
मनःक्षेत्र में निहित परोक्ष संसार
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स्वप्न क्या हैं और क्यों आते हैं? जीवन से इनका क्या संबंध है? इन्हें भविष्य-सूचक माना जाय अथवा वर्तमान और अतीत की व्यक्तिगत जीवन शैली की विशिष्ट देन कहा जाय? इस संदर्भ में उपरोक्त किसी एक मत का समर्थन करना इसकी एकाँगी व्याख्या होगी। सच्चाई तो यह है कि स्वप्न जीवन के संपूर्ण काल-खंड को प्रतिनिधित्व करते हैं। उनमें वर्तमान जीवन की झाँकी मिलती है, विगत की अनुभूति होती है और अनागत के संकेत भी सम्मिलित होते हैं।
त्रुटि और भ्राँति इस संदर्भ में वहाँ रह जाती हैं, जहाँ इसके किसी एक पक्ष प्रकार को लेकर अध्ययन किया जाता है और उसी को संपूर्ण सत्य स्वीकार लिया जाता है। उदाहरण के लिए फ्रायड को लिया जा सकता है। वह मनोवैज्ञानिक थे और उनका वास्ता मनोरोगियों से पड़ता था। उनने ऐसे ही लोगों पर अपने स्वप्न संबंधी अध्ययन किये। अतः निष्कर्ष भी वर्तमान जीवन की जटिलताओं से संबंधित प्राप्त हुआ। उनके अनुसार स्वप्न दमित इच्छाओं का परिणाम है। जुँग इसके एक कदम आगे बढ़े। अपने अनुसंधान में उन्होंने स्वप्न-स्रोत को “सामूहिक अवचेतन” नाम दिया। यह आते क्यों हैं? इस संदर्भ में उनका मत था कि दमित इच्छाओं की पूर्ति तो इसका एक पक्ष है, पर सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलू वह है, जिससे वह व्यक्तित्व को अखण्डता और समग्रता प्रदान करता है। इसका अभाव मानसिक असंतुलन पैदा करता है, ऐसा उनका मानना था। बाद के अध्येताओं ने इसमें एक नया अध्याय तब जोड़ा, जब इसे भावी जीवन की झाँकी कराने वाला एक आधार बताया। ऐसे ही एक सपने की चर्चा मार्क ट्वेन ने अपने जीवनी लेखक अल्बर्ट पैन से की थी।
प्रसंग तब का है, जब मूर्द्धन्य मनीषी मार्क ट्वेन, सैम क्नीमेन्स के नाम से जाने जाते थे एवं “पेन्सिलवेनिया” नामक जहाज पर सहायक पायलट थे। उनका बीस वर्षीय भाई हेनरी उसी जहाज में क्लर्क के पद पर कार्यरत था। एक रात सैम ने एक सपना देखा। उस दृश्य में उन्हें एक धात्विक ताबूत दिखाई पड़ा, जो दो कुर्सियों के सहारे टिका हुआ था इसमें हेनरी का शव था। शव के ऊपर सफेद फूलों का गुलदस्ता रखा हुआ था, जिसके मध्य में एक सुन्दर लाल रंग का पुष्प लगा था। जिन दिनों की यह बात है, उन दिनों सैम अपनी बहिन के घर सेण्ट लुइस में रह रहे थे। प्रातः उन्होंने इसका उल्लेख अपनी भगिनी से किया और फिर जल्द ही इस बात को भूल गये।
कुछ दिन पश्चात् सैम का किसी प्रकरण को लेकर मुख्य पायलट से विवाद हो गया। इसके कारण सैम को एक अन्य जहाज “लैसी” में स्थानाँतरित कर दिया गया। हेनरी पेन्सिलवेनिया में ही बना रहा। थोड़े दिन उपराँत जब लैसी मिसीसिपी नदी में ग्रीनविले बंदरगाह पर पहुँचा, तो ज्ञात हुआ कि पेन्सिलवेनिया में विस्फोट हो गया है, जिसमें डेढ़ सौ लोगों की जानें गई। यह जान कर सैम ने राहत की साँस ली कि उनके भाई का मृतकों में नाम नहीं था, किंतु वह बुरी तरह घायल हो गया था और अचेतावस्था में पड़ा था। छः दिनों तक मृत्यु से कठिन संघर्ष करने के बाद हेनरी की अंततः मौत हो गई। सैम जब भाई की लाश के निकट पहुँचे तो यह देख कर हतप्रभ रह गये कि सपने में जैसा कुछ देखा था, बिलकुल वही दृश्य सामने मौजूद था, अर्थात् धात्विक ताबूत में पड़ा हेनरी का प्राणहीन शरीर और उसके ऊपर श्वेत पुष्पों का गुलदस्ता, जिसके बीचों बीच एक लाल रंग का गुलाब। संपूर्ण ताबूत दो कुर्सियों पर रखा हुआ था। इस प्रकार उनका स्वप्न अंततः सत्य सिद्ध हुआ।
