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Books - बाल संस्कारशाला मार्गदर्शिका

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अध्याय- ७ योग व्यायाम प्राणायाम

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योग- व्यायाम आवश्यकता एवं उपयोगिता

     वर्तमान समय में मनुष्य का स्वास्थ्य गिरता जा रहा है। हर व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रोगों से पीड़ित है उसकी अधिकांश कमाई दवाओं पर ही खर्च होती है। शरीर को कष्ट उठाना पड़ता है, लेकिन रोगों से छुटकारा नहीं मिल पा रहा है। कहावत भी है -
‘‘प्रथम सुख- नीरोगी काया’’
‘‘दवा दबायें रोग को, करें नहीं निर्मूल ।।
चतुर चिकित्सक ठग रहे, क्यों करते हो भूल॥’’

स्वस्थ रहने के लिए आहार- विहार का संयम और नियमित दिनचर्या का क्रम जितना आवश्यक है, उतना ही यह भी आवश्यक है कि शरीर के सभी अंग सक्रिय और जीवन्त रहें। इसलिए स्वास्थ्य विज्ञान में व्यायाम, भोजन, शयन और नियम- संयम का महत्त्व एक मत से स्वीकार किया गया है। चलती रहने वाली मशीन में कितनी ही सतर्कता बरती जाय तो भी उसमें कुछ मैला कूड़ा आ ही जाता है, यही स्थिति शरीर की है। उसकी जीवन प्रक्रिया में भी शरीर के विभिन्न अंगों में विकार अनायास ही उत्पन्न होते रहते हैं। जैसे- किसी मकान में गर्द- बुहार। घर को साफ- सुथरा बनाये रखने के लिए जितना आवश्यक है उसे रोज साफ करते रहना। उतना ही आवश्यक यह भी है कि शरीर मंदिर की भी सफाई की जाती रहे और यह सफाई योग व्यायाम द्वारा होती है। शारीरिक दृष्टि से चुस्त- दुरुस्त (फिजिकली फिट) बालक ही अपनी पढ़ाईएवं सामाजिक कार्यों का निर्वाह ठीक से कर सकते हैं।
योग व्यायाम प्रारंभ करने के पहले शरीर की मांसपेशियों की जकड़न दूर करके, उन्हें गर्म कर लेने वाले व्यायाम (वार्म अप एक्सरसाइज) करा लेना अच्छा रहता है। उसके कुछ क्रम नीचे दिये जा रहे हैं।

अंग मर्दन (रबिंग) :- योग व्यायाम करने से पूर्व रात्रि की शिथिलता एवं जकड़न तथा सुस्ती को दूर करने हेतु पहले गतियोग तथा रबिंग के माध्यम से मांस- पेशियों को सक्रिय करते हैं।

    गतियोग क्रमांक- (१) अपने स्थान पर ही धीरे- धीरे दौड़ लगाना।

(२) अपने पंजों पर ही उछलना।
(३) अपने पैरों को कूद कर दोनों हाथों को कंधों की सीध में फैलाना तथा दो पर नीचे हाथों का लाना तथा सावधान होना।
(४) उछलकर पैर खोलना तथा दोनों हाथों को कंधों की ओर ऊपर ले जाकर ताली बजाना, दो पर नीचे लाना तथा सावधान हो जाना।
(५) नं. १ पर उछलकर पैर खोलना तथा हाथों को कंधों की सीध में ले जाना, दो पर नीचे लाना, तीन पर हाथों को ऊपर ले जाना तथा चार पर हाथ नीचे करना।
नोटः- यह गतियोग १६ क्रमांकों में किया जाए अंत में गतियोग के बाद हाथों को रगड़कर माथा, सिर, गर्दन, गला तथा चेहरे की मालिश की जाये। बाद में हाथों तथा पैरों को भी हाथों से रगड़ा जाए। दोनों हाथों को रगड़कर आँखों का सेंक तथा चेहरे की मालिश करना चाहिये।
पवन मुक्तासनः- शरीर के विभिन्न अंगों काः- योग व्यायाम का मुख्य उद्देश्य शरीरगत वात, पित्त, कफ को संतुलित करना तथा अंदर भरी हुई दूषित वायु से शरीर को मुक्त करना व प्रत्येक अंग- अवयव को सक्रिय बनाना है।

करने की विधिः- जमीन या तख्त पर कम्बल या दरी बिछाकर दोनों पैर सामने फैलाकर बैठें। एड़ी व अंगूठे मिले रहे। दोनों हाथ पीछे रखकर शरीर को सीधा रखकर टिकाये रहें।

क्रमांक (१) पैरों की अंगुलियों का व्यायामः-
विधिः- दोनों पैरों की अंगुलियों को नीचे की ओर दबायें। कुछ क्षण इसी अवस्था में रखकर ढीला कर दें। पुनः यही क्रिया करें। यथा स्थिति ४ से ६ बार करें।

क्रमांक (२) पंजों का व्यायाम :-

विधि :- पैर के दोनों तलुओं को जमीन से लगाने का प्रयास करें, एड़ी व घुटना जमीन से न उठे। पूरा झुककर पुनः विपरीत दिशा (पेट की ओर) लायें।
इस प्रकार पैरों को ३- ४ बार आगे- पीछे और फिर दाएँ- बाएँ झुकाएँ। क्रमांक (३) एड़ी व अंगूठे का व्यायाम :-

विधिः- एड़ी व अंगूठे मिली हुई स्थिति में दायें से बायें व बायें से दायें दोनों पंजों को तीन से पाँच बार गोल घुमायें।

क्रमांक (४) दोनों एड़ियों का व्यायाम :-
विधिः- दोनों एड़ियों के बीच छः से आठ इंच का फासला करें। दोनों पंजों को विपरीत दिशा में गोल घुमायें। यह क्रिया भी दायें से बायें व बायें से दायें तीन से पाँच बार घुमायें।

क्रमांक (५) घुटनों का व्यायाम :-

विधि :- दाहिने पैर को सीधे इतना उठायें कि एड़ी बायें पैर के अगूंठे की ऊँचाई तक पहुँचे। एक क्षण यहीं रोके। पुनः पैर घुटने से मोड़कर एड़ी नितम्ब से लगायें। यहाँ भी एक क्षण रोकें। पुनः पैर को सीधा करें तथा पूर्व स्थिति में एक क्षण रोक कर एड़ी जमीन पर रखें। दूसरे पैर से भी यही क्रिया करें। दोनों अवस्थाओं में दूसरा पैर सीधा रखें। यह क्रिया भी तीन से पाँच बार करें।

क्रमांक (६) कमर का व्यायाम :-

विधिः- त्रिकोणासन की भाँति दोनों पैरों के बीच फासला करके दोनों हाथों को कंधे की सीध में फैलायें। आगे झुकते हुए दाहिने हाथ से बायें पैर के अगूंठे तथा बायें हाथ से दायें पैर के अगूंठे को छुएँ, दूसरा हाथ विपरीत दिशा में सीधा रखें।

क्रमांक (७) हाथ की अंगुलियों का व्यायाम :-

विधिः- वज्रासन या सुखासन में बैठें। दोनों हाथ को कंधे की सीध में आगे फैलाकर अंगुलियों को ताकत से फैलायें, मुट्ठी बंद करें। यह क्रिया ४- ६ बार करें।

क्रमांक (८) कलाई का व्यायाम :-

विधिः- अँगूठा अंदर करके दोनों हाथ की मुट्ठी बंद करें तथा दायें से बायें व बायें से दायें गोल घुमायें। पुनः अंगुलियाँ सीधी करके हथेली को नीचे- ऊपर व दायें- बायें समकोण पर मोड़ें। हाथ पूर्ववत् सीधे रहेंगे।

क्रमांक (९) कोहनी का व्यायाम :-

विधिः- दोनों हाथ इस प्रकार सामने फैलायें कि हथेली ऊपर को रहे। अब कोहनी से हाथों को अपनी ओर मोड़कर अंगुलियों के अग्रभाग को कंधों पर रखें। पुनः दोनों हाथ सीधा करें व मोड़ें। यह क्रिया भी ४- ६ बार करें, इसके बाद दोनों हाथ दायें- बायें, सीधे फैलायें और पूर्ववत् कोहनी से मोड़कर अंगुलियाँ कंधे से लगायें। पुनः दोनों हाथों को ऊपर उठायें। हथेली आमने- सामने रहे और पूर्ववत् अंगुलियाँ कंधों से मिलायें।

क्रमांक (१०) कंधों का व्यायाम :-

विधिः- वज्रासन या सुखासन में ही बैठे हुए दोनों हाथों को दाहिनी व बायीं ओर से कोहनी से मोड़कर अंगुलियों को दोनों कंधों पर रखें। कमर सीधी, गर्दन सामान्य व दृष्टि सामने रहे। अब दाहिनी कोहनी को जितना ले जा सकते हैं आगे की ओर ले जायें। बायीं कोहनी उतनी ही विपरीत दिशा अर्थात् पीछे जायेगी। दृष्टि सामने व अंगुलियाँ कंधों पर ही रहेंगी। पुनः बायीं कोहनी आगे व दाहिनी कोहनी पीछे ले जायें। यह क्रिया ४- ५ बार करें।

पुनः हाथों को सामान्य स्थिति में लाकर कोहनियों को आगे से पीछे व पीछे से आगे चक्राकार गोल घुमायें। गर्दन सीधी व दृष्टि सामने ही रहे, तत्पश्चात् दोनों हाथों को साइकिल के पायडल की तरह (जब दाईं कोहनी बाहर जाये तब बायीं पीछे, जब बायीं पीछे तब दायीं आगे) चक्राकार गोल घुमायें। यह क्रिया भी ४- ५ बार करें। इतनी ही बार इसके विपरीत करें।

क्रमांक (११) छाती का व्यायाम :-

विधिः- गहरी श्वास लें एवं छोड़ें। इस क्रिया को 3- 5 बार तक करें। 5 मिनट प्राणायाम भी कर सकते हैं।

क्रमांक (१२) गर्दन का व्यायाम :-

विधिः- पूर्व स्थिति में बैठे हुए सिर को नीचे झुकायें कि ठोड़ी कंठ कूप से लगे, पुनः विपरीत अर्थात् पीछे ले जायें। ४- ५ बार यह क्रिया करें। पुनः गर्दन दायें व बायें घुमाएँ, पश्चात् दायें- बायें व बायें से दायें चक्राकार गोल घुमायें। इन सभी क्रियाओं में आँख बंद रखें। समाप्ति पर कुछ क्षण विश्राम करके पलकों का सेंक करते हुए आँखें खोलें।

क्रमांक (१३) जबड़े का व्यायाम :-

विधिः- मुँह को जितना फैला सकते हैं, फैलाएँ। कुछ क्षण रुक कर बंद कर लें, ऐसा २- ४ बार करें। पुनः जबड़े को दायें- बायें एवं दायें से बायें गोल घुमाएँ।

क्रमांक (१४) दाँतों का व्यायाम :-

विधिः- प्रथम आगे के दाँतों व पश्चात् पीछे के दाँतों (दाढ़ों) को दबाएँ व ठीक करें। यह क्रिया ४- ६ बार करें। नकली दाँत लगे हों तो न करें।

क्रमांक (१५) नेत्रों का व्यायाम :-

विधिः- इसको तीन प्रकार से करते हैं। प्रथम दृष्टि सामने किसी बिन्दु या वस्तु पर टिकाएँ। यथासंभव पलक न झपकते हुए एकटक देखें व आँखें बंद कर लें। २- ४ बार करें। द्वितीय गर्दन सीधी रखते हुए अपने दायें व बायें जितना देख सकते हैं देखें। तृतीय पुतलियों को दायें से बायें व बायें से दायें चक्राकार गोल घुमाएँ। गर्दन सीधी रखें। पश्चात् नेत्र बंद करके कुछ क्षण विश्राम दें व पलकों को सेंक करें। जिनकी नकली आँख लगी हो तो न करें।

क्रमांक (१६) जीभ का व्यायाम :-

विधिः- वज्रासन या सुखासन में बैठकर जीभ को अधिकतम बाहर निकाल दें। कुछ क्षण रुककर सामान्य हों तथा पुनः करें।

क्रमांक (१७) गालों का व्यायाम :-

विधिः- गालों को जितना फुला सकते हैं, फुलाएँ।

क्रमांक (१८) कानों का व्यायाम :-

विधिः- कानों को चार भागों- नीचे, ऊपर, अगले व पिछले को एक- एक हाथ से पकड़कर क्रमशः नीचे को नीचे, ऊपर को ऊपर, पीछे को पीछे तथा आगे को आगे खींचे। ताकत न बहुत अधिक लगाएँ न कम। भीतर तक खिंचाव अनुभव हो यह प्रयास करें। बाद में दोनों हथेलियों से दोनों सम्पूर्ण कानों की मालिश करें।

क्रमांक (१९) ललाट का व्यायाम :-

विधिः- दोनों हाथों की अंगुलियों को मस्तक के मध्य रखकर कानों की ओर सहलाना। अंगूठे से कनपटी व अंगुलियों से तालू को दबाना। अंगूठों से कान के ऊपर के भाग को आगे से पीछे मालिश करना। गर्दन की मालिश करना।

क्रमांक (२०) पेट का व्यायाम (उपनौली) :-

विधिः- सीधे खड़े होकर दोनों पैरों में लगभग ८- १० इंच का फासला करें। नासिका के दोनों छिद्रों से श्वास अंदर भरें व नीचे झुकते हुए मुँह से पूरी श्वांस बाहर निकाल दें तथा बाहर ही रोक दें (बाह्य कुंभक), अब दोनों पैरों को घुटनों से आगे झुकाकर हथेलियों को घुटनों पर टिकाकर कुर्सी आसन की भाँति स्थिर हो जाएँ। इस अवस्था में पेट को अंदर खीचे व छोड़ें। सुविधा से जितनी बार पूर्व की भांति नीचे झुकते हुए मुँह से निकालें तथा घुटने झुकाकर पेट को खीचें व छोड़ें। यथा स्थिति ४- ६ बार करें।

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