• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • क्रान्ति का महापर्व
    • महाक्रान्ति श्रद्धावानों के बलबूते ही संपन्न होगी
    • श्रद्धा और समर्पण की नींव पर टिका यह युगनिर्माण मिशन
    • नवयुग का स्वागत आयोजन-समयदान एवं अंशदान का नियोजन
    • बड़ी चिरपुरातन है आयुर्वेद की परम्परा
    • आयुर्वेद को पुनर्जीवित किया है शांतिकुंज-युगतीर्थ ने
    • पर्यावरण की रक्षा होगी, तो ही मानव बचेगा
    • प्रदूषण का युग एवं पर्यावरण संवर्द्धन की अनिवार्यता
    • पर्यावरण संतुलन एवं शान्तिकुँज की भूमिका
    • सत्कर्मों का मूल आधार मात्र आस्तिकता
    • साधना : समग्र व्यक्तित्व की उपचार प्रक्रिया
    • सद्-चिन्तन एवं सत्कर्म के मूल आधारः गायत्री और यज्ञ
    • न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते
    • विद्या-विस्तार का राष्ट्रीय महत्व : शान्तिकुँज के प्रयास
    • भारतीय संस्कृति की गौरव-गरिमा अब दिग्दिगन्त तक फैलेगी
    • लोकरंजन ही नहीं, साथ में लोक मंगल भी
    • नारी-जागरण से ही सांस्कृतिक जागरण सम्भव
    • दुष्प्रवृत्तियों के चक्रव्यूह में फँसे देश के अभिमन्यु
    • युवाशक्ति को राष्ट्र शक्ति बनाने का महा अभियान
    • देव -संस्कृति पुनः विश्व -संस्कृति बनेगी।
    • युगचेतना का प्रकाश विश्व में इस तरह फैल रहा है
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • क्रान्ति का महापर्व
    • महाक्रान्ति श्रद्धावानों के बलबूते ही संपन्न होगी
    • श्रद्धा और समर्पण की नींव पर टिका यह युगनिर्माण मिशन
    • नवयुग का स्वागत आयोजन-समयदान एवं अंशदान का नियोजन
    • बड़ी चिरपुरातन है आयुर्वेद की परम्परा
    • आयुर्वेद को पुनर्जीवित किया है शांतिकुंज-युगतीर्थ ने
    • पर्यावरण की रक्षा होगी, तो ही मानव बचेगा
    • प्रदूषण का युग एवं पर्यावरण संवर्द्धन की अनिवार्यता
    • पर्यावरण संतुलन एवं शान्तिकुँज की भूमिका
    • सत्कर्मों का मूल आधार मात्र आस्तिकता
    • साधना : समग्र व्यक्तित्व की उपचार प्रक्रिया
    • सद्-चिन्तन एवं सत्कर्म के मूल आधारः गायत्री और यज्ञ
    • न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते
    • विद्या-विस्तार का राष्ट्रीय महत्व : शान्तिकुँज के प्रयास
    • भारतीय संस्कृति की गौरव-गरिमा अब दिग्दिगन्त तक फैलेगी
    • लोकरंजन ही नहीं, साथ में लोक मंगल भी
    • नारी-जागरण से ही सांस्कृतिक जागरण सम्भव
    • दुष्प्रवृत्तियों के चक्रव्यूह में फँसे देश के अभिमन्यु
    • युवाशक्ति को राष्ट्र शक्ति बनाने का महा अभियान
    • देव -संस्कृति पुनः विश्व -संस्कृति बनेगी।
    • युगचेतना का प्रकाश विश्व में इस तरह फैल रहा है
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1997 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


