
वास्तविकता को समझें
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आप भजन करें तो आपकी मरजी, न करें तो आपकी मरजी, लेकिन मैं यह जरूर चाहता हूँ कि आपको वास्तविकता की जानकारी होनी ही चाहिए। अगर आपको वास्तविकता की जानकारी नहीं है तो आप उसी तरीके से अज्ञान मैं भटकने वाले लोग हैं, जैसे कि दूसरे लोग और तीसरे लोग अज्ञान में भटकते हैं। आपकी पूजा-उपासना भी अज्ञान में भटकने के अलावा और कुछ नहीं हो सकती है। अगर आपने यह ख्याल करके रखा है कि इस कर्मकाण्ड के माध्यम से, क्रियायोग के माध्यम से आप लक्ष्य को पूरा कर सकते हैं तो यह लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता। लक्ष्य कैसे पूरा हो सकता है? लक्ष्य को पूरा कौन करता है? आत्मा को भगवान की शक्तियाँ कहाँ से मिलती हैं? आत्मा क्या होती है? इस पर विचार करना चाहिए। हमारी चेतना ही परमपिता परमात्मा की चेतना के साथ में मिल सकती है। चेतना के साथ चेतना मिल सकती है। जड़ के साथ जड़ मिल सकता है, आप यह ध्यान रखिए।
मित्रो! चेतना हमारी जीवात्मा है और वह विचारपरक है, भावपरक है, संवेदनापरक है और भगवान? भगवान भी विचारपरक है, भावनापरक है और संवेदनापरक है। दोनों की भावना और विचारणा जिस दिन मिलेगी, उस दिन आपको भगवान के मिलने का आनंद मिल जाएगा। आपको साक्षात्कार का आनंद मिल जाएगा। युग निर्माण का साक्षात्कार मिल जाएगा। जब तक आप मैटर को मैटर से पकड़ने की कोशिश करेंगे, उस दिन तक अज्ञान में भटकने वाले लोगों में आपका नाम भी लिखा जा सकता है। अज्ञान में भटकने वाले लोग वह हैं, जो आँखों के द्वारा मिट्टी से बने हुए शरीरों को देखने के बारे में ख्वाब देखते रहते हैं कि भगवान जी का साक्षात्कार होना चाहिए। अच्छा साहब! कैसा भगवान जी का साक्षात्कार चाहते हैं? हम तो ऐसे रामचंद्र जी का साक्षात्कार चाहते हैं, जो तीर-कमान लेकर घूमते रहते हों। अच्छा तो शरीर किस चीज का बना हुआ होगा, जो आप देखना चाहते हो? साहब, शरीर तो आखिर शरीर ही है, जो मिट्टी-पानी का बनता है, तो आप मिट्टी-पानी के रामचंद्र जी को देखना चाहते हो? हाँ साहब, मिट्टी-पानी के रामचंद्र जी को देखना चाहते हैं।
और किसको देखना चाहते हो? तीर-कमान वाले को देखना चाहते हैं। तीर-कमान किसका बनता है? बाँस का बनता है। बाँस का तीर-कमान धारण करने वाले, मोर-मुकुट पहनने वाले और हाड़-मास का शरीर धारण करने वाले भगवान को आप देखना चाहते हैं? आप उन्हें किससे देखना चाहते हैं? आँख से देखना चाहते हैं। आँखें किस चीज की बनी हुई हैं? चमड़े की बनी हुई हैं, माँस की बनी हुई हैं। तो आप माँस से माँस को देखना चाहते हैं? यही मतलब है न आपका? आप मैटेरियल से मैटेरियल को देखना चाहते हैं। प्रकृति से प्रकृति को देखना चाहते हैं। फिर तो आपको भौतिकवादी कहना चाहिए। यह अध्यात्मवाद नहीं हो सकता।
मित्रो! चेतना हमारी जीवात्मा है और वह विचारपरक है, भावपरक है, संवेदनापरक है और भगवान? भगवान भी विचारपरक है, भावनापरक है और संवेदनापरक है। दोनों की भावना और विचारणा जिस दिन मिलेगी, उस दिन आपको भगवान के मिलने का आनंद मिल जाएगा। आपको साक्षात्कार का आनंद मिल जाएगा। युग निर्माण का साक्षात्कार मिल जाएगा। जब तक आप मैटर को मैटर से पकड़ने की कोशिश करेंगे, उस दिन तक अज्ञान में भटकने वाले लोगों में आपका नाम भी लिखा जा सकता है। अज्ञान में भटकने वाले लोग वह हैं, जो आँखों के द्वारा मिट्टी से बने हुए शरीरों को देखने के बारे में ख्वाब देखते रहते हैं कि भगवान जी का साक्षात्कार होना चाहिए। अच्छा साहब! कैसा भगवान जी का साक्षात्कार चाहते हैं? हम तो ऐसे रामचंद्र जी का साक्षात्कार चाहते हैं, जो तीर-कमान लेकर घूमते रहते हों। अच्छा तो शरीर किस चीज का बना हुआ होगा, जो आप देखना चाहते हो? साहब, शरीर तो आखिर शरीर ही है, जो मिट्टी-पानी का बनता है, तो आप मिट्टी-पानी के रामचंद्र जी को देखना चाहते हो? हाँ साहब, मिट्टी-पानी के रामचंद्र जी को देखना चाहते हैं।
और किसको देखना चाहते हो? तीर-कमान वाले को देखना चाहते हैं। तीर-कमान किसका बनता है? बाँस का बनता है। बाँस का तीर-कमान धारण करने वाले, मोर-मुकुट पहनने वाले और हाड़-मास का शरीर धारण करने वाले भगवान को आप देखना चाहते हैं? आप उन्हें किससे देखना चाहते हैं? आँख से देखना चाहते हैं। आँखें किस चीज की बनी हुई हैं? चमड़े की बनी हुई हैं, माँस की बनी हुई हैं। तो आप माँस से माँस को देखना चाहते हैं? यही मतलब है न आपका? आप मैटेरियल से मैटेरियल को देखना चाहते हैं। प्रकृति से प्रकृति को देखना चाहते हैं। फिर तो आपको भौतिकवादी कहना चाहिए। यह अध्यात्मवाद नहीं हो सकता।