
जीवन संजीवनी है इच्छा-शक्ति
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ज्ञान और क्रिया के मध्य की स्थिति को इच्छा शक्ति के नाम से जाना जाता है। ज्ञान जब तक कार्य रूप में परिणीत नहीं होता तब तक वह अनुपयुक्त और अपूर्ण ही कहा जायेगा। उसे पूर्ण और उपयोगी बनाने के लिए इच्छा शक्ति की आवश्यकता अनुभव की जाती है। संसार में जितने भी महान कार्य हुए हैं, वे मनुष्य की इच्छा शक्ति का संयोग पाकर ही हुए। दृढ़ इच्छा शक्ति सम्पन्न व्यक्ति के महान कार्यों का संचालन करते हैं। वही नवसृजन व नवनिर्माण, करने में समर्थ होते हैं। अपने और दूसरों के कल्याण, विकास एवं उत्थान का मार्ग खोजते हैं। जीवन का सुख, स्वास्थ्य सौंदर्य, प्रसन्नता, शाँति उसके सदैव साथ रहते हैं। जीवन की विरोधी परिस्थितियाँ उसकी मनःस्थिति को नहीं डिगा पाती।
कभी पाश्चात्य मनोवेत्ताओं ने विचार, संवेग और मूल प्रवृत्ति को मन के लक्षण न मान कर शरीर की क्रिया प्रतिक्रिया भर कह कर संतुष्टि कर ली थी। लेकिन अब इच्छा शक्ति का रहस्य समझ लेने के उपरान्त उनकी यह मान्यता बदलती जा रही है। मन की प्रचण्ड शक्ति सामर्थ्य के आस्तित्व को अब सर्वत्र पृथक सत्ता के रूप में स्वीकारा गया है। नवीन विचारधारा के मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि शरीर के भीतर कोई स्वतंत्र सत्ता भी क्रियाशील है, जिसे मन कहा जाता है। शरीर की समस्त गतिविधियों का संचालन उसी के इशारे पर होता है। इच्छा शक्ति और संकल्प शक्ति का उद्गम स्रोत भी वही है। वैज्ञानिक स्तर के परीक्षणों से अब यह सिद्ध हो चुका हैं कि मस्तिष्क के अति संवेदनशील भाग पर बिजली का करेंट लगाया जाय तो व्यक्ति को अपनी स्वतंत्र सत्ता का आभास होने लगता है और वह ऐसा अनुभव करता है कि अपने शरीर की गतिविधियों का संचालन स्वयं ही कर रहा है। भौतिक विज्ञानी भी अब इस तथ्य को पूर्णतः स्वीकार करने लगे हैं कि इस तरह की सत्प्रेरणाओं को उभार सकने में इच्छा शक्ति ही अग्रणी है।
वियना के विश्व प्रसिद्ध मनःचिकित्सक डॉ0 विक्टर फ्रैंचल ने लम्बे समय तक हिटलर के यहूदी बन्दी शिविरों में रहकर क्रूरता पूर्ण अत्याचारों को झेला हैं। उनके समूचे परिवार को उन्हीं के सक्षम गैस चैम्बरों में झोंककर मार डाला गया था। मृत्यु के बादल निरन्तर मँडराते हुए भी उनने अपने जीवन को उपेक्षणीय नहीं समझा। इच्छा शक्ति के बलबूते वे जीवन विरोधी परिस्थितियों में भी अध्ययनरत बने रहे। फलतः उनने साहित्य, वक्तृत्व, और विचार के क्षेत्र में विशिष्ट योग्यता अर्जित कर दिखाई। उनके कथनानुसार इच्छा शक्ति के दुर्बल होने पर व्यक्ति के जीवन में चारों ओर विफलता ही दृष्टिगोचर होने लगती है। ह्रास का यह क्रम निरन्तर चलता रहे तो तो व्यक्ति को न्यूरोसिस जैसी व्याधि आ घेरती है। फ्रैंक्ल का लोगों थैरेपी का सिद्धाँत-जो इच्छा शक्ति के अभिवृद्धि के उपाय सुझाता है, बड़ा ही प्रभावकारी होता है। उनके कथनानुसार जीवन की असफलता, सफलता, उत्कर्ष अपकर्ष, उन्नति अवनति, उत्थान- पतन सब मनुष्य की इच्छा शक्ति की सबलता और निर्बलता के परिणाम है। सशक्त दृढ़ इच्छा शक्ति संपन्न लोगों को कुविचार, कुकल्पनाएँ, भयानक परिस्थितियाँ और उलझने भी विकसित नहीं कर सकती। वे अपने निश्चय पर दृढ़ रहते हैं। उनके विचार स्थिर और निश्चित होते हैं। प्रबल इच्छा शक्ति सं शारीरिक पीड़ा भी उन्हें नहीं डिगा सकती। ऐसे व्यक्ति हर परिस्थिति पर रास्ता निकाल कर आगे बढ़ते रहते हैं। अपने व्यक्तिगत हानि-लाभ से भी प्रभावित नहीं होते।
जनसमूह के समक्ष सत्यवादी और धर्म परायण होने का दिखावा करना एक बात है और उसे स्वेच्छा से जीवन व्यवहार में उतारना सर्वथा दूसरी है। यश की कामना से तो अधिकाँश जन समुदाय परमार्थ प्रवृत्तियों को अपनाने के निरत रह सकता है। लेकिन अंतः प्रेरणा के उभरने पर संभवतः कोई विरले ही ऐसा कर पाते हैं। मनुष्य की महानता इसी में हैं कि वह स्वेच्छा पूर्वक सम्प्रवृत्ति संवर्धन की बात को गले उतारे। उत्कृष्ट जीवन की रीति नीति भी यही हो सकती है। जब टिटहरी और गिलहरी जैसे नगण्य एवं तुच्छ प्राणी विशाल समुद्र को सुखा देने, पाट देने की योजना को सफल बनाने का प्रयत्न कर सकते हैं, तो मनुष्य जैसे सर्वश्रेष्ठ प्राणी को तो अपनी। इच्छा शक्ति का प्रमाण परिचय पूरी तरह देने में क्या संकोच होना चाहिए, मनुष्य जब भी दृढ़ निश्चय कर बैठता है कि मन वह विश्रृंखलित मन रूपी सागर को भी सुखाकर अपने वश में कर सकता है तो इच्छा शक्ति स्वयमेव उभर का आती है। बुद्धि भी उसकी साथी सहयोगी बन जाती है। जो अपनी प्रबल। इच्छा शक्ति को जगाते और अपनी क्षमताओं को सदुपयोग लोकहित में करने लगते हैं, ईश्वर भी उनकी सहायता हेतु सदैव तत्पर रहता है।