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Books - शरीर की अद्भुत क्षमताएँ एवं विशेषताएँ

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


दीर्घ जीवन प्रकृति की आकांक्षा—

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ओटेगी विश्वविद्यालय के सरचार्ल्स हरकस ने यौन में वृद्धावस्था और बुढ़ापे में यौवन का विश्लेषण करते हुए बताया है कि जो लोग बदलती हुई परिस्थितियों के साथ अपना ताल-मेल नहीं बिठा पाते वे जवानी में ही बूढ़े हो जाते हैं और जो परिस्थिति के साथ अनुकूलता उत्पन्न कर लेते हैं वे बुढ़ापे में भी जवान बने रहते हैं।  प्रकृति मनुष्य को जल्दी मरने नहीं देना चाहती। एक बार वृद्धावस्था तक पहुंचने के बाद वह उसे पुनः नवयौवन में वापिस लौटने का अवसर भी देती है। सोवियत रूस के जार्जिया प्रान्त में दस हजार शतायु मनुष्य हैं। इन्हीं में से एक हैं—124 वर्षीय एस. आशा। देखा गया है कि सौ के करीब आयु पहुंचने पर जो थकान आती है वह उस आयु को पार करने पर दूर हो जाती है और तरुणाई के नये चिह्न प्रकट होने लगते हैं। जैसे नये दांत उगना—आंखों की ज्योति में फिर से तेजी आना—कानों की श्रवण शक्ति फिर रही हो जाना आदि।
‘नार्थ चाइन हैरल्ड’ में उत्तर चीन के शांगचुआन ग्राम के निवासी वानशियन—जिच नामक वृद्ध की आयु के सम्बन्ध में अनेकों विश्वस्त प्रमाणों का संग्रह  प्रकाशित करते हुए यह सिद्ध किया गया है कि वह 255 वर्ष तक जिया। उसका भोजन पूर्ण शाकाहारी था और दिन में दो बार ही जो कुछ खाना होता खाता था। लन्दन के थार्म्स कार्न के बारे में भी ऐसा ही दावा किया जाता है कि वे 207 वर्ष की आयु भोग कर मरे थे।
फ्रांस की कोन्टेस डैस्मण्ड कैथराइन, अमेरिका से लुई ट्रस्को लैसोस का सवीना, टेवस बार की चार लैट डैसीन के बारे में भी यही कहा जाता है कि उनने डेढ़ सौ वर्ष के लगभग का दीर्घायुष्य प्राप्त किया है। वे सभी मिताहारी थे। संसार में सबसे अधिक दीर्घजीवी बलगेरिया में पाये जाते हैं और वे लोग प्रायः मांसाहार से दूर रहते हैं।
सोवियत रूस का 160 वर्षीय दीर्घजीवी दार जावू नामक एक छोटे गांव में शिराली मुस्लिमोव रहता था। उसके जनम दिन पर उसके वंशजों को इकट्ठा करके चित्र खींचा गया तो उस फोटोग्राफ में 200 सदस्य उपस्थित थे। उनके वंशजों में से जो मर चुके थे वे 43 थे।
पत्रकारों द्वारा दीर्घजीवन के कुछ जादुई रहस्य जानने के लिए बहुत पूछताछ की, पर उनके हाथों विचित्र जैसा कुछ नहीं लगा। जो उत्तर मिले वे सहज स्वाभाविक एवं साधारण जीवनक्रम अपनाये जाने की ही झांकी कराते थे।
शिराली ने अपनी जीवनचर्या पर प्रकाश डालते हुए नपी-तुली बातें बताईं। ‘मैंने जीवन भर अथक परिश्रम किया—जानवर चराने का छोटा समझा जाने वाला पर-उपयोगी सिद्ध होने वाला काम अपनाया। दीर्घजीवन की सरकारी पेन्शन मिलती है तो भी इस वृद्धावस्था में भी बेकार नहीं बैठता, जितना सम्भव है काम करता ही रहता हूं। मैं तो क्या मेरे पूरे परिवार में कोई शराब, सिगरेट नहीं पीता। मुझे लम्बी पैदल यात्राएं करने का सदा शौक रहा है और जब भी अवसर मिला है उसके लिए कोई न कोई कारण ढूंढ़ लिया है। इस वृद्धावस्था में उन्हें वाकूनगर देखने की इच्छा हुई तो निकटतम रेलवे स्टेशन तक 60 मील की यात्रा पैदल तथा घोड़े पर चढ़कर पूरी की। यात्रा में उनका परपोता उनके साथ था।
उनकी नाड़ी गति प्रति मिनट 60 से 72 तक—रक्तचाप 120—75 तक रहता है जो नैजवानों की तरह सामान्य है। डॉक्टर जब उनके स्वास्थ्य की परीक्षा करने के लिए तरह-तरह के उपकरणों का प्रयोग कर रहे थे तो उनने हंसते हुए कहा—पूरी तरह ठोक-बजा लीजिए, कोई कल-पुर्जा सड़ा-गला नहीं मिलेगा।
वाकू शहर उन्होंने देखा और बड़े आनन्दित हुए साथ ही उनने यह भी कहा—मैं पहाड़ी पर रहने के बदले शहर में रहना कभी पसन्द नहीं करूंगा भले ही शहर कितने ही सुन्दर और सम्पन्न क्यों न हों।
ईरान का सबसे वृद्ध व्यक्ति 195 वर्ष की आयु तक जिया। उसका नाम सैयद अली सलेही है। जन्म इस्फहान में फेरियूदान के समीप कोलोऊ गांव में हुआ। यह एक बहुत छोटी देहात है और जंगली पहाड़ियों से घिरी हुई हैं। पत्रकार उससे भेंट करने ऊंटों पर चढ़कर गये थे और उन्हें इसके लिए लगातार तीन दिन तक यात्रा करनी पड़ी थी। इस व्यक्ति ने कभी जूते नहीं पहने और न तरह-तरह की जीवनचर्याएं बदलीं, एक ही ढर्रे का—एक ही जगह—शान्त और सन्तोषी जीवन जीता रहा। उसने कोई नशा कभी नहीं पिया। वह मरने के दिनों तक 12 मील पैदल चल लेता था। आंखें बिलकुल ठीक काम करती थीं। कानों से कम सुनाई पड़ने लगा था।
दीर्घजीवी सर जेम्स सेयर जो जिन्दगी भर में बहुत ही कम बीमार पड़े थे अपने आरोग्य का सम्बन्ध कुछ अच्छी आदतों के साथ जोड़ते थे। वे कहते थे मैंने छह बातों का सदैव पूरा-पूरा ध्यान रखा। आठ घण्टे पूरी नींद सोना, खुली हवा में सोना, चारपाई को दीवारों से दूर रखना, सामान्य ताप के जल में नित्य प्रातः स्नान, स्वल्प मात्रा में शाकाहार प्रधान भोजन, नित्य टहलना।
ईरान के 191 वर्षीय सैयद अबू तलिव मीसावी ने बताया उसने हंसने खेलने की आदत को आरम्भ से ही अपनाया और उसे सदा मजबूती से पकड़ कर रखा। न कभी वे चिन्ता ग्रसित हुए और न किसी से द्वेष निभाया।
जापान में 118 वर्ष का दीर्घजीवन प्राप्त करने वाली श्रीमती कोवायासी यास्ट का कथन है कि वह आजीवन शाकाहारी रही। चिन्ताओं से मुक्त रहकर सदा गहरी नींद सोई। न कभी नशा पिया और न कभी दवा खाई।
अमेरिका में सबसे अधिक आयु की नीग्रो महिला श्रीमती चार्ली स्मिथ थी जो 121 वर्ष की आयु में भी अपनी दुकान चला लेती थी। फ्रांस में श्रीमती फैलिसी 109 वर्ष की आयु पार कर गई थी। भारत इस सम्बन्ध में अभी भी सौभाग्यवान है सरकारी आंकड़ों के अनुसार अपने देश में अभी भी 60 हजार व्यक्ति सौ वर्ष की आयु को पार कर चुके।
लम्बे समय तक जीवित रहने के कारण तलाश करने में विभिन्न शोध संस्थानों ने बहुत समय और श्रम लगाया है। उन सबके निष्कर्ष किसी जादुई कारण की खोज न कर सके। सभी को इसी नतीजे पर पहुंचना पड़ा कि स्वास्थ्य के सामान्य नियमों का कड़ाई एवं प्रसन्नतापूर्वक पालन करना ही दीर्घजीवन का रहस्य है।
लन्दन युनिवर्सिटी का एक वृद्धावस्था शोध विभाग है उसने जल्दी बुढ़ापा लाने वाले कारणों में मात्रा से अधिक और स्तर में गरिष्ठ भोजन को जल्दी बुढ़ापा लाने वाला कहा है। सर हरमान वेवर ने सौ वर्ष से अधिक जीने वाले 150 व्यक्तियों से भेंट करके उनके दीर्घजीवन का रहस्य पूछा तो उनमें से कुछ उत्तर ऐसे थे जो लगभग सभी ने समान रूप से दिये जैसे भूख से काफी कम खाना, खुली वायु में जीवनयापन करना, सदा कार्यरत रहना, चिन्ता मुक्त हंसी-खुशी की जिन्दगी जीना, जल्दी सोना, जल्दी उठना और निर्द्वन्द्व होकर गहरी नींद सोना, नियमित दिनचर्या अपनाना और नशेबाजी से दूर रहना।
ऐसा ही एक अध्ययन प्रो. नेलसन ने 87 दीर्घजीवियों का किया। वे भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि इनकी शारीरिक बनावट में कोई विशेषता नहीं थी और न उनने कोई विशेष उपचार किये। इन सभी ने हंसी-खुशी का नियमित और व्यवस्थित जीवन जिया। फलस्वरूप वे देर तक जीवित रह सकने योग्य बने रहे।
कैलीफोर्निया के स्वास्थ्य विशेषज्ञ जान वाटस ने कहा—रजा वका का स्वास्थ्य हमें उन खोजों और जानकारियों से पीछे लौटने के लिए कहता है जो हमने बहुत श्रम, धन और प्रयत्नों के साथ संग्रह, धन और प्रयत्नों के साथ संग्रह की हैं। लगता है दीर्घजीवन की कुंजी सादगी और शान्ति के अतिरिक्त और कहीं नहीं है।
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