• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • समर्थ के अवलम्बन से ही आत्मिक प्रगति
    • जिसने धैर्य नहीं खोया
    • ऋषि मनीषा से समझें विकासवाद को
    • परिष्कृत मनः ऋद्धि-सिद्धियों का भाण्डागार
    • जरा जानें, क्या कहती है वेदवाणी?
    • क्या कभी अपने आपको जानने का प्रयास किया ?
    • सूर्य की आत्मा-महाप्राण-सविता देवता
    • अलौकिक सामर्थ्य से भरी दो विधाएं : योग एवं तन्त्र
    • सेठ जमनालाल बजाज (Information)
    • काश ! सबके जीवन की राह इसी तरह बदल जाए
    • संकल्प (Kahani)
    • आत्महनन एक महापातक
    • बर्बरता मिटायी शहादत से
    • एकाकी (Information)
    • गुरु अमृत की खान
    • सूर्य (Kahani)
    • कच्छ के भीमक साहेब
    • रोगों की जड़ें तन में नहीं, मन में
    • विवेक पर टिका है सफल दाम्पत्य
    • मुस्कराना सीखें- मनोविकारों से बचें
    • मुझे सिद्धियाँ नहीं चाहिए
    • गुरुपूर्णिमा पर विशेष - प्रज्ञावतार की सत्ता एवं प्रज्ञा परिजनों की भूमिका
    • सद्गृहस्थ (Kahani)
    • तीर्थ सेवन एवं परिव्राजक धर्म-परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • अनुयाज पुनर्गठन-1 विशेष लेखमाला-6 - स्वाध्याय-मनन-चिन्तन का व्यावहारिक स्वरूप
    • गुरु पर्व पर विशेष-1 - शाश्वत गुरु का श्रद्धार्चन दिवस-गुरु पूर्णिमा
    • एक सामयिक पुनर्प्रकाशित लेख - इन दिनों शासन तंत्र से हमें क्या अपेक्षाएँ रखती चाहिए
    • राजेन्द्र बाबू की मितव्यता Kahani
    • अपनों से अपनी बात - मुरझाये कल्पवृक्षों में प्राण संचार अब अनिवार्य
    • चैतन्य तीर्थ शान्तिकुँज की - “सजल श्रद्धा-प्रखर प्रज्ञा”
    • अपने कृतज्ञता भाव को जीवन्त बनाए रखें
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • समर्थ के अवलम्बन से ही आत्मिक प्रगति
    • जिसने धैर्य नहीं खोया
    • ऋषि मनीषा से समझें विकासवाद को
    • परिष्कृत मनः ऋद्धि-सिद्धियों का भाण्डागार
    • जरा जानें, क्या कहती है वेदवाणी?
    • क्या कभी अपने आपको जानने का प्रयास किया ?
    • सूर्य की आत्मा-महाप्राण-सविता देवता
    • अलौकिक सामर्थ्य से भरी दो विधाएं : योग एवं तन्त्र
    • सेठ जमनालाल बजाज (Information)
    • काश ! सबके जीवन की राह इसी तरह बदल जाए
    • संकल्प (Kahani)
    • आत्महनन एक महापातक
    • बर्बरता मिटायी शहादत से
    • एकाकी (Information)
    • गुरु अमृत की खान
    • सूर्य (Kahani)
    • कच्छ के भीमक साहेब
    • रोगों की जड़ें तन में नहीं, मन में
    • विवेक पर टिका है सफल दाम्पत्य
    • मुस्कराना सीखें- मनोविकारों से बचें
    • मुझे सिद्धियाँ नहीं चाहिए
    • गुरुपूर्णिमा पर विशेष - प्रज्ञावतार की सत्ता एवं प्रज्ञा परिजनों की भूमिका
    • सद्गृहस्थ (Kahani)
    • तीर्थ सेवन एवं परिव्राजक धर्म-परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • अनुयाज पुनर्गठन-1 विशेष लेखमाला-6 - स्वाध्याय-मनन-चिन्तन का व्यावहारिक स्वरूप
    • गुरु पर्व पर विशेष-1 - शाश्वत गुरु का श्रद्धार्चन दिवस-गुरु पूर्णिमा
    • एक सामयिक पुनर्प्रकाशित लेख - इन दिनों शासन तंत्र से हमें क्या अपेक्षाएँ रखती चाहिए
    • राजेन्द्र बाबू की मितव्यता Kahani
    • अपनों से अपनी बात - मुरझाये कल्पवृक्षों में प्राण संचार अब अनिवार्य
    • चैतन्य तीर्थ शान्तिकुँज की - “सजल श्रद्धा-प्रखर प्रज्ञा”
    • अपने कृतज्ञता भाव को जीवन्त बनाए रखें
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1996 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


गुरु अमृत की खान

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 14 16 Last
बीज में वृक्ष बनने की पूरी-पूरी सम्भावना विद्यमान रहती है, पर कुशल माली अथवा किसान का सहयोग न मिले तो उसके अंकुरित होने तथा विकसित होकर फल-फूल देने योग्य बन चलने का सुअवसर नहीं मिल पाता। किसी प्रकार अपने पुरुषार्थ से, हवा आदि के झोंके के सहारे वह कहीं भूमि में पड़ भी जाय तो भी उसका वह समग्र विकास नहीं हो पाता, जो माली के सहयोग से हो सकता था। जो गरिमा, उपयोगिता एवं उपादेयता सजे-सँवरे उद्यान में विकसित हुए पौधों एवं खेतों में लहलहाते पौधों की होती है, वह झाड़-झंखाड़ों में किसी तरह प्रकृति के सहयोग से उग आये पुष्य एवं खाद्यान्न उत्पादन करने वाले पौधों की नहीं होती। विकसित होने की सभी विशेषताएँ अपने भीतर सन्निहित किये होने के बावजूद भी बीज को अभीष्ट सहयोग अपेक्षित होता है। वह मिलते ही बीज की तभी सम्भावनाएँ साकार होने लगती और पौधे के रूप में बदलते देरी नहीं लगती।

मनुष्य कितना भी समर्थ क्यों न हो, वह एकाकी कुछ भी नहीं कर सकता। जन्मने से लेकर मरने तक उसे प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष सहयोग किसी न किसी रूप में मिलता रहता है। जन्म के समय शरीर की सुरक्षा पोषण एवं विकास की जिम्मेदारी माता-पिता न सँभालें तो उसे अपना अस्तित्व बनाये रखना भी कठिन होगा। हजारोँ वर्षों का संचित ज्ञान, विज्ञान एवं अनुभव उसे कुछ की समय में मुफ्त में ही प्राप्त हो जाता है। लिपि बनाने, भाषा गढ़ने, विज्ञान का आविष्कार करने, अनेकानेक साधनों का निर्माण करने, साहित्य, कला इतिहास, भूगोल, कृषि जैसी अनेकानेक ज्ञान की विधाओं का नये सिरे से मनुष्य को अकेले अनुसंधान करना पड़े तो उसे एक जीवन तो क्या हजारों जीवन समूची उपलब्धियों को करतलगत करने के लिए खपाने होंगे। पर यह सौभाग्य ही कहना चाहिए कि पूर्वजों का संचित ज्ञान और उन ज्ञान की धाराओं की व्याख्या - विवेचना करने वाले मनीषियों का सहयोग उसे अनायास ही प्राप्त है। इस सहयोग को पाकर कितने ही व्यक्ति भौतिक क्षेत्र में योग्य, प्रतिभाशाली, विद्वान बनते देखे जाते हैं।

कहा तो जाता है कि मनुष्य सर्वसमर्थ है तथा अपने प्रचण्ड पुरुषार्थ के सहारे बहुत कुछ कर सकता है पर कब? जबकि उसे प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष सामाजिक सहकार मिलता रहे। मौलिक क्षमता, प्रतिभा का अपना महत्व तो है, पर वे उपयुक्त परिस्थितियां पाकर ही उभरती है।

एकाकी पुस्तकीय ज्ञान भी पर्याप्त नहीं होता, न ही वह मनुष्य के व्यावहारिक जीवन का मार्गदर्शन करने में समक्ष है। मात्र पुस्तकों के अध्ययन से कोई डॉक्टर, इंजीनियर वैज्ञानिक नहीं बन सकता । ऐसा सम्भव रहा होता तो हर व्यक्ति बाजार में उपलब्ध सम्बद्ध विषयों की पुस्तकों को खरीदकर, उनके अध्ययन द्वारा अभीष्ट विषय में दक्षता और प्रवीणता प्राप्त कर लेता। पुस्तकें सर्वसुलभ होते हुए मात्र उनके अध्ययन के बलबूते कोई विशेषज्ञ कहाँ बन पाता है ? आशय यह है कि पुस्तकों के साथ-साथ अध्यापक का मार्गदर्शन, शिक्षण आवश्यक ही नहीं अनिवार्य होता है। विशेष प्रकार का तकनीकी ज्ञान प्राप्त करने-कला, साहित्य, विज्ञान आदि क्षेत्रों में विशेषता हासिल करने के लिए अपने-अपने ढंग का प्रत्यक्ष मार्गदर्शन अपेक्षित होता है।

साधना क्षेत्र में भी यहीं सिद्धान्त लागू होता है। भौतिक क्षेत्र की तुलना में आध्यात्मिक क्षेत्र कहीं अधिक अविज्ञात है और उतना ही रहस्यमय भी। भौतिक जगत एवं सम्बन्धित वस्तुएँ तो प्रत्यक्ष दिखाई पड़ती हैं, पर अध्यात्म का क्षेत्र तो पूर्णतया परोक्ष है। प्रत्यक्ष की तुलना परोक्ष में भटकाव की अधिक गुंजाइश रहती है। इस भटकाव की सम्भावना इसलिए भी अधिक रहती है कि साधना में आन्तरिक पुरुषार्थ करना पड़ता है। सर्वप्रथम स्वयं पर विजय प्राप्त करनी पड़ती है। अपने गुण, कर्म, स्वभाव का विश्लेषण कर लेना सबसे अधिक कठिन कार्य है। उनके परिमार्जन एवं विकास के लिए साधन-उपचार ढूँढ़ लेना तो और भी कठिन पड़ता है। उंगली पर गिने जाने वाले विरले ही होते हैं, जो एकाकी अपने बलबूते स्वयं का निरीक्षण, परीक्षण कर लेने एवं आवश्यक सुधार आदि के उपक्रम में सफल हो जाते हैं। वे अपवाद हैं जो साधना क्षेत्र में अपने एकाकी पुरुषार्थ के सहारे बढ़ चलने और मंजिल तक पहुँच जाने में सफल होते हैं। उनकी सफलताओं में भी जन्म-जन्मान्तरों की साधना के संचित संस्कार एवं अनुभव ही सूक्ष्म रूप से प्रेरणा देते एवं मार्गदर्शन की भूमिका निभाते हैं, पर अपवाद तो अपवाद ही हैं, वे जनसामान्य के अनुकरण के विषय नहीं हो सकते। इन अपवादों का अन्धानुकरण करने से तो असफलता ही हाथ लगती और साधना क्षेत्र में भटकाव ही पल्ले पड़ता है।

साधना क्षेत्र में प्रचण्ड पुरुषार्थी बुद्ध कभी-कभी प्रकट होते हैं, जो बिना किसी की सहायता के ही आत्मज्योति को जला लेने में सफल हो जाते हैं। लगन एवं भक्ति भावना के धनी रामकृष्ण परमहंस जैसे साधक का अवतरण कभी-कभी होता है, जिनका अन्तःप्रकाश स्वतः उनकी साधना का मार्गदर्शन करता है। आत्म-तत्व का, अपने एकाकी पुरुषार्थ द्वारा साक्षात्कार कर लेने वाले संकल्प के धनी रामतीर्थ, रामदास तो कभी-कभी ही प्रकट होते हैं, अन्यथा साधना के रहस्यमय एवं अविज्ञात क्षेत्र में प्रविष्ट करने वाले अधिकाँश साधकों को प्रत्यक्ष मार्गदर्शन एवं संरक्षण अभीष्ट होता है।

यों तो साधना के विधि-विधानों, क्रियाओं एवं उनकी परिणतियों का विस्तारपूर्वक वर्णन धर्मग्रन्थों, योग-शास्त्रों में मिलता है पर मात्र उन्हें पढ़कर साधना आरम्भ कर देना संकट से खाली नहीं है। शास्त्रों धर्मग्रन्थों की उपयोगिता उतनी ही है जितनी कि विद्यालय में शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्र को सम्बन्धित विषयों की पुस्तकों की पड़ती है। सर्वविदित है कि एकाकी पुस्तकें किसी भी क्षेत्र का मार्गदर्शन करने में सक्षम नहीं हो सकतीं, तो फिर साधना जैसे अवात क्षेत्र का मार्गदर्शन अकेले शास्त्र कैसे कर सकते हैं ? कहना न होगा मार्ग-दर्शन का गुरुवर दायित्व समर्थगुरु ही सँभाल सकता है।

गुरु की महिमा का गुणगान शास्त्रकारों, मनीषियों, धर्मग्रंथों सभी ने एक स्वर में किया है । गुरु की महत का प्रतिपादन करने वाले ऋषियों ने उसे बहता, विष्णु और महेश जैसे मूर्धन्य देवताओं से भी बढ़कर परब्रह्म के रूप में अभिनन्दित किया है। सद्गुरु की प्राप्ति के संदर्भ में एक सन्त का कहना है कि -

सह तनु विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान। सीस दिखे जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान॥

कबीरदास जो कहते हैं,

गुरु गोविन्द दोऊ खड़ें, काके लागूँ पायँ। खलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियों बताय।

सद्गुरु की महिमा गाते-गाते शास्त्रकार थकते नहीं। मनीषियोँ ने निरन्तर यही कहा है कि आत्मिक प्रगति के लिए गुरु की सहायता आवश्यक है। इसके बिना आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त नहीं होता। जिस गुरु तत्व की वन्दना-अभ्यर्थना शास्त्रकारोँ ने की है वह गुरु वस्तुतः मानवी अन्तःकरण है। निरन्तर सद् शिक्षण और उर्ध्वगमन का प्रकाश दे सकना इसी केन्द्र के लिए सम्भव हैं। अपने अंतःकरण को निरन्तर कुचलते रहने, उसकी पुकार को अनसुनी करते रहने से आत्मा की आवाज मन्द पड़ जाती है। आत्मा का अवज्ञा करते रहने वालों को ही दुर्बुद्धिग्रस्त और दुष्कर्म लिप्त पाया जाता है, अन्यथा संजीव आत्मा की प्रेरणा सामान्य स्थिति में इतनी प्रखर होती है कि कुमार्ग का अनुसरण कर सकना मनुष्य के लिए सम्भव ही नहीं होता। यह आत्मिक प्रखरता ही वस्तुतः वह तात्विक गुह्य है जिसकी महिमा का गुणगान करते शास्त्र नहीं अघाते।

शास्त्रकारोँ ने सद्गुरु का वन्दन करते हुए उसे परमानन्ददायक परब्रह्म कहा है। यह अन्तःकरण रूपी सद्गुरु का ही निरूपण है। गुरु को गोविन्द से भी बढ़कर मानने की मान्यता अन्तरात्मा को परमात्मा का उपलब्धि आधार समझने के लिए ही प्रतिष्ठापित की गई है। निरन्तर परामर्श और अहर्निशि साथ दे सकना अन्ततः सद्गुरु द्वारा ही सम्भव है। उसी की प्रखरता, नियन्त्रण और अंकुश साधक को भटकावों से बचाता है। अवाँछनीयताओं का डटकर प्रतिरोध कर सकना प्रखर अन्तरात्मा द्वारा ही संभव है।

पर इस अन्तःकरण रूपी सद्गुरु की भूमिका बाद में आरम्भ होती है। सामान्यतः कषाय-कल्मषों, मल-विक्षोभों के आवरण से अन्तःकरण ढका रहता है। फलतः उसकी प्रेरणा एवं प्रकाश साधक को नहीं मिल पाता है।

शरीरधारी गुय का पवरण इसलिए आवश्यक हो जाता है। उसकी कृपा अनुकम्पा हो जाता है। उसकी कृपा अनुकंपा से ही अन्तः करण का प्रकाश आलोकित होता है तथा आन्तरिक सद्गुरु भी अपनी भूमिका सम्पादित कर सकने में समर्थ बनाता है। कहा जा चुका है कि विरले ही हुए हैं जो आरम्भ से ही अपने एकाकी बलबूते अन्तःप्रेरणाओं के आधार पर साधन का कंटकाकीर्ण मार्ग पार करने और मंजिल तक जा पहुँचने में समर्थ हुए हैं अन्यथा अधिकाँश प्रत्यक्ष समर्थ शरीरधारी गुरु को ही सहायता, कृपा से लक्ष्य तक पहुँचने में समर्थ हो सके हैं।

वे बहुत सौभाग्यशाली हैं, जिन्हें समर्थ गुरु का संरक्षण एवं मार्गदर्शन प्राप्त है। ऐसा गुरु जो वरिष्ठ और विश्वमित्र की विशेषताओं में सम्पन्न हो, जिसने अपने प्रचण्ड तप द्वारा ईश्वरीय सत्ता का साक्षात्कार किया हो, जो बुद्ध की भाँति आत्मबल का धनी हो, रामकृष्ण की तरह जिसके अंतःकरण से भक्तिरस की धारा प्रस्फुटित होती हो, जो कृष्ण की भाँति रोग विभूतियों से सुसम्पन्न हो, सचमुच जिन्हें ऐसे समर्थ गुरु का प्रत्यक्ष मार्गदर्शन मिल गया समझना चाहिए कि जीन लक्ष्य प्राप्ति के लिए की जाने वाली साधना की आधी मंजिल पूरी हो गयी तथा उत्तरोत्तर गति से आगे बढ़ने का एक सशक्त आधार-अवलम्बन मिल गया।

First 14 16 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • समर्थ के अवलम्बन से ही आत्मिक प्रगति
  • जिसने धैर्य नहीं खोया
  • ऋषि मनीषा से समझें विकासवाद को
  • परिष्कृत मनः ऋद्धि-सिद्धियों का भाण्डागार
  • जरा जानें, क्या कहती है वेदवाणी?
  • क्या कभी अपने आपको जानने का प्रयास किया ?
  • सूर्य की आत्मा-महाप्राण-सविता देवता
  • अलौकिक सामर्थ्य से भरी दो विधाएं : योग एवं तन्त्र
  • सेठ जमनालाल बजाज (Information)
  • काश ! सबके जीवन की राह इसी तरह बदल जाए
  • संकल्प (Kahani)
  • आत्महनन एक महापातक
  • बर्बरता मिटायी शहादत से
  • एकाकी (Information)
  • गुरु अमृत की खान
  • सूर्य (Kahani)
  • कच्छ के भीमक साहेब
  • रोगों की जड़ें तन में नहीं, मन में
  • विवेक पर टिका है सफल दाम्पत्य
  • मुस्कराना सीखें- मनोविकारों से बचें
  • मुझे सिद्धियाँ नहीं चाहिए
  • गुरुपूर्णिमा पर विशेष - प्रज्ञावतार की सत्ता एवं प्रज्ञा परिजनों की भूमिका
  • सद्गृहस्थ (Kahani)
  • तीर्थ सेवन एवं परिव्राजक धर्म-परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
  • अनुयाज पुनर्गठन-1 विशेष लेखमाला-6 - स्वाध्याय-मनन-चिन्तन का व्यावहारिक स्वरूप
  • गुरु पर्व पर विशेष-1 - शाश्वत गुरु का श्रद्धार्चन दिवस-गुरु पूर्णिमा
  • एक सामयिक पुनर्प्रकाशित लेख - इन दिनों शासन तंत्र से हमें क्या अपेक्षाएँ रखती चाहिए
  • राजेन्द्र बाबू की मितव्यता Kahani
  • अपनों से अपनी बात - मुरझाये कल्पवृक्षों में प्राण संचार अब अनिवार्य
  • चैतन्य तीर्थ शान्तिकुँज की - “सजल श्रद्धा-प्रखर प्रज्ञा”
  • अपने कृतज्ञता भाव को जीवन्त बनाए रखें
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj