
मृत्यु चेतना के उच्चतम विकास का प्रवेश द्वार
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
आत्मा अमर है और शरीर नश्वर है। इस सच्चाई को कई बार सुनने के बावजूद मनुष्य मृत्यु का विचार करने से घबराते रहते हैं। दरअसल इसका कारण उनके मन में भ्राँत धारणाओं द्वारा पोषित आत्याँतिक भय का भाव है। लेकिन मृत्यु के बारे में यथार्थता कुछ और ही है। जिसे यदि वह समझ ले तो बात कुछ और ही बन जाए। मृत्यु अनुभव से गुजरे लोगों के अनुसार मृत्यु उनके लिए एक ऐसी पारसमणि सिद्ध हुई जिसके संस्पर्श ने उनके जीवन का कायाकल्प कर दिया व एक सामान्य सा अबुझ एवं अर्थहीन जीवन एक नवीन उद्देश्य एवं उल्लास से महक उठा।
एक अंग्रेज महिला मार्ग्रट ग्रे ने मृत्यु अनुभव से गुजरे कई लोगों पर व्यापक शोध अनुसंधान किया है, जिसका विस्तृत उल्लेख उन्होंने अपनी पुस्तक ‘रिटर्न फ्रॉम डेथ’ में किया है। लेखिका के अनुसार मृत्यु का स्पर्श किए इन लोगों के जीवन में मूलतः तीन तरह के परिवर्तन देखे गए। 1. दूसरों के प्रति आत्मीयता एवं प्रेम का विकसित भाव, 2. जीवन के रहस्य एवं ब्रह्मांडीय सिद्धान्तों को जानने की तीव्र इच्छा तथा 3. दूसरों के उपचारहित उपयुक्त की जाने योग्य नैसर्गिक शक्तियों व अनुदानों के विकास की इच्छा।
मृत्यु अनुभव से गुजरी एक हृदय रोग पीड़ित महिला का कहना है कि इस अनुभव के बाद उसने अपने अंदर प्रेम के भाव को धीरे-धीरे विकसित होते पाया। उसका कहना है कि छोटी-छोटी एवं नगण्य चीजों से भी अब उसे आनन्द आने लगा। दूसरे लोगों से वार्तालाप करने की क्षमता भी बहुत विकास हुआ। दूसरों के विषय में लगभग अतीन्द्रिय स्तर पर जागरुकता पैदा हुई। बीमार और मृत्यु का सामना कर रहे लोगों के प्रति उदात्त संवेदना पैदा हुई। उन्हें वह किसी भी तरह यह बताना चाहती थी कि मृत्यु की प्रक्रिया जीवन के विस्तार से अधिक और कुछ नहीं है।
मृत्यु का स्पर्श करने वाले न्यूमोनिया से पीड़ित व्यक्ति के उद्गार- ‘दूसरों के प्रति मेरे दृष्टिकोण में भारी परिवर्तन आया। मैं बहुत ही सिमटा एवं इक्कड़ व्यक्ति रहा हूँ। लेकिन इस अनुभव के बाद मैं काफी खुल गया हूँ। मैं दूसरों से अधिक आत्मीयता अनुभव करता हूँ व उनमें अधिक रुचि लेता हूँ।’
बहुत सारे व्यक्तियों ने आत्मीयता के भाव का विस्तार मनुष्य के साथ-साथ प्रकृति जगत् तक पाया। दिल के दौरे से गुजरे एक व्यक्ति का अनुभव- ‘तब से सब कुछ बदल गया है। मैं धूप में जाता हूँ व हवा का आनन्द लेता हूँ। आकाश कितना नीला है व वृक्ष भी कितने हरे दिखते हैं, सब कुछ पहले से अधिक सुन्दर लगता है। मेरी इन्द्रियाँ पहले से कितनी तीक्ष्ण हो गई हैं। मैं वृक्षों के आभामण्डल तक को देख सकता हूँ।’
मृत्यु अनुभव से गुजरे लोगों में जीवन, मृत्यु व सृष्टि के सत्य को जानने के तीव्र भाव को जाग्रत् होते देखा गया। ऐसी ही एक महिला का वक्तव्य है कि अब उसकी यह जानने की इच्छा तीव्र हो गई है कि वह कौन है? वह धरती पर क्यों आई? वह यह सब जानकर दूसरों को भी बताना चाहती है। प्रसूति के समय मृतप्राय महिला का कथन है कि इस अनुभव के बाद उसका जीवन पूरी तरह बदल गया है। अब वह जीवन मरण के रहस्य की खोज में जुटी है।
मृत्यु अनुभव से गुजरे लोगों में रोगों को ठीक करने की क्षमता के जागरण व दूसरे की सेवा के भाव को विकसित देखा गया। दोहरे हर्निया आप्रेशन से गुजरे व्यक्ति का कथन है कि इस घटना के बाद इसे लगा कि इसमें रोग ठीक करने की क्षमता है। आज वह विरघिंगम में एक चिकित्सा केन्द्र खोला है और आश्चर्यजनक उल्लास के साथ हजारों व्यक्तियों की सहायता कर रहा है। वह अपना नया जन्म हुआ अनुभव करता है। उसके चिंतन चरित्र में आमूल-चूल परिवर्तन आया है। उसके अनुसार यह अनुभव एक तरह से आत्मशोधन प्रक्रिया थी, जिसने पिछले पापों को धो डाला।
दो घण्टे तक मृत व्यक्ति का कहना है कि इस अनुभव ने मेरे जीवन को पूरी तरह बदल दिया है। मुझे एक उद्देश्य मिल गया है। मुझे ईश्वरीय कार्य करने के लिए भेजा गया है। मैंने दूसरों की सहायता करने का संकल्प लिया है। अब मैं जानता हूँ कि ब्रह्मांड का संचालन करने वाले सिद्धान्त हैं। भगवान् इन्हें नहीं तोड़ता, ये उसकी प्रकृति का अंग है। लेकिन जब हम इनका उल्लंघन करते हैं तो कष्ट और बीमारियाँ आती हैं। इनसे बचने का एकमात्र उपाय यह है कि हम अपनी राह बदलें व ईश्वरीय सिद्धान्तों के साथ जिएँ।
मृत्यु के अनुभव ने व्यक्तियों के दृष्टिकोण में अद्भुत परिवर्तन लाए हैं। जीवन के स्वरूप व उद्देश्य की नई समझ दी। जीवन के प्रति अधिक विधेयात्मक रुख का विकास किया। एक नवीन जीवन का बोध हुआ। अधिक आत्मबल के साथ आत्मगौरव का नवीन भाव जाग्रत् हुआ। भौतिक सम्पदाओं से लगाव कम हो गया। दूसरों से आशा-अपेक्षाएँ कम हो गई। विवेक सम्पन्नता, दया व करुणा के भाव का विकास हुआ।
जीवन मृत्यु के बाद भी चलता है इस विश्वास ने मृत्यु के भय को समाप्त या कम कर दिया। आग से बुरी तरह झुलसी महिला का कहना है कि अब मुझे मृत्यु का कोई भय नहीं है। मैं जानती हूँ कि मृत्यु के बाद भी एक आश्चर्यजनक जीवन होता है। ऐसे ही गुर्दा संक्रमण के कारण मृतप्रायः महिला का कहना है कि मृत्यु का सारा भय अब समाप्त हो गया है, अब तो मैं इसका स्वागत करती हूँ। लेकिन मृत्यु को जानबूझ कर प्रेरित करने के लिए कभी कुछ न करूंगी। मुझे लगता है कि हम यहाँ एक उद्देश्य से आए हैं, जिससे हम बच नहीं सकते।
ट्रक से कुचले गए व्यक्ति का कथन है कि इस अनुभव के बाद मुझे मृत्यु का कोई भय नहीं रहा। यदि जीवन को खतरे में डालने वाली स्थिति आती है तो मैं इससे बचने का पूर्ण प्रयास करूंगा। लेकिन मैं जानता हूँ कि जब मेरा समय आएगा, मैं चेतन रूप से विश्राम करना चाहूँगा, तो मृत्यु का स्वागत करूंगा, क्योंकि जैसा मैंने इसका अनुभव किया है यह सबसे आश्चर्यजनक चीज है।
‘इंटरनेशनल ऐसोसिएशन फॉर नीयर डेथ स्टडीज’ के संस्थापक प्रो. कैनेथ रिंग ने हृदय संघात से गुजरी एक महिला का उदाहरण दिया है, जो हमेशा मृत्यु से डरती थी। उसने अस्पताल में कई बार मृत्यु का साक्षात्कार किया, जिससे उसका मृत्यु का भय समाप्त हो गया था। डॉक्टर लोग सभी हैरान थे। वह जानती है कि वह कभी भी मर सकती है लेकिन उसे कोई भय नहीं है क्योंकि वह जानती है कि मृत्यु क्या है? यह जीवन का अन्त नहीं बल्कि शुरुआत है। जीवन ईश्वर का उपहार है जिसे वह कभी नहीं छोड़ेगी। लेकिन वह मृत्यु से भी नहीं डरती।
इस अनुभव के बाद लोगों ने ईश्वरीय अस्तित्व के संदर्भ में अधिक सुनिश्चितता व्यक्त की। आग से झुलसी महिला का कथन है कि अब उसका भगवान् के प्रति विश्वास अधिक दृढ़ है व उनके प्रति मान्यता में बदलाव आया है।
विषाणु संक्रमण में 1050 तापमान से गुजरी महिला का कहना है कि उस समय से वह भगवान् के अधिक समीपता अनुभव करती है और उसकी उपस्थिति जब चाहे अनुभव करती है। प्रार्थनाएँ चमत्कारिक ढंग से स्वीकार की जाती हैं व कई समस्याओं का समाधान सहज ही मिल जाता है।
इस तरह मृत्यु अनुभव ने लोगों में आध्यात्मिक जागरुकता उत्पन्न की जिसके अंतर्गत ईश्वर के निकट सान्निध्य व व्यक्तिगत स्तर पर ईश्वर से वार्तालाप की अनुभूति हुई और औपचारिक धर्म के प्रति लगाव में कमी आई।
गम्भीर कार दुर्घटना के बाद ऐसे अनुभव से गुजरी एक महिला का कथन है, इसके बाद वह अपनी आध्यात्मिक जागरुकता का विकास करना चाहती थी। ब्रह्मांड और भगवान् से क्या सम्बन्ध है इसका सच्चा अर्थ जानना चाहती थी। वह पादरी द्वारा बताई गई कर्मकाण्डीय क्रिया और अनुष्ठान तक सीमित नहीं रहना चाहती थी। उसके अनुसार अब उसे भगवान् को खोजने के लिए किसी चर्च में जाने की आवश्यकता नहीं है। यह चाहे प्रोटेस्टेण्ट चर्च हो या यहूदी सभाघर, सभी उसके लिए एक समान हैं।
मृत्यु अनुभव से गुजरे लोगों पर गम्भीर अध्ययन अन्वेषण करने वालों में ऐमण्ड ए. मूडी का नाम भी उल्लेखनीय है। मृत्यु अनुभव के बाद व्यक्ति के जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों का उल्लेख उन्होंने अपनी चर्चित पुस्तक ‘लाइफ आफ्टर लाइफ’ में किया है। उनके अनुसार मृत्यु अनुभव ने लोगों के जीवन को नई परिभाषा व अर्थ दिया है। जीवन में अधिक उदारता व गम्भीरता का समावेश देखा गया। दूसरों के प्रति प्रेम का भाव व जीवन के गूढ़ रहस्यों को जानने की इच्छा का विकास हुआ।
अनुभव से गुजरी एक महिला का कहना है कि अब उसके जीवन का एक नया अध्याय खुल गया है जिसकी पूर्व में उसे संभावना तक न थी। अनुभव से पूर्व वह बहुत ही संकीर्ण व ज्ञान के प्रति विमूढ़ थी। अब वह सोचती रहती है कि जीवन में कितना अधिक जानना अभी शेष है।
एक अन्य व्यक्ति का अनुभव ‘पूर्व जीवन में मैं एक संतुष्ट व्यक्ति था। अपने तक ही सीमित था। लगता था कि दूसरों के प्रति जो कुछ करना है वह कर लिया है। मृत्यु अनुभव ने एक नई दृष्टि को जन्म दिया। अब देखता हूँ कि जिन चीजों को अच्छी मानकर करता था। वे मूलतः अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए करता था। पहले अपने आवेगों की प्रतिक्रिया के स्वरूप कार्य करता था। अब सोच समझकर बुद्धि विवेक से काम करता हूँ, जिसमें मन व आत्मा स्वस्थ रहें। अब दूसरों के दोषदर्शन व मूल्याँकन नहीं करता। अब चीजों को इसलिए करता हूँ कि वे वास्तव में अच्छी होती हैं। न कि अपने स्वार्थ व अहं की पूर्ति के लिए। जीवन की समझ काफी गहरी हो गई है।’
कुछ लोगों के अनुसार उनके शरीर को अधिक महत्त्व देने की धारणा में परिवर्तन हुआ है। ऐसी ही एक महिला का कहना है कि पहले वह शरीर के बारे में बहुत जागरुक थी। उसी को सजाने संवारने में अधिकाँश समय व शक्ति लगाती थी। मृत्यु अनुभव के बाद स्थिति एकदम विपरीत है। अब शरीर गौण हो गया है व आकर्षण का प्रमुख केन्द्र उसका मन है और इसी पर पूरा ध्यान केन्द्रित करती है।
इस तरह मृत्यु अनुभव ने लोगों को देहभाव से ऊपर उठाकर उच्चतर भाव में प्रतिष्ठित करवाया। जीवन के प्रति अधिक उद्देश्यपूर्ण व गम्भीर दृष्टि दी। धर्म के प्रति सच्ची रुचि जगाई और धर्मान्धता व रूढ़िवादिता को कम किया। साथ ही एक उच्चस्तरीय नियामक सत्ता का बोध हुआ व अपने अंदर उस सर्वोच्च सत्ता से संपर्क व वार्तालाप की क्षमता को भी विकसित किया। कुल मिलाकर एक नवीन दृष्टिकोण का जन्म हुआ जो निःस्वार्थ प्रेम और सच्चे आध्यात्मिक मूल्यों को उजागर करता है। इस तरह मृत्यु अनुभव ऐसी पारसमणि सिद्ध हुई, जो व्यक्ति के चिन्तन, चरित्र व दृष्टिकोण में ऐसा परिवर्तन कर दे जो जीवन भर के सुधरने के प्रयास के बावजूद भी नहीं हो पाता। यह
ईश्वरीय चेतना की पक्षधर उच्चतर चेतना के दिव्य स्पर्श के कारण हैं। अर्थात् मृत्यु-जीवन का अन्त नहीं है बल्कि जीवन के माध्यम से विकसित हो रही चेतना के भावी उच्चतर विकास का एक प्रवेश द्वार है। यह जीवन के उस पार अदृश्य लोक में एक उच्चतर जीवन की ओर यात्रा का एक आवश्यक सोपान है। तभी तो बाबा कबीर कह गए हैं- कब भरिहौं, कब पाहिहों पूरन परमानन्द।