
भावनाओं को परिष्कृत करें
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मित्रो! अगर हमको दयालु बनना है तो हमें लोगों की सेवा करनी चाहिए सहायता करनी चाहिए। दुखी आदमी के काम आना चाहिए। उसके प्रति हमारी आँखों में आँसू होने चाहिए। हमारे हृदय में भावनाओं का विकास होना चाहिए अगर हम अपने भीतर विशालता विकसित करना चाहते हैं। जब हमको ज्ञान इकट्ठा करना है तो किताबों की जरूरत पड़ेगी। ज्ञानवृद्धि के लिए पुस्तकों को पढ़ना आवश्यक है, लेकिन अगर हमको ज्ञान, बुद्धि नहीं बढ़ानी है, हमको नहीं पढ़ना है तो बहुत सी पुस्तकें लाकर जमा कर लें, उससे कोई लाभ नहीं। देखिए गुरुजी! यह रामायण की किताब, यह भागवत् की किताब, ये वेदों की किताबें, चारों वेद हमने आपके यहाँ से मँगाए थे, ये सब रखे हुए हैं। बेटा, बड़ी अच्छी बात है। कोई आएगा तो कह नहीं सकता कि तू वेदपाठी नहीं है। अच्छा बता, तूने इन्हें पढ़ा है क्या? अरे महाराज जी! पढ़ा-वढ़ा तो क्या, मँगाकर रख लिया है। इससे मेरे घर में बड़ा पुण्य हो जाएगा नहीं बेटे, इससे क्या पुण्य हो सकता है? ठीक है, तूने हमारी किताब खरीदी। इससे आठ आने हमें मिल गए तेरी प्रशंसा हो गई। तूने वेदों की पुस्तक मँगा ली, दोनों का उद्देश्य पूरा हो गया। तू अपने घर, हम अपने घर। महाराज जी! तो क्या वेदों का ज्ञान हमें नहीं मिलेगा? नहीं बेटे, कोई ज्ञान नहीं मिलेगा, क्योंकि वेदों को तूने पढ़ा तो है नहीं।
साथियो! अध्यात्म के बारे में यदि आप भावनाओं को परिष्कृत करने की बात समझ जाएँ तो मैं समझ लूँगा कि पचास फीसदी मंजिल आपने पूरी कर ली और आपको आध्यात्मिकता का लाभ उठाने का मौका मिल गया। अगर आपको यह भारी मालूम पड़ता है, कठिन मालूम पड़ता है तो आप अपने पैर इसमें न डालिए। इसमें बड़ा झगड़ा है। साहब! हमें क्या पता था कि इसमें बड़ा झगड़ा है। हमने तो समझा था कि हनुमान चालीसा पढ़ने से हनुमान जी खुश हो जाते हैं, पर अब तो वे खुश नहीं होंगे। हाँ बेटे? पाँच पैसे का तूने हनुमान चालीसा खरीद लिया और तीन घंटे जप कर लिया, अब जो गलती हो गई सो हो गई, अब अपने पैर पीछे ले जा। सारी जिंदगी भर हनुमान चालीसा पढ़ने से तेरा कोई फायदा नहीं हो सकता। अगर हनुमान जी से फायदा उठाना चाहता है तो कर्मकाण्डों के साथ-साथ भावनाओं का समन्वय कर। जिस दिन यह बात तेरी समझ में आ जाएगी, बस समझना चाहिए कि रास्ता खुल गया। तेरे लिए द्वार खुल गया है।
साथियो! अध्यात्म के बारे में यदि आप भावनाओं को परिष्कृत करने की बात समझ जाएँ तो मैं समझ लूँगा कि पचास फीसदी मंजिल आपने पूरी कर ली और आपको आध्यात्मिकता का लाभ उठाने का मौका मिल गया। अगर आपको यह भारी मालूम पड़ता है, कठिन मालूम पड़ता है तो आप अपने पैर इसमें न डालिए। इसमें बड़ा झगड़ा है। साहब! हमें क्या पता था कि इसमें बड़ा झगड़ा है। हमने तो समझा था कि हनुमान चालीसा पढ़ने से हनुमान जी खुश हो जाते हैं, पर अब तो वे खुश नहीं होंगे। हाँ बेटे? पाँच पैसे का तूने हनुमान चालीसा खरीद लिया और तीन घंटे जप कर लिया, अब जो गलती हो गई सो हो गई, अब अपने पैर पीछे ले जा। सारी जिंदगी भर हनुमान चालीसा पढ़ने से तेरा कोई फायदा नहीं हो सकता। अगर हनुमान जी से फायदा उठाना चाहता है तो कर्मकाण्डों के साथ-साथ भावनाओं का समन्वय कर। जिस दिन यह बात तेरी समझ में आ जाएगी, बस समझना चाहिए कि रास्ता खुल गया। तेरे लिए द्वार खुल गया है।