• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • सत्य की चाह
    • पूर्ण मनुष्य को जन्म देगा वैज्ञानिक अध्यात्मवाद
    • अदृश्य जगत् के अलौकिक सहायक
    • आत्मज्योति ही यथार्थता (kahani)
    • जीवन प्रभुमय बन जाए
    • मानव चेतना और उसकी जटिल गुत्थियां
    • अर्जुन की चरित्रनिष्ठा (kahani)
    • उत्खंडन की विशिष्ट हैं उपलब्धियाँ
    • कर्मक्षय हेतु गृहस्थ धर्म
    • मातृत्व उदय हो आया (kahani)
    • मानवी प्रेम से दिव्य प्रेम की ओर लौटें
    • इच्छा शक्ति के विकास का राजमार्ग
    • कर्त्तव्यों के बंधन भी आवश्यक (kahani)
    • तनाव का उपचार आध्यात्मिक जीवन
    • इस तरह मिटी मन की अशाँति
    • ईश्वर का सच्चा भक्त (kahani)
    • एक अनोखा प्रयोग, विलक्षण रहे जिसके निष्कर्ष
    • Quotation
    • प्रतिभा पलायन रुके, संस्कृति की सेवा विभूतियाँ करें
    • कभी उपेक्षा नहीं बरती (kahani)
    • असामाजिक होने की परिणति
    • जहाँ चाह वहाँ राह
    • उसमें भूल क्या (kahani)
    • प्राकृतिक जीवन शैली अपनाए,कैंसर दूर भगाएं
    • पुरुषार्थ आरंभ किया (kahani)
    • यज्ञ से प्रमेह एवं मधुमेह का उपचार
    • देवपूजन का मर्म - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • आत्म-उजास की थाती-महापर्व दीपावली
    • कुछ भय न रहा (kahani)
    • युगगीता-26 - कैसे बनें दिव्यकर्मी और कैसे हो बंधनमुक्त
    • मंत्री बना दिया (kahani)
    • गुरुकथामृत-26 - संगठन निर्माण में सहायक-मार्गदर्शक ये पत्र
    • ऊर्जा जागरण साधना सत्र क्या, क्यों, कैसे व किसके लिए
    • VigyapanSuchana
    • केन्द्र के समाचार-विश्वव्यापी हलचलें
    • अखण्ड ज्योति-एक पत्रिका नहीं एक मिशन, एक आन्दोलन
    • अपनों से अपनी बात - विश्वयुद्ध के कगार पर खड़ा यह सारा संसार
    • राह आदर्शों की
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • सत्य की चाह
    • पूर्ण मनुष्य को जन्म देगा वैज्ञानिक अध्यात्मवाद
    • अदृश्य जगत् के अलौकिक सहायक
    • आत्मज्योति ही यथार्थता (kahani)
    • जीवन प्रभुमय बन जाए
    • मानव चेतना और उसकी जटिल गुत्थियां
    • अर्जुन की चरित्रनिष्ठा (kahani)
    • उत्खंडन की विशिष्ट हैं उपलब्धियाँ
    • कर्मक्षय हेतु गृहस्थ धर्म
    • मातृत्व उदय हो आया (kahani)
    • मानवी प्रेम से दिव्य प्रेम की ओर लौटें
    • इच्छा शक्ति के विकास का राजमार्ग
    • कर्त्तव्यों के बंधन भी आवश्यक (kahani)
    • तनाव का उपचार आध्यात्मिक जीवन
    • इस तरह मिटी मन की अशाँति
    • ईश्वर का सच्चा भक्त (kahani)
    • एक अनोखा प्रयोग, विलक्षण रहे जिसके निष्कर्ष
    • Quotation
    • प्रतिभा पलायन रुके, संस्कृति की सेवा विभूतियाँ करें
    • कभी उपेक्षा नहीं बरती (kahani)
    • असामाजिक होने की परिणति
    • जहाँ चाह वहाँ राह
    • उसमें भूल क्या (kahani)
    • प्राकृतिक जीवन शैली अपनाए,कैंसर दूर भगाएं
    • पुरुषार्थ आरंभ किया (kahani)
    • यज्ञ से प्रमेह एवं मधुमेह का उपचार
    • देवपूजन का मर्म - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
    • आत्म-उजास की थाती-महापर्व दीपावली
    • कुछ भय न रहा (kahani)
    • युगगीता-26 - कैसे बनें दिव्यकर्मी और कैसे हो बंधनमुक्त
    • मंत्री बना दिया (kahani)
    • गुरुकथामृत-26 - संगठन निर्माण में सहायक-मार्गदर्शक ये पत्र
    • ऊर्जा जागरण साधना सत्र क्या, क्यों, कैसे व किसके लिए
    • VigyapanSuchana
    • केन्द्र के समाचार-विश्वव्यापी हलचलें
    • अखण्ड ज्योति-एक पत्रिका नहीं एक मिशन, एक आन्दोलन
    • अपनों से अपनी बात - विश्वयुद्ध के कगार पर खड़ा यह सारा संसार
    • राह आदर्शों की
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 2001 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


