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Magazine - Year 1997 - Version 2

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पर्यावरण संतुलन एवं शान्तिकुँज की भूमिका

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इन्द्र के रथ पर चढ़कर भगवान श्रीराम युद्ध क्षेत्र में ठीक रावण के सम्मुख जा खड़े हुए। उन्होंने सर्वप्रथम विप्र अर्थात् ज्ञानमूर्ति रावण को प्रणाम किया। आशीर्वाद तो दूर उलटे उसने अपशब्द भी कहे और अपनी वीरता का आप ही बखान किया। भगवान् श्रीराम ने कहा:-

जनि जल्पना करि सुयश नाशहि नीति सुन शठ करु क्षमा। संसारमहँ पुरुष त्रिविध पाटल रसाल पनस समा।

इक सुमन प्रद इक सुमन फल इक फलै केवल लागहीं। इक कहहिं, करहिं न करहिं कहि एक करहिं कहहिं न गवहीं॥

ऐ रावण! अपनी प्रशंसा आप नहीं करनी चाहिए इससे यश क्षीण होता है, नीति कहती है आत्मप्रशंसक क्षमा के पात्र होते हैं। हे रावण! इस संसार में तीन प्रकार के लोग होते हैं- एक पलाश वृक्ष की तरह जो केवल फूल देते हैं फल नहीं, दूसरे आम की तरह फूलते भी फलते भी हैं, तीसरे कटहल की तरह अर्थात् फूलते नहीं केवल फल देते हैं अर्थात् कुछ लोग कहते तो बहुत हैं पर करते कुछ नहीं, दूसरे कहते भी है करते भी हैं। तीसरे कहने से पुण्य क्षय हुआ मानकर कहते नहीं केवल करते हैं।

यह बात तो निकृष्ट और श्रेष्ठ मनुष्यों की पहचान के बारे में कही गई हैं पर्यावरण की रक्षा के क्षेत्र में किए गये कार्यों की पहचान की दृष्टि से भगवान् श्रीराम के कथानुसार युगनिर्माण योजना, गायत्री परिवार शान्तिकुँज की स्थिति तीसरे अर्थात् श्रेष्ठ व्यक्ति की है। शान्तिकुँज ने कभी बखान नहीं किया, पर उसके प्रयत्नों और उपलब्धियों पर पूरी तरह प्रकाश डाला जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि जितना कार्य अकेले इस मिशन ने किया है शायद शेष संसार ने भी इतना कार्य मिल कर नहीं किया होगा।

पिछले 25 वर्षों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करें तो उसके लिए अखण्ड-ज्योति का एक सम्पूर्ण विशेषाँक ही बनाना पड़ेगा। इसलिए यहाँ मात्र 19991 से अब तक के कर्तृत्व एवं उपलब्धियों का उल्लेख किया जा रहा है। गत 25 वर्षों के न तो संकल्पों का उल्लेख है न व्यक्तिगत प्रयत्नों का।

भारतवर्ष में श्रावणी पर्व मात्र रक्षा बन्धन के लिए मनाया जाता है, सामान्य जन इतना भर जानते हैं। पर सत्य यह है कि यह पर्व अनादिकाल से जब संसार का इस ओर ध्यान तक नहीं था, तभी से वृक्षारोपण दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है। शान्तिकुँज ने इस परम्परा को आगे बढ़ाया। यह पर्व प्रायः अगस्त में पड़ता है। अगस्त से लेकर अक्टूबर तक का समय वृक्षारोपण के लिए अत्यन्त उपयुक्त काल होता है। अतएव पाक्षिक तथा मिशन से निकलने वाली मासिक पत्रिकाओं के जुलाई अंक में प्रतिवर्ष नियमित रूप से सघन वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाने के सम्पादकीय प्रकाशित किए जाते हैं और इस अवधि में सम्पूर्ण अखिल विश्व गायत्री परिवार इस कार्य में लग पड़ता है। अब तक करोड़ों की संख्या में पौधे लगाए गए हैं उसके कुछ उदाहरण इस प्रकार है -

गायत्री परिवार ट्रस्ट खरगोन ने 1991 अक्टूबर में ग्राम इच्छापुर में अपना अष्टम वृक्षारोपण सप्ताह सम्पन्न किया। इन समारोहों में समूचे जिले के गायत्री परिवार परिजन किसी एक गाँव या क्षेत्र में सघन वृक्षारोपण कार्यक्रम सम्पन्न करते हैं। पहले या बाद में विधिवत् समारोह मनाया जाता है, जिसमें जिले के अधिकाँश सभी प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी भाग लेते हैं, फिर रंग-बिरंगे परिधानों और गाजे-बाजे के साथ यह कार्यक्रम प्रारम्भ होता है। इस वर्ष इस जिले की बीस गायत्री परिवार शाखाओं ने ‘गंगा वृक्ष रैलियों’ का आयोजन कर 374 गाँवों, में 18000 वृक्ष वितरण किए गए तथा आदिवासी प्रधान 27 गाँवों में हरे वृक्ष न काटने देने के लिए हरित सेनाएँ गठित की गईं। इस 189 गाँवों में 27000 घरों में तुलसी के पौधे भी लगाए गए। स्मरणीय है कि वायुमण्डल को शुद्ध रखने में तुलसी का सर्वाधिक महत्व माना गया है।

समारोह में स्थानीय जिलाध्यक्ष, प्रवर पुलिस अधीक्षक, वरिष्ठ पत्रकारों ने भाग लिया और देखा कि पिछले वर्षों में लगाए गए 30250 वृक्षों में से 95 प्रतिशत वृक्ष जीवित हैं, बढ़ रहे हैं। वनीकरण कार्यों के लिए जिला प्रशासन ने वर्ष 1990 का जिलास्तरीय प्रथम पुरस्कार गायत्री परिवार ट्रस्ट खरगोन को दिया। अक्टूबर 92 में सात एकड़ शासकीय भूमि पर 5500 पौधे लगाए गए। आदिवासियों ने खेतों की मेड़ों पर एक हजार वृक्ष लगाए। उन्हें ‘वृक्ष मित्र’ प्रशस्ति पत्र दिए गए।

1993 में 108 गाँवों में वन चेतना रैली निकाली गई। 138 आदिवासियों ने मेड़ों पर 10-10 वृक्ष लगाए। इसके अतिरिक्त 5000 अन्य वृक्ष लगाए गए। “पेड़ लगे हर घर उद्यान, वृक्षारोपण यज्ञ महान्” यह वाक्य इस क्षेत्र के हर घर की दीवार पर लिखा मिलेगा।

जुलाई 94 में यहाँ की वानिकी कार्यक्रम देखने के लिए विश्व बैंक ने वाशिंगटन अमेरिका के इयान हिल्स, ब्रिटेन के डिमोर्ट शिल्ड, रोम की सुश्री डि लिग्नो तथा दिल्ली के प्रवीर गुहाया कुल को भेजा। कलेक्टर खरगोन श्री राजकिशोर स्वेन ने गायत्री परिवार खरगोन को ‘इन्दिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र पुरस्कार’ देने के लिए राष्ट्रीय वनीकरण और पारिस्थितिकी विकास बोर्ड दिल्ली को संस्तुति पत्र भेजा। यहाँ 58.3 हेक्टेयर भूमि पर 50700 से अधिक वृक्ष लगाए गए हैं। इसके अतिरिक्त गायत्री परिवार मेहराजा द्वारा 33 एकड़ भूमि में पाँच हजार पौधे लगाए गए। जैन तीर्थस्थल की 6 हजार एकड़ भूमि में 2000 नीम के वृक्ष लगाए गए। इससे उस क्षेत्र की जलवायु आमूलचूल बदल गयी है।

सितम्बर 1994 में गायत्री परिवार तलेगाँव मोहना (अमरावती) ने जिले भर में पाँच हजार वृक्ष लगाए। इसमें सर्वाधिक परिश्रम के लिए गायत्री परिवार परिजन, भास्कर मोहोड़ को महाराष्ट्र सरकार का ‘वनराई पुरस्कार’ प्रदान किया गया। इसी अवधि में सीधी (म0प्र0) के एक बालक ने अकेले ही 60 वृक्ष यूकेलिप्टस, 30 वृक्ष नीम, 30 आम के लगाए, ढुलना प्रज्ञामण्डल द्वारा 108 वृक्षों का आरोपण किया गया। कासगंज (उ0प्र0) में 1008 घरों में तुलसी के पौधे घर-घर जाकर लगवाए गए। जिन घरों में पौधे लगाए गए, उन्हें प्रति परिवार पाँच नये घरों को पौध वितरण के संकल्प भी साथ ही कराए गए। गायत्री शक्ति-पीठ सक्ती (बिलासपुर) म0प्र0 के कर्मठ कार्यकर्त्ताओं ने समूचे सक्ती ब्लाक में 1100 वृक्ष लगाए।

गायत्री परिवार राउरकेला उड़ीसा ने राउरकेला प्रखण्ड में परमपूज्य गुरुदेव, वंदनीय माताजी की स्मृति में 24 स्मृति वाटिकाएँ स्थापित कर दी गई। प्रत्येक स्मृति वाटिका में न्यूनतम 132 छायादार वृक्ष लगाए गए। इन आयोजनों में यहाँ के सरकारी पदाधिकारी भी बड़ी संख्या में सम्मिलित हुए। फतेहपुर (उ0प्र0) के जेल अधीक्षक श्री आर0के0 त्रिपाठी (वर्तमान में सीतापुर) गायत्री परिवार के कार्यक्रमों में भावनापूर्वक भाग लेते हैं। वर्ष 1994 में उन्होंने एक हजार वृक्षारोपण का लक्ष्य रखा था जिसमें से 266 वृक्ष जेल परिसर व समीपवर्ती क्षेत्र में लगाए गए।

सितम्बर 1995 में बुलन्दशहर (उ0प्र0) अश्वमेध के अनुयाज कार्यक्रमों के अंतर्गत जी0टी0 रोड के किनारे-किनारे 59 किलोमीटर तक वृक्षारोपण किया गया, जिसमें गायत्री परिवार परिजनों का वहाँ के प्रशासनिक अधिकारियों, आयकर आयुक्त, न्यायाधीशों तथा डी0ए0ओ॰ आदि ने उत्साह संवर्द्धन और सम्मानित किया। 300 कॉलेज के बालकों ने भी इस कार्यक्रम में उत्साह पूर्वक भाग लिया।

राजस्थान के हल्दीघाटी अश्वमेध यज्ञ से प्रभावित वहाँ के तत्कालीन जिलाधीश तथा जिला प्रमुख अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक उपवन संरक्षक ने समूचे यज्ञ स्थल को स्मृति उपवन के रूप में परिवर्तित करने की घोषणा की। सभी सरकारी विभागों को पौधों के संरक्षण का भी दायित्व वितरित किया गया। गाजीपुर उत्तर प्रदेश के राजकीय होम्योपैथी चिकित्सालय परिसर में एक हजार एक वृक्ष लगाए गए। राहतपुर (इटावा) के गायत्री परिवार ने दस हजार तुलसी के पौधे लगाने का महायज्ञ पूर्ण किया।

फरवरी 1996 में गायत्री शक्तिपीठ आँवलखेड़ा में आँवला, जामुन तथा बेल के 200 वृक्ष लगाए गए। चडहरा (सीतापुर) में 2400 वृक्ष लगाने का कीर्तिमान 1996 में ही पूरा किया गया। कानपुर तथा जोधपुर में इस वर्ष सघन वृक्षारोपण किए, जयन्त सीधी में विशेष रूप से पेण्डुला अशोक लगाए गए। महोली सीतापुर में 2400 वृक्ष तथा हरदोई गायत्री परिवार ने 501 वृक्ष लगाए। विलासपुर (म0प्र0) में आम तथा नीबू के दो-दो सौ वृक्ष लगाए। शाही बाग अहमदाबाद गायत्री शक्तिपीठ कार्यकर्त्ताओं ने एक सघन अभियान के अंतर्गत पर्यावरण पखवारा मनाया, 1500 फलदार वृक्ष तथा 2400 पौधे तुलसी के लगाए गए। इस समूचे कार्यक्रम को अहमदाबाद दूरदर्शन द्वारा प्रसारित किया गया है।

यह तो कुछ स्फुट समाचार भर हैं, जिनसे अखिल भारतीय गायत्री परिवार द्वारा पर्यावरण क्षेत्र की जागरुक सेवाओं का अनुमान किया जा सकता है। परमपूज्य गुरुदेव इससे भी आगे बढ़कर यज्ञों को पर्यावरण सन्तुलन का सर्वोपरि आधार मानते थे। इसी कारण उन्होंने गायत्री उपासना के साथ सघन यज्ञायोजनों का आन्दोलन भी चलाया। गाँव-गाँव, गली-गली यज्ञ हुए इससे पर्यावरण में कितना सुधार हुआ होगा इसकी कल्पना दो वर्ष पूर्व सूरत में अचानक फैली प्लेग की तरह की महामारी से लगाया जा सकता है। उस समय सूरत में अकेला गायत्री परिवार था जिसने घूम-घूम कर मुहल्ले-मुहल्ले एक-एक दिन में बीस-बीस यज्ञ तक सम्पन्न कराए। इन यज्ञों में औषधि-युक्त हवन सामग्री प्रयुक्त की गई। समाचार पत्रों में यह खबरें विस्तार से छपीं तो दिल्ली में भी घर-घर लोगों ने अपने-अपने बचाव के लिए हवन किए।

ग्ना अश्वमेध यज्ञ में वहाँ के कृषि उपसंचालक ने विभिन्न आँकड़े एकत्रित कर यज्ञों को कृषि के लिए उपयोगी प्रतिपादित किया। गोरखपुर यज्ञ में वहाँ के वैज्ञानिकों ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से बड़े-बड़े उपकरण लेकर पर्यावरण का अध्ययन किया और चौंकाने वाले निष्कर्ष इस प्रकार निकाले:-

1- वैज्ञानिक जिन्होंने प्रयोग किए-डॉ0 मनोज गर्ग डायरेक्टर एनविरानमेण्टल एण्ड टेक्निकल कन्सल्टेन्ट्स।

2- स्थान-यज्ञशाला से 20 मीटर दूर पर पूर्व की ओर।

3- प्रयोग की विधि-हाई वैल्यूम सैम्पलर एनविरोटेक ए0पी0एम0-45।

4- हवा के निष्कर्ष प्रति 100 मिलीग्राम तथा पानी के प्रति 100 मिलीलीटर

सल्फर नाइट्रस

अवधि डायऑक्साइड ऑक्साइड

यज्ञ से पूर्व 3.36 1.16

यज्ञ की अवधि में 2.82 1.14

यज्ञ के पश्चात् 0.80 1.02

पानी में बैक्टीरिया

यज्ञ से पूर्व 4500

यज्ञ की अवधि में 2470

यज्ञ के पश्चात् 1250

इन आँकड़ों के आधार पर वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाले और अखबारों में प्रकाशित किए कि यज्ञ कैन्सर जैसी जानलेवा और प्रदूषणजन्य, कष्टप्रद बीमारियों को भी रोकने में समर्थ हो सकते हैं। इसी प्रमाण पत्र में जो हमें उपलब्ध कराया गया बताया है कि विभिन्न यज्ञ कुण्डों से प्राप्त यज्ञ भस्म (ASH) का लैब-विश्लेषण करने पर निम्न खनिज पाए गए-

1- फास्फोरस 4076 मि0ग्रा0/कि0ग्रा0

2- पोटैशियम 3407 मि0ग्रा0/कि0ग्रा0

3- कैल्शियम 7822 मि0ग्रा0/कि0ग्रा0

4- मैग्नेशियम 6424 मि0ग्रा0/कि0ग्रा0

6- क्वाइस्पार 2% W/W

इससे स्पष्ट है कि यज्ञों से पृथ्वी की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाया जा सकता है। उपसंचालक कृषि गुना (म0प्र0) ने गुना यज्ञ के पश्चात् इस आशय की एक रिपोर्ट पिछले और यज्ञ के समय की कृषि उपज आँकड़ों के साथ दी।

परमपूज्य गुरुदेव कहते थे पर्यावरण में भरते जा रहे प्रदूषण की दिन−रात सफाई की जाए, इसके स्थान पर उसे इतना शक्तिशाली बनाया जाना चाहिए कि प्रकृति में सफाई की स्वसंचालित प्रक्रिया अपने आप चलती रहे। इसके लिए परम पूज्य गुरुदेव कहते थे वनौषधियों जिसमें तुलसी, ज्योतिष्मती, निर्गुण्डी, पोदीना, पुनर्नवा अश्वगंधा, चिरायता तथा देववृक्ष पीपल, गूलर, बरगद, आँवला, आम आदि वृक्षों का व्यापक वृक्षारोपण अभियान चलाना चाहिए। सीता अशोक ध्वनि प्रदूषण रोकने में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक वर्ष पूज्य गुरुदेव ने इसी का आन्दोलन चलाया। तुलसी जैसे पौधों से निकलने वाली गंध वातावरण को बहुत शक्ति देती है।

शतपथ ब्राह्मण में अश्वमेध यज्ञों की इष्टियों पर प्रकाश डालते हुए लिखा है-

एष वै दीर्घो नाम यज्ञः। यत्रैतेन यज्ञेन यजन्तऽआ दीर्घारण्य जायते॥ शतपथ 13/3/10

अर्थात्-इस यज्ञ का एक नाम ‘दीर्घ’ है। जहाँ इस यज्ञ का अनुष्ठान होता है वहाँ पुण्य वन सम्पदा (उपरोक्त औषधियों और देव-वृक्षों की बहुतायत सहित) की वृद्धि होती है।

शान्तिकुँज ऐसे 27 अश्वमेध सम्पन्न कर चुका है। पर्यावरण संतुलन में इसके योगदान का इतने सहज अनुमान किया जा सकता है।

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