एक ऐसे ही भविष्य सूचक सपने का वर्णन फ्रेडरिक ग्रीनकुड ने अपनी पुस्तक “इमेजिनेशन इन ड्रीम्स” में किया है। वे लिखते हैं कि एक रात उन्होंने सपना देखा कि व्यापार को लेकर एक बार वे किसी से मिलने गये। वहाँ उन्हें एक सुन्दर सजे-सजाये कमरे में बिठाया गया और प्रतीक्षा करने के लिए कहा गया । वे कमरे में जल रही आग के समीप बैठ गये और मेण्टल पीस में हाथ रख कर सुस्ताने लगे। अचानक उन्हें हाथों के नीचे किसी बहुत ठंडी वस्तु का आभास हुआ देखा, तो पाया कि उनका हाथ एक ताजा कटे हाथ के ऊपर है। कलाई के नीचे से कटा यह हिस्सा किसी महिला के हाथ का था। वे भयभीत हो उठे और इसी के साथ उनकी नींद टूट गई।
कई दिन बीत गये। सामने की बात स्मृति से उतर गई। किसी काम को लेकर एक बार उन्हें एक व्यक्ति से मिलना था। वे वहाँ पहुँचे, तो उन्हें एक छोटे से सुसज्जित कमरे में बिठाया गया। अकस्मात् उनका ध्यान मेण्टल पीस की ओर चला गया, तो वे चौंक उठे। सपने में उनने जो कुछ देखा था, अब वह उनके सम्मुख था। मेण्टल पीस पर कलाइयों से टूटी हुई एक स्त्री के हाथ की ममी पड़ी थी।
ग्रीनवुड कहते हैं कि स्वप्न और यथार्थ के बीच इसे एक संयोग कहा जा सकता है, पर संयोग यह इसलिए नहीं है, क्योंकि स्वप्न और वास्तविक संसार में इस प्रकार की दुर्लभ घटनाएँ विरले ही देखी जाती हैं। उक्त घटना से ग्रीनवुड हैरान रह गये। उनकी हैरानी किपलिंग के शब्दों में कहें, तो निम्न प्रकार से व्यक्त की जा सकती है कि उनकी जीवन रूपी फिल्म का वह भाग, जो अभी रिलीज नहीं हुआ था, किस प्रकार और क्यों दिखाई पड़ गया?
इस प्रश्न से समय की प्रकृति से संबंधित उस मान्यता का खण्डन हो जाता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि जन्म लेते ही हर मनुष्य एक ऐसे टाइम-कण्टिनुअस (अंतहीन व लगातार) में प्रवेश करता है, जो एक दिशा में समरूप गति से फिल्म रील की तरह खुलता हो। प्रस्तुत अवधारणा के अनुसार कोई भी घटना समय से पूर्व घटित नहीं हो सकती, न तो समय से पहले उसे विज्ञात बनाया जा सकता है। हमें समय के उस भाग से संबंधित घटनाओं की ही जानकारी मिल सकती है, जिसे सर्वसाधारण वर्तमान एवं अतीत के नाम से जानते हैं। उक्त धारणा के अनुसार भविष्य अग्राह्य और अगम्य है, पर व्यावहारिक जीवन में वस्तुस्थिति इसके विपरीत जान पड़ती है। ऐसी स्थिति में विकल्प शेष दो ही रह जाते हैं, प्रथम अवधारणा इस मान्यता से आरंभ होती है कि “जैसा समझा जाता है, समय की प्रकृति वैसी है नहीं” एवं दूसरे प्रतिपादन में वैज्ञानिक यह कहते हैं कि “चेतना की प्रकृति आम धारणा के प्रतिकूल है।”
पहले मत का समर्थन जे. डब्ल्यू. डूने का प्रसिद्ध सिद्धाँत “सीरियल टाइम (क्रमिक समय)” करता है। इसके अनुसार यदा-कदा यथार्थता और व्यक्ति के पारस्परिक संबंधों में कोई असाधारण गलती हो जाती है। इसी त्रुटि के कारण हमें कभी-कभी घटनाएँ समय के संदर्भ में अपनी यथार्थ स्थिति से पहले, विस्थापित अवस्था में दिखाई पड़ जाती है। उनका विश्वास है कि वास्तविकता का एक पृथक आयाम है, जिसमें दिक्−काल मिल कर एक हो जाते हैं।उनके अनुसार विशिष्ट परिस्थितियों में घटनाएँ स्पेश ग्रहण कर लेती हैं और फैल जाती हैं। यही वह अवस्था है, जिसमें हमारी चेतना भूत और भविष्य के कुछ भाग को ग्रहण कर लेती है। वे कहते हैं कि अतीत और अनागत में इस प्रकार का प्रवेश अचेतन मन द्वारा ही संभव है। सपनों के माध्यम से यही क्रिया संपन्न होती है और यदा-कदा भविष्य की दर्शन-झाँकी हो जाती है।
दूसरी अवधारणा का समर्थन एच.एफ. साल्टमार्श का सिद्धाँत करता है, जिसका प्रतिपादन उन्होंने अपने ग्रंथ ‘फोर नालेज” में किया है। साल्टमार्श अपनी उक्त रचना में कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में ऐसे क्षण आते हैं, जिसमें उसे ऐसा महसूस होता है, जैसे समय के पंख लग गये और वह उड़ गया। दूसरे अवसर पर यह प्रतीत होता है, जैसे समय ठहर गया हो। उक्त उद्धरण को प्रस्तुत करते हुए वे कहते हैं कि चेतना की सामान्य भूमिका में समय की अनुभूति एकरूप नहीं है, इसलिए ऐसा महसूस होता है। इस आधार पर वे निष्कर्ष निकालते हैं कि चेतना की प्रकृति, समय की प्रकृति पर निर्भर करती है। यदि समय की प्रकृति बदल जाय तो हमारी चेतना का स्तर भी परिवर्तित हो जायेगा और हम चेतना की किसी दूसरी भूमिका में पहुँच जायेंगे। उनका कहना है सामान्य स्थिति में हमारी इंद्रियाँ समय के अत्यंत छोटे भाग को ही ग्रहण कर पाती है, लेकिन अवचेतन स्तर के लिए यह छोटा भाग खिंच कर बहुत बड़ा और लंबा हो जाता है। इतना लंबा कि इसमें अनागत का कुछ अंश भी सम्मिलित हो जाता है। स्वप्न के दौरान यही दृश्यमान बनता है। इसकी पुष्टि मस्तिष्क संबंधी आधुनिक अध्ययनों से भी हो जाती है। मस्तिष्क विज्ञानियों के अधुनातन शोधों से विदित हुआ है कि दिमाग का बायाँ भाग सूचनाओं को क्रमिक, तार्किक और रैखिक रूप में तैयार करता है, जबकि दांया हिस्सा सभी सूचनाओं के साथ-साथ तैयार करता है। उसे रैखिक समय का कोई ज्ञान नहीं होता अथवा बहुत स्वल्प होता है। ऐसी स्थिति में यदि दांया हिस्सा क्षतिग्रस्त हो जाय, तो सूचनाओं के क्रम और उनकी ग्रहणशीलता में कोई अंतर नहीं आता, किंतु यदि बांये भाग को कोई हानि पहुँच जाय, तो इससे समय के हिसाब से संदेशों का क्रम बिगड़ जायेगा। इस अनुसंधान के आधार पर विशेषज्ञ बताते हैं कि स्वप्न-दर्शन में ब्रेन के दांये गोलार्द्ध का योगदान ही महत्वपूर्ण होता है। वहीं विभिन्न स्रोतों से उपलब्ध जानकारियों को मिलाता और एक समग्र जानकारी तैयार करता है। विज्ञानवेत्ताओं के अनुसार इसमें भविष्य संबंधी जानकारी भी सम्मिलित हो सकती है। स्वप्न प्रक्रिया में बांये गोलार्द्ध का कार्य मात्र इतना है कि वह स्वप्न-विषय को क्रमिक ढंग से सज्जा दें।
यह तो भविष्य-दर्शन संबंधी सिद्धाँत हुए, पर उन सपनों का क्या तात्पर्य है, जो दैनिक जीवन की जटिलताओं और व्यक्तिगत समस्याओं से संबंधित होते हैं? फ्रायडवादी मान्यता के अनुसार वह मात्र जीवन-पद्धति और व्यक्तिगत रुझान का संकेत करते हैं, जिन्हें जान कर जीवन-शैली और व्यक्तित्व की प्रकृति का पता लगाया जा सकता है। बस उस मतवाद में सपनों का इतना ही महत्व है, पर आधुनिक जेस्टाल्ट मनोविज्ञान की इस संबंध में भिन्न धारणा है। ‘जेस्टाल्ट’ एक जर्मन शब्द है, जिसका अर्थ है-”संरचना” इस प्रकार जेस्टाल्ट मनोविज्ञान, जिसमें समस्याओं को ग्रहण किया जाय। इसी मनोविज्ञान पर जेस्टाल्ट थेरेपी आधारित है। इस थैरेपी का स्वप्न संबंधी अवधारणा यह है कि स्वप्न व्यक्तित्व का एक अपूर्ण क्रिया-व्यापार है, इसी अपूर्णता को इस उपचार पद्धति द्वारा पूरा किया जाता है। अचेतन द्वारा व्यक्तित्व के संबंध में दृश्य संकेतों के माध्यम से जो कुछ प्राप्त होता है, व्यक्ति उसका उपयोग समग्र व्यक्तित्व के विकास में कर सकता है और साथ ही किसी एक स्थान पर इकट्ठी ऊर्जा को मुक्त कर उसकी हानियों से बच सकता है। इस क्रम में स्वप्न द्रष्ट को एक प्रकार से स्वप्न-दृश्य का अभिनय करना पड़ता है। इसमें कल्पना-चित्रों का सहारा लेते हुए संपूर्ण नाटक का उपचार के समय दोबारा मंचन करना होता है। इसके साथ ही उपचार संपूर्ण हो जाता है।
उक्त उपचार पद्धति के जनक मनोविज्ञानी पर्ल्स के अनुसार व्यक्तित्व के पाँच स्तर होते हैं। इन सभी स्तरों के ठीक ढंग से काम करने पर ही कोई समग्र व्यक्तित्व को संपूर्ण रूप से जी सकता है। इलाज के समय व्यक्ति को इन पाँचों स्तरों से होकर गुजारा जाता है, तभी स्वप्न की अधूरी क्रिया पूरी हुई मानी जाती है। इसके साथ ही व्यक्तित्व की समग्रता प्राप्त कर ली जाती है।
मनोवैज्ञानिक ईवाँस के अनुसार स्वप्न एक ऐसी क्रिया है, जो मस्तिष्क को अनुकूलन और अस्वीकृत जैसे उसके दैनिक कार्यों को सफलतापूर्वक संपन्न करने में सक्षम बनाता है। यह कार्य कम्प्यूटर जैसी एक प्रक्रिया द्वारा संपन्न होता है, जिसमें कार्यक्रम को समय और परिस्थिति के हिसाब से बदलने और सुधारने की पूरी व्यवस्था होती है। ताकि व्यक्ति बदली परिस्थितियों में चुनौती का सफलतापूर्वक सामना कर सके। विशेषज्ञों के अनुसार यदि यह क्रिया संपादित न हो, तो व्यक्ति की कार्य क्षमता प्रभावित होने लगती है। इसलिए प्रकृति द्वारा ऐसा प्रावधान किया गया है, जिससे मस्तिष्कीय कार्यकुशलता और व्यक्ति की क्षमता सर्वथा अप्रभावित बनी रहती हैं। स्वप्न में वर्तमान की झाँकी होती है, और भविष्य की झलकी भी। इस दृष्टि से जीवन के लिए वे उपयोगी भी हैं तथा आवश्यक भी।
स्वप्न संबंधी मनोवैज्ञानिक एवं अधुनातन वैज्ञानिक शोधें अब जिस निष्कर्ष पर पहुँचती जा रही हैं कि मानवी मस्तिष्क वहीं नहीं है, जितना दीख पड़ता है। इसका एक बहुत बड़ा हिस्सा उन क्रिया कलापों में सतत् संलग्न रहता है जो परोक्ष स्तर के हैं। कैसे उनका अधिकाधिक लाभ निज के उत्थान व परिष्कार के लिए किया जाय, साधना विज्ञान का सारा ऊहापोह इसी के चहुँ ओर है।