तनाव का उपचार आध्यात्मिक जीवन

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 13 15 Last
तनाव आधुनिक युग का अभिशाप है और यह जीवन पद्धति का एक अभिन्न अंग बनता जा रहा है। इसकी प्रकृति जहर के समान है। यह दीमक की तरह अंदर से शरीर और मन को खोखला करता रहता है। तनाव के अनेकों कारण एवं प्रकार हो सकते हैं, किन्तु इसका मुख्य कारण है परमात्मा पर अविश्वास तथा मनःस्थिति और परिस्थिति के बीच सामंजस्य न होना। इसका शरीर और मन पर इतना दबाव पड़ता है कि हार्मोन और जैव रसायनों का संतुलन तार-तार हो जाता है। परिणाम स्वरूप शारीरिक स्वास्थ्य एवं मानसिक सुख-संतुलन का क्रमशः क्षय होने लगता है और जीवन तरह-तरह के मनोकायिक रोगों एवं मनोरोगों से ग्रसित होकर नारकीय यंत्रणा एवं संताप से भरने लगता है।

‘एनसाइक्लोपीडिया ऑफ अमेरिकाना’ के अनुसार सर्वप्रथम हैंस सेली ने तनाव (स्ह्लह्द्गह्यह्य) शब्द का प्रयोग किया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान इस शब्द का काफी प्रचलन हुआ। सेली के अनुसार तनाव मनःस्थिति और परिस्थिति के असंतुलन से उठा एक आवेग है। इसकी दाहक क्षमता अप्रत्यक्ष और अति खतरनाक होती है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान विषम परिस्थितियों के रहते इसके भयंकर परिणाम व्यापक स्तर पर देखे गए। और यह विषय वैज्ञानिक शोध अनुसंधान के दायरे में आ गया।

दो अमेरिकी मनःचिकित्सक थामस एच. होल्मस और रिचर्ड राडे ने तनाव के विषय पर व्यापक शोध अनुसन्धान किया। इन्होंने पाया कि व्यक्तिगत जीवन की अव्यवस्था तथा विसंगतियों के कारण 53' गम्भीर तनाव उत्पन्न होते हैं। इन्होंने विविध तनावों के मापन की ‘स्केल’ भी निर्धारित की, जिसके अनुसार तलाक से 63', मित्र या संबंधित परिजन की मौत से 36', बेरोजगारी से 56' तनाव होता है। उनके अनुसार तनाव की गम्भीरता में व्यक्ति मानसिक संतुलन खो बैठता है और यदि मनोबल दुर्बल है तो आत्महत्या जैसे जघन्य दुष्कृत्य तक कर बैठता है। नवीनतम रिपोर्ट से पता चला है कि उच्छृंखल वासना भी तनाव को जन्म देती है। और यह समस्या पश्चिम के विकसित देशों में अधिक गम्भीर है। पश्चिमी देशों में 55 से 80' लोग तनावजन्य रोगों से पीड़ित हैं और यह विषम स्थिति महामारी का रूप लेने जा रही है। इसे आधुनिक विज्ञान के वरदान के साथ उपजा अभिशाप कहें, तो गलत न होगा।

आज पश्चिमी देशों की उपभोक्ता संस्कृति की आँधी से विश्व का कोई भी कोना अछूता नहीं है। हमारा देश भी इससे बचा नहीं है। इसके प्रभाव ने व्यक्ति को अति महत्त्वाकाँक्षी बना दिया है। और अपनी बढ़ी-चढ़ी आकाँक्षाओं को पूरा करने के लिए उसे कई प्रकार की प्रतिस्पर्धाओं से गुजरना पड़ता है। उसमें तनिक भी असफलता नकारात्मक सोच एवं तनाव को जन्म देती है। इसी तरह अप्राकृतिक आहार-विहार एवं अति औपचारिक आचार-व्यवहार भी तनाव को जन्म देते हैं। साथ ही ईर्ष्या, द्वेष, सन्देह, संशय, दंभ जैसे मनोविकार तनाव के अन्य महत्त्वपूर्ण कारण हैं। इस तरह आज तथाकथित विकास की भागती जिन्दगी में तनाव जीवन का अनिवार्य घटक बन गया है। और जीवन, प्रगति की अंधी दौड़ में सुलझने की बजाय और भी उलझता जा रहा है।

यह तनाव रूपी अभिशाप किस तरह मन एवं मस्तिष्क की सूक्ष्म संरचना को प्रभावित कर गम्भीर एवं असाध्य रोगों का कारण बनता है, इसका अपना विज्ञान है, जिस पर शोधकर्त्ता गम्भीर अनुसंधान कर रहे हैं। हेन सेली के अनुसार, तनाव की प्रक्रिया को तीन अवस्थाओं में समझा जा सकता है। प्रथम अवस्था में, एड्रीनल कार्टेक्स, में तनाव की सूचना का सम्प्रेषण होता है। दूसरी अवस्था में लिम्फेटिक तन्त्र की सक्रियता द्वारा शरीर में उत्पन्न इस अप्रिय स्थिति के प्रति जेहाद छेड़ा जाता है। इसमें प्रतिरक्षा प्रणाल के अंतर्गत आने वाले थाइमस व स्पलीन प्रमुख कार्य करते हैं। तीसरी अवस्था में तनाव की अधिकता पूरे मनोकायिक तंत्र को अपने नियंत्रण में ले लेती है। इस कारण शरीर व मन में थकान तथा गहन उदासी के लक्षण स्पष्ट परिलक्षित होते हैं।

कर्टसीन ने सेरिब्रल कार्टेक्स में तीन तरह के मस्तिष्क खण्डों का वर्णन किया है- मेंटल ब्रेन, सोमेटिक ब्रेन तथा विसरल ब्रेन। सोमेटिक ब्रेन माँसपेशियों को तथा विसरल ब्रेन ‘ऑटोनॉमिक नर्वस सिस्टम’ को नियंत्रित करता है। मेंटल ब्रेन फ्रंटल लोव से परिचालित होकर समस्त विचार व चेतना तंत्र को नियमित व संचालित करता है। सामान्यतया इन तीनों मस्तिष्क खण्डों का आपस में अच्छा अंतर्संबंध रहता है। तनाव इनके बीच असंतुलन पैदा कर देता है। और यहीं से मनोकायिक रोगों (क्कह्यब्ष्द्धशह्यशद्वड्डह्लद्बष् ष्ठद्बह्यशह्स्रद्गह्) की शुरुआत हो जाती है।

इस संदर्भ में तनाव को चार अवस्थाओं में विश्लेषित किया गया है- साइकिक फेज, साइकोसोमेटिक फेज, सोमेटिक फेज तथा आर्गेनिक फेज। साइकिक फेज में व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान रहता है। तथा इस दौरान केन्द्रिय तंत्रिका तंत्र अति क्रियाशील हो उठता है। रक्त में एसिटील कोलाइन की मात्रा बढ़ जाती है। यह रसायन हर स्तनधारी के मस्तिष्क में पाया जाता है। इसकी अधिकतम मात्रा मस्तिष्क के काडेट नाभिक में तथा न्यूनतम सेरीविलम में होती है। मस्तिष्कीय क्रियाकलापों के आधार पर इसमें उतार-चढ़ाव आता रहता है। तनाव सर्वप्रथम मस्तिष्क पर दबाव डालता है और एसिटीलकोलाइन का स्राव बढ़ जाता है। इससे उद्विग्नता, अति उत्साह, चिंता व अनिद्रा जैसे विकार पैदा हो जाते हैं। यह अवस्था कुछ दिनों से कुछ महीनों तक चलती है। यदि यह स्थिति और लम्बी हुई तो यह साइकोसोमेटिक अवस्था में परिवर्तित हो जाती है। इस अवधि में हाइपरटेंशन, कंपकंपी तथा हृदय की धड़कन बढ़ जाती है।

सोमेटिक फेज में कैटाकोलामाइन्स अधिक स्रावित होता है। कैटाकोलामाइन्स में तीन हार्मोन आते हैं- नार एड्रेनेलीन, एड्रेनेलीन तथा डोपामीन। तनाव से इन हार्मोन के स्तर में वृद्धि हो जाती है। नशे का प्रयोग भी इनकी मात्रा को बढ़ा देता है। तनाव का प्रभाव मनुष्य ही नहीं पशुओं में भी देखा गया है। तनाव से प्रभावित पशुओं के मूत्र परीक्षण में एड्रेनेलीन की मात्रा 2 से 3 नानीग्राम प्रति मिनट तथा नार एड्रेनेलीन 6 से 10 नानीग्राम प्रति मिनट पायी गयी। सर्दी, गर्मी, दर्द आदि से उत्पन्न तनाव में नार एड्रेनेलीन का स्राव बढ़ जाता है। इससे पेशाब के समय जलन होती है। आर्गेनिक फेज, तनाव की अगली अवस्था है। इसमें तनाव शरीर की प्रतिरोधी क्षमता पर बहुत बुरा असर डालता है। तनाव इस अवस्था में आकर मधुमेह, अस्थमा तथा कोरोनरी रोग का रूप धारण कर लेता है। इस दौरान डोपामीन के बढ़ने से व्यवहार में भी गड़बड़ी पायी गयी है।

इसके अलावा भी अनेक ऐसे हारमोन हैं जो तनाव से सीधा सम्बन्ध रखते हैं। सिरोटीनिन मस्तिष्क की तीन क्रियाओं को संचालित करता है- निद्रा, अनुभव तथा तापमान। तनाव से इसका स्तर बढ़ जाता है। फलस्वरूप अनिद्रा, भूख कम लगना तथा शरीर के तापमान में वृद्धि हो जाने की समस्याएँ खड़ी हो जाती हैं। हिस्टामीन शारीरिक विकास तथा प्रजनन में मुख्य भूमिका निभाता है। तनाव की अधिकता इसमें भी व्यतिक्रम डालती है। तनाव मुख्य रूप से श्रवणेन्द्रियों तथा आँखों के माध्यम से मस्तिष्क के सेरिब्रल कार्टेक्स तक पहुँचता है तथा वहाँ से समस्त शरीर में प्रसारित होता है। पेप्टिक अल्सर, गठिया, दिल का दौरा, मधुमेह आदि बीमारियाँ इसी के दुष्परिणाम हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध में युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में पेप्टिक अल्सर तथा हाइपरटेंशन की अधिकता पाई गई थी। यह स्थिति बाढ़, भूकम्प तथा अन्य प्राकृतिक प्रकोपों से प्रभावित प्रदेशों में भी देखी गयी है। इसके मूल में तनाव को ही जिम्मेदार माना गया है।

इस तरह की आपात परिस्थितियों में तनाव की अपरिहार्यता अपनी जगह है किन्तु जीवन की सामान्य स्थिति में भी तनाव को पूरी तरह बाहरी परिस्थितियों की उपज मानना, तनाव के उपचार के रहस्य से वंचित रह जाना है। क्योंकि तनाव परिस्थितियों से अधिक मनःस्थिति पर निर्भर करता है।

