• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • युग—निर्माण सत्—संकल्प
    • हम आस्तिकता और कर्तव्यपरायणता को मानव जीवन का धर्म कर्तव्य मानेंगे।
    • शरीर को भगवान का मन्दिर समझ कर आत्म-संयम और नियमितता द्वारा आरोग्य की रक्षा करेंगे।
    • मन को जीवन का केन्द्र-बिन्दु मानकर उसे सदा स्वच्छ रखेंगे। कुविचारों और दुर्भावनाओं से इसे बचाये रखने के लिए स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था रखे रहेंगे।
    • अपने आपको समाज का एक अभिन्न अंग मानेंगे और सबके हित में अपना हित समझेंगे।
    • व्यक्तिगत स्वार्थ एवं सुख को सामूहिक स्वार्थ एवं सामूहिक हित से अधिक महत्व देंगे।
    • नागरिकता, नैतिकता, मानवता, सच्चरित्रता, शिष्टता, उदारता, आत्मीयता, समता, सहिष्णुता, श्रमशीलता, जैसे सद्गुणों को सच्ची सम्पत्ति समझकर इन्हें व्यक्तिगत जीवन में निरन्तर बढ़ाते रहेंगे।
    • साधना, स्वाध्याय, संयम एवं सेवा कार्यों में आलस्य और प्रमाद न होने देंगे।
    • चारों ओर मधुरता, स्वच्छता, सादगी एवं सज्जनता का वातावरण उत्पन्न करेंगे।
    • परम्पराओं की तुलना में विवेक को महत्व देंगे।
    • अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा नीति पर चलते हुए असफलता को शिरोधार्य करेंगे।
    • हमारा जीवन स्वार्थ के लिए नहीं, परमार्थ के लिए होगा।
    • दूसरों के साथ वह व्यवहार न करेंगे जो हमें अपने लिए पसन्द नहीं।
    • पत्नीव्रत धर्म और पतिव्रत धर्म का परिपूर्ण निष्ठा के साथ पालन करेंगे।
    • ‘मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है’। इस विश्वास के आधार पर हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेष्ठ बनायेंगे तो युग अवश्य बदलेगा। हमारा युग-निर्माण संकल्प अवश्य पूर्ण होगा।
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • युग—निर्माण सत्—संकल्प
    • हम आस्तिकता और कर्तव्यपरायणता को मानव जीवन का धर्म कर्तव्य मानेंगे।
    • शरीर को भगवान का मन्दिर समझ कर आत्म-संयम और नियमितता द्वारा आरोग्य की रक्षा करेंगे।
    • मन को जीवन का केन्द्र-बिन्दु मानकर उसे सदा स्वच्छ रखेंगे। कुविचारों और दुर्भावनाओं से इसे बचाये रखने के लिए स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था रखे रहेंगे।
    • अपने आपको समाज का एक अभिन्न अंग मानेंगे और सबके हित में अपना हित समझेंगे।
    • व्यक्तिगत स्वार्थ एवं सुख को सामूहिक स्वार्थ एवं सामूहिक हित से अधिक महत्व देंगे।
    • नागरिकता, नैतिकता, मानवता, सच्चरित्रता, शिष्टता, उदारता, आत्मीयता, समता, सहिष्णुता, श्रमशीलता, जैसे सद्गुणों को सच्ची सम्पत्ति समझकर इन्हें व्यक्तिगत जीवन में निरन्तर बढ़ाते रहेंगे।
    • साधना, स्वाध्याय, संयम एवं सेवा कार्यों में आलस्य और प्रमाद न होने देंगे।
    • चारों ओर मधुरता, स्वच्छता, सादगी एवं सज्जनता का वातावरण उत्पन्न करेंगे।
    • परम्पराओं की तुलना में विवेक को महत्व देंगे।
    • अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा नीति पर चलते हुए असफलता को शिरोधार्य करेंगे।
    • हमारा जीवन स्वार्थ के लिए नहीं, परमार्थ के लिए होगा।
    • दूसरों के साथ वह व्यवहार न करेंगे जो हमें अपने लिए पसन्द नहीं।
    • पत्नीव्रत धर्म और पतिव्रत धर्म का परिपूर्ण निष्ठा के साथ पालन करेंगे।
    • ‘मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है’। इस विश्वास के आधार पर हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेष्ठ बनायेंगे तो युग अवश्य बदलेगा। हमारा युग-निर्माण संकल्प अवश्य पूर्ण होगा।
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - युग निर्माण सत्-संकल्प की दिशा-धारा

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


दूसरों के साथ वह व्यवहार न करेंगे जो हमें अपने लिए पसन्द नहीं।

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 12 14 Last
हम चाहते हैं कि दूसरे लोग हमारे साथ सज्जनता का, उदार और मधुर व्यवहार करें जो हमारी प्रगति में सहायक हो और ऐसा कार्य न करें जिससे प्रसन्नता और सुविधा में किसी प्रकार का विघ्न उत्पन्न हो। ठीक ऐसी ही आशा दूसरे लोग भी हम से करते हैं? जब हम ऐसा सोचते हैं कि अपने स्वार्थ की पूर्ति में कोई आंच न आने दी जाय और दूसरों से अनुचित लाभ उठा लें, तो वैसी ही आकांक्षा दूसरे भी हम से क्यों न करेंगे? लेने और देने के दो बांट रखने में ही सारी गड़बड़ी पैदा होती है। यदि यही ठीक है कि हम किसी के सहायक न बनें, किसी के काम न आवें, किसी से उदारता नम्रता और क्षमा की नीति न बरतें तो इस के लिए भी तैयार रहना चाहिए कि दूसरे लोग हमारे साथ वैसा ही धृष्टता बरतेंगे तो हम अपने मन में कुछ बुरा न मानेंगे।
जब हम रेल में चढ़ते हैं और दूसरे लोग पैर फैलाये बिस्तर जमाये बैठे होते हैं तो हमें खड़ा रहना पड़ता है। उन लोगों से पैर समेट लेने और हमें भी बैठ जाने देने के लिए कहते हैं तो वे लड़ने आते हैं। झंझट से बचने के लिए हम खड़े-खड़े अपनी यात्रा पूरी करते हैं और मन ही मन उन जगह घेरे बैठे लोगों की स्वार्थपरता और अनुदारता को कोसते हैं। पर जब हमें जगह मिल जाती है। तो हम भी वैसा ही व्यवहार करते हैं। उसी तरह पैर फैला लेते हैं और नये यात्रियों के प्रति ठीक वैसे ही निष्ठुर बन जाते हैं। क्या यह दुहरा दृष्टिकोण उचित है?
हमारी कन्या विवाह योग्य हो जाती है तो हम चाहते हैं कि लड़के वाले बिना दहेज के सज्जनोचित व्यवहार करते हुए विवाह सम्बन्ध स्वीकार करें, दहेज मांगने वालों को बहुत कोसते हैं। पर जब अपना लड़का विवाह योग्य हो जाता है तो हम भी ठीक वैसा ही अनुदारता दिखाते हैं जैसी अपनी लड़की के विवाह अवसर पर दूसरों ने दिखाई थी। कोई हमारी चोरी, बेईमानी कर लेता है, ठग लेता है तो बहुत बुरा लगता है, पर प्रकारान्तर से वैसी ही नीति अपने कारोबार में हम भी बरतते हैं और तब उस चतुरता पर प्रसन्न होते और गर्व अनुभव करते हैं। यह दुमुंही नीति बरती जाती रही तो मानव समाज में सुख-शान्ति कैसे कायम रह सकेगी?
कोई व्यक्ति अपनी जरूरत के वक्त कुछ उधार हमसे ले जाता है तो हम यही आशा करते हैं कि आड़े वक्त ही इस सहायता को सामने वाला व्यक्ति कृतज्ञता पूर्वक याद रखेगा और जल्दी से जल्दी इस उधार को लौटा देगा। यदि वह वापिस देते वक्त आंखें बदलता है तो हमें कितना बुरा लगता है। यदि इसी बात को ध्यान में रखा जाय और किसी के उधार को लौटाने के लिए अपनी आकांक्षा के अनुरूप ही ध्यान रखा जाय तो कितना अच्छा हो। हम किसी का उधार आवश्यकता से अधिक एक क्षण भी क्यों रोक रखें। हम दूसरों से यह आशा करते हैं कि वे जब भी कुछ कहें या उत्तर दें, नम्र शिष्ट, मधुर और प्रेम भरी बातों से सहानुभूति पूर्ण रुख के साथ बोलें। कोई कटुता, रुखाई निष्ठुरता, उपेक्षा और अशिष्टता के साथ जवाब देता है तो अपने को बहुत दुख होता है। यदि यह बात मन में समा जाय तो फिर हमारी वाणी में सदा शिष्टता और मधुरता ही क्यों न घुली रहेगी? अपने कष्ट के समय हमें दूसरों की सहायता विशेष रूप से अपेक्षित होती है इस बात को ध्यान में रखा जाय तो जब दूसरे लोग कष्ट में पड़े हों, उन्हें हमारी सहायता की अपेक्षा हो तो तब क्या यही उचित है कि हम निष्ठुरता धारण कर लें? अपने बच्चों से हम यह आशा करते हैं कि बुढ़ापे में हमारी सेवा करेंगे हमारे किये उपकारों का प्रतिफल कृतज्ञता पूर्वक चुकावेंगे। पर अपने बूढ़े मां बाप के प्रति हमारा व्यवहार बहुत ही उपेक्षा पूर्ण रहता है। इस दुहरी नीति का क्या कभी कोई सत्परिणाम निकल सकता है?
हम चाहते हैं कि हमारी बहू-बेटियों की दूसरे लोग इज्जत करें, उन्हें अपनी बहिन-बेटी की निगाह से देखें। फिर यह क्यों कर उचित होगा कि हम दूसरों की बहिन-बेटियों को दुष्टता भरी दृष्टि से देखें? अपने दुख के समान ही दूसरों को जो समझेगा वह मांस कैसे खा सकेगा?  दूसरों पर अन्याय और अत्याचार कैसे कर सकेगा? किसी को बेईमानी करने, किसी को तिरस्कृत, लांछित और जलील करने की बात कैसे सोचेगा? अपनी छोटी-मोटी भूलों के बारे में हम यही आशा करते हैं कि लोग उन पर बहुत ध्यान न देंगे, ‘क्षमा करो और भूल जाओ’ की नीति अपनावेंगे तो फिर हमें भी उतनी ही उदारता मन में क्यों नहीं रखनी चाहिये और कभी किसी से कोई दुर्व्यवहार अपने साथ बन पड़ा है तो उसे क्यों न भुला देना चाहिए।
अपने साथ हम दूसरों से जिस सज्जनतापूर्ण व्यवहार की आशा करते हैं उसी प्रकार की नीति हमें दूसरों के साथ अपनानी चाहिए। हो सकता है कि कुछ दुष्ट लोग हमारी सज्जनता के बदल में उसके अनुसार व्यवहार न करें। उदारता का लाभ उठाने वाले और स्वयं निष्ठुरता धारण किये रहने वाले नर पशुओं की इस दुनियां में कमी नहीं है। उदार और उपकारी पर ही घात चलाने वाले लोग हर जगह भरे हैं। उनकी दुर्नीति का अपने को शिकार न बनना पड़े, इसकी सावधानी तो रखनी चाहिए, पर अपने कर्तव्य और सौजन्य को इसलिए नहीं छोड़ देना चाहिए कि उसके लिए सत्पात्र नहीं मिलते। बादल हर जगह वर्षा करते हैं, सूर्य और चन्द्रमा हर जगह अपना प्रकाश फैलाते हैं, पृथ्वी सब किसी का भार और मल-मूत्र उठाती है, फिर हमें भी वैसी ही महानता और उदारता का परिचय क्यों नहीं देना चाहिए?
उदार प्रकृति के लोग कई बार चालाक लोगों द्वारा ठगे जाते हैं और उससे उन्हें घाटा भी रहता है, पर उनकी सज्जनता से प्रभावित होकर दूसरे लोग जितनी उनकी सहायता करते हैं उस लाभ के बदले में ठगे जाने का घाटा कम ही रहता है। सब मिलाकर वे लाभ में ही रहते हैं। इसी प्रकार स्वार्थी लोग किसी के काम नहीं आने से अपना कुछ हर्ज या हानि होने का अवसर नहीं आने देते, पर उनकी कोई सहायता नहीं करता तो वे उस लाभ से वंचित भी रहते हैं। ऐसी दशा में वह अनुदार चालक व्यक्ति, उस उदार और भोले व्यक्ति की अपेक्षा घाटे में हो रहता है। दुहरे बांट रखने वाले बेईमान दुकानदारों को कभी फलते फूलते नहीं देखा गया। स्वयं खुदगर्जी और अशिष्टता बरतने वाले लोग जब दूसरों से सज्जनता और सहायता की आशा करते हैं तो ठीक दुहरे बांट वाले बेईमान दुकानदार का अनुकरण करते हैं। ऐसा व्यवहार कभी किसी के लिए उन्नति और प्रसन्नता का कारण नहीं बन सकता।
-16-
ईमानदारी और परिश्रम की कमाई ही ग्रहण करेंगे।
युग निर्माण सत्संकल्प में यह बल पूर्वक कहा गया है कि हम दूसरों से वैसा ही मधुर व्यवहार करें जैसा अपने लिए दूसरों से चाहते हैं। इस व्यवहार में ईमानदारी का स्थान सर्वोपरि है। चापलूस, ठग और खुशामदी लोग भी मीठी वाणी तो खूब बोल सकते हैं पर उनकी नीयत खराब होने से, स्वार्थ सिद्धि का प्रयोजन छिपा रहने से, वह मधुरता निन्दनीय ही बन कर रह जाती है। मधुरता की महत्ता तभी है जब उसके साथ ईमानदारी भी जुड़ी हुई हो। ईमानदारी और सद्भावना को सोना कहा जा सकता है, तो मधुरता शिष्टता की सुगन्ध। सोने का मूल्य अधिक है सुगन्ध का कम। लोहे पर सुगन्ध लगा दी जाय तो उसकी उतनी प्रशंसा नहीं हो सकती। बेईमान, मधुर भाषी तो और भी अधिक खतरनाक होते हैं। उन्हें पहचानना कठिन पड़ता है, इसलिए बहुधा उनसे अधिक धोखा खाया जाता है।
ईमानदारी की कमाई औषधि रूप है जो थोड़ी खाई जाने पर भी बहुत गुण करती है। फिजूल-खर्ची को छोड़कर यदि मितव्ययिता के साथ काम चलाया जाय तो कम आमदनी वाले लोग भी आनन्दपूर्वक हंसी खुशी का जीवन व्यतीत कर सकते हैं। आमदनी बढ़ाने का प्रयत्न करना उचित है, जिससे जीवन विकास के लिए उचित साधन सामग्री जुटाई जा सके और किन्हीं दूसरों का भी भला किया जा सके। धन बुरा नहीं, आवश्यक वस्तु है, अपनी क्षमता, योग्यता और श्रमशीलता के द्वारा कमाया जाता है और साथ ही उसे उपयोगी कार्यों में लगाया जाना भी आवश्यक है। धन निन्दनीय तभी होता है जब उसे अनीतिपूर्वक, कुमार्ग से कमाया जाय, व्यसनों और अपव्यय में बर्बाद किया जाय अथवा जोड़-जोड़कर जमा किया जाय।
कई व्यक्ति लालच के मारे अधिक कमाने की लालसा में अनीति का रास्ता पकड़ लेते हैं और अवांछनीय रीति से, दूसरों को सताकर बिना परिश्रम के, लोगों की मजबूरियों से अनुचित लाभ उठाकर बहुत धन कमाने लगते हैं। कई तो जुआ, सट्टा, चोरी, मुनाफाखोरी, रिश्वत, धोखेबाजी, कमतोल, कमनाप, मिलावट आदि अनैतिक तरीकों को ही अपनी बुद्धिमानी का चिह्न और जल्दी धनी बनाने का तरीका मान बैठते हैं। ऐसे लोग दूसरों के भोलेपन और अज्ञान का अनुचित लाभ उठाकर कई बार जल्दी धनी भी बन जाते हैं पर वह धन देर तक ठहरता नहीं। उसकी बर्बादी ऐसी बुरी तरह होती है कि हृदय में पश्चाताप और सिर पर पाप की पोटली के अतिरिक्त और कुछ हाथ नहीं रहता। किसी कुकर्मी को इस संसार में फलते-फूलते नहीं देखा गया कुमार्ग से कमाया हुआ धन कुछ देर के लिए मन को प्रसन्नता दे सकता है पर अन्त में वह रुलाता हुआ ही विदा होता है। बिना परिश्रम किये मुफ्त में मिला हुआ धन भी बुराइयों को ही जन्म देता है। पैतृक उत्तराधिकार के रूप से जिन्हें बहुत सा धन अनायास ही मिल गया है वे अपने शील सदाचार को कदाचित ही कभी स्थिर रख पाते हैं। उनमें अनायास ढेरों दुर्गुण उपज पड़ते हैं और वे अन्ततः उनके पतन का कारण बनते हैं।
सखिया का विष खाने से तुरन्त मृत्यु हो जाती है और कुचला खाने से प्राण निकलने में कुछ देर लगती है। बेईमानी की कमाई और मुफ्त में मिली दौलत में इतना ही अन्तर होता है जितना सखिया और कुचला में। अखाद्य दोनों ही हैं और दोनों ही हानिकर भी। इसलिए हर आदमी को ध्यान रखना चाहिए कि वह ईमानदारी से कमावे और परिश्रम पूर्वक उपार्जन करे। इस प्रकार यदि थोड़ा भी कमाया जा सके तो उसी से काम चला लेना चाहिए। जितनी अक्ल गलत तरीके में कमाने में खर्च की जाती है उतनी यदि खर्च घटाने, व्यवस्थित जीवन बनाने और श्रमशीलता एवं योग्यता बढ़ाने में खर्च की जाय तो निश्चय ही अपनी आर्थिक समस्या को हर कोई बड़ी आसानी से हल कर सकता है। ईमानदारी की कमाई से जो आत्म-सन्तोष रहता है उससे स्वास्थ्य की सुरक्षा, ईश्वरीय प्रकोप से निश्चिन्तता, हर दिशा में फलने-फूलने की सम्भावना बनी रहती है और हर भले आदमी की दृष्टि में अपना महत्व एवं गौरव बढ़ा-चढ़ा रहने से हर घड़ी आन्तरिक प्रफुल्लता बनी रहती है। आत्मकल्याण और पारलौकिक सद्गति का भी यही मार्ग है। इस सन्मार्ग को अपनाना ही बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता का चिन्ह माना जाता है।
First 12 14 Last


Other Version of this book



युग निर्माण सत्-संकल्प की दिशा-धारा
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • युग—निर्माण सत्—संकल्प
  • हम आस्तिकता और कर्तव्यपरायणता को मानव जीवन का धर्म कर्तव्य मानेंगे।
  • शरीर को भगवान का मन्दिर समझ कर आत्म-संयम और नियमितता द्वारा आरोग्य की रक्षा करेंगे।
  • मन को जीवन का केन्द्र-बिन्दु मानकर उसे सदा स्वच्छ रखेंगे। कुविचारों और दुर्भावनाओं से इसे बचाये रखने के लिए स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था रखे रहेंगे।
  • अपने आपको समाज का एक अभिन्न अंग मानेंगे और सबके हित में अपना हित समझेंगे।
  • व्यक्तिगत स्वार्थ एवं सुख को सामूहिक स्वार्थ एवं सामूहिक हित से अधिक महत्व देंगे।
  • नागरिकता, नैतिकता, मानवता, सच्चरित्रता, शिष्टता, उदारता, आत्मीयता, समता, सहिष्णुता, श्रमशीलता, जैसे सद्गुणों को सच्ची सम्पत्ति समझकर इन्हें व्यक्तिगत जीवन में निरन्तर बढ़ाते रहेंगे।
  • साधना, स्वाध्याय, संयम एवं सेवा कार्यों में आलस्य और प्रमाद न होने देंगे।
  • चारों ओर मधुरता, स्वच्छता, सादगी एवं सज्जनता का वातावरण उत्पन्न करेंगे।
  • परम्पराओं की तुलना में विवेक को महत्व देंगे।
  • अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा नीति पर चलते हुए असफलता को शिरोधार्य करेंगे।
  • हमारा जीवन स्वार्थ के लिए नहीं, परमार्थ के लिए होगा।
  • दूसरों के साथ वह व्यवहार न करेंगे जो हमें अपने लिए पसन्द नहीं।
  • पत्नीव्रत धर्म और पतिव्रत धर्म का परिपूर्ण निष्ठा के साथ पालन करेंगे।
  • ‘मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है’। इस विश्वास के आधार पर हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेष्ठ बनायेंगे तो युग अवश्य बदलेगा। हमारा युग-निर्माण संकल्प अवश्य पूर्ण होगा।
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj