• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • समर्थ के अवलम्बन से ही आत्मिक प्रगति
    • जिसने धैर्य नहीं खोया
    • ऋषि मनीषा से समझें विकासवाद को
    • परिष्कृत मनः ऋद्धि-सिद्धियों का भाण्डागार
    • जरा जानें, क्या कहती है वेदवाणी?
    • क्या कभी अपने आपको जानने का प्रयास किया ?
    • सूर्य की आत्मा-महाप्राण-सविता देवता
    • अलौकिक सामर्थ्य से भरी दो विधाएं : योग एवं तन्त्र
    • सेठ जमनालाल बजाज (Information)
    • काश ! सबके जीवन की राह इसी तरह बदल जाए
    • संकल्प (Kahani)
    • आत्महनन एक महापातक
    • बर्बरता मिटायी शहादत से
    • एकाकी (Information)
    • गुरु अमृत की खान
    • सूर्य (Kahani)
    • कच्छ के भीमक साहेब
    • रोगों की जड़ें तन में नहीं, मन में
    • विवेक पर टिका है सफल दाम्पत्य
    • मुस्कराना सीखें- मनोविकारों से बचें
    • मुझे सिद्धियाँ नहीं चाहिए
    • गुरुपूर्णिमा पर विशेष - प्रज्ञावतार की सत्ता एवं प्रज्ञा परिजनों की भूमिका
    • सद्गृहस्थ (Kahani)
    • तीर्थ सेवन एवं परिव्राजक धर्म-परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • अनुयाज पुनर्गठन-1 विशेष लेखमाला-6 - स्वाध्याय-मनन-चिन्तन का व्यावहारिक स्वरूप
    • गुरु पर्व पर विशेष-1 - शाश्वत गुरु का श्रद्धार्चन दिवस-गुरु पूर्णिमा
    • एक सामयिक पुनर्प्रकाशित लेख - इन दिनों शासन तंत्र से हमें क्या अपेक्षाएँ रखती चाहिए
    • राजेन्द्र बाबू की मितव्यता Kahani
    • अपनों से अपनी बात - मुरझाये कल्पवृक्षों में प्राण संचार अब अनिवार्य
    • चैतन्य तीर्थ शान्तिकुँज की - “सजल श्रद्धा-प्रखर प्रज्ञा”
    • अपने कृतज्ञता भाव को जीवन्त बनाए रखें
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • समर्थ के अवलम्बन से ही आत्मिक प्रगति
    • जिसने धैर्य नहीं खोया
    • ऋषि मनीषा से समझें विकासवाद को
    • परिष्कृत मनः ऋद्धि-सिद्धियों का भाण्डागार
    • जरा जानें, क्या कहती है वेदवाणी?
    • क्या कभी अपने आपको जानने का प्रयास किया ?
    • सूर्य की आत्मा-महाप्राण-सविता देवता
    • अलौकिक सामर्थ्य से भरी दो विधाएं : योग एवं तन्त्र
    • सेठ जमनालाल बजाज (Information)
    • काश ! सबके जीवन की राह इसी तरह बदल जाए
    • संकल्प (Kahani)
    • आत्महनन एक महापातक
    • बर्बरता मिटायी शहादत से
    • एकाकी (Information)
    • गुरु अमृत की खान
    • सूर्य (Kahani)
    • कच्छ के भीमक साहेब
    • रोगों की जड़ें तन में नहीं, मन में
    • विवेक पर टिका है सफल दाम्पत्य
    • मुस्कराना सीखें- मनोविकारों से बचें
    • मुझे सिद्धियाँ नहीं चाहिए
    • गुरुपूर्णिमा पर विशेष - प्रज्ञावतार की सत्ता एवं प्रज्ञा परिजनों की भूमिका
    • सद्गृहस्थ (Kahani)
    • तीर्थ सेवन एवं परिव्राजक धर्म-परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • अनुयाज पुनर्गठन-1 विशेष लेखमाला-6 - स्वाध्याय-मनन-चिन्तन का व्यावहारिक स्वरूप
    • गुरु पर्व पर विशेष-1 - शाश्वत गुरु का श्रद्धार्चन दिवस-गुरु पूर्णिमा
    • एक सामयिक पुनर्प्रकाशित लेख - इन दिनों शासन तंत्र से हमें क्या अपेक्षाएँ रखती चाहिए
    • राजेन्द्र बाबू की मितव्यता Kahani
    • अपनों से अपनी बात - मुरझाये कल्पवृक्षों में प्राण संचार अब अनिवार्य
    • चैतन्य तीर्थ शान्तिकुँज की - “सजल श्रद्धा-प्रखर प्रज्ञा”
    • अपने कृतज्ञता भाव को जीवन्त बनाए रखें
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1996 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


अपनों से अपनी बात - मुरझाये कल्पवृक्षों में प्राण संचार अब अनिवार्य

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 28 30 Last
(शक्तिपीठों में त्रैमासिक प्रशिक्षण की अभिनव योजना)

नवयुग का दृश्यमान अवतरण, प्रभातकाल के अरुणोदय के समतुल्य माना जाय तो उसकी किरणें गायत्री शक्तिपीठों के रूप में व्यापक आलोक वितरण करती प्रतीत होंगी। सूक्ष्म कितना ही प्रचण्ड क्यों न हो, उसका दृश्य स्वरूप स्थूल कलेवर के रूप में ही देखा जा सकता है। मानवी सत्ता चेतन होने के कारण सूक्ष्म है। जीव का स्वरूप आँखों से नहीं देखा जा सकता, तो भी उसका परिचय काय-कलेवर के रूप में मिलता है। आमतौर से शरीर को ही व्यक्ति माना जाता है। व्यक्ति को ही जीव समझा जाता है। यों वस्तुतः दोनों पृथक् हैं। शरीर पंचभौतिक है और आत्मा अभौतिक। तो भी दोनों इस प्रकार गुँथे होते हैं कि सामान्य बुद्धि उनका अलगाव नहीं कर पाती। लोकमान्यता में जीव और शरीर का संयुक्त स्वरूप ही परिचय में आता और प्रभावी प्रतीत होता है। ठीक यह बात युगान्तरकारी चेतना के विषय में है, गायत्री शक्तिपीठें इसी का दृश्यमान कलेवर हैं, जिसकी प्रचण्ड क्षमता को इन्हीं दिनों परिवर्तन और सृजन की सामयिक आवश्यकताओं का पूरा होते देखा जाना है।

थ्वगलित का अभिनव के रूप में प्रत्यावर्तन ही युग परिवर्तन है। व्यष्टि में दुष्टता और समष्टि में भ्रष्टता के तत्व बढ़ गए हैं। औचित्य का स्थान औद्धत्य हथियाता चला जा रहा है। समूहगत सहकारिता कुण्ठित हो गयी है और संकीर्ण स्वार्थपरता का बोलबाला है प्रवृत्तियाँ सृजन का बहाना भर करती हैं, व्यवहार में ध्वंस ही उनकी दिशाधारा है। ऐसी दशा में बड़ा परिवर्तन और प्रत्यावर्तन से कम में काम नहीं चल सकता। प्रवाह को उलटना बड़ा काम है। विशेषतया निकृष्टता की सड़क पर जब आतुर घुड़दौड़ मच रही हो तो पवमनों की लगाम पकड़ना और उन्हें रुकने ही नहीं, उलटने को विवश करना एक बहुत बड़ा काम है। साथ ही अति कठिन भी, श्रम- साध्य और साधन−साध्य भी। क्रान्तियों की बात करना सरल है, योजनाएँ बनते देर नहीं लगतीं, किन्तु उन्हें कर दिखाना और सफल बनाना दुस्तर होता है। श्रेय हलचलों को नहीं, सफल प्रतिफल को मिलता है। इस दृष्टि से क्षेत्रीय और सामयिक क्रान्तियाँ भी आँशिक रूप से ही सफल हो पाती हैं। फिर छह सौ करोड़ मनुष्यों की मनःस्थिति और पच्चीस हजार मील परिधि के भूमण्डल की परिस्थिति को बदल देना कितना कठिन कार्य है, इसकी कल्पना करने भर से सामान्य बुद्धि हतप्रभ हो जाती है। लेकिन जिन्हें विशिष्ट प्रज्ञा का दैवी अनुदान प्राप्त है। जिनकी आँखें खगोलीय और भूगोलीय मन्थन की तीव्रता और व्यापकता को देख रही हैं, उन्हें यह अहसास हो चला है कि अब परिवर्तन हुए बिना न रहेगा। इसके सिवा दूसरा कोई विकल्प भी तो नहीं। यह जीवन और मरण का चौराहा है। जहाँ आज की दुनिया आ खड़ी हुई है। वहाँ से आगे बढ़ने के लिए दो ही मार्ग हैं एक सर्वनाश, दूसरा नवसृजन। चुनाव इन्हीं दोनों में से एक का होना है। नियति को इन्हीं दोनों में से एक का चयन करना है। प्रस्तुत परिस्थितियों में निर्णायक की भूमिका सृष्टि के सूत्र-संचालन को निभानी है और वह निभा भी रहा है, निश्चय ही उसे अपनी इस अनुपम कलाकृति का विनाश अमान्य है। छूट तो बच्चे को भी मिलती है और अभिभावक उसकी स्वतन्त्रता एवं सक्रियता को एक सीमा तक चलने भी देते हैं पर जब बचपन विनाश से खेलने को मचलता हो तो अभिभावकों का उत्तरदायित्व आगे आता है और सहमत या असहमत होने की परवाह किए बिना बालक को उद्धतता छोड़ने और औचित्य अपनाने के लिए विवश करता है। इन दिनों भी यही होने जा रहा है। स्रष्टा ने समय-समय पर असन्तुलन निभाई है। नियति के अन्यान्य निर्धारणों की तरह सन्तुलन में सूक्ष्म चेतना का यथासमय अवतरण होना भी एक सुनिश्चित विधान है। उसे ऐसे ही अवसरों पर सक्रिय होना पड़ता है, जैसे कि आज हैं। अधर्म के उन्मूलन और धर्म के संस्थापन की आवश्यकता जब भी अनिवार्य हुई है, तभी ‘तदात्मानं सृजाम्यहम’ का आश्वासन मूर्तिमान होते और आश्वासन की पूर्ति करते देखा गया है। अवतार की सुदीर्घ शृंखला का यही इतिहास है।

इसी में एक नया अध्याय, प्रज्ञावतरण का इन्हीं दिनों और जुड़ गया है। आस्था संकट की सघन तमिस्रा का निराकरण ऋतम्भरा प्रज्ञा की प्रभात बेला ही कर सकती है। गायत्री यही है। जनमानस का परिष्कार एवं देवयुग का निर्धारण उसी तत्वज्ञान के आलोक से सम्भव होगा। यों इसे पिछले दिनों एक वर्ग विशेष की पूजा-पत्री तक सीमित समझा गया था, पर वह वस्तुतः इतनी स्वल्प और सीमित है नहीं। मानव जीवन के समग्र विकास का तत्व ज्ञान इसमें निहित होने के कारण इसे गुरुमन्त्र कहा गया है। गुरु तत्व द्वारा मिलने वाली श्रद्धा , प्रेरणा, भाव संवेदना एवं अनुशासन का प्रकाश इसमें निहित है। इसके अवलम्बन से देवयुग में स्वर्गीय परिस्थितियों का लाभ चिरकाल तक इस धरती के निवासी उठाते रहे हैं। नवनिर्माण की सन्धिबेला में गायत्री शक्तिपीठों के माध्यम से वही पुरातन-पुनर्जीवित होने को है। इन सृजन संस्थानों से देव युग की वापसी आश्चर्यजनक तो लग सकती है, पर उसमें ऊर्जा के हर प्रभात में बार-बार उदय होने के गति चक्र का परिभ्रमण मात्र ही तथ्य है।

सूक्ष्म को प्रेरणा-स्थल में हलचल बनकर प्रकट होती हैं। ऋतुओं के बदलते ही परिस्थितियाँ किस प्रकार उलट जाती हैं, इस चमत्कार से हर कोई परिचित है। शीत और ग्रीष्म की प्रतिक्रियाएँ और व्यवस्थाएँ एक-दूसरे से कितनी भिन्न होती हैं ? वर्षा के महीने और गर्मी के दिन एक-दूसरे से कितने भिन्न होते हैं। यह सर्वविदित है। यह सूक्ष्म परिवर्तन का स्थूल प्रभाव है। अदृश्य की दृश्य के रूप में परिणति है। मनुष्य की आस्था, आकाँक्षा बदलने पर उसकी गतिविधियों और सम्भावनाओं में कितनी बड़ी उलट-पुलट होती है, इसके प्रमाण आये दिन पग-पग पर देखे जाते हैं। बड़े और व्यापक परिवर्तन इसी प्रकार होते हैं। साधनों की सहायता से भी कई बार कुछ बड़े हेर-फेर देखे गए हैं। बुद्धि कौशल और व्यवस्था विधान से भी कई बार चमत्कार दिखाता है। किन्तु लोकप्रवाह बदलने जैसे व्यापक और जटिल प्रयोजन की पूर्ति चेतना जगत में उठने वाले प्रचण्ड प्रवाह ही सम्पन्न करते हैं।

देखने वाले देखते हैं और जानने वाले जानते हैं कि जब कभी सृजनात्मक परिवर्तन हुए हैं तो अंतर्जगत में आदर्शवादिता अपनाने वाली उमंगें आँधी-तूफान की तरह उमंगी हैं और उनके प्रचण्ड प्रवाह में पत्ते तिनके तक आकाश चूमने का असम्भाव्य सम्भव करके दिखाते रहे हैं। यही है युग परिवर्तन की सन्धिबेलाओं में अपनी प्रमुख भूमिका निभाने वाली समर्थता। जो उत्पन्न तो अंतर्जगत में होती है, पर उलटकर सारे वातावरण को रख देती है। अपने समय में युग परिवर्तन की यही पुण्यबेला है। इसके अन्तराल में महाकाल का प्रचण्ड प्रयास चल रहा है, उसी के फलस्वरूप अनेकानेक सृजनात्मक प्रवृत्तियाँ मानवीय प्रयत्नों में सम्मिलित हो रही हैं। गायत्री शक्तिपीठों द्वारा इन्हें ही सुनियोजित एवं सुसंगठित किया जाना है। विवाद यह हो सकता है कि स्थूल प्रयत्नों से लोकचेतना उत्पन्न हुई या सूक्ष्म प्रवाह ने प्रयत्नों को उभारा ? इस प्रश्न के उत्तर में इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि महाकाल की चेतना एवं गायत्री परिवार का स्थूल कलेवर दोनों अविच्छिन्न रूप से जीव और शरीर की तरह गुँथे और परिवर्तन एवं सृजन के उभयपक्षीय प्रयोजन में एकजुट होकर परिपूर्ण तत्परता के साथ तन्मय हो रहे हैं। सूक्ष्म जगत की प्रेरणाएँ और स्थूल जगत की प्रवृत्तियां संयुक्त रूप से नवसृजन का ढाँचा खड़ा कर रही हैं।

इस क्रम में इस वर्ष के गुरु पर्व पर क्रियान्वित करने के लिए चेतना की उच्चस्तरीय कक्षा से एक संदेश का अवतरण हुआ है। गुरु सत्ता की परावाणी ने यह उद्बोधन दिया है कि शक्तिपीठों में उन गतिविधियों को अविलम्ब शुरू किया जाय, जिसके लिये विनिर्मित हुई थीं। इस सन्देश में शक्तिपीठों की वर्तमान अवस्था एवं व्यवस्था पर छोभ था, एक गहरी टीस थी और साथ ही सुझाई गयी योजना के क्रियान्वयन के लिए भरपूर समर्थ संरक्षण एवं ऊर्जा अनुदान का स्पष्ट आश्वासन।

इन निर्देश के अनुरूप शान्तिकुँज ने शक्तिपीठों के लिए एक त्रैमासिक प्रशिक्षण कार्यक्रम की योजना तैयार की है। इसे शक्तिपीठों से जुड़े , मिशन की गतिविधियों के लिए समर्पित , अपने क्षेत्र की समस्याओं के जानकार कार्यकर्ताओं के सुझाव-परामर्श एवं वैचारिक आदान-प्रदान के आधार पर क्रियान्वित किया जाएगा। परिजन इन पंक्तियों को गम्भीरता से लें, इस कार्य में अपनी भागीदारी को गुरुसत्ता के प्रति अपनी सच्ची श्रद्धाँजलि समझें।

इस कार्य में क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं के सुझाव बहुमूल्य हैं। क्योंकि इन्हीं के आधार पर क्षेत्र विशेष के लिए प्रशिक्षण के विशेष पाठ्यक्रम का निर्धारण किया जाएगा। क्षेत्र विशेष की समस्याओं को जाने, समझे, अनुभव किए बगैर हर कहीं एक जैसा पाठ्यक्रम थोप देने की प्रक्रिया विशेष की आदत से प्रशिक्षण की गुणवत्ता कम होगी, साथ ही स्थान विशेष की समस्याओं का निराकरण भी न पड़ेगा।

यही कारण है कि इस क्रम में क्षेत्र की समस्याओं और आवश्यकता को वरीयता दी गयी है। परिजन यह सुझाएँगे कि उनके क्षेत्र में सत्प्रवृत्ति सम्वर्धन एवं दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन के किन कार्यक्रमों को लागू किया जाना चाहिए। नशा उन्मूलन, पर्यावरण सम्वर्धन, प्रौढ़ शिक्षा, बाल संस्कारशाला आदि विभिन्न कार्यक्रमों में किनकी उपादेयता उनके क्षेत्र में सर्वाधिक है। इस तरह के अध्ययन एवं सर्वेक्षण के आधार पर शान्तिकुँज में प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाएगा। प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले ये सभी प्रशिक्षक विशिष्ट एवं वरिष्ठ स्तर के होंगे। ताकि न केवल वे शक्तिपीठों को केन्द्र बनाकर वहाँ आस-पास के क्षेत्र में मिशन की गतिविधियों का प्रसार कर सकें बल्कि क्षेत्र विशेष की समस्याओं , संगठनात्मक गुत्थियों को सुलझाने में अपनी समर्थता सिद्ध कर सकें।

प्रशिक्षण कार्यक्रमों की अवधि त्रैमासिक रखे जाने के पीछे महत्वपूर्ण सोच यह रही है कि इस अवधि में केन्द्र के द्वारा भेजे जाने वाले प्रशिक्षक, प्रशिक्षण कार्यक्रम के संचालन के साथ ही इकाई को समर्थ एवं सशक्त बनाने में उचित सहयोग दे सकेंगे। तीन दिन या पाँच दिन की अवधि में सामान्य परिचय भर का कार्य सम्पन्न हो पाता है। इतनी स्वल्प अवधि में घर-घर जाकर मिशन का परिचय देना, नए कार्यकर्त्ताओं को प्रशिक्षण देना उत्साह खो चुके लोगों में नए उत्साह का संचार करना, आपस की उलझनों को मिल-बैठ कर सुलझाना जैसी बातों की सम्भावना नहीं रहती।

इस कार्यक्रम में पहले किन शक्तिपीठों को लिया जाय, यह भी निर्धारित कर लिया गया है। पहले चरण में इनकी संख्या प्रायः पच्चीस से पचास तक रहेगी और प्रत्येक शक्तिपीठ में इन तीन महीनों के लिए दो प्रशिक्षकों को भेजा जाएगा। जो अपनी सृजन गतिविधियों में नल-नील एवं तत्परता, कुशलता में अनुमान, अंगद का सा पराक्रम प्रदर्शित कर सकेंगे। इस योजना के परिणाम का आँकलन प्रचार-प्रसार की दृष्टि से कम एवं संगठन को मजबूत बनाने एवं नये समर्पित कार्यकर्ताओं को तैयार करने की दृष्टि से अधिक किया जाएगा। अपने प्रथम चरण की सफलता के साथ ही यह योजना अपने विस्तार में समस्त शक्तिपीठों को अपने आलिंगन में बाँध लेगी।

दिव्यलोक से उभरी हुई इस सक्रियता का उपयुक्त नाम ‘युगान्तरीय चेतना’ है। देव संस्कृति का उदय और स्वर्गीय परिस्थितियों का नवनिर्माण उसी का काम है, इसी ने जाग्रत आत्माओं को अनुप्राणित किया है। उदीयमान सूर्य की प्रथम किरणें भी तो सर्वप्रथम गिरिशिखरों पर ही चमकती हैं। द्वितीय चरण में दिनकर का आलोक समस्त भूमण्डल को ही आच्छादित कर लेता है। यों गुफाओं में अन्धेरा तो मध्याह्न काल तक बना रहता है। यह योजना भी दिव्यलोक के प्रवाह के प्रथम अवतरण के सदृश है जो सर्वप्रथम शक्तिपीठों में ही क्रियान्वित होनी है।

गायत्री शक्तिपीठें ही प्रज्ञावतार का दृश्यमान स्वरूप हैं और प्रज्ञावतार ही पौराणिक मान्यता के अनुरूप ‘निष्कलंक’ है। यह प्रमाण पत्र है जिसके लिए कलंकों का आरोपण और अग्नि परीक्षा से उनका निराकरण आवश्यक है। शक्तिपीठों के संचालन में अनेकानेक विग्रहों का खड़ा होना प्रायः वैसा ही है जैसा राम, कृष्ण, बुद्ध आदि को निरस्त करने के लिए आसुरी तत्वों ने विविध छद्म रूप से आक्रमणों का सिलसिला चलाया था। इसमें बिगड़ा कम बना अधिक । प्रज्ञावतार की युगान्तरीय चेतना को भी इसी प्रकार के अवरोधों से होकर गुजारना होगा। इतने पर भी सफलता की आत्मिक परिणति सुनिश्चित है। निष्कलंक प्रज्ञावतार द्वारा युग परिवर्तन की प्रक्रिया को सम्पन्न होने में आस्थावानों को तनिक भी सन्देह करने की आवश्यकता नहीं।

जिन्हें सूक्ष्म दर्शन का आभास देने वाली दिव्य-दृष्टि प्राप्त है, उन्हें यह अनुभव करने में तनिक भी कठिनाई नहीं होनी चाहिए कि युग परिवर्तन की सुखद सम्भावनाओं को मूर्तिमान करने के लिए गायत्री शक्ति पीठों का कितना महत्व है ? नवयुग के मत्स्यावतार के व्यापक होते जा रहे स्वरूप को देखते हुए मथुरा व हरिद्वार के दो आश्रम अब पर्याप्त नहीं रहे। प्रवृत्तियों की तीव्रता और व्यापकता ने तकाजा किया है कि आलोक वितरण के लिए विनिर्मित ये अनेकानेक केन्द्र अपने काम में ढिलाई न बरतें।

बिजली उत्पादन के लिए एक बड़ा केन्द्र हो सकता है। किन्तु हर नगर का, हर मुहल्ले का सबस्टेशन भी बनता है। ट्रान्सफार्मर अनेक लगाने पड़ते हैं। सत्ता भले ही दिल्ली में केन्द्रित रहे पर शासन तन्त्र चलाने के लिए क्षेत्रीय कार्यालयों की आवश्यकता रहेगी ही। समय आ गया है कि युग सृजन की चेतना के एकमात्र केन्द्र की सक्रियता भर से काम नहीं चलेगा। अब उसके लिए सब डिवीजन को भी सक्रिय होना पड़ेगा। गायत्री शक्तिपीठों में चलाए जाने वाले इस त्रैमासिक प्रशिक्षण कार्यक्रम को उपयोगिता, आवश्यकता के प्रतिपादन में जितना कुछ कहा जा सके कम है। इसे वर्तमान पीढ़ी के लिए गौरव गरिमा का और भावी पीढ़ी के लिए सुखद सम्भावनाओं केन्द्र बिन्दु माना जा सकता है।

यह प्रशिक्षण योजना मुरझाए हुए कल्पवृक्षों के लिए खाद-पानी का काम करेगी। इसके परिणामस्वरूप जब इन कल्पवृक्षों की फसल को फलित होने का अवसर आएगा तो एक स्वर से यही माना जाएगा कि इसकी आवश्यकता , उपयोगिता, प्रतिक्रिया एवं सम्भावना के सम्बन्ध में जो कुछ कहा गया था, वह स्वल्प, नम्र एवं संकोचयुक्त था। परिवर्तन प्रक्रिया जब सम्पन्न हो चुकेगी, आसुरी शक्तियाँ निष्प्राण होकर निर्जीव हो जायेंगी तथा दैवी शक्तियाँ और दैवी प्रवृत्तियाँ चारों ओर गतिमान दिखेंगी तब इन प्रयासों की उपलब्धियाँ आँकलित की जा सकेंगी। जिस प्रकार असुरता का प्रत्यक्ष आक्रमण नहीं दिखाई पड़ा, उसी प्रकार उसका उन्मूलन भी स्थूल दृष्टि से नहीं देखा जा सकेगा। लेकिन जो व्यक्ति नवयुग के अवतरण को पहचान रहे है उसके प्रसार, विस्तार में लगे हैं, वे अपने आप को कृतकृत्य और धन्य अनुभव करेंगे।

First 28 30 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • समर्थ के अवलम्बन से ही आत्मिक प्रगति
  • जिसने धैर्य नहीं खोया
  • ऋषि मनीषा से समझें विकासवाद को
  • परिष्कृत मनः ऋद्धि-सिद्धियों का भाण्डागार
  • जरा जानें, क्या कहती है वेदवाणी?
  • क्या कभी अपने आपको जानने का प्रयास किया ?
  • सूर्य की आत्मा-महाप्राण-सविता देवता
  • अलौकिक सामर्थ्य से भरी दो विधाएं : योग एवं तन्त्र
  • सेठ जमनालाल बजाज (Information)
  • काश ! सबके जीवन की राह इसी तरह बदल जाए
  • संकल्प (Kahani)
  • आत्महनन एक महापातक
  • बर्बरता मिटायी शहादत से
  • एकाकी (Information)
  • गुरु अमृत की खान
  • सूर्य (Kahani)
  • कच्छ के भीमक साहेब
  • रोगों की जड़ें तन में नहीं, मन में
  • विवेक पर टिका है सफल दाम्पत्य
  • मुस्कराना सीखें- मनोविकारों से बचें
  • मुझे सिद्धियाँ नहीं चाहिए
  • गुरुपूर्णिमा पर विशेष - प्रज्ञावतार की सत्ता एवं प्रज्ञा परिजनों की भूमिका
  • सद्गृहस्थ (Kahani)
  • तीर्थ सेवन एवं परिव्राजक धर्म-परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
  • अनुयाज पुनर्गठन-1 विशेष लेखमाला-6 - स्वाध्याय-मनन-चिन्तन का व्यावहारिक स्वरूप
  • गुरु पर्व पर विशेष-1 - शाश्वत गुरु का श्रद्धार्चन दिवस-गुरु पूर्णिमा
  • एक सामयिक पुनर्प्रकाशित लेख - इन दिनों शासन तंत्र से हमें क्या अपेक्षाएँ रखती चाहिए
  • राजेन्द्र बाबू की मितव्यता Kahani
  • अपनों से अपनी बात - मुरझाये कल्पवृक्षों में प्राण संचार अब अनिवार्य
  • चैतन्य तीर्थ शान्तिकुँज की - “सजल श्रद्धा-प्रखर प्रज्ञा”
  • अपने कृतज्ञता भाव को जीवन्त बनाए रखें
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj