• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • अद्भुत और विलक्षण यह शरीर
    • आन्तरिक अवयव और भी विलक्षण
    • ऐसी विलक्षणता और कहीं नहीं
    • रोगों को हम ही निमंत्रित करते हैं
    • स्वास्थ्य और दीर्घ जीवन कैसे पायें?
    • महापुरुषों की स्वास्थ्य साधना
    • न शरीर थकता है न मस्तिष्क
    • दीर्घ जीवन प्रकृति की आकांक्षा—
    • सहज सरल प्राकृतिक जीवन
    • आहार संयम—स्वास्थ्य की कुंजी
    • स्वास्थ्य विज्ञान का निष्कर्ष
    • संयम साधें दीर्घायु पावें
    • क्या खायें—कैसे खायें
    • पेट को हल्का ही रखें
    • उपवास भी आवश्यक—
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • अद्भुत और विलक्षण यह शरीर
    • आन्तरिक अवयव और भी विलक्षण
    • ऐसी विलक्षणता और कहीं नहीं
    • रोगों को हम ही निमंत्रित करते हैं
    • स्वास्थ्य और दीर्घ जीवन कैसे पायें?
    • महापुरुषों की स्वास्थ्य साधना
    • न शरीर थकता है न मस्तिष्क
    • दीर्घ जीवन प्रकृति की आकांक्षा—
    • सहज सरल प्राकृतिक जीवन
    • आहार संयम—स्वास्थ्य की कुंजी
    • स्वास्थ्य विज्ञान का निष्कर्ष
    • संयम साधें दीर्घायु पावें
    • क्या खायें—कैसे खायें
    • पेट को हल्का ही रखें
    • उपवास भी आवश्यक—
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - शरीर की अद्भुत क्षमताएँ एवं विशेषताएँ

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


क्या खायें—कैसे खायें

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 12 14 Last
अन्न के दो वर्ग किये जा सकते हैं—एक पौष्टिक वर्ग के अन्न, दूसरे अल्प पौष्टिक तत्व वाले अन्न। गेहूं, चावल, चना, जौ, बाजरा पौष्टिक अन्न हैं। ज्वार, मक्का आदि में पौष्टिकता अपेक्षाकृत कम होती है।दालों, अनाजों, फलों और सागों के बारे में एक तथ्य सदा ध्यान में रखना चाहिए। जहां तक सम्भव हो, इन्हें छिलके समेत खाएं। कोदों या धान जैसे अन्न के बाहरी छिलके तो खाये नहीं जा सकते, इनमें भूसी हटाने के बाद जो अन्न निकलता है, उसका छिलका नहीं हटाना चाहिए। छिलके समेत खाने का कारण यह है कि छिलके सूर्य-किरणों के अधिक स्पर्श में रहते हैं, अतः उनमें जीवन-शक्ति अधिक होती है। दालें सदैव छिलकों समेत खानी चाहिए। अभी सफाई के नाम पर अरहर, चना, मूंग, उड़द आदि की दालों के छिलके अलग कर उन्हें साफ रूप में खाया जाता है। इस प्रक्रिया में छिलके के साथ ही बहुमूल्य पोषक तत्व भी साफ हो चुका होता है। दालें साबुत खाने की आदत डाल ली जाये, उन्हें दलकर दो दलों में विभक्त न किया जाये, तो यह अधिक उपयोगी होता है। जहां दालों के दोनों दल हैं, जिसे बीज की नाक भी कहते हैं। यह छोटा-सा अंश यद्यपि कसैला होता है, पर उसमें अत्यधिक उपयोगी तत्व होते हैं यदि घुन पूरे दाने को भी खा लें किन्तु इस नाक को न खाये, तो खेत में वह बीज बोये जाने पर अंकुरित होकर फूलता-फलता है। किन्तु यदि पूरा दाना साबुत रहा आये और यह नाक, घुन खा जाये, तो फिर वह अंकुरित नहीं हो सकता। इसी से स्पष्ट है कि उसमें ही जीवन्त-शक्ति होती है। दूसरे अन्नों की भी यही स्थिति है। पर गेहूं आदि की रोटी बनानी होती है और दाल चावल व रोटी दोनों के साथ खाई जाती है, अतः दाल को यदि साबुत खाने का अभ्यास हो जाये तो पके भोजन के रूप में भी वह उतनी ही उपयोगी बनी रहती है।
हरी शाक-सब्जी भी अपने प्राकृतिक रूप में खाने पर ही लाभकारी होती है। कच्ची न खायी जा सके, या कच्ची खाने का अभ्यास नहीं हो तो भी धीमी आंच में पकाकर खाई जायं। तेल, घी मिर्च मसाले की अधिकता से उनके गुण नष्ट हो जाते हैं। शाकों में जमीकन्द या सूरन, रतालू और कटहल जैसे दो-चार ही ऐसे वर्ग में आते हैं, जिन्हें अधिक पकाना आवश्यक होता है और जिनमें जीवन-तत्व भी कम होते हैं। शेष को सदा कम पकाना चाहिए। हरा साग जहां जो जब उपलब्ध हो उनका प्रयोग अवश्य करना चाहिए। लौकी, बन्द गोभी, फूलगोभी, भिंडी, बैंगन आदि सबको कम उबालना चाहिए। कई शाक तो कच्चे ही खाये जा सकते हैं और उनमें पोषक तत्व प्रचुरता से पाये जाते हैं।
टमाटर, गाजर, मूली, चुकन्दर खीरा, ककड़ी आदि को कच्चा ही खाया जा सकता है। स्वाद के लिए साथ में नमक, जीरा, काली मिर्च का पुट दे सकते हैं। जिन्हें प्याज खाने में आपत्ति न हो, वे प्याज को शाक रूप में नहीं, कच्चे रूप में ही खायें, तो अधिक लाभ होगा। प्याज, टमाटर, गाजर, लौकी, मूली, ककड़ी, आदि के छोटे-छोटे टुकड़े कर सलाद बना ली जाती है, उसमें धनिया, नमक, नीबू, अदरक सबको मिला देने से यह स्वादिष्ट भी हो जाती है और भरपूर होती है।
प्राकृतिक आहार की दृष्टि से फलों का अपना विशेष स्थान है। केला, आम, पपीता, नीबू, अमरूद, बेल आदि ऋतु फलों को मौसम में अवश्य खाना चाहिए, क्योंकि इनमें जीवन-तत्व होते हैं।
भाजी कोमल होती है। इन्हें अधिक पकाने से इनका कचूमर ही निकल जाता है। अतः धीमी आंच में थोड़ी देर ही पकाये। छौक-बघार की अधिकता न की जाये। भाजी को तेजी से रगड़कर धोना भी नहीं चाहिए। अपितु पानी में हलके हाथ से धोकर साफ कर लेना चाहिए। भाजी और तरकारी को सदा काटने से पहले धो लिया जाय। काटकर फिर धोने पर जीवन-तत्व क्षरित हो जाते हैं। हां यह सदा देख लिया जाये कि उनमें कहीं कोई कीड़े आदि तो नहीं हैं। शाक-सब्जी तथा फलों के साथ भी यह सतर्कता बरतनी चाहिए।
दूध को बहुत अधिक उबालने से उसके भी जीवन-तत्व नष्ट हो जाते हैं। अतः उसे भी एक या दो उफान तक ही उबालना चाहिए। धारोष्ण दूध में जीवन-तत्व अधिक रहते हैं।
इस प्रकार यह सदा ध्यान में रखा जाना चाहिए कि हमारा भोजन जीवन्त हो, मृत और व्यर्थ न हो। मैदा, सूजी आदि अन्न का कचूमर निकाल डालने की ही स्थितियां हैं।फिर उनकी डबल रोटी, पूरी, पकवान बनाना तो उन्हें और कमजोर व हानिकर बना डालता है। यही बात मशीन से पिसे गेहूं के आटे का चोकर छान डालने और चावल की लाल परत हटाकर पालिश कर देने के बारे में है। चावल को रगड़-रगड़कर धोना और फिर माड़ भी निकाल देना, दालों को मसालों और बघार से भून-तलकर गरिष्ठ बना देना ये सभी जीवन-तत्व को नष्ट कर डालने के उपक्रम हैं।
खाद्य-पदार्थों में शक्ति, लावण्य, स्निग्धता और प्राण उनमें निहित जल-तत्व होता है। यह जल, पेड़ अपनी जड़ों के द्वारा धरती के गर्भ से चूसते हैं और फिर फल की कोशिकाओं तक पहुंचते हैं। अतः इस जल-तत्व को जितना सुरक्षित रखा जा सके, खाद्य-पदार्थ उतने ही प्राणवान रहते हैं। जिस पदार्थ के जलतत्व को पका सुखा कर जितना कम कर दिया जायेगा, उसका जीवन-तत्व उसी अनुपात में कम हो जायेगा। तलने से या चिकनाई से भर देने से तो पदार्थों की कोशिकाओं का जल तत्व से सम्बन्ध ही विच्छिन्न हो जाता है और वे निष्प्राण से हो जाते हैं। इन्हें खाने पर पेट में विष-विकार ही तो बढ़ेगा।
खाद्य-पदार्थों को इस तरह जलाने भूनने, रूपांतरित कर डालने के सारे प्रयास मात्र इसलिए ही तो होते हैं कि वे स्वादिष्ट हो जायें और सरलता से खाये जा सकें। किन्तु यदि भोजन इस तरह खाया गया कि दांत और दाढ़ों को पर्याप्त परिश्रम न करना पड़े तो उसमें पर्याप्त लार भी मिल न पायेगी और तब वह दुष्पाच्य हो जायेगा। आखिर भोजन का ठीक से पचना तो आवश्यक ही है, तभी वह रस व शक्ति दे सकेगा, अन्यथा भोजन के ये चार उद्देश्य पूरे न हो सकेंगे—(1) शरीर के टूटे ऊतकों की मरम्मत करना और उन्हें पोषण देना। (2) शरीर की ऊष्मा बनाये रखना तथा जीवनीशक्ति व रोग-प्रतिरोधक-शक्ति को बनाये रखना। (3) शरीर को विकसित करना, और (4) कार्य की शक्ति देना।
भोजन के पदार्थों का चुनाव करते समय भोजन के इन कार्यों को ध्यान में रखा जाये, तो फिर स्पष्ट हो जायेगा कि इस प्रयोजन की पूर्ति के लिए उसमें जीवन-तत्व का बने रहना आवश्यक है उन्हें सदा सुरक्षित रखना चाहिए।
First 12 14 Last


Other Version of this book



शरीर की अद्भुत क्षमताएँ एवं विशेषताएँ
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

त्योहार और व्रत
Type: SCAN
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गर पूछे कोई मुझसे तो मैं कहूँ कि स्वर्ग बस यहीं है
Type: TEXT
Language: EN
...

गर पूछे कोई मुझसे तो मैं कहूँ कि स्वर्ग बस यहीं है
Type: TEXT
Language: EN
...

आध्यात्मिक कायाकल्प का विधि- विधान-२
Type: TEXT
Language: HINDI
...

आध्यात्मिक कायाकल्प का विधि- विधान-२
Type: TEXT
Language: HINDI
...

चेतना सहज स्वभाव स्नेह-सहयोग
Type: SCAN
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • अद्भुत और विलक्षण यह शरीर
  • आन्तरिक अवयव और भी विलक्षण
  • ऐसी विलक्षणता और कहीं नहीं
  • रोगों को हम ही निमंत्रित करते हैं
  • स्वास्थ्य और दीर्घ जीवन कैसे पायें?
  • महापुरुषों की स्वास्थ्य साधना
  • न शरीर थकता है न मस्तिष्क
  • दीर्घ जीवन प्रकृति की आकांक्षा—
  • सहज सरल प्राकृतिक जीवन
  • आहार संयम—स्वास्थ्य की कुंजी
  • स्वास्थ्य विज्ञान का निष्कर्ष
  • संयम साधें दीर्घायु पावें
  • क्या खायें—कैसे खायें
  • पेट को हल्का ही रखें
  • उपवास भी आवश्यक—
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj