
स्वास्थ्य और दीर्घ जीवन कैसे पायें?
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लम्बे समय तक एक ही अभ्यास को दोहराते रहने से वह आदत बन जाती है और फिर वही स्वाभाविक भी लगने लगता है। कोई आदत जब स्वाभाविक लगने लगती है तो यह निर्णय कर पाना कठिन हो जाता है कि उससे क्या हानियां हैं और उन हानियों से किस प्रकार बचा जा सकता है। शरीर की विलक्षणताओं, अद्भुत शक्ति और विशेषताओं को हम अपनी अस्वाभाविक आदतों के द्वारा ही नुकसान पहुंचाते हैं तथा बीमार होते रहते हैं। कुल मिलाकर हमारा रहन-सहन आहार-विहार ही कुछ इस प्रकार का हो गया है कि उसमें से अस्सी प्रतिशत को यदि कृत्रिम और बनावटी कहा जाय तो अत्युक्ति न होगी।रहन-सहन और आहार विहार में यह कृत्रिमता बहुत समय से चली आ रही है तथा नयी पीढ़ा को पुरानी पीढ़ी से विरासत में मिलती जाती है। इसलिए उस सम्बन्ध में कोई विचार करने की आवश्यकता ही अनुभव नहीं होती। लेकिन वह कृत्रिम तो है ही। इसीलिए शरीर की प्रकृति दत्त विशेषताओं और शक्तियों में व्यवधान खड़ा हो जाता है तथा लोग आये दिन बीमार पड़ते तथा असमय मृत्यु का ग्रास बनते रहते हैं।
यदि इन कृत्रिमताओं, रहन-सहन और स्वभाव की विसंगतियों को सुधारा जा सके तो स्वस्थ और दीर्घ जीवन प्राप्त किया जा सकता है। संसार के दीर्घ जीवियों से सम्पर्क साथ कर शोधकर्त्ताओं ने यह पता लगाने का प्रयत्न किया है कि वे क्यों कर इतने अधिक समय तक जीवित रह सके जितने तक कि आमतौर से जीवित नहीं रहा जाता। रहस्यों की खोज करने वालों के हाथ सादगी, सरलता, नियमितता और सन्तुष्ट प्रसन्न चित्त रहने जैसी वे सामान्य बातें ही हाथ लगी हैं जिन्हें जानते तो हम सभी हैं पर मानने से पग-पग पर इनकार करते रहते हैं।
रूस के शरीर विज्ञानी इवान पन्नोविच पावलोव लम्बे और स्वस्थ जीवन की सम्भावनाओं पर तीस वर्षों तक शोध प्रयास में निरत रहे और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि कार्यव्यस्त दिनचर्या और प्राकृतिक जीवन आदमी को सक्रिय और निरोग बनाये रहता है। उद्योगी मनुष्य सत्तर वर्ष की आयु तक भली प्रकार कार्य क्षम रह सकता है किन्तु यदि उसे पचपन वर्ष की आयु में निवृत्त होकर ऐसे ही बैठे ठाले दिन बिताने पड़ें तो उसका स्वास्थ्य तेजी से गिरना शुरू हो जायगा। कई तरह की बीमारियां उपजेंगी और मस्तिष्क में बेसिर पैर की सनकें उठने लगेंगी। बुढ़ापा जरा-जीर्ण अवस्था का नाम नहीं वरन् उस मनःस्थिति का नाम है जिसमें भविष्य के सम्बन्ध में उत्साह वर्धक सपने देखना बन्द हो जाता है और निराशा आकर घेरने लगती है। बुढ़ापे के सम्बन्ध में अक्सर हम यह सोचते हैं कि बुढ़ापा जीवन का एक ऐसा समय है जब कि मनुष्य आलसी, निष्क्रिय तथा अनुत्पादक हो जाता है। पर सत्य तो यह है कि संसार के कुछ सर्वोत्तम काम मनुष्य ने बुढ़ापे के उपद्रवों के बावजूद अपनी ढलती उम्र में ही सफलता के साथ किये हैं। इतिहास से उन सब बड़ी उपलब्धियों को यदि निकाल दिया जाय जो कि, मनुष्य ने साठ, सत्तर या अस्सी वर्ष की अवस्था में प्राप्त कीं, तो दुनिया की इतनी बड़ी क्षति होगी, जिसकी पूर्ति नहीं हो सकेगी।
यदि इन कृत्रिमताओं, रहन-सहन और स्वभाव की विसंगतियों को सुधारा जा सके तो स्वस्थ और दीर्घ जीवन प्राप्त किया जा सकता है। संसार के दीर्घ जीवियों से सम्पर्क साथ कर शोधकर्त्ताओं ने यह पता लगाने का प्रयत्न किया है कि वे क्यों कर इतने अधिक समय तक जीवित रह सके जितने तक कि आमतौर से जीवित नहीं रहा जाता। रहस्यों की खोज करने वालों के हाथ सादगी, सरलता, नियमितता और सन्तुष्ट प्रसन्न चित्त रहने जैसी वे सामान्य बातें ही हाथ लगी हैं जिन्हें जानते तो हम सभी हैं पर मानने से पग-पग पर इनकार करते रहते हैं।
रूस के शरीर विज्ञानी इवान पन्नोविच पावलोव लम्बे और स्वस्थ जीवन की सम्भावनाओं पर तीस वर्षों तक शोध प्रयास में निरत रहे और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि कार्यव्यस्त दिनचर्या और प्राकृतिक जीवन आदमी को सक्रिय और निरोग बनाये रहता है। उद्योगी मनुष्य सत्तर वर्ष की आयु तक भली प्रकार कार्य क्षम रह सकता है किन्तु यदि उसे पचपन वर्ष की आयु में निवृत्त होकर ऐसे ही बैठे ठाले दिन बिताने पड़ें तो उसका स्वास्थ्य तेजी से गिरना शुरू हो जायगा। कई तरह की बीमारियां उपजेंगी और मस्तिष्क में बेसिर पैर की सनकें उठने लगेंगी। बुढ़ापा जरा-जीर्ण अवस्था का नाम नहीं वरन् उस मनःस्थिति का नाम है जिसमें भविष्य के सम्बन्ध में उत्साह वर्धक सपने देखना बन्द हो जाता है और निराशा आकर घेरने लगती है। बुढ़ापे के सम्बन्ध में अक्सर हम यह सोचते हैं कि बुढ़ापा जीवन का एक ऐसा समय है जब कि मनुष्य आलसी, निष्क्रिय तथा अनुत्पादक हो जाता है। पर सत्य तो यह है कि संसार के कुछ सर्वोत्तम काम मनुष्य ने बुढ़ापे के उपद्रवों के बावजूद अपनी ढलती उम्र में ही सफलता के साथ किये हैं। इतिहास से उन सब बड़ी उपलब्धियों को यदि निकाल दिया जाय जो कि, मनुष्य ने साठ, सत्तर या अस्सी वर्ष की अवस्था में प्राप्त कीं, तो दुनिया की इतनी बड़ी क्षति होगी, जिसकी पूर्ति नहीं हो सकेगी।