
परोक्ष जगत् है अनंत संभावनाओं का भाँडागार
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मैडम हेलेना पेट्रोवना ब्लावतास्की एक आध्यात्मिक एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व की स्वामिनी थी। उनकी आध्यात्मिक शक्तियों तथा प्रतिकूलताओं व कठिनाइयों में भी साहसपूर्वक संघर्षरत रहने के गुणों को आज भी स्मरण किया जाता है। 1831 में एकाटेरिन्स्लाव, रूस में उनका जन्म हुआ। बाल्यकाल से ही उनकी रुचि आत्मा, मृत्यु जैसे विषयों व गुह्य-विज्ञान में थी। उम्र के साथ यह रुचि बढ़ती गयी। पेरिस के प्रख्यात् अध्यात्मवेत्ता डेनियल डगलस होम से उन्होंने अध्यात्म की शिक्षा ली। युवावस्था में एक दो बार उन्हें एक लम्बे, ओजस्वी भारतीय की छवि दिखी, जो उन्हें तिब्बत के संत प्रतीत हुये। अतः तिब्बत के सूक्ष्म शरीरधारी संतों से संपर्क स्थापित करके वास्तविक ज्ञान प्राप्ति की अभिलाषा उन्हें भारत खींच लायी। दस वर्षों के भारत भ्रमण के बाद वे अध्यात्म का ज्ञान प्राप्त कर रूस लौटी। लोगों के अनकहे मानसिक प्रश्नों के उत्तर, रोगों के उपचार, समस्याओं का समाधान आदि लिखित रूप में देना उनके लिए सामान्य बात थी।
एक बार मादाम ब्लावतास्की ने जड़-चेतन वस्तुओं के भार परिवर्तन का प्रदर्शन किया। एकाग्र दृष्टि लगाकर उनके देखने मात्र से कई लोग मिलकर एक छोटी सी मेज को अनेक प्रयासों के पश्चात् भी उठा नहीं सके। उनके दृष्टि हटाते ही भार सामान्य हो गया।
उनके पिता इन चमत्कारों को बकवास मानते थे। अतः दो मित्रों ने उन्हें कागज के टुकड़े पर ऐसा शब्द लिखकर दूसरे कमरे में रखवाया जो किसी को भी ज्ञात नहीं था। पिता ने कहा कि हेलेना सूक्ष्म जगत् से संपर्क करके उस शब्द को बता दे तो उन्हें उसकी आध्यात्मिक शक्तियों पर विश्वास हो जाएगा। उस कागज का बिना स्पर्श किये हेलेना का उत्तर पिता तक पहुँचा तो उनकी हैरानी का कोई ठिकाना न रहा, क्योंकि वह उनके एक अत्यन्त पुराने प्रिय घोड़े का नाम था, जिसका अनुमान लगाना असम्भव था। तब से वे अपनी पुत्री पर विश्वास व गर्व करने लगे।
1875 में मादाम ब्लावतास्की की किसी सूक्ष्म सत्ता का मार्गदर्शन प्राप्त करने की तीव्र इच्छा हुई। इसके पीछे उद्देश्य था- ब्रह्मांड का संचालन करने वाले नियमों-सिद्धान्तों का ज्ञान प्राप्त करना एवं सूक्ष्म शरीरधारी संतों की सहायता से प्राकृतिक शक्तियों पर नियंत्रण करना। ये सूक्ष्म शरीरधारी संत अपनी इच्छानुसार कहीं भी, कभी भी स्थूल शरीर धारण करने की क्षमता रखते हैं, कोई भी वस्तु, कहीं भी, किसी भी समय प्रकट करना, भूत-भविष्य देखना तथा इच्छानुसार अपनी आयु बढ़ाने में ये पूर्णतया समर्थ होते हैं। मादाम ब्लावतास्की ने अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कर्नल ओलकाँट एवं समर्पित गुह्य विज्ञानी डब्ल्यू.क्यू.जड्ज की सहायता से थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना की। भारत आने के कुछ माह पश्चात् उन्होंने थियोसोफिकल पत्रिका की प्रथम प्रति प्रकाशित करवायी। पाश्चात्य रहस्यवाद, पूर्वी दर्शन, भारतीय वेदों व अन्य ऐसे ही विषयों पर विषद चर्चा का इसमें समावेश किया। इस समय तक ‘बंदर खेल’ अर्थात् कौतुक के लिए चमत्कार दिखाना उन्होंने लगभग समाप्त कर दिया था। उनके अनुसार मार्गदर्शन सूक्ष्म सत्ता ने गुह्य ज्ञान के अकारण प्रदर्शन की मनाही की थी। सिद्ध सूक्ष्म शरीरधारी संत ‘कुथ हूमी’ उनके मार्गदर्शक हैं, ऐसा उनका दावा था। इसे प्रामाणित करना भी उनके लिए कठिन न था। वे प्रसन्नतापूर्वक सूक्ष्म सत्ता की शुभकामनाएँ, विचार व उपहार सुपात्र व्यक्तियों तक पहुँचा देती थीं।
किसी रात्रि भोज अथवा सभा में सूक्ष्म जगत् के संदेशों का वितरण होने के साथ अलौकिक संगीत सुनायी देता था, वस्तुएँ किसी अलौकिक शक्ति द्वारा हिलायी जाती थीं। एक बार दिन के उजाले में दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटीं। श्रीमती सीनेट नामक महिला ने पैदल भ्रमण के दौरान मादाम ब्लावतास्की से कहा कि कोई स्थूल व्यक्तिगत संदेश सूक्ष्म सत्ता के द्वारा अभी प्राप्त हो जाये तो वे उनके अस्तित्व के प्रति विश्वस्त हो जायेंगी। मादाम ब्लावतास्की ने कागज के टुकड़े पर लिखा और मोड़कर हाथों में रख लिया। अपने स्थान से हटे बिना एक वृक्ष को इंगित किया। एक टहनी पर खुदा मिला- ‘मुझे विश्वास है कि मुझसे यहाँ एक संदेश छोड़ने का आग्रह किया गया। आप मुझसे क्या चाहती हैं।’ इसके नीचे तिब्बती लिपि में हस्ताक्षर थे। श्रीमती सीनेट को विश्वास हो गया कि ऐसा कृत्य किसी अलौकिक शक्ति द्वारा ही सम्पन्न किया जा सकता है।
एक अन्य घटना कुछ निष्पक्ष अतिथियों के समक्ष घटी, जिसने और अधिक प्रभावित किया। मादाम ब्लावतास्की, कर्नल ओलकाँट तथा श्रीमती सीनेट ने एक अन्य महिला एवं मेजर हेन्डरसन के साथ पिकनिक का आयोजन किया। सामान तैयार करके वे निकल पड़े। मार्ग में एक अंग्रेज न्यायाधीश भी सपत्नीक सम्मिलित हो गये। पिकनिक स्थल पर पहुँचकर ज्ञात हुआ कि सात व्यक्तियों के लिए कप-तश्तरी छह ही थे। मादाम ब्लावतास्की से कोई व्यवस्था करने का आग्रह किया गया। कुछ मिनट मौन रहने के पश्चात् उन्होंने मेजर हेन्डरसन से एक स्थान विशेष खोदने के लिए कहा। थोड़ा सा खोदने पर ही वहाँ एक कप-तश्तरी मिले, जिनकी बनावट घर से लाये कप-तश्तरियों के समान ही थी।
ऐसी अभूतपूर्व घटनाओं के पश्चात् ह्यम, सिनेट तथा अन्यों ने मादाम ब्लावतास्की से ऐसा चमत्कार दिखाने को कहा जिससे सम्पूर्ण विश्व आकर्षित हो जाये, जैसे लंदन टाइम्स समाचार पत्र की एक प्रति शिमला में उसी
दिन प्रकट हो जाये, जिस दिन इंग्लैण्ड में प्रकाशित हो। कुछ दिनों उपरान्त सिनेट को अपने कार्यालय में मार्गदर्शक सत्ता का संदेश मिला। इसमें समझाया गया था कि ऐसा चमत्कार दिखाना कोई कठिन कार्य नहीं, किन्तु जन सामान्य की दृष्टि में आने पर सम्पूर्ण विश्व में अव्यवस्था व्याप्त हो जायेगी, लोगों की भीड़ लगने लगेगी। जबकि मानव समुदाय को परम सत्य पर विश्वास दिलाने का एकमात्र उपाय है- क्रमिक रूप से ज्ञान की प्राप्ति। मनुष्य अपने जीवन काल में व्यक्तिगत पात्रता के अनुसार क्रमिक रूप से ज्ञान प्राप्त करता जाता है। चमत्कारों से कौतुक तो उत्पन्न होगा पर इससे जन-सामान्य के विवेक-चक्षु खोलना सम्भव नहीं। उनके इस कथन से सिनेट को और अधिक प्रभावित किया कि एक प्रत्यक्षदर्शी की कही बात दस अपरिचितों के कथन से अधिक विश्वसनीय होती है, अतः जिस सत्कार्य में निरत हो उसे ही आगे बढ़ाओ, भविष्य में दैवीय सहायता मिलते रहेगी। सिनेट तथा मिस्टर ह्यम का इसी प्रकार कुथ हूमी से विचारों का आदान-प्रदान निरन्तर चलते रहने के बावजूद ऐसा वे मादाम ब्लावतास्की के माध्यम से ही कर सकते थे। वे सीधे कुथ हूमी से संपर्क नहीं कर सकते थे।
मादाम ब्लावतास्की ने सम्पूर्ण भारत की यात्रा भी की, क्योंकि उनका विश्वास था कि भारत भूमि का प्रत्येक क्षेत्र तीर्थ है। इस दौरान वे ब्राइट रोग से गम्भीर रूप में ग्रसित हो गयीं। इसी अवस्था में अकेले दार्जलिंग तक गयीं। वहाँ से सिक्किम गयीं जहाँ उनकी अपने गुरु से भेंट हुई और पुनः स्वस्थ हो गयीं। इसके बाद कुथ हमी थियोसोफिकल सोसायटी के कुछ लोगों को स्थूल रूप में भी दिखे। कई बार एक सफेद वेशभूषाधारी पगड़ी बाँधे ओजस्वी भारतीय कुछ मिनटों तक हवा में इधर-उधर घूमने के बाद अंतर्ध्यान हो जाते थे। इस दृश्य को अनेक लोगों ने प्रत्यक्ष रूप से देखा।
अड्यार के सोसायटी मुख्यालय में मादाम ब्लावतास्की ने एक आलमारी में अपने गुरु की तस्वीरें रखीं। यह स्थान इस बात के लिए प्रसिद्ध था कि यहाँ उनकी अनुपस्थिति में भी गुरु के द्वारा संदेश छोड़े जाते थे। एक बार उनके सरल स्वभावी मित्र जनरल मोरगन को अलमारी देखने के लिए बुलाया गया। अलमारी खोलते ही उनमें रखी तश्तरी गिर कर टूट गयी। मादाम ब्लावतास्की की मित्र श्रीमती कोलुम्ब इस बात से अत्यन्त रुष्ट हुयीं। उन्होंने बड़बड़ाते हुए टूटी तश्तरी के टुकड़े कागज में लपेटकर अलमारी में रखे। जनरल मोरगन को यह सब बुरा लगा और बोले कि यह तश्तरी इतनी अधिक महत्त्वपूर्ण है तो सूक्ष्म शक्ति इसे पुनः जोड़ ले। इसके पश्चात् आलमारी खोले जाने पर वहाँ कुथ हूमी के संदेश के साथ तश्तरी भी जुड़ी हुई मिली। इस घटना ने भारतीयों तथा यूरोपियनों दोनों को बहुत प्रभावित किया।
सूक्ष्म जगत् में विचरण करने वाली महान् आत्माओं से संपर्क करके जगत् का कल्याण करने वाले आध्यात्मिक व्यक्तियों के अनेकों उदाहरण हैं। सूक्ष्म शरीरधारी संत स्वयं भी ऐसे मनुष्यों को ढूंढ़ते रहते हैं, जिनके माध्यम से वे अपना लोकहित का उद्देश्य पूर्ण कर सकें। भविष्य में प्रत्येक व्यक्ति अध्यात्म को जीवन में अपनाकर सूक्ष्म जगत् से सहज रूप में संपर्क करने की क्षमता प्राप्त कर ले तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।