युवाशक्ति को राष्ट्र शक्ति बनाने का महा अभियान

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 18 20 Last
मार्गशीर्ष पूर्णिमा 14 दिसंबर 1997 को शांतिकुंज के तपःपूत परिसर में आयोजित स्वावलम्बन संवर्ग समारोह-समग्र क्रान्ति के लिए युवाओं का आह्वान हैं। युवाशक्ति के राष्ट्रशक्ति बनाने के लिए छेड़े जाने वाला महाअभियान का शुभारंभ हैं विदेशी पराधीनता से मुक्त हुए हमें पचास वर्ष पूरे हो गए। इन पचास वर्षों की उपलब्धियों आगामी भविष्यत् पर इन दिनों जोरदार राष्ट्रीय चर्चा छिड़ी हुई हैं अपने देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद में भी 26 अगस्त से चार दिवसीय विशेष सत्र की शुरुआत की गई है इस ऐतिहासिक सत्र में भी यही सवाल उठकर आए हैं कि अभी भी हम साँस्कृतिक एवं मानसिक परतन्त्रता के अदृश्य पाश में जकड़े हुए हैं शायद यही कारण है कि गत पचास वर्षों में हुए विकास के बावजूद राष्ट्र का जनसाधारण स्वर्णजयंती समारोहों के औचित्य तक को समझने में असमर्थ हैं वह अभी भी अशिक्षा, गरीबी, पिछड़ेपन एवं सामाजिक अन्याय से पीड़ित है जिसके चलते वह अपने देश में आी नागरिकीय गरिमा को समझने में असमर्थ है विश्व क्रान्ति एवं साँस्कृतिक सद्भाव का संवाहक देश आज आतंकवाद एवं उग्रवाद के विस्फोटों से ग्रस्त है। जातीय- सांप्रदायिक हिंसा देश की अस्मिता के लिए खतरा बनी हुई है। समूचा राष्ट्र भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबा है कभी सोने की चिड़िया के नाम से विश्वविख्यात देश आज विदेशियों के सामने भिक्षापात्र लेकर भटक रहा हैं पूरा समाज आज नेतृत्वविहीन है राजनीति भ्रष्टाचार एवं अपराध का पर्याय बन गयी है। लोकतन्त्र की व्यवस्था एक उपहास मात्र बनती जा रही है राष्ट्रनिर्माण का लक्ष्य एक अंधेरी गली में गुम हो गया है राष्ट्रव्यापी असन्तोष, अव्यवस्था आज देश की रुग्ण स्थिति को दर्शा रही हैं। ऐसी विषम स्थिति से जूझने की सामर्थ्य किसमें है? उलटे प्रवाह को उलट कर सीध करने का साहस कौन कर सकता है? इन सवालों के जवाब में समवेत स्वर ‘युवाशक्ति’ का आह्वान करते हैं हर किसी का इंगित उन्हीं की ओर उठता है। सभी इस बारे में एक मत है कि युवाओं के प्रचण्ड ऊर्जा है भले ही आज वह दिशाहीनता की वजह से बिखर रही है आगामी मार्गशीर्ष पूर्णिमा को आयोजित स्वावलंबन समारोह के माध्यम के शांतिकुंज ने युवाशक्ति को राष्ट्र शक्ति के रूप में गढ़ने और निखारने की प्रक्रिया की एक राष्ट्रव्यापी आन्दोलन एवं अभियान का रूप देने का संकल्प किया है। स्वावलम्बन समारोह रोजगार तक सीमित नहीं है, बल्कि युवक-युवतियों को आर्थिक ही नहीं वैचारिक भावनात्मक एवं साँस्कृतिक रूप से स्वावलंबी बनाने का प्रयास है साथ ही उनकी अपनी वैयक्तिक एवं सामाजिक समस्याओं जैसे दहेज , दुष्प्रवृत्ति , उन्मूलन नशावारण आदि के खिलाफ खोले जा रहे एक जुझारू मोर्चे की शुरुआत है युग निर्माण मिश्रु के संचालकों का सुनिश्चित रूप से मानना है कि आज के राष्ट्रीय एवं सामाजिक परिवेश में युवा आंदोलन से ही यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह राष्ट्र को इस विकट स्थिति से उबारकर इसमें नई चेतना का संचार कर सके। हर हमेशा राष्ट्रीय गौरव की सुरक्षा के लिए युवाओं ने ही अपने कदम बढ़ाए हैं सेकट चाहे सीमाओं पर हो अथवा सामाजिक एवं राजनैतिक , इसके निवारण के लिए अपने देश के युवक एवं युवतियां ने अपना सर्वस्व न्यौछावर करने में कोई कौर-कसर नहीं छोड़ी हैं देश के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास भी इसका सक्षी है। 1857 से 1947 तक के लंबे राष्ट्रभक्ति एवं क्रान्ति के भावों का आरोपण करने वालों में युवाओं की भूमिका सर्वोपरि रही हैं 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महा नायकों में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई , तांत्याटोपे और मंगल पाण्डे युवा थे। रानीलक्ष्मीबाई तब मात्र 26 वर्ष की थी। अंग्रेजों के दाँत खट्टे करने वाली लक्ष्मीबाई की सेना की एक जाँबाज झलकारी बाई एक युवती ही थी। उन्हीं की प्रेरणा से सुन्दर, मुन्दर, जुही, मोतीबाई जैसी नृत्यांगनाएं क्रान्ति की वीराँगनाएं बन गयी थी। जिनका जीवन घुंघरुओं की झंकार से शुरू होकर गोले-बारूद के धमाकों में खत्म हुआ। पश्चिम बंगाल में युवाओं को क्रान्ति के बलिदान मंच पर लाने वाले की अरविन्द तक एक 25-30 वर्षीय युवा ही तो थे। उस जमाने की सर्वोच्च आई॰ सी0 एस॰ परीक्षा को ठुकराकर राष्ट्र प्रेम से आप्लावित होकर वे राष्ट्रीय राष्ट्रीय जागरण के महायज्ञ में कूद पड़े थे कर्मयोगिन् एवं वन्देमातरम् से देश के युवकों में राष्ट्रीय स्वाभिमान एवं क्रान्ति की भावना को जगाकर राष्ट्रीय भक्ति से भर दिया था सैकड़ों युवक इस प्रेरणा से हंसते-हंसते फांसी के तख्ते पर चढ़ गए थे 1907 ई॰ स्वाधीनता यज्ञ की बलिवेदी पर शहीद होने वाले खुदीरामबोस मात्र 27 वर्षीय किशोर थे। फांसी के फंदे पर चढ़ने से पूर्व उसके उद्गार थे।

हाँसी -हाँसी चाड़बे फाँसी देखिले जगतवासी, एक बासर विदाय दे माँ, आमि धूरे आसी।

अर्थात् दुनिया देखेगी कि मैं हँसते-हँसते फाँसी के फन्दे पर चढ़ जाऊंगा। हे भारत माता! मुझे विदा दो, मैं बार-बार तुम्हारी कोख में जन्म लू। काकोरी काण्ड स्वतन्त्रता इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना रही हैं 1924 र्ह0 में हुए इस काण्ड के सभी क्रान्तिकारी अभियुक्त युवा थे। अपने साहस एवं सहर्ष आत्मबलिदान के भाव से उन्होंने देशवासियों के हृदय में राष्ट्र -प्रेम की लौ। लगा दी थी। इनमें प्रमुख क्रान्तिकारी अभियुक्त पं0 रामप्रसाद विस्मिल ने फाँसी के फन्दे को चूमते हुए कहा था-

बन न कोई बलबूते है, और न अरमानों की भीड़, एक मिट जाने की हसरत, अब दिले विस्मिल में है।

अन्य क्रान्तिकारी अभियुक्त अमर शहीद अशफाक उल्ला खाँ , राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह आदि सभी युवा ही थे अपने अप्रतिम देशप्रेम एवं आत्मबलिदान द्वारा देश भर में क्रान्ति की नई लहर फैलाने वाले शहीद-ए-आजम भगतसिंह उस समय मात्र 23 वर्ष के थे। उनके क्रान्तिकारी साथी राजगुरु एवं सुखदेव भी युवा ही थे इसके अलावा अगणित गुमनाम युवाओं ने स्वतन्त्रता संग्राम महायज्ञ में अपनी आहुति दी थी। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के समय भी युवाशक्ति अपने चरम पर उभर कर आगे आयी थी वा राष्ट्र शक्ति का पर्याय बनी थी। भारत ही नहीं विश्वभर में जितने भी महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए है जितनी भी सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं राजनैतिक क्रान्तियाँ हुई है, इनमें युवा भावनाएँ ही काम करती रही है। थोड़े से प्रबुद्ध युवाओं ने समय की मांग को समझा तो स्वार्थ एवं विलासिता को ठोकर मारकर कुछ हजार भिक्षु उठ खड़े हुए और देखते ही देखते बौद्ध धर्म का प्रसार सारे एशिया में हो गया। 2000 वर्षों में विश्व की एक तिहाई जनता को ईसाई धर्म में दीक्षित करने का श्रेय ईसा के कुछ प्रबुद्ध युवा शिष्यों को जाता है। मार्क्स जब मरा था तो उसे दफनाने के लिए सिर्फ 5-10 व्यक्ति हो गए थे। पर जब प्रबुद्ध युवाओं ने उसके विचारों का महत्व समझा तो विश्व का एक बहुत बड़ा भाग साम्यवादी हो गया।

सही तो यह है कि किसी भी देश का निर्माण वहां की युवाशक्ति के नियोजन पर ही हुआ है। अमेरिका आज विश्व का सबसे समृद्ध एवं सशक्त राष्ट्र माना जाता है। वहां के सामाजिक , आर्थिक , कानूनी , वैज्ञानिक एवं औद्योगिक क्षेत्र में जो तीव्र परिवर्तन हुए है उनका इतिहास बहुत पुराना नहीं है 1910 ई॰ में अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में कुल नौ व्यक्ति ‘सरकारी अनुसंधान संस्थान’ की रूपरेखा लेकर एकत्रित हुए थे। उन्होंने बुकिंग इन्स्टीट्यूट नामक संस्था की स्थापना की। इसका उद्देश्य अमेरिका के कानूनी, प्रशासन, शिक्षा एवं वान के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन को बुकिंग इन्स्टीट्यूट ने केवल व्यवस्थित ढाँचा देकर प्रकाशित किया, लेकिन इसे उभारा वहां के प्रबुद्ध युवाओं ने इस अभियान ने अमेरिका में बौबवुढ, जाँन गार्डनर, चालीडोर जैसे कर्मठ एवं प्रभावशाली व्यक्ति पैदा किए। इनके कार्यक्रमों से कोई व्यक्ति अछूता न रहा और ऐसी आँधी आयी कि कानूनी मामले ही नहीं, सामाजिक रहन-सहन और राष्ट्रीय में ठोस परिवर्तन हुए। अमेरिका की वर्तमान प्रगति का इतिहास वहां के प्रबुद्ध युवाओं के पसीने से लिखा हुआ है।

एक समय की विश्वशक्ति सोवियत रूस की प्रगति का इतिहास भी युवा शक्ति की असंदिग्ध भूमिका को स्पष्ट करता है विखण्डित सोवियत रूस की वर्तमान स्थिति जो भी हो, 1920 से 1960 तक के चार दशकों की अद्भुत प्रगति का इतिहास अपने में युवाशक्ति की मिसाल कायम किए हुए हैं इस शताब्दी के प्रारम्भ में वहां की तीन-चौथाई से भी अधिक जनता अशिक्षित व निर्धन थी। वैज्ञानिक क्षेत्र में देश बिलकुल पिछड़ा हुआ था एकाएक जो परिवर्तन की लहर आयी, वह युवाओं को सुव्यवस्थित क्रान्ति की परिणति थी। इसके पीछे युवाशक्ति के अथक श्रम, त्याग, लगन, का एक चमकता अध्याय जुड़ा हुआ है।

सन् 1920 से 1960 के चार दशकों में वहां अकेले शिक्षा के क्षेत्र में जो क्रान्ति हुई उसका लेखा जोखा प्रस्तुत करते हुए विद्वान रूसी लेखक ए॰ पुत्को ने एक स्थान पर बताया कि 1920 में 10 लाख लोगों में केवल 3000 व्यक्ति ऐसे थे जिन्होंने उच्चतर शिक्षा प्राप्त की थी। इसके बाद युवकों के माध्यम से सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली का संगठन हुआ और देश में अकाल, विनाश की परिस्थितियों के बीच भी निरक्षरता उन्मूलन के कार्यक्रम गाँवों में कस्बों , निवासगृहों एवं औद्योगिक संस्थाओं में स्थापित किए गए। इस शिक्षा क्रान्ति का उद्देश्य राष्ट्र में वैज्ञानिकों लेखकों और कलाकारों की आवश्यकता पूर्ति करना भी था । इस आन्दोलन में लेनिन कोस्सतन्तिन त्सियोल्कीवस्कों एवं इवान पावलोव जैसे अगुआ थे। लेकिन इस शिक्षा क्रान्ति के प्रचार-प्रसार में अथक श्रम व त्याग करने वाली शक्ति युवाओं की ही थी। परिणामतः 1940 में 1,10,000 और 1960 में 3,34000 तक उच्चशिक्षितों की संख्या पहुंची उन्हें विशेषज्ञ स्नातक कहा गया। क्यूबा एक छोटा-सा देश है। उसकी शक्तियां भी उसी के अनुपात सीमित हैं लेकिन वहां के प्रबुद्ध युवाओं ने अद्भुत शिक्षा क्रान्ति करके स्वयं में एक नया इतिहास रच दिया। वहाँ जितने पढ़े -लिखे लोग थे, वे अशिक्षितों को ढूँढ़-ढूँढ़ कर पढ़ाने लगे। निरक्षरता को क्यूबा से निर्वासित करने का श्रेय जाता है वहां के युवाओं को। चीन व जापान में भी वही के राजनैतिक परिवर्तन एवं सामाजिक सुधार का श्रेय वहां की युवा पीढ़ी को जी जाता है समाज की कुंठाओं को काटने, उसे प्रतिगामिता से उबारने, उसका कायाकल्प कर उसे नया जीवन देने में यदि कोई समर्थ हो सकते हैं तो वे प्रबुद्ध एवं भावनाशील युवक-युवतियां ही हैं उन्हें छोड़कर या उनके बिना कोई भी सुधार या क्रान्तिकारी परिवर्तन लाना सम्भव नहीं। समय की आवश्यकता यही है कि व अपने हृदय में समाज -निर्माण की कसक उत्पन्न करें व अपनी बिखरी शक्तियों को एकत्रित कर समाज की विभिन्न समस्याओं को सुलझाने का प्रयत्न करें। देश की प्रगति में ही अपनी प्रगति और उन्नति सन्निहित हैं । इस उदात्त दृष्टिकोण के आधार पर हो युवाशक्ति , राष्ट्र शक्ति बनकर राष्ट्र को समृद्ध उन्नति व प्रगति के मार्ग पर ले जा सकती है। कितने ही देशों के उदाहरण है, जिन्होंने द्रुतगति से प्रगति की है जापान , कम्बोडिया, डेनमार्क, चीन, क्यूबा जैसे देश कल -परसों तक घोर विपन्नता में घिरे हुए थे, पर देश की प्रतिभाओं एवं युवा पीढ़ी ने थोड़े समय के लिए अपने स्वार्थ को त्याग कर देश के विकास का संकल्प लिया। उनका संकल्प सामूहिक पुरुषार्थ के रूप में फलीभूत हुआ और कुछ ही दशकों में ये राष्ट्रों की श्रेणी में पहुंच गए। यह चमत्कार युवाशक्ति एवं प्रतिभाशाली लोगों के मुक्तहस्त सहयोग से ही सम्भव हुआ।

ऐसी राष्ट्रीय भावना का अकाल देश की नई पीढ़ी में पड़ता जा रहा हैं हर सुशिक्षित युवा अपनी योग्यता की कीमत तत्काल पैसे के रूप में पाना चाहता है। उच्च शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य भी धनोपार्जन तक सिमट कर रह गया है। अधिकाँश युवकों-युवतियों की यह मान्यता बन गई हैं कि उन्हें अपनी योग्यता को पैसे के रूप में भूनाने का मनमाना अधिकार है। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समाज एवं देश का भी ऋण उनके ऊपर चढ़ा है उसे भी चुकाने का प्रयत्न करना चाहिए, ऐसा विरले की सोचते हैं उल्लेखनीय है कि किसी देश का विकास, बहुसंख्यक भीड़ के सहारे नहीं बल्कि मूर्धन्य प्रतिभाओं के सहारे होता है इनके सहयोग की मात्रा जितनी अधिक होगी समाज देश में प्रगति भी उतनी ही तीव्रगति से होगी। आज बड़े दुःख की बात है कि अधिक धन एवं सुख-सुविधा के लोभ में देश की युवा प्रतिभाएं विदेशों में अपना रैन बसेरा के लिए आतुर है अबकी इन घड़ियों में शताब्दियों के विदेशी प्रभुत्व और निष्क्रियता के बाद देश एक नए पुनर्जागरण और नियति की ओर अग्रसर हो रहा है। यों तो किसी भी देश के नवनिर्माण में ज्ञान एवं युवाशक्ति का योगदान सदा ही रहा हैं ।किन्तु किसी भी काल में यह इतना महत्वपूर्ण नहीं रहा होगा, जितना कि आज के इस वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी के युग में और न ही यह इतना चुनौतीपूर्ण और अनिवार्य रहा होगा, जितना कि इन दिनों हमारे अपने देश में है। इन क्षणों में प्रत्येक युवा को जो महान पाठ सिखाना है वह है परिश्रम , त्याग और प्रत्येक व्यक्ति को सबके हित में कार्य करने का पाठ।

जीवन के आधारभूत मूल्य-सत्य की खोज भावनात्मक एकता, आदर्श आदि ऐतिहासिक स्मारकों के रूप में अथवा पाठ्यपुस्तकों में अंकित करके दीर्घकाल तक सुरक्षित नहीं रखें जा सकते हैं उच्च आदर्श और महान उद्देश्य तब तक अर्थहीन है, जब तक हम भावना में भरकर अनवरत रूप से उसके लिए प्रयत्न नहीं करते। राष्ट्रीय स्वाधीनता के पचास वर्ष पूरे होने के अवसर पर प्रत्येक युवा को परिश्रम, त्याग और समर्पण के द्वारा राष्ट्र के पुनर्निर्माण, पुनर्जीवन और नवीनीकरण का संकल्प करना होगा अन्यथा आदर्श और मूल्य निस्तेज और नष्ट हो जाएंगे एवं उद्देश्य धूमिल पड़ जाएगा।

राष्ट्रनायक पं0 जवाहर लाल नेहरू ने भारतमाता की प्रत्येक युवा सन्तान को सम्बोधित करते हुए कहा था-” यदि तुम वर्तमान परिस्थिति से असन्तुष्ट नहीं हो, यदि तुम इस ललक का अनुभव नहीं करते जो तुम्हें अधीर बना दे तथा कर्म के प्रति प्रेरित और बाध्य करें, तब तुम वृद्धजनों के उस समूह से भिन्न कहा हो जो वार्ता , वाद-विवाद और तर्क अधिक करते हैं और काम कम? जब यह दिखाई पड़ता है कि तुममें राष्ट्र की वर्तमान परिस्थिति के प्रति सच्चा भाव है, जिज्ञासा की उत्साहपूर्ण भावना है क्या करना है, कैसे करना है? को जानने की आकाँक्षा है, तब इस बात का विशेष महत्व है। राष्ट्र के प्रत्येक युवा का वर्तमान परिस्थितियों में यही कर्तव्य है कि वह अपनी पुरातन संस्कृति से ओत-प्रोत अपनी मातृभूमि के उत्थान के लिए कार्य करने वाली वीर सन्तान बने। उसकी भावनाएं अंतर्राष्ट्रीय हो जिनकी कोई सीमाएं नहीं हैं वृद्ध लोग सीमित समय के लिए कार्य करते हैं और युवा अनन्त समय कि लिए। ध्यान रहे सीधे लक्ष्य की ओर बढ़ना है, कमर सीधी कर दृढ़ता से पकड़कर ऊँचे आकाशवत आदर्शों को देखता है तभी राष्ट्र निर्माण के लिए सार्थक प्रयास हो सकेंगे।

यौवन इस बात पर निर्भर नहीं है कि हम कितने छोटे है, बल्कि इस पर कि हममें विकसित होने की क्षमता एवं प्रगति करने के योग्यता कितनी हैं विकसित होने का अर्थ है अपनी अन्तर्निहित शक्तियाँ, अपनी क्षमताएँ बढ़ाना। प्रगति करने का अर्थ है, जब तक अधिकृत योग्यताओं को बिना रुके निरन्तर पूर्णता की ओर ले जाना। बुढ़ापा आयु बड़ी हो जाने का नाम नहीं हैं बल्कि विकसित होने और प्रगति करने को अयोग्यता का पर्याय है। जो अपने आप को निष्कपट, साहसी, सहनशील, ईमानदार बना सकेगा, वही राष्ट्र की सर्वाधिक सेवा करने के योग्य हैं । उसे ही अद्वितीय एवं महान कहा जा सकता है

इन पंक्तियों के माध्यम से 13,14 एवं 15 दिसम्बर 97 शांतिकुंज में आयोजित होने वाले स्वावलम्बन समारोह में इन्हीं उपरोक्त भावनाओं को आमन्त्रित किया जा रहा हैं यह आमन्त्रण प्रत्येक उस छात्र-छात्रा , युवक - युवती को है जो न केवल स्वयं को , बल्कि समूचे राष्ट्र को स्वावलम्बी बनाना चाहते हैं जिनके हृदय में कसक है, अपनी राष्ट्रीय परिस्थितियों के प्रति विकलता का भाव है जिनका मन कुछ सार्थक करने के लिए व्याकुल बेचैन है, वे इन पंक्तियों को पढ़ते ही शान्तिकुँज से पत्र व्यवहार करें यहां से उनको शक्ति से ही राष्ट्रीय नव-निर्माण की चतुरंगिणी खड़ी की जाएगी, जो सृजन का सार्थक एवं सफल अभियान रचेगी। राष्ट्र की सभी युवा भावनाओं की सम्बोधित करते हुए चिरयुवा स्वामी विवेकानन्द के कहा था-” हम सभी को इस समय कठिन श्रम करना होगा। हमारे कार्यों पर ही भारत का भविष्य निर्भर है देखिए भारतमाता धीरे-धीरे आँख खोल रही है अब तुम्हारे निद्रामग्न रहने का समय नहीं है। उठिए और माँ भगवती को जगाइए ओर पूर्व की तरह उन्हें महा गौरव मण्डित करके, भक्तिभाव से उन्हें अपने महिमामय सिंहासन पर प्रतिष्ठित कीजिए। इसके लिए सर्वप्रथम प्रत्येक युवा को पहले स्वयं मनुष्य बनाना होगा। तब वे देखेंगे कि बाकी सब चीजें अपने आप ही स्वयं उनका अनुगमन करने लगेंगी। परस्पर के घृणित भाव को छोड़िए एक दूसरे से विवाद तथा कलह का परित्याग कर दीजिए और सदुद्देश्य , सदुपाय, सत्साहस एवं सद्वीर्य का आश्रय लीजिए। किन्तु भलीभांति स्मरण रखिए यदि आप अध्यात्म को छोड़कर पाश्चात्य जाति की भौतिकता प्रधान सभ्यता के पीछे दौड़ने लगेंगे तो फिर प्रगति के स्वप्न कभी भी पूरे न होंगे ।

एकमात्र भारत के पास ही ऐसा ज्ञानलोक विद्यमान है जिसकी कार्यशक्ति न तो इन्द्रजाल में है और न छल-छल में ही। वह तो सच्चे धर्म के मर्मस्थल उच्चतम आध्यात्मिक सत्य के अश्ज्ञेष महिमामंडित उपदेशों में प्रतिष्ठित है। तगत को इस तत्व की शिक्षा प्रदान करने के लिए ही प्रभु ने भारत एवं भारतीयता को विभिन्न दुःख कष्टों के भीतर भी आज तक जीवित रखा है अब उस वस्तु को प्रदान करने का समय आ गया है। हे वीर हृदय भारत मां की युवा सन्तानों । तुम यह विश्वास रखो कि अनेक महान कार्य करने के लिए ही तुम लोगों का जन्म हुआ है। किसी के भी धमकाने से न डरो, यहाँ तक कि आकाश से प्रबल वज्रपात हो तो भी न डरो। उठों। कमर कस कर खड़े होओ और कार्यरत हो जाओ। राष्ट्रीय युवाशक्ति के महानायक स्वामी विवेकानन्द की इन्हीं भावना को परमपूज्य गुरुदेव ने व्यावहारिक एवं व्यापक स्वरूप प्रदान किया है। युगनिर्माण मिशन अपने आप में युवा भावनाओं का समर्थ एवं सशक्त संगठन है। स्वावलम्बन समारोह के माध्यम से इन्हीं भावनाओं को राष्ट्रीय अभ्युदय में नियोजित होते हुए देखा जा सकेगा।

First 18 20 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • क्रान्ति का महापर्व
  • महाक्रान्ति श्रद्धावानों के बलबूते ही संपन्न होगी
  • श्रद्धा और समर्पण की नींव पर टिका यह युगनिर्माण मिशन
  • नवयुग का स्वागत आयोजन-समयदान एवं अंशदान का नियोजन
  • बड़ी चिरपुरातन है आयुर्वेद की परम्परा
  • आयुर्वेद को पुनर्जीवित किया है शांतिकुंज-युगतीर्थ ने
  • पर्यावरण की रक्षा होगी, तो ही मानव बचेगा
  • प्रदूषण का युग एवं पर्यावरण संवर्द्धन की अनिवार्यता
  • पर्यावरण संतुलन एवं शान्तिकुँज की भूमिका
  • सत्कर्मों का मूल आधार मात्र आस्तिकता
  • साधना : समग्र व्यक्तित्व की उपचार प्रक्रिया
  • सद्-चिन्तन एवं सत्कर्म के मूल आधारः गायत्री और यज्ञ
  • न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते
  • विद्या-विस्तार का राष्ट्रीय महत्व : शान्तिकुँज के प्रयास
  • भारतीय संस्कृति की गौरव-गरिमा अब दिग्दिगन्त तक फैलेगी
  • लोकरंजन ही नहीं, साथ में लोक मंगल भी
  • नारी-जागरण से ही सांस्कृतिक जागरण सम्भव
  • दुष्प्रवृत्तियों के चक्रव्यूह में फँसे देश के अभिमन्यु
  • युवाशक्ति को राष्ट्र शक्ति बनाने का महा अभियान
  • देव -संस्कृति पुनः विश्व -संस्कृति बनेगी।
  • युगचेतना का प्रकाश विश्व में इस तरह फैल रहा है
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj