
साधना-एक समग्र उपचार
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मित्रो! आप यह ध्यान रखें कि दोनों का उसी प्रकार घनिष्ठ संबंध है, जिस प्रकार शरीर और प्राण का है। शरीर और प्राण को मिला देने से ही व्यक्ति जीवंत कहलाते हैं। उसी तरीके से भाव-संवेदनाओं के परिष्कार एवं विचारणाओं के परिष्कार के साथ-साथ में जप के पूजा के और उपासना के क्रियाकृत्य, कर्मकाण्ड जब मिल जाते हैं तो एक समूची बात बन जाती है। मित्रो! हम एक समूचे आदमी हैं। बोलते हैं, चलते हैं लेकिन आर प्राण शरीर में से निकल जाए तो हवा में घूमने वाला प्राण आपके किसी काम का नहीं हो सकता। फिर आप कहें कि गुरुजी! जरा व्याख्यान दीजिए। अरे बेटे, हम तो भूत हैं और भूत कैसे व्याख्यान दे सकते हैं? गुरुजी! हम तो आपके पैर छूना चाहते हैं। बेटे, हम तो हवा में घूम रहे हैं, हमारे पर कैसे छू सकते हैं? अच्छा साहब! तो गुरुदीक्षा ही दे दीजिए। अरे भाई! हम मरने के लिए बैठे हैं, अब गुरुदीक्षा का समय चला गया। अब तु कैसे गुरुदीक्षा ले सकता है?
मित्रो! मरा हुआ शरीर बेकार है और मरा हुआ प्राण बेकार है। इसी तरह भाव-संवेदना के बिना कर्मकाण्ड क्रियाकृत्य बेकार हैं। कर्मकाण्डों को जीवंत बनाने के लिए भाव संवेदनाओं को जगाने की बेहद आवश्यकता है। हम किसी भूखे प्यासे, गरीब, दुखियारे के काम आएँ और उसकी सेवा सहायता करें तो उससे हमारी भाव-संवेदना जाग्रत हो सकती है, परंतु भाव संवेदना जगाने के लिए-कर्मकाण्डों की आवश्यकता को भी समझें। नहीं साहब! हम तो बड़े दयालु हैं। अच्छा! आपके अंदर बहुत दया है तो क्या आप किसी के काम आ सकते हैं? नहीं साहब! हम किसी के काम नहीं आ सकते। हम किसी की सेवा-सहायता नहीं कर सकते। तब फिर आप दयालु कैसे? किस बात के? भाव-संवेदनाएँ भी अपूर्ण हैं, अगर वे क्रिया-काण्डों के साथ समन्वित नहीं हैं। दोनों का समन्वय जरूरी है।
मित्रो! मरा हुआ शरीर बेकार है और मरा हुआ प्राण बेकार है। इसी तरह भाव-संवेदना के बिना कर्मकाण्ड क्रियाकृत्य बेकार हैं। कर्मकाण्डों को जीवंत बनाने के लिए भाव संवेदनाओं को जगाने की बेहद आवश्यकता है। हम किसी भूखे प्यासे, गरीब, दुखियारे के काम आएँ और उसकी सेवा सहायता करें तो उससे हमारी भाव-संवेदना जाग्रत हो सकती है, परंतु भाव संवेदना जगाने के लिए-कर्मकाण्डों की आवश्यकता को भी समझें। नहीं साहब! हम तो बड़े दयालु हैं। अच्छा! आपके अंदर बहुत दया है तो क्या आप किसी के काम आ सकते हैं? नहीं साहब! हम किसी के काम नहीं आ सकते। हम किसी की सेवा-सहायता नहीं कर सकते। तब फिर आप दयालु कैसे? किस बात के? भाव-संवेदनाएँ भी अपूर्ण हैं, अगर वे क्रिया-काण्डों के साथ समन्वित नहीं हैं। दोनों का समन्वय जरूरी है।