
क्रियायोग एवं भावयोग
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आध्यात्मिकता के दो भाग, दो हिस्से हैं। एक हिस्सा वह है, जिसको ''क्रियायोग'' कहते हैं और दूसरा हिस्सा वह हैं, जिसको हम ''भावयोग'' कहते हैं। क्रियायोग के माध्यम से हमको भावयोग जाग्रत करना पड़ता है। अमल में शक्ति इस शरीर में नहीं है, वस्तुओं में नहीं है! धूपबत्तियों में क्या ताकत हो सकती है? वह हवा को ठीक कर सकती है। दीपक में क्या ताकत हो सकती है? वह उजाला कर सकता है। हमारी जीवात्मा में क्या दीपक बल दे सकता है? नहीं, दीपक जीवात्मा में कोई बल नहीं दे सकता, क्योंकि वह वस्तु है, पदार्थ है, मैटर है, जड़ है। जड़ चीजें हमको फायदा दे सकती हैं, लेकिन चेतना को कोई लाभ नहीं दे सकती। सूर्यनारायण को जो पानी हम चढ़ाते हैं तो क्या वह हमारी आत्मा को बल दे सकता है? नहीं बेटे, सूर्यनारायण को चढ़ाया हुआ पानी उस जमीन को तो गीली कर सकता है, जहाँ पर आपने पानी फैला दिया था। हमारी आत्मा को बल नहीं दे सकता और क्या सूर्यनारायण तक वह जल पहुँच सकता है? नहीं पहुँच सकता। देख लीजिए आपका चढ़ाया हुआ जल जमीन पर पड़ा हुआ है, सूर्यनारायण तो लाखों मील दूर हैं। कैसे पहुँच सकता है।
फिर आप क्या कह रहे थे? बेकार की बातें बताते हैं आप हमको। नहीं बेटे, हम बेकार की बातें नहीं बताते। हम तो ये बताते हैं कि क्रियायोग के माध्यम से भावयोग का जागरण करने का उद्देश्य पूरा होता है। एक मीडियम होता है और एक लक्ष्य होता है। एक ''एम'' होता है। दोनों को अगर आप मिलाकर चलेंगे, तब तो कुछ बात बनेगी और अगर आप दोनों को मिलाकर नहीं चलेंगे तो वही होगा जो आज एकांगी क्रियायोग से हो रहा है। एकांगी ''क्रियायोग'' आज बादलों की तरह से, आसमान की तरह से, रावण के चेहरे के तरीके से बढ़ता हुआ चला जा रहा है और प्राण उसमें से निकलता हुआ चला जा रहा है। इससे हर आदमी को शिकायत करनी पड़ती है कि हमारा अध्यात्म से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होता और अध्यात्म से कोई लाभ नहीं होता और अध्यात्म से हमको भगवान नहीं मिलते और अध्यात्म से हमको शांति नहीं मिलती। अध्यात्म से हमें अमुक नहीं मिलता। बेटे, कुछ नहीं मिलेगा, क्योंकि तेरे पास क्रियायोग है। क्रियायोग का उद्देश्य भावयोग का समर्पण है, अगर यह बात आपकी समझ में आ जाए तो आपको कम से कम रास्ता जरूर मिल जाएगा।
फिर आप क्या कह रहे थे? बेकार की बातें बताते हैं आप हमको। नहीं बेटे, हम बेकार की बातें नहीं बताते। हम तो ये बताते हैं कि क्रियायोग के माध्यम से भावयोग का जागरण करने का उद्देश्य पूरा होता है। एक मीडियम होता है और एक लक्ष्य होता है। एक ''एम'' होता है। दोनों को अगर आप मिलाकर चलेंगे, तब तो कुछ बात बनेगी और अगर आप दोनों को मिलाकर नहीं चलेंगे तो वही होगा जो आज एकांगी क्रियायोग से हो रहा है। एकांगी ''क्रियायोग'' आज बादलों की तरह से, आसमान की तरह से, रावण के चेहरे के तरीके से बढ़ता हुआ चला जा रहा है और प्राण उसमें से निकलता हुआ चला जा रहा है। इससे हर आदमी को शिकायत करनी पड़ती है कि हमारा अध्यात्म से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होता और अध्यात्म से कोई लाभ नहीं होता और अध्यात्म से हमको भगवान नहीं मिलते और अध्यात्म से हमको शांति नहीं मिलती। अध्यात्म से हमें अमुक नहीं मिलता। बेटे, कुछ नहीं मिलेगा, क्योंकि तेरे पास क्रियायोग है। क्रियायोग का उद्देश्य भावयोग का समर्पण है, अगर यह बात आपकी समझ में आ जाए तो आपको कम से कम रास्ता जरूर मिल जाएगा।