तनाव को बाहरी परिस्थितियों की उपज मानने के कारण ही, हम प्रायः उसके उपचार के लिए दवाइयों पर निर्भर रहने की भूल करते हैं। जबकि कोई भी दवा, तनाव से उत्पन्न बीमारी को ठीक करने में सफल नहीं हो सकती। तनाव से न्यूरान व हारमोन तंत्र (न्यूरोह्यमरल सिस्टम) बुरी तरह से प्रभावित होता है। तनाव के उपचार के लिए ली गई दवा, हारमोन की अतिरिक्त मात्रा को तो नियंत्रित कर लेती है,किन्तु ग्रंथि पूर्ववत ही बनी रहती है और दवा का प्रभाव ग्रन्थि तक नहीं पहुँच पाता। दवा का असर कम होते ही ग्रंथियाँ पुनः हारमोन का अत्यधिक स्राव करने लगती हैं तथा रोगी की स्थिति और भी चिन्ताजनक हो जाती है। अतः तनाव का उपचार मात्र चिकित्सीय औषधियों द्वारा सम्भव नहीं है। इसके लिए रोगी को स्वयं अपना चिकित्सक बनना होगा। तभी इसकी प्रभावी उपचार हो सकेगा। और इसके लिए आवश्यक है, प्राकृतिक आहार एवं नियमित दिनचर्या, सद्चिन्तन एवं उदात्त भावनाएँ। इसे अपनाकर व्यक्ति तनावजन्य विषाक्त परिस्थिति को क्रमशः तिरोहित करते हुए सुख-शान्ति से भरी-पूरी स्वर्गीय परिस्थितियों का निर्माण कर सकता है।

इस संदर्भ में कुछ आधारभूत बातों पर ध्यान देना आवश्यक है। हर व्यक्ति अपने विचारों व भावनाओं में जीता है। उसकी अपनी अच्छाइयाँ व बुराइयाँ होती हैं। इस बात का सदा ध्यान रखना चाहिए कि कहीं हमारी बातों एवं व्यवहार से उसकी भावनाएँ तो आहत नहीं हो रही हैं। विचारों को तो चोट नहीं पहुँच रही है। अगर ऐसा हुआ तो वातावरण तनाव के कसैलेपन से भर उठेगा और व्यक्ति तनावग्रस्त हो जाएगा। अतः हमारा व्यवहार ऐसा हो जो किसी के मर्म बिन्दु को न छुए। बुराई को सार्वजनिक करने का तात्पर्य है-कीचड़ उछालना। बुराई को रोकने के लिए व्यक्ति को अकेले में प्रेमपूर्वक समझाना चाहिए। इसी में इसका समाधान है। कहीं भी व्यक्तिगत तौर पर प्रतिष्ठ का प्रश्न बनाकर उलझना बुद्धिमानी नहीं है। परिस्थितियाँ अपनी जगह है और व्यक्ति अपनी जगह। परिस्थितियों से तालमेल एवं सामंजस्य बिठाकर आगे बढ़ने में ही समझदारी है। परिस्थिति से तालमेल न बिठा पाना ही तनाव को जन्म देता है। अतः इनसे पलायन नहीं बल्कि विवेकपूर्ण समझौता ही एक मात्र निदान है।

इस संदर्भ में व्यक्ति का दृढ़ मनोबल एवं सकारात्मक मनोभूमि अपनी निर्णायक भूमिका निभाती है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार दृढ़ मनोबल वाले व्यक्ति पर तनाव का प्रभाव अधिक नहीं होता है। ‘स्ट्रेस एण्ड इट्स मैनेजमेंट बाई योगा’ नामक सुविख्यात ग्रन्थ में के.एन. उडुप्पा तनाव मुक्ति के लिए विधेयात्मक विचारों को अपनाने पर बल देते हैं। ये इसके लिए अनेक प्रकार की यौगिक क्रियाओं का भी सुझाव देते हैं। उडुप्पा ईश्वर पर आस्था को तनाव मुक्ति का सर्वश्रेष्ठ व असरदार उपचार मानते हैं। इनका कहना है कि ईश्वर विश्वासी की तनाव स्पर्श नहीं करता है।

और यह सत्य है कि ईश्वर पर आस्था और विश्वास की डोरी तनाव के तपते मरुस्थल से दूर शान्ति के प्रशाँत समुद्र की ओर ले चलती हैं। ईश्वर निष्ठ व्यक्ति विषम से विषम परिस्थिति में भी तनाव रूपी व्याधि को पास फटकने नहीं देता। कबीरदास विपन्न आर्थिक स्थिति में भी अपनी फकीरी शान में मगन रहते थे। मीराबाई अनेकों लाँछनों एवं अत्याचारों के बावजूद अपने कृष्ण में मस्त रहती थी। घोर पारिवारिक कलह के बीच भी तुकाराम की मस्ती में कोई कमी नहीं आती थी। क्रूस पर चढ़ने वाले ईसा, जहर का प्याला पीने वाले सुकरात को परमात्मा पर अगाध और प्रगाढ़ विश्वास था। उनको तनाव स्पर्श तक नहीं कर पाया था। वस्तुतः दाहक व दग्ध तनाव ईश्वर के प्रेम रूपी शीतल जल का स्पर्श पाते ही वाष्प बनकर उड़ जाता है। अतः व्यक्ति को नित्य आत्मबोध एवं तत्त्वबोध का चिन्तन तथा भगवद् भजन करना चाहिए। शिथिलीकरण एवं प्राणायाम जैसे सरल यौगिक क्रियाओं का भी अनुसरण किया जा सकता है। इन्हीं उपायों से मन को शान्त कर तनाव से मुक्त हो पाना सम्भव है। अतः ईश्वर के प्रति समर्पित भाव से जीआ गया आस्था एवं श्रद्धापूर्ण जीवन और सामंजस्यपूर्ण व्यवहार ही तनाव रूपी महाव्याधि के उपचार का एकमात्र प्रभावी उपाय है।

First 13 15 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • सत्य की चाह
  • पूर्ण मनुष्य को जन्म देगा वैज्ञानिक अध्यात्मवाद
  • अदृश्य जगत् के अलौकिक सहायक
  • आत्मज्योति ही यथार्थता (kahani)
  • जीवन प्रभुमय बन जाए
  • मानव चेतना और उसकी जटिल गुत्थियां
  • अर्जुन की चरित्रनिष्ठा (kahani)
  • उत्खंडन की विशिष्ट हैं उपलब्धियाँ
  • कर्मक्षय हेतु गृहस्थ धर्म
  • मातृत्व उदय हो आया (kahani)
  • मानवी प्रेम से दिव्य प्रेम की ओर लौटें
  • इच्छा शक्ति के विकास का राजमार्ग
  • कर्त्तव्यों के बंधन भी आवश्यक (kahani)
  • तनाव का उपचार आध्यात्मिक जीवन
  • इस तरह मिटी मन की अशाँति
  • ईश्वर का सच्चा भक्त (kahani)
  • एक अनोखा प्रयोग, विलक्षण रहे जिसके निष्कर्ष
  • Quotation
  • प्रतिभा पलायन रुके, संस्कृति की सेवा विभूतियाँ करें
  • कभी उपेक्षा नहीं बरती (kahani)
  • असामाजिक होने की परिणति
  • जहाँ चाह वहाँ राह
  • उसमें भूल क्या (kahani)
  • प्राकृतिक जीवन शैली अपनाए,कैंसर दूर भगाएं
  • पुरुषार्थ आरंभ किया (kahani)
  • यज्ञ से प्रमेह एवं मधुमेह का उपचार
  • देवपूजन का मर्म - परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी
  • आत्म-उजास की थाती-महापर्व दीपावली
  • कुछ भय न रहा (kahani)
  • युगगीता-26 - कैसे बनें दिव्यकर्मी और कैसे हो बंधनमुक्त
  • मंत्री बना दिया (kahani)
  • गुरुकथामृत-26 - संगठन निर्माण में सहायक-मार्गदर्शक ये पत्र
  • ऊर्जा जागरण साधना सत्र क्या, क्यों, कैसे व किसके लिए
  • VigyapanSuchana
  • केन्द्र के समाचार-विश्वव्यापी हलचलें
  • अखण्ड ज्योति-एक पत्रिका नहीं एक मिशन, एक आन्दोलन
  • अपनों से अपनी बात - विश्वयुद्ध के कगार पर खड़ा यह सारा संसार
  • राह आदर्शों की
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj