्तव्य में कहा कि बहुत शीघ्र हम भारत को एक “सुपरपावर” के रूप में उभरते देखेंगे। पूर्व के तीन राष्ट्र भारत, चीन, जापान की प्रौद्योगिकी वे कलाकौशल के विकास की गति पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि हमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि यह जानकर कि इक्कीसवीं सदी में यह तीनों राष्ट्र समग्र विश्व का नियंत्रण करने लगेंगे एवं सृजन प्रयोजनों में निरत होने की प्रेरणा देंगे। उनने कहा कि कल तक जो भू-भाग उपनिवेश थे, वे अपनी साँस्कृतिक विरासत के कारण महाशक्ति के रूप में उभर रहें है एवं उनमें भी भारत का शीर्ष स्थान होगा। उन्होंने यह भी स्वीकार किया की उनके अपने राष्ट्र के विकसित होने का मूल कारण भी अमेरिका में जा बसें भारतीय व जापानी वैज्ञानिक तथा उद्योगपति है जिनका मुकाबला पाश्चात्य स्किल नहीं कर सकती।
भारत उठेगा एवं नेतृत्व करेगा
शीर्षक से एक समाचार पिछले दिनों समाचार पत्रों में छपा था जिसमें अमेरिका में बसें भारतीय आर्थिक विशेषज्ञ श्री खीबत्रा ने कहा था कि “इक्कीसवीं सदी विश्व का नेतृत्व भारत करेगा”। उनका मत है कि पूँजी का अनियंत्रित निवेश पाश्चात्य देशों की आर्थिक व्यवस्था को ले डूबेगा एवं यह “ग्रेट डिप्रेशन ऑफ 1110 के रूप में अगले दो वर्षों में सामने आएगा। साथ ही उनने यह भी कहा कि आर्थिक की, “प्रोगे्रशिव युटिलाइजेशन थ्योरी” के अनुसार भारत अपने संसाधनों का सुनियोजित करते हुए विश्व की आर्थिक मण्डियों का नियंत्रण अपने हाथ में ले लेगा एवं इस सदी के अंत तक एक महाशक्ति के रूप में ....कर सामने आयेगा। इस का मूल आधार होगा-भारत की आध्यात्मिक विरासत तथा बड़ी संख्या में उपलब्ध सुनियोजित बुद्धि-कौशल। यह एक सुविदित तथ्य है कि श्री बत्रा की सभी भविष्य वाणियों को विश्व भर में बड़ी गंभीरता से लिया जाता हैं क्योंकि वह साँख्यिकी एवं अर्थशास्त्र के तर्कसम्मत सिद्धान्तों पर आधारित होती हैं।
भारत उभर रहा है एक महाशक्ति के रूप में
12 दिसम्बर 1177 की “न्यूज वीक” पत्रिका के अंक में डा0 हेनरी कीसिंगर का एक वक्तव्य छपा है जिसमें उनने यह मन्तव्य व्यक्त किया है कि इस सदी के अंत तक भारत- वर्ष अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में ऐसी महान शक्ति के रूप में उभर कर आयेगा जिसके जिम्मे वे सारे दायित्व होंगे जो इन दिनों अमेरिका पूरे विश्व के लिए निभा रहा हैं। पूरे मध्य व पूर्व एशिया में उभरती इस शक्ति के अस्तित्व वे अंततः नेतृत्व को सभी को स्वीकारना ही पड़ेगा। वे कहते है कि इन दिनों भले ही भारत व अमेरिका में मतभेद नजर आता हो, पर अंततः यह दोनों महाशक्तियाँ मिलकर सृजन प्रयोजनों में तत्पर होगी। डा0 कीसिंगर हार्वड विश्व विद्यालय के प्रख्यात प्रवक्ता, अमेरिका के भूतपूर्व विदेश मंत्री रहे है एवं अन्तर्राष्ट्रीय मामलों पर उच्च कोटि के विशेषज्ञ माने जाते है।
ध्यान इन बातों का भी रहे
हम भविष्य की उज्ज्वल संभावनाओं की चर्चा तो करते है पर उपेक्षा उस पक्ष की भी नहीं की जानी चाहिए जो इन दिनों नंगे सत्य की तरह सामने दृश्य रूप में दिखाई पड़ रहा है। रचनात्मक प्रयास अपनी गति से चल रहे हैं पर उनमें कितनी तेजी लानी है, इसे भी नकारा नहीं जाना चाहिए।
प्रति मिनट चौबीस की मृत्यु
प्रेस ट्रस्ट के हवाले से प्रकाशित 21 जनवरी 1171 एक समाचार के अनुसार पिछले 150 वर्षों में दुनिया भर में क्राँतियों, हत्याओं युद्ध से जितने व्यक्ति मरे है उससे अधिक पिछले छः वर्षों में भूख से मरे है। दुनिया भर में 24 लोग प्रति मिनट भूख से मर जाते है।
डेढ़ लाख एड्स की चपेट में
विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा के अनुसार 1177 के अंत तक विश्व के 177 देशों में एक लाख बत्तीस हजार नौ सौ छिहत्तर एड्स के रोगियों के मामले सामने आ चुके है। इनकी संख्या में आगामी दो वर्षों में पाँच गुनी एवं 10 वर्षों में पचास गुनी वृद्धि होने की संभावना है, यदि समय रहते रोक थाम नहीं की गयी।
*समाप्त*