Books - प्रज्ञा पुराण भाग-1
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Language: HINDI
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॥अथ द्वितीयोऽध्याय॥ अध्यात्म दर्शन प्रकरण
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एकदा तु हिमाच्छन्ने ह्मत्तराखण्डमण्डने।
अभयारण्यके ताण्ड्यशमीकोद्दालकास्तथा॥१॥
ऋषय: ऐतरेयश्च ब्रह्मविद्या विचक्षणा:।
तत्वजिज्ञासवो ब्रह्मविद्याया: संगता: समे॥२॥
तत्वचर्चारतानां तु प्रश्न एक उपस्थित:।
महत्वपूर्ण स प्रश्न: सर्वेषां मन आहरत्॥३॥
पिप्पलादं पप्रच्छातो महाप्राज्ञमृषीश्वरम्।
अष्टावक्रो ब्रह्मज्ञानी लोककल्याणहेतवे॥४॥
टीका- हिमाच्छादित उत्तराखण्ड के अंभयारण्यक में एक बार ताण्ड्य, शमीक, उद्दालक तथा ऐतरेय आदि ऋषि ब्रह्म- विद्या के गहन तत्व पर विचार करने के उद्देश्य से एकत्र हुए। तत्व- दर्शन के अनेकानेक प्रसंगों पर विचार करते- करते एक महत्वपूर्ण प्रश्न सामने आया। उसकी महत्ता ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया। महाप्राज्ञ ऋषि पिप्पलाद से लोक- कल्याण की दृष्टि से ब्रह्मज्ञानी अष्टाज्ञानी ने पूछा ॥१- ४॥
व्याख्या- ऋषि धर्मतन्त्र के प्रहरी माने जाते हैं, सदैव जागरुक एवं सामयिक मानवी समस्याओं का समाधान ढूँढ़ने व उन्हें जन- जन तक पहुँचाने वाले।