
अध्यात्म का मर्म
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अध्यात्मवाद क्या होता है? अध्यात्म उस चीज का नाम है, जिसमें वस्तुओं का प्रयोग तो करते हैं, समर्थ चीजों का प्रयोग तो करते हैं, मसलन पानी का प्रयोग, चावल का प्रयोग, अक्षत का प्रयोग, शक्कर का प्रयोग, घी का प्रयोग, धूप का प्रयोग, दीप का प्रयोग आदि वस्तुओं का प्रयोग करते हैं और साथ ही साथ कर्मकाण्डों का प्रयोग, क्रिया कलापों का प्रयोग करते हैं। इसमें शरीर को हिला डुलाकर काम करते हैं, जैसे माला घुमाना आदि! माला किससे घुमाते हैं, हाथ मे घुमाते हैं। माला किसकी होती है? लकड़ी की बनी होती है। क्या क्या चीजें होती हैं, जो हाथ से घुमाई जाती हैं? बेटे, यह सब मैटेरियल है। जो मैटेरियल या भौतिक चीजें हैं, उनके उपयोग का क्या उद्देश्य होना चाहिए? साहब। भौतिक से तो भौतिक चीजें ही मिलेगी। हाँ बेटे, चरखा कातने से अठन्नी मिल सकती है। माला घुमाने से चवन्नी मिल सकती है। महाराज जी! भगवान की बात कहिए न। नहीं बेटे! भगवान से माला का क्या ताल्लुक हो सकता है? तो फिर आप किसलिए माला कराते हैं? माला इसलिए कराते हैं कि आपकी समझ में आ जाए कि किस तरीके से हम अपनी सारी अक्ल, सारी शक्ति इस बात में झोंकना चाहते हैं।
मित्रो! आप एक बात समझ लें कि जो भी क्रियायोग है, उसका मकसद केवल मनुष्य की भावना का विकास करना है, भावना का परिष्कार करना है। भावना का विकास और परिष्कार करने में, भावना का शोधन करने में, आपकी संवेदनाओं को जगाने में अगर हमारी क्रिया सफल होती है तो हमारी साधना भी सफल होती है। अगर हमारी भावना से वे दूर रहते हैं, भावना को छू नहीं पाते, केवल भौतिक क्रिया-कलाप से भौतिक चीजों की कामना में हम डूबे रहते हैं तो यह खाली भौतिकवाद है। भौतिकवाद के लिए हम अलग हैं और अध्यात्मवाद के लिए अलग। भौतिकवाद कीमत के बदले में कीमत चुकाना चाहता है। आप आठ घंटे काम कीजिए हम आपको छह रुपए चुका सकते हैं। आप चार घंटे काम कीजिए, हम आपको तीन रुपए दे सकते हैं। पदार्थ की कीमत पदार्थ है। आपने कितनी माला जपीं, उसके बदले में हम आपको उतने पैसे दे सकते हैं। आप चार रुपए रोज कमाते हैं तो फिर एक घंटा और भजन कीजिए हम आपको अठन्नी देंगे। आप अठन्नी ले जाइए। नहीं साहब! हम शांति चाहते हैं, सिद्धि चाहते हैं, मुक्ति चाहते हैं और भगवान का अनुग्रह चाहते हैं। बेटे, इसका ताल्लुक भावना से है।
मित्रो! आप एक बात समझ लें कि जो भी क्रियायोग है, उसका मकसद केवल मनुष्य की भावना का विकास करना है, भावना का परिष्कार करना है। भावना का विकास और परिष्कार करने में, भावना का शोधन करने में, आपकी संवेदनाओं को जगाने में अगर हमारी क्रिया सफल होती है तो हमारी साधना भी सफल होती है। अगर हमारी भावना से वे दूर रहते हैं, भावना को छू नहीं पाते, केवल भौतिक क्रिया-कलाप से भौतिक चीजों की कामना में हम डूबे रहते हैं तो यह खाली भौतिकवाद है। भौतिकवाद के लिए हम अलग हैं और अध्यात्मवाद के लिए अलग। भौतिकवाद कीमत के बदले में कीमत चुकाना चाहता है। आप आठ घंटे काम कीजिए हम आपको छह रुपए चुका सकते हैं। आप चार घंटे काम कीजिए, हम आपको तीन रुपए दे सकते हैं। पदार्थ की कीमत पदार्थ है। आपने कितनी माला जपीं, उसके बदले में हम आपको उतने पैसे दे सकते हैं। आप चार रुपए रोज कमाते हैं तो फिर एक घंटा और भजन कीजिए हम आपको अठन्नी देंगे। आप अठन्नी ले जाइए। नहीं साहब! हम शांति चाहते हैं, सिद्धि चाहते हैं, मुक्ति चाहते हैं और भगवान का अनुग्रह चाहते हैं। बेटे, इसका ताल्लुक भावना से है।