
एक अनोखा प्रयोग, विलक्षण रहे जिसके निष्कर्ष
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ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान के उद्देश्यों की गरिमा सर्वविदित है यहाँ के शोध प्रयासों से अपने परिजनों के साथ समूचे विश्व के विज्ञों और विशेषज्ञों की विचार चेतना आलोकित-आन्दोलित है। सभी को आशा है कि यहाँ के शोध निष्कर्ष जाति, धर्म और देश के सभी सीमा बन्धनों से परे समूची मानवता को जीवन की नयी दिशा सुझायेंगे। मनःसंताप में डूबी मनुष्य जाति को जीवन जीने की कला बतायेंगे। और ऐसा हो भी रहा है। अभी पिछले दिनों अप्रैल 2001 में हुए एक प्रयोग के निष्कर्षों ने सुविख्यात मनोविज्ञानियों एवं मनःचिकित्सकों को आश्चर्यचकित कर दिया है।
यह प्रयोग शोध संस्थान के निदेशक के निर्देशन में अप्रैल माह की पाँच से पच्चीस तारीख के मध्य 20 दिन की अवधि में सम्पन्न हुआ। इस प्रयोग का उद्देश्य यह जानना था कि मनोरोगों के उपचार में यज्ञ की प्रक्रिया कितना सक्षम हो सकती है। अभी तक यज्ञ के अनेकों प्रयोग परीक्षण हुए हैं, इनमें स्वास्थ्य संवर्धन से लेकर पर्यावरण शोधन तक के विविध निष्कर्ष वैज्ञानिक कसौटी पर बहुत कुछ जाँचे परखे गये हैं। किन्तु मनःचिकित्सा में यज्ञ के प्रभावों का वैज्ञानिक अध्ययन अभी तक नहीं हुआ था। जबकि शास्त्रीय प्रतिपादनों से लेकर विज्ञ जनों के अनुभव इसकी उपयोगिता को सदैव ही पुष्ट करते रहे हैं। परम पूज्य गुरुदेव ने अपनी गहन साधना एवं प्रयोग परीक्षणों के आधार पर ही यज्ञ को भावी युग की सफलतम चिकित्सा पद्धति के रूप में घोषित किया था। और इस सर्वांगपूर्ण चिकित्सा को ‘यज्ञोपैथी’ का नाम दिया था। तथा ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान को इसके विविध रहस्यों को अनावृत करने का दायित्व सौंपा था। इसी कड़ी में पिछले दिनों शोध संस्थान के निदेशक के निर्देशन में हुआ यह प्रयोग स्वयं में अनूठा एवं अद्भुत था।
यह प्रयोग शान्तिकुञ्ज के एक मासीय युग शिल्पी सत्र में आये साधक-साधिकाओं पर किया गया। शोध की योजना के अनुसार, सर्वप्रथम विशेषज्ञ मनोविश्लेषकों द्वारा मनोविज्ञान के सर्वमान्य (स्ह्लड्डठ्ठस्रड्डह्स्र) परीक्षणों के आधार पर पूरे समूह का मनोविश्लेषण किया गया। और इनमें प्रयोग के तहत लिये गये मनोविकारों से पीड़ित 20 व्यक्तियों का समूह चयनित किया गया। इनमें दस को ‘कन्ट्रोल ग्रुप’ एवं अन्य दस को ‘एक्सपेरिमेन्टल ग्रुप’ के अंतर्गत विभक्त किया गया। दोनों समूह में आधे पुरुष थे और आधी महिलायें।
‘कन्ट्रोल ग्रुप’ वाले वर्ग को शान्तिकुञ्ज के दिव्य वातावरण में आश्रम की संयमित एवं अनुशासित दिनचर्या का अनुसरण भर करना था। दूसरे ‘एक्सपेरीमेन्टल ग्रुप’ वाले वर्ग को उपरोक्त दिनचर्या के साथ विशेष आहुतियों के साथ होने वाले यज्ञ में भी नियमित भागीदारी करनी थी। इन पर यज्ञ के दौरान औसतन आधे घण्टे की गहन उपचार प्रक्रिया 20 दिन तक सम्पन्न होनी थी।
यज्ञ आहुति में प्रयुक्त होने वाली विशेष हवन सामग्री का चयन शोध संस्थान के निर्देशक के मार्गदर्शन में किया गया था। इसमें अपने चिकित्सकीय प्रभावों के लिए प्रख्यात्, दिव्य सुगंध एवं औषधीय गुणों से भरपूर जड़ी-बूटियों एवं हवन सामग्री का चुनाव किया गया था। 2.05 किलो हवन सामग्री में इन महत्त्वपूर्ण घटकों का अनुपात इस तरह से था- 1. ब्राह्मी- 100 ग्राम, 2. शंखपुष्पी- 100 ग्राम, 3. शतावर- 100 ग्राम, 4. गोरखमुण्डी- 100 ग्राम, 5. मालकाँगनी- 100 ग्राम, 6. मौलश्री की छाल- 100 ग्राम, 7. गिलोय- 100 ग्राम, 8. नागरमोथा- 200 ग्राम, 9. घुड़बच- 50 ग्राम, 10. मीठी बच- 100 ग्राम, 11. तिल- 100 ग्राम, 12. जौ- 100 ग्राम, 13. चावल- 100 ग्राम, 14. सुगंध कोकिला- 100 ग्राम, 15. घी-100 ग्राम, 16. खंसारी गुड़- 500 ग्राम।
मनोवैज्ञानिक परीक्षण के अंतर्गत लिये गये मनोविकार इस तरह से थे- उद्विग्नता (Anxiety), तनाव (Stress), अवसाद (Depression), प्रतियापन (Regression) और अपराध बोध (Guilt)। इन विकारों की मनोवैज्ञानिक व्याख्या इस तरह से है।
उद्विग्नता से प्रभावित व्यक्ति चिन्तित एवं तनावग्रस्त रहता है। और भावनात्मक रूप से उद्विग्न रहता है। वह आसानी से उत्तेजित होता है तथा छोटी-छोटी बातों पर खीजना, क्रुद्ध होना और तुनकमिजाजीपन उसके स्वभाव के अंग बन जाते हैं।
तनाव (Stress) से पीड़ित व्यक्ति बहुत सारा दबाव महसूस करता है, व हमेशा भाग दौड़ में रहता है तथा विश्राम के लिए फुर्सत के कुछ क्षण नहीं निकाल पाता। वह खलबली में रहता है तथा बहुत तनाव अनुभव करता है।
अवसाद में डूबा व्यक्ति उत्साहहीन, हतोत्साहित एवं निराशा की दशा में अप्रसन्न रहता है। निराशावादी रुख अपनाये हुए वह किसी से सहमत नहीं होता और काम की उपयोगी वस्तुओं को भी याद करने में कठिनाई अनुभव करता है।
प्रतियापन (Regression) से पीड़ित व्यक्ति दिग्भ्रमित एवं अव्यवस्थित रहता है तथा किसी कार्य में एकाग्र नहीं हो पाता। जीवन की चुनौतियों का सामना करने में वह स्वयं को अक्षम पाता है और आवेश में काम करता है।
अपराध भावना से ग्रस्त व्यक्ति पश्चाताप से भरा रहता है और अपने दुष्कृत्यों पर ही ध्यान केन्द्रित रखता है। वह सही ढंग से नींद नहीं ले पाता और अपने प्रति असंतुष्ट रहता है तथा अपने साथ निर्दयता की हद तक कठोर व्यवहार करता है।
शोध संस्थान के निर्देशक द्वारा निर्धारित योजना के अनुसार, उपरोक्त मनोविकारों से पीड़ित ‘कन्ट्रोल ग्रुप’ के दस पुरुष एवं महिलायें शान्तिकुञ्ज में अपनी सामान्य दिनचर्या का अनुसरण करते रहे। और ‘एक्सपेरिमेन्टल ग्रुप’ के दस पुरुष एवं महिलाएँ नियमित रूप से यज्ञ में भाग लेते रहे। प्रयोग के अंतर्गत यज्ञ प्रातः सात बजे ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान की यज्ञशाला में प्रारम्भ हो जाता था। यज्ञ विधा में निष्णात् साधकगण कर्मकाण्ड की प्रक्रिया का संचालन करते थे। यज्ञ पूरी तरह वैज्ञानिक विधि से सम्पन्न होता रहा। हवन सामग्री की तरह यज्ञ में प्रयुक्त होने वाली समिधाओं के चुनाव में भी विशेष ध्यान रखा गया था। यज्ञ में आम्रकाष्ठ की सूखी लकड़ियों का ही उपयोग किया गया। यज्ञ में सस्वर मंत्रोच्चारण, यज्ञ क्रियाओं पर भावपूर्ण टिप्पणियों के साथ सात्विकता का पूर्ण ध्यान रखा गया था। यज्ञ के अंतर्गत गायत्री महामंत्र का 108 आहुतियों के साथ प्रयोग निर्धारित था। इस तरह यज्ञ चिकित्सा का अभिनव प्रयोग नियमित रूप से चलता रहा। इसमें भाग ले रहे साधकगण कुछ ही दिनों में इसके अद्भुत प्रभावों को अनुभव कर रहे हैं। और अपनी मानसिक दशा में आधारभूत सुधार होता देख रहे थे।
प्रयोग की अवधि का समय पूरा होते ही बीस दिन बाद पुनः दोनों वर्गों के साधकों का मनोवैज्ञानिक परीक्षण किया जाएगा। और इस दौरान हुए परिवर्तनों का अध्ययन एवं विश्लेषण किया गया। इसके अंतर्गत जो निष्कर्ष सामने आए, उससे आधुनिक मनोविज्ञान एवं मनःचिकित्सा में निष्णात विज्ञजन चमत्कृत हुए। उनके अनुसार यज्ञ मनोविकार के उपचार में इतना प्रभावशाली हो सकता है यह उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। इन विशेषज्ञों का कहना है कि अभी तक मनःचिकित्सा के इतिहास में कोई भी विधा इतनी प्रभावशाली व कारगर नहीं पायी गयी है। और सही कहें तो आधुनिक चिकित्सा में मनोविकारों के उपचार की कोई भी सर्वांगीण प्रणाली उपलब्ध नहीं है। इस दिशा में जो भी उपचार चल रहे हैं वे आधे-अधूरे ही हैं। इस परिप्रेक्ष्य में यज्ञ उपचार एक अभिनव युग चिकित्सा पद्धति का रूप ले तो कोई अतिशयोक्ति न होगी।
अब यहाँ इस प्रयोग के परिणामों की चर्चा करना उचित होगा। शान्तिकुञ्ज के वातावरण में सात्विक एवं अनुशासित जीवनचर्या का प्रभाव इस तरह से रहा। इसके अंतर्गत औसतन 66' लोगों को लाभ मिला। जिसमें 60' पुरुष एवं 80' महिलाएँ थीं। इनमें एन्गजाइटी से प्रभावित 70' भागीदारों को राहत मिली। जिसमें 60' पुरुष और 80' महिलाएँ थीं। तनाव में 50' व्यक्तियों को लाभ मिला, इनमें 20' पुरुष और 80' महिलायें थीं। अवसाद में 70' लोगों को राहत मिली, इनमें 80' पुरुष और 60' महिलाएँ थीं। प्रतियापन में 70' भागीदार लाभान्वित हुए, इनमें 80' पुरुष और 60' महिलायें थी। अपराध भावना में 70' लोग को राहत पहुँचा, इनमें 60' पुरुष एवं 80' महिलायें थी।
इस तरह शान्तिकुञ्ज आश्रम के संस्कारित वातावरण में मात्र जीवन पद्धति के परिवर्तन भर से मनोरोगों के उपचार में आशाजनक परिणाम देखे गये। जिसमें औसतन 66' भागीदार लाभान्वित हुए। इसके साथ ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान में जिन्होंने विशेष आहुतियों के यज्ञ में भाग लिया, उनमें लाभान्वित होने वालों का प्रतिशत 86 रहा।
यहाँ पर एन्गजाइटी में 90' भागीदारों को लाभ मिला। जिनमें 80' पुरुष और 100' महिलाएँ थीं। इसी तरह तनाव में 70' लोगों को राहत मिली, इनमें 60' पुरुष एवं 80' महिलायें थी। अवसाद के स्तर में 90' लोगों में उतार देखा गया, जिनमें 80' पुरुष और 100' महिलायें थीं। इसमें प्रतियापन एवं अपराध भाव में लाभान्वित होने वालों की प्रतिशत संख्या 90 थी। इनमें पुरुषों की संख्या 80' एवं महिलाओं की संख्या 100' थी।
उपरोक्त परिणामों से यह तथ्य भी उभरकर आया कि यज्ञ से लाभान्वित होने वालों में महिलाओं की संख्या अधिक थी, इसमें महिलाओं भाव समृद्धता के कारक को निर्णायक तत्त्व समझा जा सकता है। महिलायें, सर्वविदित है कि अधिक भावनाशील होती हैं। अतः यज्ञ जैसे आध्यात्मिक उपचार में श्रद्धा-भावना के सघन पुट के रहने से अधिक लाभान्वित होना स्वाभाविक एवं सुनिश्चित ही है।
मनोवैज्ञानिक अध्ययन में अंतर्गत यह भी विश्लेषण किया गया कि लाभान्वित होने वालों को मिलने वाले लाभ का प्रतिशत स्तर क्या था। मात्र जीवनचर्या में परिवर्तन करने वाले ‘कन्ट्रोल ग्रुप’ की यह प्रतिशत दर इस तरह से रही। इन्हें एन्गजाइटी में 26' राहत मिली, जिसकी प्रतिशत दर पुरुष एवं महिला भागीदारों के लिए क्रमशः 27 एवं 25 थी। तनाव में 52 प्रतिशत तक का लाभ मिला, इसमें पुरुषों को 50' एवं महिलाओं को 54' तक का लाभ मिला। अवसाद में 50' तक की राहत देखी गयी। इसमें पुरुषों का प्रतिशत 48 एवं महिलाओं का 52 रहा। प्रतियापन में 55' तक का लाभ देखा गया। इसमें यह दर क्रमशः 50 एवं 60' थी। अपराध भाव में 62 प्रतिशत की कमी देखी गयी, जो पुरुषों के लिए 60 प्रतिशत एवं महिलाओं के लिए 64 प्रतिशत।
इस तरह मनोवैज्ञानिक परीक्षण के अनुसार आध्यात्मिक जीवनचर्या अपनाने वालों को मनोविकारों के शमन में 50' से अधिक लाभ मिला और यज्ञ करने वालों में लाभ की यह प्रतिशत दर 73 से भी ऊपर रही। इनका विस्तृत विवरण इस तरह से है।
एन्गजाइटी में औसतन लाभ प्रतिशत 81 रहा। जो पुरुषों एवं महिलाओं दोनों के लिए समान था। तनाव में 70' तक का लाभ देखा गया, जो पुरुषों एवं महिलाओं के लिए क्रमशः 74' एवं 80' था। अवसाद में यह लाभ 74' तक रहा, जो पुरुषों में 72' एवं महिलाओं 76' था। प्रतियापन में यह लाभ 89' प्रतिशत तक रहा, जो पुरुष एवं महिलाओं में क्रमशः 88 एवं 90' था। अपराध भाव में 65' तक उतार देखा गया, जो पुरुषों में 60' तथा महिलाओं में 70' था।
इस तरह उपरोक्त मनोवैज्ञानिक विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि आध्यात्मिक जीवन पद्धति के अंतर्गत सात्विक एवं अनुशासित जीवनचर्या का पालन मनोविकारों के उपचार का सहज एवं निरापद मार्ग है। इसके अंतर्गत 66' भागीदारों को लाभान्वित होते पाया गया। और इनमें विविध मनोविकारों के शमन में औसतन 50' से अधिक का लाभ मिला। दूसरी ओर विशेष आहुतियों से युक्त यज्ञ प्रक्रिया को अपनाने वालों में 86' को लाभ मिला और इनके लाभान्वित होने का प्रतिशत 73' से अधिक ही रहा।
उपरोक्त प्रयोग परीक्षण के द्वारा मानसोपचार के क्षेत्र में यज्ञोपैथी की वैज्ञानिकता पुष्ट एवं प्रमाणित हुई है। और ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान के प्रयोग परीक्षणों का यह दायरा क्रमशः विस्तार लेने जा रहा है। इसी के अंतर्गत विभिन्न योग-साधनाओं के मानव चिन्तन एवं चेतना पर होने वाले प्रभावों का शोध अध्ययन चल रहा है। इनके निष्कर्ष शीघ्र ही शोध ग्रन्थों एवं रिसर्च बुलेटिनों में प्रकाशित होने जा रहे हैं। देव संस्कृति विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ देव संस्कृति नाम की शोध पत्रिका का प्रकाशन शीघ्र ही होने वाला है। इनके माध्यम से यह निष्कर्ष अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित एवं प्रसारित किए जाएँगे। इनसे न केवल इस दिशा में चल रहे वैज्ञानिक अनुसंधानों को एक नई दिशा मिलेगी। बल्कि मानसिक रूप से संतप्त मानव जाति को जीवन जीने की कला का एक नया ज्ञान मिलेगा।